भारत के पास आर्थिक विकास को गति देने का एक नवोन्मेषी मॉडल उपलब्ध है—धर्म आधारित अर्थव्यवस्था। इसका आशय यह नहीं है कि संपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ केवल धार्मिक पर्यटन पर केंद्रित कर दी जाएं, बल्कि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जो देश की जीडीपी वृद्धि दर को 1 से 2 प्रतिशत तक बढ़ाने की अपार क्षमता रखता है।
मुख्य बिंदु:
- महाकुंभ 2025 के लिए अब तक ₹6,500 करोड़ आवंटित किए गए हैं, और आयोजन के अंत तक यह राशि ₹7,500 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है।
- 1882 के कुम्भ मेले की लागत ₹20,228 थी, जबकि इस बार आयोजन से लगभग ₹25,000 करोड़ का प्रत्यक्ष राजस्व उत्पन्न होने का अनुमान है।
- 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है, जिनके औसतन ₹2000 खर्च करने से कुल व्यय लगभग ₹90,000 करोड़ तक पहुंच सकता है।
- अब तक 45,000 परिवारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं, जिससे आर्थिक विकास को बल मिलेगा।
- आयोजन से प्रत्यक्ष लाभ ₹1.25 लाख करोड़ आंका गया है, जो ₹2 लाख करोड़ को पार कर सकता है और राज्य की समग्र आर्थिक वृद्धि को तीव्र करेगा।
विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम ‘महाकुंभ’ 13 जनवरी से प्रयागराज में आरंभ हो रहा है। यह एक ऐसा आयोजन है जहां करोड़ों लोगों की आस्था, विविध संस्कृतियों की झलक और ‘लघु भारत’ का दर्शन होता है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है; यह आध्यात्म, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का अनूठा संगम है, जो बहुआयामी विश्लेषण और गहन चर्चा का विषय बनता है। इसे धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह पूजा-पद्धतियों, अखाड़ों, नागा साधुओं और विभिन्न पंथों का एक अनोखा केंद्र बिंदु है। हालांकि, महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दायरे तक सीमित नहीं है। यह आयोजन भारत के प्राचीन धार्मिक अर्थशास्त्र, ‘टेम्पल इकोनॉमी’ का सशक्त उदाहरण है। यह आयोजन समझने का अवसर देता है कि किस प्रकार धर्म और अर्थव्यवस्था एक-दूसरे के पूरक रहे हैं और कैसे धार्मिक आयोजन आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं।
महाकुंभ 2025 देश के इतिहास में अब तक का सबसे महंगा आयोजन
इस बार का महाकुंभ आर्थिक परिप्रेक्ष्य से भी विशेष महत्व रखता है। चाहे इसके बजट की बात हो, आयोजन की भव्यता का स्तर हो या अनुमानित आगंतुकों की संख्या—हर पहलू इसे एक बड़े पैमाने का आयोजन साबित कर रहे हैं। वास्तव में, यह आयोजन भारत के लिए एक नए आर्थिक मॉडल के पुनर्जागरण का द्वार खोल सकता है। दुर्भाग्यवश, समय के साथ हमने इस आर्थिक मॉडल को नजरअंदाज कर दिया। आजादी के शुरुआती दशकों में इसे विकसित करने की आवश्यकता थी, लेकिन हम इस तथ्य को देर से समझ पाए कि भारत में धर्म एक प्रमुख आर्थिक व्यवस्था का आधार रहा है। हालांकि, अब लंबे अंतराल के बाद इस दिशा में गंभीर प्रयास होते दिखाई दे रहे हैं। महाकुंभ की तैयारियां यह संकेत देती हैं कि यह आयोजन स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा प्रदान करेगा। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, जिसने एक 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसलिए, महाकुंभ को आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से भी विश्लेषित करना आवश्यक है।
अगर बजट के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो महाकुंभ 2025 देश के इतिहास में अब तक का सबसे महंगा आयोजन है। इसके लिए अभी तक ₹6,500 करोड़ से अधिक की राशि आवंटित की जा चुकी है, और अनुमान है कि आयोजन समाप्त होते-होते यह आंकड़ा ₹7,500 करोड़ तक पहुंच जाएगा। यह राशि देश के कई छोटे राज्यों के वार्षिक बजट के लगभग आधे के बराबर है। स्वाभाविक रूप से, कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि केवल 56 दिनों तक चलने वाले इस अस्थायी आयोजन पर इतना भारी-भरकम खर्च कितना तर्कसंगत है। इस प्रश्न का उत्तर महाकुंभ की आर्थिक संभावनाओं में छुपा है। यह आयोजन जितना बड़ा निवेश है, उससे कहीं अधिक राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए, ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि 1882 के कुम्भ मेले के आयोजन में ₹20,228 की लागत आई थी, जबकि उससे ₹49,840 का राजस्व प्राप्त हुआ था, जिससे कुल ₹29,612 का शुद्ध लाभ हुआ। इस बार अनुमान है कि इस बार महाकुंभ से लगभग ₹25,000 करोड़ का प्रत्यक्ष राजस्व उत्पन्न होगा।
इसके अतिरिक्त, 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन की उम्मीद है। यदि प्रत्येक व्यक्ति औसतन ₹2000 खर्च करता है, तो कुल व्यय लगभग ₹90,000 करोड़ तक पहुंच सकता है। यह धनराशि पर्यटन, आवास, परिवहन, खानपान, और स्थानीय उत्पादों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में व्यापक गति लाएगी। हालांकि, यह आकलन केवल प्रत्यक्ष खर्च और राजस्व तक सीमित है। वास्तव में, ऐसे आयोजनों के कई अप्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव भी होते हैं, जिन्हें आर्थिक भाषा में ‘मल्टीप्लायर इफेक्ट’ कहा जाता है। पर्यटन में मल्टीप्लायर इफेक्ट विशेष रूप से अधिक होता है, और जब इसमें 45 करोड़ की भीड़, ₹7500 करोड़ का खर्च, तथा नव निर्माण शामिल हो, तो इसका प्रभाव अप्रत्याशित रूप से विशाल हो सकता है।
महाकुंभ के मल्टीप्लायर इफेक्ट
मल्टीप्लायर इफेक्ट को सरल शब्दों में इस तरह समझा जा सकता है कि जब कोई पर्यटक किसी स्थल पर पैसा खर्च करता है, तो वह धन स्थानीय अर्थव्यवस्था में विभिन्न माध्यमों से प्रसारित होता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई पर्यटक होटल में ठहरता है, तो होटल के मालिक और कर्मचारियों को आय प्राप्त होती है। पर्यटक द्वारा टैक्सी या ऑटो किराए पर लेने से परिवहन सेवाओं को लाभ होता है। साथ ही, खानपान पर खर्च किए गए पैसे से रेस्तरां मालिकों और उनके कर्मचारियों की आय बढ़ती है। इस तरह यह धन कई स्तरों पर घूमता है और विभिन्न व्यवसायों को लाभ पहुंचाता है। यह आर्थिक चक्र आगे भी जारी रहता है क्योंकि वे लोग, जिन्हें इस प्रक्रिया में आय प्राप्त हुई, वे भी अपनी जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए खर्च करेंगे। इससे बाजार में मांग बढती है, उत्पादन में वृद्धि होती है, और नए रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इस प्रकार, अर्थव्यवस्था का पहिया तेजी से घुमने लगता है।
इसके अलावा, ऐसे बड़े धार्मिक आयोजन एक महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश की मांग करते हैं। इतनी विशाल भीड़ के प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे का नए सिरे से निर्माण आवश्यक हो जाता है, जिससे स्थानीय विकास को बढ़ावा मिलता है और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, महाकुंभ 2025 की तैयारियों के अंतर्गत अब तक लगभग 45,000 परिवारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं। आज, स्थानीय स्तर पर प्रयागराज शहर में इस निवेश से बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। नए सड़क मार्गों, पुलों और आधुनिक सुविधाओं के निर्माण के साथ शहर को पूरी तरह से संजोया और संवारा गया है। लेकिन, यह प्रभाव केवल प्रयागराज के बुनियादी ढांचे के विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव उत्तर प्रदेश की व्यापक अर्थव्यवस्था पर भी दूरगामी होने वाला है।
प्रयागराज की भौगोलिक स्थिति इसे वाराणसी और अयोध्या जैसे दो प्रमुख धार्मिक स्थलों के निकट लाती है, जिससे इसका आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव और भी व्यापक हो जाता है। महाकुंभ के दौरान आने वाले करोड़ों श्रद्धालु अयोध्या में नव निर्मित श्रीराम मंदिर और वाराणसी के काशी विश्वनाथ धाम का भी दर्शन करेंगे। इससे इन दोनों शहरों में पर्यटन और आर्थिक गतिविधियों को अभूतपूर्व बढ़ावा मिलेगा। तो इस आयोजन से जो प्रत्यक्ष लाभ (अनुमानित ₹1.25 लाख करोड़) का आकलन हम कर रहे हैं वह ₹2 लाख करोड़ को पार कर सकता है। इस आर्थिक परिवर्तन का प्रभाव न केवल स्थानीय व्यवसायों और रोजगार सृजन पर पड़ेगा, बल्कि राज्य की समग्र आर्थिक वृद्धि की गति को भी तीव्र करेगा।
असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों की आय वृद्धि
धार्मिक आयोजनों की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि ये देश के असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों की आय वृद्धि का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनते हैं। उदाहरण के लिए, पूजा सामग्री, फूलों की माला, प्रसाद, और धार्मिक स्मृतियों की बिक्री से जुड़े व्यापारी और छोटे उद्यमी इससे प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं। इन आयोजनों से स्थानीय अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। विशेष रूप से फूलों की खेती को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे किसानों को तत्काल नकदी प्राप्त होती है। इसके अलावा, पूजा सामग्रियों की मांग को पूरा करने के लिए लघु और कुटीर उद्योगों का विस्तार होता है, जिससे स्थानीय रोजगार के नए अवसर सृजित होते हैं।
इसके अलावा धार्मिक मेलों और आयोजनों के माध्यम से स्थानीय कारीगरों और कलाकारों के उत्पादों की बिक्री को भी एक नया मंच प्राप्त होता है। इससे हस्तशिल्प और लोककला को न केवल संरक्षण मिलता है, बल्कि यह इनके वाणिज्यिक विकास का भी मार्ग प्रशस्त करता है। उदाहरण के लिए, ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ योजना में प्रयागराज के मूंज उत्पादों को शामिल किया गया है। मूंज से निर्मित उत्पाद, जैसे टोकरी (डालिया), कोस्टर स्टैंड, बैग, और सजावटी वस्तुएं, हर घर की आवश्यक जरूरतों को पूरा करती हैं। ये उत्पाद न केवल उपयोगी हैं, बल्कि अपनी पारंपरिक सुंदरता और टिकाऊपन के कारण भी लोगों को आकर्षित करते हैं। यदि इन उत्पादों को कुम्भ मेले में स्थानीय, स्वदेशी, और इंडिजेनस के रूप में ब्रांडिंग के साथ प्रस्तुत किया जाए, तो ये देश-विदेश से आए पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकते हैं। यही नहीं, इन आयोजनों का प्रभाव सिर्फ प्रयागराज तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आसपास के जिलों में भी इसका सकारात्मक असर देखने को मिलेगा। उदाहरण के लिए, प्रयागराज के साथ ही, भदोही के कालीन, चित्रकूट के लकड़ी के खिलौने, और प्रतापगढ़ के आंवला उत्पादों को भी इन आयोजनों से नया बाजार और पहचान मिलने की संभावना है।
इसलिए महाकुंभ 2025 केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह आर्थिक दृष्टि से एक ‘मेगा इंवेस्टमेंट प्रोजेक्ट’ के रूप में भी उभरकर सामने आ रहा है। इस आयोजन से न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भारत को वैश्विक पहचान मिलेगी, बल्कि यह उत्तर प्रदेश के 1 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था लक्ष्य को भी महत्वपूर्ण गति प्रदान करेगा। यह आयोजन एक ऐसा मंच प्रदान करेगा, जो धर्म से आर्थिक विकास का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेगा। महाकुंभ से प्राप्त अनुभवों को ध्यान में रखते हुए, यदि इसी तरह के आयोजनों को और अधिक संगठित और संरचित रूप में विकसित किया जाए, तो भारत आर्थिक प्रगति के नए आयाम स्थापित कर सकेगा।
आर्थिक विकास के लिए जरुरी ‘टेम्पल-ड्रिवन इकोनॉमी’
भारत के पास आर्थिक विकास को गति देने का एक नवोन्मेषी मॉडल उपलब्ध है—धर्म आधारित अर्थव्यवस्था। इसका आशय यह नहीं है कि संपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ केवल धार्मिक पर्यटन पर केंद्रित कर दी जाएं, बल्कि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जो देश की जीडीपी वृद्धि दर को 1 से 2 प्रतिशत तक बढ़ाने की अपार क्षमता रखता है। उदाहरण के तौर पर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के बाद काशी को वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर एक नया और विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ। आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी से 31 मई 2025 के बीच 2.86 करोड़ श्रद्धालुओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन किए, जबकि 1 जनवरी 2025 को 7.43 लाख भक्तों ने एक ही दिन में पूजा-अर्चना कर नया कीर्तिमान स्थापित किया। इसी प्रकार, राम मंदिर के निर्माण ने अयोध्या को एक वैश्विक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी से सितंबर 2024 के बीच अकेले अयोध्या में 13.55 करोड़ पर्यटकों का आगमन हुआ, जो आगरा के ताजमहल को कुल पर्यटकों के मामले में पीछे छोड़ चुका है। यह उपलब्धि न केवल धार्मिक पर्यटन की आर्थिक क्षमता को दर्शाती है, बल्कि इसे विकास का सशक्त माध्यम भी बनाती है।
भारत, जो चार धामों, 51 शक्तिपीठों, 12 ज्योतिर्लिंगों और अनेकों प्राचीन मंदिरों का केंद्र है, धार्मिक पर्यटन के माध्यम से आर्थिक विकास को एक नई दिशा दे सकता है। इस संदर्भ में, भारत को “टेम्पल-ड्रिवन इकोनॉमी” की अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता है। यदि राम मंदिर, प्रयागराज के महाकुंभ और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के मॉडल पर देश के 100 प्रमुख धार्मिक स्थलों का विकास किया जाए, तो यह व्यापक आर्थिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इन स्थलों पर बेहतर बुनियादी ढाँचा, आधुनिक सुविधाएँ, और सुगम परिवहन नेटवर्क तैयार कर धार्मिक पर्यटन को एक व्यापक आर्थिक गतिविधि के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इससे स्थानीय व्यवसायों और लघु एवं मध्यम उद्यमों को विकास के नए अवसर मिलेंगे। आधारभूत संरचना, नवीन उद्यमिता, और आर्थिक सुदृढ़ता को भी प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे यह मॉडल स्थायी आर्थिक विकास का आधार बन सकता है।