विकसित भारत हेतु युवाओं में बढ़ रही व्यसन की प्रवृति को रोकना जरूरी

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लेखक: श्री प्रहलाद सबनानी (पूर्व उप-महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक)

युवाओं का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य “विकसित भारत” के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानसिक रूप से स्वस्थ युवा नई सोच और नवाचारों के माध्यम से देश को आगे ले जाने में सक्षम होते हैं, जबकि शारीरिक रूप से स्वस्थ युवा कठिन चुनौतियों का सामना करने और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय योगदान देने में समर्थ होते हैं। शिक्षा, रोजगार और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए युवाओं का स्वास्थ्य सर्वोपरि है। एक विकसित और सशक्त भारत के लिए यह आवश्यक है कि हमारे युवा मानसिक तनाव, अस्वास्थ्यकर जीवनशैली और शारीरिक अक्षमता से मुक्त होकर अपने सर्वोत्तम प्रदर्शन की ओर अग्रसर हों।

व्यसन की समस्या का विकराल रूप

आज भारत के विभिन्न कस्बों, नगरों, विशेष रूप से महानगरों में, कम उम्र के नागरिकों के बीच व्यसन की समस्या विकराल रूप धारण करती हुई दिखाई दे रही है। देश के कुछ भागों में विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विद्यार्थी भी नशे की लत का शिकार हो रहे हैं। भारत का युवा यदि गलत दिशा में जा रहा है तो यह भारत के भविष्य के लिए अत्यधिक चिन्ता का विषय है। देश के पंजाब राज्य में तो हालात बहुत खराब स्थिति में पहुंच गए है एवं वहां ग्रामीण इलाकों में भी युवा विभिन्न प्रकार के व्यसनों में लिप्त पाए जा रहे हैं। नशे के सेवन से न केवल स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि मानसिक तौर पर भी युवा वर्ग विक्षिप्त अवस्था में पहुंच जाता है।

नशे के दुष्प्रभाव

मेडिकल साइन्स के अनुसार, ड्रग्स के लंबे समय तक सेवन से लिवर, फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है। ड्रग्स का सेवन इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है, जिससे व्यक्ति आसानी से बीमार पड़ सकता है। अत्यधिक मात्रा में ड्रग्स लेने से व्यक्ति कोमा में जा सकता है या मृत्यु भी हो सकती है। इसी प्रकार ड्रग्स के सेवन से डिप्रेशन, एंग्जायटी, और सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति को चूंकि इनकी लत लग जाती है अतः वह व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से ड्रग्स पर निर्भर हो जाता है।

ड्रग्स के आदी व्यक्ति का व्यवहार भी आक्रामक हो जाता है, जिसके कारण परिवार में तनाव और झगड़े बढ़ जाते हैं। ड्रग्स पर पैसा खर्च करने से व्यक्ति और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी डावांडोल होने लगती है। ड्रग्स को खरीदने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है, यदि परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी हो और युवाओं को परिवार से धन की प्राप्ति नहीं होती है तो ड्रग्स की लत के कारण युवा चोरी, लूटपाट या अन्य अवैध गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं। यह स्थिति भारत के लिए ठीक नहीं कही जा सकती है क्योंकि एक तो उस युवा का देश के विकास में योगदान लगभग शून्य हो जाता है, दूसरे, वह व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज पर बोझ बन जाता है।

हम अक्सर मदिरापान और धूम्रपान की स्थिति में कैंसर का डर दिखाकर तम्बाकू निषेध को लक्षित करते हैं। जबकि व्यसनों के कई प्रकार हैं। ड्रग्स के विभिन्न प्रकार और उनके प्रभावों को समझना जरूरी है ताकि इसके दुरुपयोग से बचा जा सके। ड्रग्स से होने वाले शारीरिक, मानसिक और सामाजिक नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाकर ही एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज का निर्माण किया जा सकता है। आज देश में ड्रग्स की उपलब्धता बहुत आसान हो गई है। कई अंतरराष्ट्रीय गिरोह भारतीय युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेकर कई प्रकार के ड्रग्स आसानी से उपलब्ध कराते हैं और उन्हें इनका आदी बना देते हैं।

ड्रग्स के भी कई प्रकार हैं

(1) डिप्रेसेंट्स (Depressants): इस श्रेणी में अल्कोहल, बार्बिटुरेट्स, बेंजोडायजेपाइन आदि को शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स मस्तिष्क की गतिविधि को धीमा कर देते हैं, जिससे व्यक्ति को शांति या सुकून महसूस होता है। लेकिन, अधिक मात्रा में लेने से यह सांस की तकलीफ, बेहोशी और मृत्यु का कारण बन सकते हैं।

(2) स्टिमुलेंट्स (Stimulants): इस श्रेणी में कोकीन, मेथामफेटामिन, कैफीन आदि को शामिल किया जाता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की गतिविधि को बढ़ाते हैं, जिससे चुस्ती और ऊर्जा बढ़ती है। इसके अधिक सेवन से दिल की धड़कन तेज होना, हाई ब्लड प्रेशर, और घबराहट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

(3) ओपिओइड्स (Opioids): हेरोइन, मॉर्फिन, कोडीन आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स दर्द निवारक दवाएं हैं, लेकिन नशे के रूप में इनका दुरुपयोग किया जाता है। ओपिओइड्स का अधिक सेवन श्वसन तंत्र को धीमा कर देता है, जिससे व्यक्ति कोमा या मृत्यु का शिकार हो सकता है।

(4) साइकेडेलिक्स (Psychedelics): एलएसडी, साइलोसाइबिन (मशरूम), डीएमटी आदि ड्रग्स इस श्रेणी में शामिल किए जाते हैं एवं इस प्रकार के ड्रग्स व्यक्ति की धारणा, विचार और मूड को बदल देते हैं। यह मतिभ्रम (hallucinations) पैदा कर सकते हैं।

(5) इनहेलेंट्स (Inhalants): पेट्रोल, गोंद, स्प्रे पेंट आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इन पदार्थों को सूंघकर नशा किया जाता है। यह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।

(6) कैनाबिनोइड्स (Cannabinoids): गांजा, भांग, हशीश आदि को इस श्रेणी के ड्रग्स में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स सुखद अनुभव कराते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में लेने से मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

कुल मिलाकर देश में ड्रग्स की समस्या विकराल रूप धारण करती दिखाई दे रही है एवं इसने विशेष रूप से युवाओं को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है। दरअसल युवा, फिल्मों आदि को देखकर इसके सेवन को उचित मानने लगता है एवं इसके सेवन से समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने का प्रयास करता है। उसे लगता है कि उच्च सोसायटी में नशे का सेवन करना जैसे आम बात है। परंतु, नशे से होने वाले नुक्सान से सर्वथा अनभिज्ञ रहता है। इसलिए विशेष रूप से युवाओं को नशे की लत से छुड़ाना अति आवश्यक है।

युवाओं में जागरूकता पैदा करती फ़िल्में

हालांकि, हाल ही के समय में नशे की समस्याओं से युवा किस प्रकार परेशानी का सामना करता है जैसे विषयों को लेकर कई फिल्में भी बनाई गई हैं, इन्हें देखकर युवाओं में जागरूकता पैदा की जा सकती है। उड़ता पंजाब (2016), इस फिल्म में पंजाब में ड्रग्स की समस्या और उससे जूझते युवाओं की कहानी है। संजू (2018), इस फिल्म में युवाओं में ड्रग्स की लत और उससे बाहर निकलने की कहानी को दिखाया गया है। फैशन (2008), इस फिल्म में एक मॉडल को दिखाया गया है, जो शोहरत की दुनिया में ड्रग्स की लत का शिकार हो जाती है। डरना जरुरी है (2006), इस फिल्म की कहानी एक विशेष ड्रग एडिक्शन पर केंद्रित है। तमाशा (2015), इस फिल्म में नशे और आत्म-खोज की चुनौती को दर्शाया गया है।

इसी प्रकार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ फिल्मे बनाई गईं है। Requiem for a Dream (2000), इस फिल्म में ड्रग्स की लत और उसके विनाशकारी प्रभावों को बहुत ही गहराई से दिखाया गया है। Trainspotting (1996), इस फिल्म में हेरोइन की लत से जूझते युवाओं की कहानी दिखाई गई है और इसमें नशे की भयावहता को दिखाया गया है Beautiful Boy (2018), इस फिल्म में एक पिता और उसके बेटे की कहानी दिखाई गई है, जिसमें बेटा नशे की लत से जूझ रहा है। The Basketball Diaries (1995), इस फिल्म में एक किशोर की कहानी दिखाई गई है, जो नशे की लत में फंस जाता है और उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। A Star Is Born (2018), इस फिल्म में ड्रग्स और शराब की लत से जूझते युवा को दिखाया गया है, जिससे उसके करियर और रिश्तों पर असर पड़ता है।

समाज और परिवार का योगदान अहम

आज का युवा चूंकि फिल्मों की ओर अधिक आकर्षित होता है अतः व्यसनों से छुटकारा पाने के सम्बंध में बनाई गई फिल्मों का वर्णन किया गया है। परंतु, युवाओं को नशामुक्त करने की दृष्टि से विभिन्न संगठनों द्वारा जागरूकता अभियान चलाना आज आवश्यक हो गया है। सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों पर व्यसन के दुष्प्रभावों पर आधारित जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। फिल्म फेस्टिवल, नुक्कड़ नाटक, सेमिनार, और सोशल मीडिया का उपयोग कर व्यसनों के नुकसान के बारे में युवाओं को जानकारी दी जा सकती है। स्कूलों और कॉलेजों में नशा विरोधी शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए जिससे छात्रों को छोटी उम्र से ही व्यसनों के खतरों के बारे में शिक्षित किया जा सके।

नशे से संबंधित गतिविधियों में संलिप्त लोगों पर इतनी सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए कि वह समाज के सामने उदाहरण बने। अवैध शराब और नशीले पदार्थों की बिक्री पर निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए एवं दोषियों पर कठोर दंड लागू किया जाना चाहिए। विभिन्न कस्बों एवं नगरों में स्थानीय स्तर पर कार्य कर रहे NGO और समुदाय आधारित संगठनों को नशमुक्ति अभियान में शामिल किया जाना चाहिए। यह संगठन व्यसन पीड़ितों की पहचान कर उन्हें उचित सहायता और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।

परिवारों को व्यसन से बचाव और इसके लक्षणों की पहचान करने के तरीकों पर शिक्षित किया जाना चाहिए। इसके लिए माता-पिता को उनके बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देने और संवाद बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। व्यसन मुक्त भारत बनाने के लिए युवाओं को खेल, संगीत, नृत्य, और अन्य सृजनात्मक गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिए। इससे वे सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहेंगे और व्यसन से दूर रहेंगे। युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए ताकि उन्हें सकारात्मक दिशा मिले और वे व्यसन से दूर रहें।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)


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Prahlad Sabnani

Shri Prahlad Sabanani is a distinguished and experienced personality in the Indian banking sector, having served in various significant positions at the State Bank of India for 40 years. He retired as Deputy General Manager from the Corporate Centre of the State Bank of India in Mumbai. His three books—World Trade Organization: Impact on Indian Banking and Industry, Banking Today, and Banking Update—are highly acclaimed. He is also a prolific writer on economic and social issues of national importance.

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