Author Bhupendra Bhartiya https://visionviksitbharat.com/author/bhupendra/ Policy & Research Center Sun, 23 Mar 2025 18:35:26 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8 https://visionviksitbharat.com/wp-content/uploads/2025/02/cropped-VVB-200x200-1-32x32.jpg Author Bhupendra Bhartiya https://visionviksitbharat.com/author/bhupendra/ 32 32 पुलिस सुधार विकसित भारत के लिए जरूरी https://visionviksitbharat.com/police-reforms-are-essential-for-a-developed-india/ https://visionviksitbharat.com/police-reforms-are-essential-for-a-developed-india/#respond Sun, 23 Mar 2025 18:32:52 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1485   भारत में पुलिस सुधारों के लिए कई समितियों का गठन किया गया जिनमें पद्मनाभैया समिति(2000) व मलिमठ समिति(2002-03) के सुझाव उल्लेखनीय है। पुलिस सुधारों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय…

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भारत में पुलिस सुधारों के लिए कई समितियों का गठन किया गया जिनमें पद्मनाभैया समिति(2000) व मलिमठ समिति(2002-03) के सुझाव उल्लेखनीय है। पुलिस सुधारों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 में पूर्व पुलिस प्रमुख प्रकाश सिंह की याचिका पर सात मुख्य निर्देश दिए थे जो सुधारों की दिशा में एक बड़ा लेकिन अपर्याप्त कदम रहा।

 

भारत की स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी पुलिस व्यवस्था यथावत बनी हुई है। इसमें नाममात्र के ही सुधार हुए हैं जो कि विश्व स्तर के कही से भी नहीं है। ना ही वर्तमान भारत के सामाजिक तानेबाने को नियंत्रण के लिए उचित। किसान आंदोलन से लेकर शाहीनबाग घटना, असामाजिक तत्वों द्वारा पुलिस पर पथराव, भीड़ का आये दिन अनियंत्रित हो जाना जैसी कितनी ही घटनाएं है जिसके सामने वर्तमान पुलिस व्यवस्था अपने आप को असहाय महसूस करती है। उसमें प्रमुख कारण पुलिस कानून का अंग्रेजो के समय का होना व पुलिस बल की अत्यधिक कमी के कारण।

पुलिस विभाग सबसे पहले तो बल की कमी से परेशान हैं। 12 घंटे से ज्यादा पुलिस जवानों को ड्यूटी पर रहना पड़ता है जो कि मानव अधिकारों के खिलाफ है। 2006 में पुलिस सुधार के लिए भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र व सभी राज्यों को महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिये थे लेकिन आज तक अधिकांश राज्यों ने इन सुधारों को लेकर कोई विशेष गंभीरता नहीं दिखाई है। एक ऐसे समय में जब हम विकसित भारत के लक्ष्य को लेकर कार्य कर रहे और ऐसे में पुलिस व्यवस्था में कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं करना, इस लक्ष्य को पूर्णतः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अब जब आपराधिक कानूनों में सुधार कर नये कानून लागू हो चुके हैं तो पुलिस में भी वर्तमान भारत की सामाजिक चुनौतियों के अनुसार सुधार होना चाहिए।

मुख्यतः पुलिस का काम होता है अपराध का अन्वेषण, विधि व्यवस्था से जुड़े दायित्व, सूचनाएं जुटाने के साथ पेट्रोलिंग भी करनी पड़ती है। पुलिसकर्मियों को नेताओं, मंत्रियों, न्यायमूर्तियों, वीआइपी ड्यूटी और त्योहारों व विशेष आयोजनों के दौरान व्यवस्था की देखरेख में भी लगाया जाता है। इन कामों के साथ पुलिसकर्मियों को न्यायलयों से जुड़े जटिल कार्य भी करने होते हैं।

वर्तमान में पुलिस बल के साथ एक ओर गंभीर समस्या फिटनेस को लेकर है। काम के तय घंटे न होने के कारण से फिट और स्वस्थ नहीं हैं अधिकांश पुलिस अधिकारी, वहीं इस तरह की समस्या के कारण ही आम लोगों के साथ खराब व्यवहार से बिगड़ी पुलिस की छवि। उनके खराब प्रदर्शन व व्यवहार के पीछे उनका मानसिक स्वास्थ्य व तनाव भी बड़ा कारण है जो निरंतर ड्यूटी करने के कारण हो जाता है।

पुलिस सुधार व उससे संबंधित सभी आयोग, सिफारिशें, समितियां, न्यायिक दिशानिर्देश पर तथ्यपरक जानकारी देखे तो सबसे पहले धर्मवीर आयोग(जिसे भारत का सबसे पहला राष्ट्रीय पुलिस आयोग भी कह सकते है।) पुलिस सुधारों को लेकर सबसे पहले 1977 में धर्मवीर की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया। इसे राष्ट्रीय पुलिस आयोग कहा गया। चार वर्षों में इस आयोग ने केंद्र सरकार को आठ रिपोर्टें सौंपी थी, लेकिन इसकी सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया। इस आयोग ने पुलिस सुधार के संबंध में प्रमुख सिफारिशों में हर राज्य में एक प्रदेश सुरक्षा आयोग का गठन, जांच कार्यों को शांति व्यवस्था संबंधित कामकाज से अलग किया जाए, पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के लिए विशेष प्रक्रिया अपनाई जाए, पुलिस प्रमुख का कार्यकाल तय किया जाए व एक नया पुलिस अधिनियम बनाया जाए। लेकिन इन सिफारिशों पर आजतक ठीक से ध्यान भी नहीं दिया गया व ना ही अमल किया गया।

इसके बाद भारत में पुलिस सुधारों के लिए कई समितियों का गठन किया गया जिनमें पद्मनाभैया समिति(2000) व आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए मलिमठ समिति(2002-03) के सुझाव उल्लेखनीय है। 1998 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर जूलियो रिबेरो की अध्यक्षता में एक अन्य समिति का गठन किया गया था। इसके बाद पुलिस सुधारों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 में पूर्व पुलिस प्रमुख प्रकाश सिंह की याचिका पर सात मुख्य निर्देश दिए। जिनमें;

  1. राज्य सुरक्षा आयोग का गठन ताकि पुलिस बिना किसी दबाव के काम कर सके,
  2. पुलिस शिकायत प्राधिकरण बनाया जाए, जो पुलिस के खिलाफ आने वाली गंभीर शिकायतों की जांच कर सके,
  3. तीसरा थाना प्रभारी से लेकर पुलिस प्रमुख तक का एक स्थान पर दो वर्ष का कार्यकाल,
  4. नया पुलिस अधिनियम लागू किया जाए,
  5. अपराध की विवेचना और कानून व्यवस्था के लिए अलग पुलिस की व्यवस्था की जाए,
  6. पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे के अधिकारियों के स्थानांतरण, पोस्टिंग, पदोन्नति और सेवा से संबंधित अन्य मामलों को तय करने के लिए राज्य स्तर पर पुलिस स्थापना बोर्ड बनाया जाए व
  7. सातवां निर्देश केंद्र सरकार को सुझाव दिया गया कि वह केन्द्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग बनाए।

इसका काम केन्द्रीय पुलिस संगठनों के प्रमुख के चयन और नियुक्ति के लिए एक पैनल तैयार करना था, जिनका न्यूनतम कार्यकाल दो वर्ष का हो। लेकिन राज्यों ने इन दिशानिर्देशों पर आजतक ठीक से ध्यान नहीं दिया व इन सुधारों को येनकेन तरीकों से शक्तिहीन बनाने के ज्यादा प्रयास किये।

पुलिस के कार्य पद्धति पर हर बार प्रश्न उठाए जाते हैं लेकिन हमारा समाज व राजनीतिज्ञ पुलिसकर्मियों पर काम के बोझ के विषय में आवाज नहीं उठाते। ना ही अधिकांश राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में भी कभी इस विषय पर विशेष घोषणा नहीं करते। वह पुलिस जो एक दिन में बारह घंटे से ज्यादा काम करती हैं। जिन्हें माह में एक बार भी वीक आफ नहीं मिलता। मुश्किल से मिलने वाली छुट्टी के दिन भी अक्सर पुलिस को फिर काम पर बुलाया जाता है ! वहीं भारत में हर सप्ताह दो त्यौहार, पर्व या फिर बड़े आयोजन होते हैं जिसे संभालने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है। ऐसे में पुलिसकर्मियों की कार्यप्रणाली व कार्य में गुणवत्ता कैसे आऐगी ?

आखिरकार पुलिस भी मानव है कोई मशीन नहीं। समाज व सरकारों में बैठे जिम्मेदार लोगों को इस विषय में गंभीरता से चर्चा व चिंतन करना चाहिए। अक्सर सवाल उठते हैं कि जब पुलिस की जवाबदेही तय करने के लिए राजनीतिक दल और समाज हमेशा मुखर रहता है तो एक कर्मचारी के तौर पर उनको मानवीय अधिकारों से वंचित रखे जाने के खिलाफ कहीं से कोई आवाज क्यों नहीं उठती है। स्वतंत्रता के बाद से ही पुलिस सुधारों की बात हो रही है। 1996 में पूर्व पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह पुलिस सुधारों की मांग लेकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे लेकिन आज भी धरातल पर स्थिति में परिवर्तन नहीं आया।

आखिरकार पुलिस व्यवस्था में काम कर रहे लोग भी तो मानव है। उनका भी परिवार होता है। उन्हें भी अपने बच्चों के साथ के छुट्टी मनाने का अधिकार है लेकिन सरकार व राज्यों ने इस ओर कोई सुधार नहीं किया। अब उचित समय है कि जल्द से जल्द पुलिस व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन किया जाए और पुराने पुलिस कानून के स्थान पर नया पुलिस कानून बने। साथ ही पुलिस व्यवस्था में काम कर रहे नागरिकों के गरिमामय जीवन के लिए भी जरूरी कदम उठाये जाए।

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नरेन्द्र मोदी सरकार के सामाजिक आर्थिक न्याय से सुनिश्चित होता विकसित भारत का स्वप्न https://visionviksitbharat.com/the-dream-of-a-developed-india-ensured-by-socio-economic-justice-in-narendra-modis-government/ https://visionviksitbharat.com/the-dream-of-a-developed-india-ensured-by-socio-economic-justice-in-narendra-modis-government/#respond Sat, 18 Jan 2025 07:40:26 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=876 “मोदी सरकार ने ही दलितों को मिलने वाली आर्थिक सहायता, छोटे काम धंधे, कारोबार हेतु खोलने में पहले की सरकारों द्वारा चलाये जा रहे उन नियमों को हटाने का काम…

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“मोदी सरकार ने ही दलितों को मिलने वाली आर्थिक सहायता, छोटे काम धंधे, कारोबार हेतु खोलने में पहले की सरकारों द्वारा चलाये जा रहे उन नियमों को हटाने का काम किया जिसमें वो बकरी और सुअर ही पाल सकते थे। सरकार ने दलितों को पैसा दिया और कहा आप स्वेच्छा के अनुसार कोई भी काम करें।”

पिछले एक दशक में आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में भारत को विकसित होते देखना उत्साहवर्धक है। यह नरेंद्र मोदी जी के कुशल प्रशासन और उनके दृढ़ संकल्पों से ही संभव हो पाया है। कहते हैं कि परिवर्तन एक क्रमिक नियम है और अगर हम इस परिवर्तन के पथ पर बढ़ेंगे तो अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करेंगे। माननीय प्रधानमंत्री का यह मानना है कि देश के युवा अगर अपनी क्षमताओं और कर्तव्यों का निर्वहन करना आरम्भ करें तो देश एक विकसित राष्ट्र के रूप में तीव्र गति से उभर सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत की 140 करोड़ जनसंख्या में यह विश्वास पैदा करने में सफलता पाई कि समाज को भी देश के प्रति कुछ त्याग करना आवश्यक है तथा देश को आगे बढ़ने के लिए हमें कुछ कड़वे तथा कठोर नियम कानूनों को मानना पड़ेगा। तब कहीं कोई भी सरकार सामाजिक आर्थिक न्याय पूर्णतः कर सकती हैं।

केंद्र की मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती गैर-भाजपा सरकारों की तरह भारत को केवल एक भूमि का टुकड़ा समझकर अपने राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शासन नहीं किया है, अपितु भावनात्मक स्तर पर जाकर भारत को सत्य स्वरूप भारतमाता मानकर उसकी देहात्मा के रक्षण, पोषण और संवर्धन का कार्य किया है। यहां देह का अर्थ है- भारत के हर भूगोल तक सामाजिक, बुनियादी ढांचा और आर्थिक विकास की गंगा बहाना एवं आत्मा से तात्पर्य है – भारत के मूल्यों की पुनर्स्थापना एवं सहस्त्र वर्षों के गुलामी की कालिमा को मिटाकर अपने सांस्कृतिक मान- बिंदुओं, भाषाओं, त्योहारों, लोक-परंपराओं, शिल्प, कला आदि का संवर्धन कर विश्व में स्थापित करना।

तकनीकि से अन्त्योदय:

मोदी सरकार ने डिजिटल पहलों, तकनीकी प्रगति, सामाजिक कल्याण योजनाओं, वित्तीय समावेशन, स्वच्छ ईंधन, स्वच्छ वातावरण और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के प्रोत्साहन पर महत्व दिया है। “प्रधान मंत्री जन धन योजना,” “प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना,” और “आयुष्मान भारत” जैसी कई योजनाएं सामाजिक असमानताओं को कम करने और गरीबी रेखा से ऊपर उठने के लक्ष्य के साथ आरंभ की गई हैं। मनमोहन सिंह सरकार ने भी “राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” और “सर्व शिक्षा अभियान” जैसी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक विकास को बढ़ावा दिया था। इन तथ्यों से निष्कर्ष यही निकलता है कि कुछ पैमानों पर मोदी सरकार तो कुछ पर मनमोहन सरकार बेहतर दिखाई पड़ती है। लेकिन फ़िर भी अंतिम वाक्य के रुप में यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार यूपीए की तुलना में अधिक बेहतर नज़र आती है। जिसने दीनदयाल उपाध्यायजी के अंत्योदय सिद्धांत को धरातल पर वास्तव में उतारा। विकास को राष्ट्र के अंतिम व्यक्ति के लिए सुनिश्चित किया। भ्रष्टाचार पर बड़े स्तर पर अंकुश लगाकर विकसित भारत की नींव रख दी है।

युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की पहल

मोदीजी ने अपने कई भाषणों में कहा भी है, “भारत एक युवा राष्ट्र है, वर्तमान में इसकी 65% आबादी की आयु 35 वर्ष से कम है। युवाओं के पास राष्ट्र को बदलने की, उसे एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभारने के क्षमता होती है।” प्रधान सेवक ने समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र के बीज बोए हैं, जिसे विकसित राष्ट्र रूपी वृक्ष बनाने के लिए हमें कुछ समय देना होगा। विगत दिनों प्रधानमंत्री ने लालकिले से देश के युवाओं से आहान किया कि देश से करीब एक हजार युवा गैरराजनैतिक परिवारों से राजनीति में आये और देश की राजनीतिक व्यवस्था में भागीदार बने। इसलिए पिछले दिनों प्रधान सेवक ने देश को विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए देश में एक ‘विकसित भारत 2047’ के माध्यम से योजनाओं एवं उसके क्रियान्वयन के लिए तथा इन योजनाओ तथा इनके क्रियान्वयन में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की पहल की है। इसका उद्देश्य युवाओं को एक मंच प्रदान करना है जहाँ युवा अपनी क्षमताओं और कौशल के माध्यम से भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकें।

विकसित भारत @2047: युवाओं की आवाज को विकसित भारत के विजन को साकार करने के लिए शुरू किया गया, जो भारत के भाग्य में दृढ़ विश्वास, अटूट समर्पण और लोगों, विशेष रूप से युवाओं की विशाल क्षमता और प्रतिभा की गहन मान्यता की मांग करता है। विकसित भारत, एक दूरदर्शी अवधारणा का प्रतिनिधित्व करता है जो विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र के व्यापक परिवर्तन की कल्पना करता है। इस दृष्टिकोण में आर्थिक समृद्धि, सामाजिक समावेशिता, तकनीकी उन्नति, पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक समानता-न्याय और वैश्विक नेतृत्व शामिल है।

मोदी दशक का सिंहावलोकन

यदि मोदी दशक का सिंहावलोकन किया जाए तो हम पाएँगे कि नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राईक, कोविड -19 लॉकडाउन, 370 अनुच्छेद समाप्त करना जैसे अत्यधिक कड़े फैसले लेते हुए मोदीजी ने इसे किसी मंत्रालय अथवा प्रशासन पर आरोपित न करते हुए स्वयं इसकी जिम्मेदारी लेते हुए देश को संबोधित किया। किसी भी बड़े या कड़े फैसले में राष्ट्र को संबोधित कर उसकी घोषणा स्वयं करने के साथ श्री नरेंद्र मोदी ने यह साबित किया है कि यह फैसला उनका है तथा सही या गलत होने की जिम्मेदारी भी सिर्फ उनकी है। मोदी सरकार ने पहले की सरकारों के बजाय यह सुनिश्चित करने का अटल प्रयास किया है कि एक विकसित भारत की अर्थव्यवस्था लचीली और मजबूत होनी चाहिए जो अपने सभी नागरिकों को अवसर और उच्च जीवन स्तर प्रदान कर सके। अर्थव्यवस्था को उद्यमिता, नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मकता के आधार पर 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होना चाहिए। भारत की जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए एक विकसित भारत में स्वच्छ और हरित वातावरण होना चाहिए। पर्यावरण को पुनर्स्थापन, संरक्षण और लचीलेपन के आधार पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सक्षम होना चाहिए। एक विकसित भारत में एक समावेशी और सामंजस्यपूर्ण समाज होना चाहिए जो अपने सभी नागरिकों की गरिमा और कल्याण सुनिश्चित करे। समाज को न्याय, समानता और विविधता पर आधारित भारत की सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाने और उसका सम्मान करने में सक्षम होना चाहिए। वहीं एक विकसित भारत में सुदृढ़ नीतियों और जवाबदेही के साथ चुस्त शासन होना चाहिए। एक सुशासन प्रणाली वह है जहाँ विश्वसनीय डेटा एकत्र करने, सुधार के लिए क्षेत्रों का विश्लेषण करने और टीमवर्क, चिंतन, सहानुभूति और परामर्श के आधार पर देश को बेहतर बनाने के लिए तेजी से कार्य करने का प्रावधान हो।

पूर्ण सामाजिक न्याय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नई दिल्ली में लालकिले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्‍होंने भारत के विकास के लिए भविष्य के लक्ष्यों की श्रृंखला की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‛सरकार राष्ट्र को मजबूत बनाने और लोगों के जीवन में बदलाव लाने के इरादे से सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है। उन्‍होंने कहा कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए शासन में सुधार आवश्यक हैं। श्री मोदी ने कहा कि बैंकिंग, पर्यटन, एमएसएमई, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, परिवहन,सड़क और कृषि जैसे हर क्षेत्र में नई तथा आधुनिक प्रणाली स्थापित की जा रही है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप में उछाल देश को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। प्रधानमंत्री ने युवाओं को प्रशिक्षित करने और देश को दुनिया की कौशल राजधानी बनाने के लिए सरकार द्वारा घोषित ऐतिहासिक पहलों पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलने की परिकल्पना का उल्‍लेख किया और विकास की अपेक्षाओं को तेज गति से पूरा करने के लिए भविष्य के लिए कुशल संसाधन तैयार करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने महिलाओं के प्रति हिंसा और अपराधों के बढ़ते मामलों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अपराधियों को जल्द से जल्द दंडित किया जाना चाहिए और उन्हें सजा मिलनी चाहिए।’ तब ही सही अर्थों में पूर्ण सामाजिक न्याय होगा व भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बन सकेंगा।

सामाजिक समरसता के सिद्धान्त को आधार मानकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने जहां अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग को संवैधानिक सुरक्षा देने की दिशा में उपाय किए। वहीं आवास, शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के क्षेत्र में तमाम प्रावधान बनाकर दलित और शोषित समाज को सशक्त बनाने का काम किया। दलितों के लिए स्टैंड-अप इंडिया योजना के तहत उद्यमिता का वातावरण बनाया, ताकि वे खुद काम शुरू कर सकें, साथ ही अपने समाज के दूसरे लोगों को भी काम पर लगा सकें। मोदी सरकार ने समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला किया, जिससे वे सामान्य वर्ग के पिछड़े लोगों के तारणहार बनकर सामने आए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि सामाजिक न्याय हमारी सरकार के लिए सिर्फ कहने-सुनने की बात नहीं, बल्कि एक कमिटमेंट(प्रतिबद्धता) है। ये हमारी श्रद्धा है। गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, आदिवासियों को सम्मान और समान अधिकार दिलाना बाबासाहेब अंबेडकर का सपना था, हम उन्हीं के सपनों को साकार करने के लिए काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी सरकार, बाबा साहेब के दिखाए रास्ते पर चलते हुए, सबका साथ-सबका विकास के मंत्र के साथ समाज के हर वर्ग तक विकास का लाभ पहुंचाने का प्रयास कर रही है। भाजपा की सरकार ने ही दलितों को मिलने वाली आर्थिक सहायता, छोटे काम धंधे, कारोबार हेतु खोलने में पहले की सरकारों द्वारा चलाये जा रहे उन नियमों को हटाने का काम किया जिसमें वो बकरी और सुअर ही पाल सकते थे। सरकार ने दलितों को पैसा दिया और कहा आप स्वेच्छा के अनुसार कोई भी काम करें।

देश के बड़े वर्ग दलित समाज के साथ यह वास्तविक सामाजिक आर्थिक न्याय की श्रेणी का निर्णय मोदी सरकार के कार्यकाल में ही पूर्ण हुआ। मोदी सरकार ने अनुसूचित जाति जनजाति के लिए चलने वाली विभिन्न योजनाओं के लिए अब तक की सबसे ज्यादा राशि को आवंटित किया, जिसकी लगभग राशि 1,2600 करोड़ रुपए है। सरकार से मुद्रा बैंक योजना के द्वारा 8 करोड़ से ज्यादा ऋण (लोन) राशि केवल अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों ने लिया है। इसको लेकर इस वर्ग के लोगों ने विभिन्न प्रकार की औद्योगिक इकाइयों का संचालन किया। इस योजना में बाबा साहब आंबेडकर के उस सपने को भी साकार किया जो उन्होंने 1918 साउथ बोरो कमेटी के समक्ष प्रस्तुत अपने प्रतिवेदन में की थी। बाबा साहब चाहते थे की दलित उद्यमियों की एक बड़ी फौज खड़ी हो। इस मंशा को सरकार ने मुद्रा और स्टार्ट-अप इंडिया के माध्यम से पूरा करने का काम किया है। इसमें सबसे बड़ी बात हैं 50,000 की राशि से लेकर 1 करोड़ तक की राशि अनुसूचित जाति जनजाति ने ली है।

ग्रामीण भारत का सम्मान

इसी प्रकार से प्रधानमंत्री के द्वारा अपने पहले कार्यकाल में “स्वच्छ भारत अभियान” से ग्रामीण भारत में सम्मान और अपमान की एक परिचर्चा प्रारंभ हुई हैं, वर्तमान में घर में शौचालय होना सम्मान का प्रतीक बनता जा रहा है। आए दिन शादी और शौचालय को लेकर विभिन्न रिपोर्ट छपती रहती हैं। स्वच्छ भारत अभियान क्या मात्र घरों में इज्जतघर (शौचालय) बनाने मात्र से जुड़ा है ? बस इतनी-सी बात है, ऐसा नहीं बल्कि ये अभियान स्वस्‍थ्य पर्यावरण के साथ जुड़ा है, ग्रामीण भारत में बीमारी का बड़ा कारण शौच के लिए बाहर जाना है और मक्खियों के द्वारा होने वाली ज्यादातर बीमारियों में काफी कमी आई है। अभी तक सरकार ने करीब 10 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कर दिया है, जो सफलता के काफी नजदीक है। पीछले दिनों हुए एक शोध से पता चला कि स्वच्छ भारत अभियान के कारण प्रतिवर्ष 70 हजार बच्चों को बचाया गया व महिलाओं स्वास्थ्य लाभ हुआ। यहां ऐसे ही कुछ ओर तथ्यों व आंकड़ों पर दृष्टि डाले तो हम देखते हैं कि उज्जवला योजना जिसमें घर की महिलाओ को मुफ़्त गैस देने की योजना का प्रावधान किया गया, क्या इसका लाभ केवल सामान्य वर्गों ने लिया है ? ऐसा बिलकुल नहीं है। इसमें अधिकतर लाभार्थी दलित, पिछड़े समाज के लोग ही हैं, इस योजना का लाभ देश के 7 करोड़ से अधिक लोगों ने लिया है।

50 करोड़ लोगों का “आयुषमान भारत” परिवार

इसी प्रकार लगभग 50 करोड़ लोगों ने “आयुषमान भारत” योजना के तहत अपना निःशुल्क इलाज कराया है, ये योजना दुनिया की सबसे बड़ी योजना है, जिसमें प्रत्येक परिवार को 5 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा दिया गया है। वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत लगभग 3 करोड़ ग़रीबों को पक्के घर बना कर दे दिए गए हैं। 33 करोड़ जनधन बैंक खाते खोल कर सरकारी योजनाओं में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने का काम किया है “लाभ सीधे लाभार्थी के खाते में” क्या इसमें दलित, वांचित, अनुसूचित जाति जनजाति नहीं है ? गाँवों में बैंक खाते ना होने के कारण नरेगा में कितना भ्रष्टाचार होता था क्या किसी से छुपा है। वास्तव में यही सच्चा सामाजिक व आर्थिक न्याय है जो विकसित भारत की सुदृढ नींव रखता है।

नरेन्द्र मोदी सरकार के सामाजिक आर्थिक न्याय से सुनिश्चित होता विकसित भारत का स्वप्न निरंतर साकार हो रहा है और विश्व के अनेक शक्तिशाली देश इसकी सराहना कर रहे हैं। भारतीय नागरिकों को सामाजिक के साथ आर्थिक न्याय प्रदान करना मोदी सरकार को ऐतिहासिक कार्य है। इस कारण ही देश की जनता ने 2024 में पुनः मोदी सरकार को ही चुना व विकसित राष्ट्र के लिए देश का नेतृत्व पुनः नरेंद्र मोदी जी के हाथों में दिया। यह सरकार विकसित भारत 2047 के कार्य में भी जोरशोर से लग गई है। विकसित भारत का स्वप्न कोरी कल्पना नहीं है, मोदी सरकार के निर्णयों में इस स्वप्न को धरातल पर उतारने के सारे लक्षण दिख रहे हैं। आज भारत रक्षा, अंतरिक्ष, वित्तीय, सामरिक मामलों, शिक्षा, स्वरोजगार आदि मामलों में किसी पर निर्भर नहीं है। यही से नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा विकसित भारत के लिए किये जा रहे कार्यों व निर्णयों को आसानी से देखा जा सकता है।

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स्वामी विवेकानंद : युवाओं के आदर्श महानायक https://visionviksitbharat.com/national-youth-day-vivekananda-jayanti-rashtriya-yuva-diwas/ https://visionviksitbharat.com/national-youth-day-vivekananda-jayanti-rashtriya-yuva-diwas/#respond Sun, 12 Jan 2025 06:39:00 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=785 “जो आपके पास मौलिक गुण है उससे ही जीवन में श्रेष्ठ सफलता प्राप्त की जा सकती है।” स्वामी विवेकानंद विश्व के सबसे बड़े धर्म सम्मेलन 11 सितम्बर 1893 अमेरिका में…

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“जो आपके पास मौलिक गुण है उससे ही जीवन में श्रेष्ठ सफलता प्राप्त की जा सकती है।”
स्वामी विवेकानंद विश्व के सबसे बड़े धर्म सम्मेलन 11 सितम्बर 1893 अमेरिका में अपने आध्यात्मिक ज्ञान के बलबूते पर ही गए थे। भारत के इस सन्देश वाहक की चिंतनधारा की अमेरिका पर गहरी छाप पड़ी। इस गुण के अलावा उनके पास उस समय कुछ नहीं था। लेकिन यह शक्ति कोई साधारण नहीं थी। उनके इस गुण में भारतवर्ष की हजारों वर्षों की आध्यात्मिक ऊर्जा सिंचित थी। वे भारतीय आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत थे। वे भारत के प्राचीन साहित्य व अपने समय के यथार्थ को भलीभांति जानते थे। स्वामी विवेकानंद जी भारतवर्ष के अपने समय के ज्ञान रूपी सूर्य से कम नहीं थे। वे वेदों व प्राचीन भारतीय शास्त्रों के ज्ञाता थे। उनकी स्मरण शक्ति अद्भुत थी। उनके बतायें मार्ग व दर्शन से भारत में नवजागरण हुआ और आजतक वे युवाओं के लिए महानायक है।
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय बताता है कि उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। आज जब हम स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस १२ जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाते हैं तो यह हमारे लिए गर्व का विषय है। एक ऐसा युवा जिसने अपने छोटे से जीवन में न सिर्फ़ भारतवर्ष को छान दिया, बल्कि विश्व में भारतवर्ष के अद्भुत धर्म शास्त्रों का परचम लहराया। सनातन हिंदू धर्म की ध्वजा को उन्होंने बड़ी ही कुशलता व श्रेष्ठता के साथ विश्व के सामने लहराया। यह सब करना इतना भी आसान नहीं था, जबकि भारत में ही उनके अनेकों दुश्मन हो गए थे। पर स्वामी विवेकानंद ने भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान के बल पर अंततः विश्व की बड़ी संख्या का दिल जीत लिया।
यह सब इसलिए हुआ कि वे भारतवर्ष में बहुत घूमे साथ ही दुनिया के कितने ही देशों में लोगों के बीच जाकर अपने सच्चे सनातन धर्म की बात कहीं। वे सिर्फ़ हिमालय की कंदराओं में बैठकर ध्यान करने वाले योगी नहीं थे, वे जनमानस के बीच रहकर आध्यात्म की लौ जगाने वाले योगी थे। उन्हें पता था कि खाली पेट भजन नहीं हो सकता है।
उन्होंने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस जी से सच्ची शिक्षा प्राप्त कर सबसे पहले भारत को जाना। शुरुआत में अपने गुरू की कितनी ही बातों का वे विरोध करते थे। वे इतनी आसानी से अपने गुरू की बातें भी स्वीकार नहीं करते थे। वे हर बात व तथ्य को कसौटी पर कसते हुए उसकी गहराई तक जाते थे। इसलिए ही बाद में उन्होंने कहा कि “स्वयं पर विश्वास करो।” वे हमेशा कहते थे किसी भी बात पर आंख मूंदकर भरोसा मत करो, उसे स्वयं से जानों। वे भारतीय प्राचीन ज्ञान की शक्ति की क्षमता को जान गए थे। जिसके लिए वे भारत को जानने के लिए वे भारत के कौने-कौने मे गए। आम लोगों के बीच रहे। उनके दुख दर्द को जाना। भारत की वास्तविक शक्ति व गुण को पहचाना। सैकड़ों वर्षों की दासता के बाद उन्होंने भारतीयों को जागृत किया कि अपनी मूल शक्ति आध्यात्म की ओर लौटो। वेद व प्राचीन आध्यात्मिक शक्ति को पहचानों। आत्मनिर्भर बनो। उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए।
स्वामी विवेकानंद के बारे में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था-“यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।” रोमां रोलां ने उनके बारे में कहा था-“उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है, वे जहाँ भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी। हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा-‘शिव!’ यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।”
देश की उन्नति–फिर चाहे वह आर्थिक हो या आध्यात्मिक–में स्वामी विवेकानंद शिक्षा की भूमिका केन्द्रिय मानते थे। भारत तथा पश्चिम के बीच के अन्तर को वे इसी दृष्टि से वर्णित करते हुए कहते हैं, “केवल शिक्षा! शिक्षा! शिक्षा! यूरोप के बहुतेरे नगरों में घूमकर और वहाँ के ग़रीबों के भी अमन-चैन और विद्या को देखकर हमारे ग़रीबों की बात याद आती थी और मैं आँसू बहाता था। यह अन्तर क्यों हुआ ? जवाब पाया – शिक्षा!” स्वामी विवेकानंद का विचार था कि उपयुक्त शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व विकसित होना चाहिए और चरित्र की उन्नति होनी चाहिए। सन् १९०० में लॉस एंजिल्स, कैलिफ़ोर्निया में दिए गए एक व्याख्यान में स्वामी यही बात सामने रखते हैं, “हमारी सभी प्रकार की शिक्षाओं का उद्देश्य तो मनुष्य के इसी व्यक्तित्व का निर्माण होना चाहिये। परन्तु इसके विपरीत हम केवल बाहर से पालिश करने का ही प्रयत्न करते हैं। यदि भीतर कुछ सार न हो तो बाहरी रंग चढ़ाने से क्या लाभ ? शिक्षा का लक्ष्य अथवा उद्देश्य तो मनुष्य का विकास ही है।”
स्वामी विवेकानन्द की वाणी में गजब का आकर्षण रहता था। वे जो भी बात कहते उसमें व्यवहारिक ज्ञान होता था। उनका कहना था:- “तुमको कार्य के सभी क्षेत्रों में व्यावहारिक बनना पड़ेगा। सिद्धान्तों के ढेरों ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है।” यह बात भले साधारण लग रही हो। लेकिन इस एक बात से उन्होंने भारत में वर्षों से पनप रहे पाखंड व अनेक कुरीतियों पर आक्रमण किया था। शायद इसके ही कारण कितनी ही तथाकथित धार्मिक संस्थाएं व धर्म गुरू उनका विरोध करते रहे थे।
जीवन के अन्तिम दिनों में उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-“एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।” इस बात में बहुत गहराई थी, वे जैसा कि कहते थे एक विवेकानंद से कुछ नहीं होगा। वे अपने जैसे विचारों वाले युवाओं का एक बड़ा दल संगठित करना चाहते थे। जो भारत की गरीबी को मिटाने में पूर्ण रूप से समर्पित हो। भारत की अपनी यात्राओं में उन्होंने गरीबी को देखा था। जिससे वे बहुत दुखी भी रहे। पश्चिम का वैभवशाली भौतिक वातावरण उन्हें कभी आकर्षित नहीं कर पाया, क्योंकि वे भारत भूमि के सच्चे राष्ट्र भक्त थे। इसलिए ही वर्षों से निद्रा में पड़े भारतीयों को वे जगाना चाहते थे। वे अच्छे से जानते थे कि यदि यह भारतीय जाग गया तो विश्व का कल्याण ही होगा। वे हमेशा युवाओं के लिए आदर्श रहे।
आज जब विश्व के युवाओं के सामने महामारीयों व नस्लीय हिंसाओं का मकडज़ाल फैला हुआ है तब इस स्थिति में स्वामी विवेकानंद के ही विचार युवाओं के लिए आदर्श होगें। क्योंकि जैसा स्वामी जी मानते थे, युवाओं के द्वारा ही वर्तमान व भविष्य का कल्याण होता है। युवा ही हमारे समाज की रीढ़ है। इसलिए युवाओं को स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करके वर्तमान व भविष्य का निर्माण करना चाहिए। जिस तरह स्वामी विवेकानंद ने भारत की जनता में खोये हुए आत्मविश्वास को जगाया। उसी तरह आज के युवाओं को भारत के खोये गौरव को वापस प्राप्त करने के लिए भारत में ही रहकर काम करना होगा। सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए हमारे युवा भाईयों बहनों को स्वामी विवेकानंद जी के विचारों व मार्ग पर चलकर इस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। तब कहीं स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को युवा दिवस मनाना सार्थक माना जाऐगा।

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