अटल बिहारी वाजपेयी: 21वीं सदी में विकसित भारत की आधारशिला रखने वाले नेता

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लेखक: विक्रांत निर्मला (शोधार्थी, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला।)

आज का दिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मतिथि के रूप में हमें उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करने का अवसर देता है। अटल जी के कई रूप थे—कभी वे ओजस्वी वक्ता के रूप में मंचों पर चमकते थे, तो कभी एक संवेदनशील कवि के रूप में मन को छू जाते थे। लेकिन उनकी सबसे प्रभावशाली पहचान एक दूरदर्शी नीति-निर्माता की रही, जिनकी आर्थिक नीतियों ने 21वीं सदी के विकसित भारत की बुनियाद रखी। आज जब हम विकसित भारत के सपनों की चर्चा करते हैं, तो उनके कार्यकाल की नीतियाँ इस अभियान के प्रेरणास्रोत के रूप में सामने आती हैं।

इस कहानी की शुरुआत 1990 के दशक से होती है। भारत 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद नई संभावनाओं के द्वार खोल चुका था। विदेशी निवेश बढ़ रहा था और भारत एक बड़े बाजार के रूप में उभरने लगा था। लेकिन 1995 के बाद का दौर राजनीतिक अस्थिरता का था—सरकारें बनती और गिरती रहीं, जिससे आर्थिक चिंताएँ भी बढ़ गईं। इसी राजनीतिक उथल-पुथल पर 1999 में विराम लगा, जब भारतीय जनता पार्टी ने कई दलों के समर्थन से एक स्थायी सरकार बनाई और अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने। हालाँकि, अर्थव्यवस्था को लेकर संदेह बरकरार था। संघ की पृष्ठभूमि से आए नेता के लिए खुली अर्थव्यवस्था का समर्थन करना आसान नहीं था। 1991 में संघ की इकाई ‘स्वदेशी जागरण मंच’ ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे। लेकिन वाजपेयी जी ने इन आशंकाओं को गलत साबित किया।

उनके नेतृत्व में बड़े आर्थिक सुधार हुए। सरकारी कंपनियों का विनिवेश और निजीकरण तेज़ी से आगे बढ़ा। इसके लिए बाकायदा एक अलग मंत्रालय बनाया गया, जिसकी जिम्मेदारी अरुण शौरी को सौंपी गई। वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने के लिए कड़े कदम उठाए गए, और देशभर में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर सरकारी खर्च को बढ़ावा दिया गया। वाजपेयी सरकार के ‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ सड़क परियोजना और ग्रामीण सड़कों के विकास कार्यक्रम ने आर्थिक प्रगति के लिए नई राहें खोलीं। उन्होंने सिर्फ नीतियाँ नहीं बनाईं, बल्कि भारत की आर्थिक सोच को एक नई दिशा दी।

आर्थिक विकास के सूत्रधार: अटल बिहारी वाजपेयी के बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की आर्थिक उपलब्धियों में सबसे चमकदार पहल “स्वर्णिम चतुर्भुज योजना” रही। यह परियोजना देश के चार प्रमुख महानगरों—दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई—को जोड़ने वाले कुल 5846 किलोमीटर लंबे हाईवे नेटवर्क के निर्माण के लिए जानी जाती है। इस योजना ने देश में बुनियादी ढांचे का एक ऐसा मजबूत ढांचा खड़ा किया, जिसकी नींव पर आज भारतमाला और सागरमाला परियोजनाएं आगे बढ़ रही हैं। वाजपेयी सरकार ने न केवल शहरी विकास को प्राथमिकता दी, बल्कि ग्रामीण भारत की प्रगति का भी पूरा ख्याल रखा। साल 2000 में शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ इसका प्रमाण है। इस योजना ने गाँवों को शहरों से जोड़ने के लिए सड़क नेटवर्क का एक विस्तृत जाल बिछाया, जो आज भी ग्रामीण भारत की आर्थिक धमनियों को गतिशील बनाए हुए है।

सरकार की इन रणनीतिक पहलों ने देश में निवेश और रोजगार के नए अवसर पैदा किए। इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर बड़े पैमाने पर सरकारी खर्च ने अर्थव्यवस्था में नई जान फूँकी। इसका असर आर्थिक विकास दर पर भी साफ नजर आया। साल 2003 में भारत की जीडीपी ग्रोथ दर 8% तक पहुँच गई, जो उस समय देश के आर्थिक कायाकल्प की मिसाल बनी।

जीएसटी की आधारशिला: वाजपेयी सरकार की दूरदर्शी पहल

आज भारत की वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था को देश की कर प्रणाली में सबसे बड़ा सुधार माना जाता है, लेकिन इसकी नींव साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में रखी गई थी। उस समय देश के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा थे, जिन्होंने इस क्रांतिकारी कर सुधार की दिशा में पहला कदम उठाया। वाजपेयी सरकार ने राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक समिति गठित की, जिसे जीएसटी के प्रारूप और क्रियान्वयन पर सिफारिशें तैयार करने का दायित्व सौंपा गया। साल 2003 में आई इस समिति की रिपोर्ट में राज्यों को एक समान कर प्रणाली अपनाने का सुझाव दिया गया। यह सुझाव भारत में एकीकृत कर व्यवस्था की दिशा में पहला ठोस कदम था।

आज जीएसटी भारत के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत बन चुका है। इसकी प्रणाली ने देश को अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से औपचारिक अर्थव्यवस्था में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में जीएसटी से हर महीने 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व जुटाया जा रहा है, जो देश की आर्थिक मजबूती को दर्शाता है। हालाँकि, इस सुधार को लागू होने में कई वर्ष लगे, लेकिन इसकी आधारशिला अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शी सोच और आर्थिक सुधारों की प्रतिबद्धता ने रखी थी।

वित्तीय अनुशासन की नींव: वाजपेयी सरकार का ऐतिहासिक कदम

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिरता और अनुशासन की ओर ले जाने के लिए कई दूरगामी कदम उठाए, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण था ‘फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट (FRBM) 2003’। उस दौर में देश की अर्थव्यवस्था को वित्तीय घाटे का सामना करना पड़ रहा था, जिसे नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कानूनी व्यवस्था नहीं थी। वित्तीय घाटा तब होता है जब सरकार की खर्च अधिक और राजस्व कम होता है। यह स्थिति अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास के लिए खतरा बन सकती थी। वाजपेयी सरकार ने इस चुनौती का समाधान निकालते हुए FRBM एक्ट 2003 लागू किया, जिसने वित्तीय घाटे पर कानूनी नियंत्रण स्थापित किया। इस कानून के तहत लक्ष्य रखा गया कि वित्तीय घाटा जीडीपी के 3% के भीतर रखा जाए।

आज यही कहा जा सकता है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार भारतीय आर्थिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई। उनके कार्यकाल में लिए गए दूरगामी फैसलों ने न केवल तत्कालीन अर्थव्यवस्था को स्थिरता दी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए विकास का मजबूत ढांचा भी तैयार किया। जेम्स फ्रीमैन का एक प्रसिद्ध कथन है—”राजनेता अगले चुनाव के बारे में सोचते हैं, जबकि राष्ट्र-नेता अगली पीढ़ी के बारे में।” अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सिद्धांत को जीवन में उतारा। उन्होंने आर्थ‍िक संरचनात्मक सुधारों, बुनियादी ढांचे के विस्तार, और वित्तीय अनुशासन की मजबूत नींव दी, जिसने भारत को एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया।

कई आर्थिक विश्लेषक यह मानते हैं कि 2004-2009 के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दर्ज की गई तेज आर्थिक वृद्धि का एक बड़ा श्रेय वाजपेयी सरकार के बड़े पूंजी निवेश और आर्थिक सुधारों को जाता है। उनके द्वारा शुरू किए गए विनिवेश, जीएसटी की पहल, और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास जैसे कदमों ने भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर सशक्त स्थान दिलाया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यदि वाजपेयी जी को दूसरा कार्यकाल मिलता, तो आज भारत की आर्थिक तस्वीर कहीं अधिक सशक्त और उज्ज्वल होती। उनकी दूरदृष्टि, नीतियां और प्रतिबद्धता ने उन्हें सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक राजऋषि बना दिया।


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Vikrant Nirmala

Vikrant Nirmala, an esteemed alumnus of Banaras Hindu University (BHU), is the Founder and President of the Finance and Economics Think Council. Currently pursuing a PhD at the NIT, Rourkela, he is a distinguished thought scholar in the fields of finance and economics. Vikrant is contributing insightful articles to leading newspapers and prominent digital media platforms, showcasing his expertise in these domains.

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