डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन: आधार व UPI जैसी कृषि क्रांति की तैयारी
बीते दिनों मोदी सरकार की यूनियन कैबिनेट ने मिशन मोड में सात बड़े फैसले लिए हैं, जिसमें 14000 करोड़ रुपये कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए स्वीकृत किए गए हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कृषि आधारित डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, जिसे किसानों के लिए लाया जा रहा है। यह कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों के लिए स्वीकृत किया गया है। इसके अंतर्गत किसानों को किसान आईडी भी दी जाएगी।
इन योजनाओं का विशेष ध्यान शोध और नवाचार, पर्यावरण संगरोध (क्लाइमेट रेसिलियंस), प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, और कृषि क्षेत्र के डिजिटाइजेशन पर होगा। इसके अलावा, लाइवस्टॉक और बागवानी को भी इससे विशेष मदद मिलेगी।
देश में कृषि का सकल घरेलु उत्पाद में योगदान 15 प्रतिशत है लेकिन भारत में आज भी 65 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुए हैं और सरकार की अहम् चिंता यही है की कृषि पर जलवायु परिवर्तन से देश की 65 प्रतिशत आबादी पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
इसलिए मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का मुख्य उद्देश्य किसानों को पर्यावरण संगरोध (क्लाइमेट-रेसिस्टेंट) के लिए तैयार करना है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन विश्व की एक बड़ी समस्या बन चुका है और भारत में एक क्लाइमेट इमरजेंसी जैसी स्थितियां कहीं कहीं दिखना भी शुरू हो चूका है। अगर अचानक बारिश होती है या तापमान बढ़ता है, तो किसान अपनी फसल कैसे बचा पाएंगे, यह सीखना बहुत जरूरी हो गया है। इन योजनाओं के क्रियान्वयन से सरकार भी सटीकता से हर किसान को बेहतर ढंग से मदद कर सकेगी।
कृषि कल्याण की सात नई योजनाएँ:
पहली योजना है डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन और इसके लिए 2817 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसका उद्देश्य किसानों के जीवन को डिजिटल तकनीक के माध्यम से आसान बनाना है।
दूसरा क्रॉप साइंस फॉर फूड एंड न्यूट्रिशनल सिक्योरिटी है जिसके तहत 3979 करोड़ रुपये की योजना बनाई गई है, जो कृषि विज्ञान और खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित है।
तीसरा है एग्रीकल्चरल एजुकेशन एंड मैनेजमेंट जिसके लिए 2300 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिससे कृषि शिक्षा और सामाजिक विज्ञान में मजबूती आएगी।
चौथी योजना है सस्टेनेबल लाइवस्टॉक हेल्थ एंड प्रोडक्शन जो 1702 करोड़ रुपये की योजना इस क्षेत्र के लिए बनाई गई है। इसके द्वारा कृषि क्षेत्र में पशुधन और उनके उत्पादों के गुणवत्ता और उत्पाद को बढ़ावा देने की बात की गई है।
पांचवी योजना है सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर और इसके तहत 860 करोड़ रुपये का फंडिंग किया गया है जो बागवानी क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन लाने हेतु सहयोग करेगा। छठवीं योजना के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्रों को अधिक मजबूत करने के लिए 1202 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। सातवीं योजना है नैचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट जिसके लिए भी 1115 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन:
डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके तहत सरकार डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) का निर्माण करना चाहती है। यह डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर कृषि क्षेत्र के लिए बनाया जाएगा, जिसमें किसानों को विभिन्न सुविधाएँ डिजिटल रूप से प्राप्त होंगी। आधार की तरह ही हर किसान को एक फार्मर आईडी दी जाएगी, जिसमें उसकी भूमि, फसल, और स्कीम्स का विवरण होगा। यह डेटा देश भर में लागू किया जाएगा, और इसे अगले कुछ वर्षों में पूरा करने की योजना है।
मिशन पर कुल 2817 करोड़ रुपये खर्च किए जाएँगे, जिसमें से केंद्र सरकार 1940 करोड़ रुपये वहन करेगी, और बाकी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश इसका हिस्सा होंगी। इस मिशन के अंतर्गत डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का उद्देश्य यह है कि सभी किसान इससे लाभान्वित हों। अगले दो सालों में (2025-26) यह योजना पूरे देश में लागू की जाएगी। इससे किसानों की उत्पादकता और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होगा।
इस मिशन को लाने की योजना सरकार ने 2021-22 में ही बनाई थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। हालांकि, 2023-24 और 2024-25 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने इस मिशन को पुनः शुरू करने की घोषणा की, जिसमें राज्यों के साथ मिलकर इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का संकल्प लिया गया।
डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन का उद्देश्य और संरचना:
इस मिशन का मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) का निर्माण करना है, जिसमें सभी किसानों की जमीन और खेती से जुड़ी जानकारी को डिजिटल रूप से संगृहीत किया जाएगा। इसका सबसे प्रमुख कंपोनेंट एग्री स्टैक है, जो कि तीन हिस्सों में विभाजित है:
- किसान रजिस्ट्री: आधार की तरह, हर किसान को एक डिजिटल पहचान यानी किसान आईडी दी जाएगी। इसमें किसान की जमीन, उसका पशुधन, कौन-कौन सी फसलें वह उगाता है, और कौन-कौन सी सरकारी योजनाओं का लाभ उसने उठाया है, जैसी जानकारी शामिल होगी। इस प्रणाली के तहत, अब तक छह जिलों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू हो चुका है, जिसमें उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद और गुजरात के गांधीनगर शामिल हैं। सरकार का लक्ष्य है कि 2024-25 तक 6 करोड़ किसानों की डिजिटल आईडी बन जाए और 2026-27 तक यह संख्या 11 करोड़ तक पहुंच जाए। इसके लिए 5000करोड़ का बजट मोदी सरकार द्वारा गत माह जारी किया जा चूका है
- फ़सल बुआई रजिस्ट्री: यह किसानों की बुआई की फसलों का डेटाबेस तैयार करने के लिए हर सीजन में मोबाइल आधारित सर्वेक्षण करेगा। यह सर्वेक्षण पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 11 राज्यों में हो चुका है और अगले दो सालों में 400 जिलों को कवर करने का लक्ष्य है और 2025-26 तक सम्पूर्ण भारत में इसे पूर्ण कर लिया जायेगा
- जियो रेफरेंस ग्रामीण नक़्शे: यह योजना भूमि के भौगोलिक डेटा को फिजिकल लोकेशन से जोड़ने का काम करेगी, ताकि किसानों की जमीन और उसकी स्थिति को लेकर सटीक जानकारी प्राप्त की जा सके।
कृषि निर्णय सहायता तंत्र (डिसीजन सपोर्ट सिस्टम):
इसका मतलब है कृषि डिसीजन सपोर्ट सिस्टम, जिसके तहत एक भौगोलिक सटीकता का विशेष सिस्टम बनाया जाएगा और इसमें भूमि अभिलेख, फ़सल की जानकारी, मिट्टी की जानकारी, मौसम की जानकारी और जल संसाधनों को सटीकता से एकत्रित किया जाएगा। इसका उद्देश्य यह है कि सरकार को देश भर में विभिन्न फसलों की जानकारी मिल सके और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सके। इससे किसानों को इंश्योरेंस क्लेम प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।
सोइल प्रोफाइल मैप के तहत देश भर में मिट्टी की गुणवत्ता का विस्तृत सर्वे किया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि मिट्टी की क्षमता क्या है और उसे बेहतर कैसे बनाया जा सकता है। इसके तहत 142 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि का सर्वेक्षण किया जा रहा है, जिसमें से 29 मिलियन हेक्टेयर भूमि का सर्वेक्षण पहले ही पूरा हो चुका है। इस मिशन का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है डिजिटल जनरल क्रॉप एस्टिमेशन सर्वे, जिसके माध्यम से यह अनुमान लगाया जाएगा कि देश में कितना अनाज उत्पादन हो रहा है। इससे सरकार को सटीक जानकारी मिलेगी और वह उचित योजनाएँ बना सकेगी।
डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की तैयारी कर रहा है। इसके तहत किसानों की पहचान, उनकी फसलें, भूमि और अन्य जानकारी डिजिटल रूप से सुरक्षित की जाएगी। यह मिशन न केवल किसानों की उत्पादकता और आय को बढ़ाएगा, बल्कि उन्हें जलवायु परिवर्तन और अन्य चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाएगा।
जलवायु परिवर्तन रोधी कृषि पर सरकार के प्रभावी कदम:
मोदी सरकार तात्कालिक कृषि लक्ष्यों के साथ भारतीय कृषि को अगले 100 वर्षों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तैयार कर रही है। NICRA भारत सरकार की एक परियोजना है जो कृषि में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्य करती है और इसके चार घटक हैं जो इन पैरामीटर पर आधारित हैं: अनुसंधान, तकनीकी प्रदर्शन, क्षमता निर्माण, और प्रतिस्पर्धा प्रायोजित अनुसंधान। संस्था कई वर्षों के स्थानीय जलवायु परिवर्तनों का सिमुलेशन और इसके जलवायु परिवर्तनों को अवशोषित करने की क्षमता का आकलन करते हैं। इन सिमुलेशन को तीन समयावधियों में विभाजित करते हैं। पहला, Near Century, 2030 के दशक में बदलाव को देखता है। Mid-Century 2050 के दशक में जलवायु परिवर्तनों पर ध्यान केंद्रित करता है और End Century 2100 के दशक में बदलाव पर केंद्रित है। संस्था फसल की उपज में बदलाव और कृषि परम्पराओं या प्रौद्योगिकी-आधारित हस्तक्षेपों को देखती है।
भारत के अबतक लगभग 650 कृषि जिलों की पहचान की गई है और प्रत्येक जिले की रिस्क प्रोफ़ाइल का मूल्यांकन करने के लिए 33 पैरामीटर्स पर ध्यान दिया और उन्हें उच्चतम से न्यूनतम रिस्क की रैंकिंग किया गया है। सड़क कनेक्टिविटी, कर्ज सुविधाएँ, सिंचाई अवसंरचना, स्थानीय जलवायु, और किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे पैरामीटर्स का उपयोग किया जा रहा है। अगले कुछ दशकों के लिए जलवायु पूर्वानुमान की समीक्षा करके भी उनके रिस्क प्रोफ़ाइल का मूल्यांकन किया जाने लगेगा। यह पाया गया कि भारत के 310 जिले जलवायु परिवर्तन से नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के हाई रिस्क में हैं। व्यावसायिकता के आधार पर, इन जिलों के 151 गांवों में एक तकनीकी प्रदर्शन परियोजना का पायलट प्रोजेक्ट किया जा रहा है।
केंद्र और राज्यों के बीच अधिक समन्वय आवश्यकता:
भारत में कृषि राज्य का विषय है और ICAR एक केंद्रीय-निधि प्राप्त संस्थान है। केन्द्रीय संस्थाएं अनुसंधान करती हैं और प्रौद्योगिकियों का विकास करते हैं, लेकिन कार्यान्वयन केंद्र के नियंत्रण से बाहर होता है। ICAR या NICRA केवल राज्य सरकारों को प्रौद्योगिकियाँ प्रस्तावित कर सकते हैं, लेकिन प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने की जिम्मेदारी राज्यों पर होती है। सबसे अधिक हम केवल आंशिक निगरानी कर सकते हैं, जो हमारे कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के माध्यम से होती है।
भारत ने जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने की आवश्यकता को अपेक्षाकृत देर से समझा। हालांकि, हम इन महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने में प्रगति कर रहे हैं। केंद्रीय सरकार का राष्ट्रीय मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (NMSA) लाभकारी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है।
परन्तु अभी भी भारत को कृषि-प्रधान विकासशील देशों जैसे ब्राजील और चीन के समान R&D निवेश स्तर तक पहुंचने के और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। इसके अलावा, जलवायु-प्रतिरोधी कृषि कार्यों को लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र के बीच अधिक सहयोग की आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात, हमें नीति निर्माण में एक संतुलन की आवश्यकता है, जो संक्षिप्त और दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर सके साथ ही सभी राज्यों को और कृषि संस्थाओं को विश्वास में लेते हुए नीतियों का कार्यान्वयन करना चाहिए