विश्व 2024 का आर्थिक परिदृश्य तथा भारत की भावी संभावनाएं?

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रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में जारी संघर्षों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। यही कारण है कि IMF ने अनुमान जताया है कि 2025 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर लगभग 3.3 प्रतिशत रह सकती है।

 

वर्ष 2024 वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए उथल-पुथल भरा रहा। दुनिया के विभिन्न मोर्चों पर जारी संघर्षों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर लगातार दबाव बनाए रखा। इसका परिणाम यह हुआ कि महंगाई बढ़ी, विकास दर धीमी पड़ी, और लगभग हर देश को रोज़गार और आर्थिक स्थिरता की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भारत भी इन प्रभावों से अछूता नहीं रहा। दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अर्थ है कि भारत वैश्विक विकास का एक महत्वपूर्ण इंजन है, और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों से बच पाना इसके लिए संभव नहीं है। यदि गहराई से देखा जाए, तो वर्ष 2024 भारत के लिए मिला-जुला साबित हुआ। इस वर्ष की शुरुआत सकारात्मक रही, बीच का समय भी संतोषजनक रहा, लेकिन साल के अंत तक आर्थिक आंकड़ों और महंगाई ने सतर्क कर दिया।

जुलाई-सितंबर 2024 की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर 5.4% रह गई, जो पिछले सात तिमाहियों का सबसे निचला स्तर था। यह गिरावट आर्थिक प्रबंधन के लिए एक चेतावनी संकेत है। वहीं, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो दर को 6.50% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया। इस निर्णय के पीछे मुख्य कारण महंगाई के बढ़ते हुए स्तर को नियंत्रित करने की आवश्यकता रही। हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के ताज़ा अनुमान के अनुसार, मौजूदा वित्तीय वर्ष में खुदरा महंगाई 5% से ऊपर बनी रह सकती है।

कैसा रहा वैश्विक अर्थव्यवस्था का हाल?  

वर्ष 2024 वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए उतार-चढ़ाव और चुनौतियों से भरा रहा। इस वर्ष की आर्थिक समीक्षा के लिए दो प्रमुख पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है—पहला, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य और दूसरा, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन।

वैश्विक आर्थिक परिदृश्य

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, 2024 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि स्थिर लेकिन मध्यम स्तर पर रही। महंगाई के खिलाफ चल रही लड़ाई में कुछ प्रगति दर्ज की गई, जिससे आर्थिक सुधार की संभावनाएँ बढ़ीं। हालाँकि, रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में जारी संघर्षों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। यही कारण है कि IMF ने अनुमान जताया है कि 2025 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर लगभग 3.3 प्रतिशत रह सकती है। फिर भी अगर यह वृद्धि साकार होती है तो आर्थिक बेहतरी की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत होगा।

प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन

अमेरिका: 2024 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने मजबूती दिखाई। ऊँची ब्याज दरें, महंगाई और धीमे श्रम बाजार के बावजूद, अमेरिका ने G7 देशों में सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। IMF ने इसे सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थान दिया।

चीन: चीन की अर्थव्यवस्था ने वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, लेकिन बाद में मंदी की ओर बढ़ी। घरेलू मांग में कमजोरी और रियल एस्टेट क्षेत्र की समस्याओं ने इस गिरावट को और बढ़ाया। सरकार ने अल्पकालिक मांग को बढ़ावा देने के लिए विशेष पैकेज जारी किए, लेकिन दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता बनाए रखना अब भी चुनौती बना हुआ है। विश्व बैंक ने चीन की वृद्धि दर 2024 में 4.9 प्रतिशत और 2025 में 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।

भारत: भारत, जो वर्तमान में $3.89 ट्रिलियन GDP के साथ दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, ने 2024 में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया। ऊँची महंगाई और वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की विकास दर मजबूत बनी रही। विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2025 में भारत की वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जो भविष्य में स्थिर बनी रह सकती है। यह भारत को 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर करता है। विदेशी मुद्रा भंडार और रिकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह ने भी भारत की आर्थिक सफलता को मजबूत किया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था: कैसा रहा साल 2024? 

वर्ष 2024 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विकास और परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण वर्ष रहा। इस वर्ष FDI में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 के बीच 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया। निर्यात के क्षेत्र में भी भारत ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कीं। वर्ष 2024 में निर्यात 778 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। बुनियादी ढांचे के विकास में भी प्रगति जारी रही। प्रतिदिन औसतन 27 किलोमीटर नई सड़कों का निर्माण हुआ।

सामाजिक प्रगति के दृष्टिकोण से भी वर्ष 2024 महत्वपूर्ण रहा। भारत प्रगति रिपोर्ट 2024 के अनुसार, 79 प्रतिशत घरों तक स्वच्छ पेयजल की पहुंच सुनिश्चित की गई। यह पिछले पांच वर्षों में पांच गुना वृद्धि है। इसके अलावा 2024 महिला सशक्तिकरण के लिए भी एक ऐतिहासिक वर्ष रहा। केंद्रीय बजट में महिलाओं के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की योजनाएं आवंटित की गईं। महिला करदाताओं की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि 11 लाख से अधिक महिलाएं ‘लखपति दीदी’ बनकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनीं।

हालांकि, इस साल कुछ चिंताएं भी बनी रही। भारतीय शेयर बाजारों में वर्ष की पहली छमाही में मजबूती देखने को मिली, जहां निफ्टी 50 और सेंसेक्स ने 10.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। लेकिन, दूसरी छमाही में 2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। यह गिरावट मुख्य रूप से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारी बिकवाली, ऊंचे मूल्यांकन, धीमी आर्थिक गति, कमजोर शहरी खपत और पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव के कारण हुई। महंगाई भी पूरे वर्ष चिंता का विषय बनी रही। असामान्य मानसून और यूरोप एवं मध्य पूर्व में जारी संघर्षों के कारण खाद्य और ऊर्जा कीमतों में वृद्धि हुई। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) छह महीनों तक 5 प्रतिशत से ऊपर बना रहा और अक्टूबर 2024 में यह 6 प्रतिशत को पार कर गया।

रोजगार के मोर्चे पर भी मिश्रित परिणाम देखने को मिले। नौकरी के लिए आवेदन करने वालों की संख्या 7 करोड़ तक पहुंच गई, जो 25 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि को दर्शाती है। वहीं, रोजगार-से-जनसंख्या अनुपात बढ़कर 52.8 प्रतिशत तक पहुंचा। हालांकि, बड़ी संख्या में लोग अभी भी श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं बन पाए हैं, जिससे श्रम निर्भरता अनुपात 1.52 बना हुआ है।

  1. इन उपलब्धियों और चुनौतियों के बीच, वर्ष 2025 को संभावनाओं से भरपूर है। मजबूत बुनियादी ढांचे, महिला सशक्तिकरण और विदेशी निवेश में वृद्धि जैसे कारकों के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज गति से आगे बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, मुद्रास्फीति और वैश्विक अनिश्चितताओं को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी। सरकार ने वर्ष 2024 में पूंजीगत व्यय के लिए रिकॉर्ड 10.89 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए, जो GDP का लगभग 3.3 प्रतिशत है। यह राशि सड़क एवं रेल नेटवर्क, शहरी विकास, रक्षा क्षेत्र और ग्रामीण बुनियादी ढांचे पर खर्च की गई। इन निवेशों से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार सृजन के नए अवसर सृजित होंगे। समग्र रूप से कहें तो वर्ष 2024 ने भी भारत की आर्थिक यात्रा में एक मजबूत नींव तैयार की है, जिस पर आगे के वर्षों में विकास और स्थिरता के नए आयाम जोड़े जा सकते हैं। यदि सरकार की नीतिगत योजनाएं और आर्थिक सुधारों की दिशा बनी रही, तो वर्ष 2025 भारत के लिए आर्थिक प्रगति का एक निर्णायक वर्ष साबित हो सकता है।

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Vikrant Nirmala

Vikrant Nirmala, an esteemed alumnus of Banaras Hindu University (BHU), is the Founder and President of the Finance and Economics Think Council. Currently pursuing a PhD at the NIT, Rourkela, he is a distinguished thought scholar in the fields of finance and economics. Vikrant is contributing insightful articles to leading newspapers and prominent digital media platforms, showcasing his expertise in these domains.

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