Devendra Raj Suthar https://visionviksitbharat.com/author/devendra-raj-suthar/ Policy & Research Center Mon, 14 Apr 2025 18:35:39 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8 https://visionviksitbharat.com/wp-content/uploads/2025/02/cropped-VVB-200x200-1-32x32.jpg Devendra Raj Suthar https://visionviksitbharat.com/author/devendra-raj-suthar/ 32 32 समुद्र पर भारतीय इंजीनियरिंग का कमाल https://visionviksitbharat.com/the-marvel-of-indian-engineering-on-the-sea/ https://visionviksitbharat.com/the-marvel-of-indian-engineering-on-the-sea/#respond Mon, 14 Apr 2025 18:35:39 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1597 हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में नवनिर्मित पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया। यह भारत का पहला वर्टिकल-लिफ्ट समुद्री रेलवे पुल है, जो न केवल आधुनिक…

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हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में नवनिर्मित पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया। यह भारत का पहला वर्टिकल-लिफ्ट समुद्री रेलवे पुल है, जो न केवल आधुनिक इंजीनियरिंग की उत्कृष्टता को दर्शाता है, बल्कि देश की आधारभूत संरचना में मील का पत्थर भी है। यह परियोजना ऐतिहासिक, तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दृष्टियों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और इसे भारत के तटीय विकास के व्यापक लक्ष्य के अंतर्गत देखा जाना चाहिए।

पंबन ब्रिज भारत की मुख्यभूमि को रामेश्वरम द्वीप से जोड़ता है। मूल पंबन ब्रिज का निर्माण वर्ष 1914 में किया गया था और यह देश का पहला समुद्री रेल पुल था। इस पुल ने दशकों तक व्यापार और तीर्थयात्रा का आधार प्रदान किया। विशेष रूप से धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रामेश्वरम देश के चार धामों में से एक है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यात्रा करते हैं। यह पुल लंबे समय तक भारतीय रेलवे की संपत्ति बना रहा, लेकिन समय के साथ इसकी संरचनात्मक क्षमताएं सीमित होने लगीं। वर्ष 1964 की भीषण चक्रवाती आपदा में यह पुल गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था। उस त्रासदी में एक ट्रेन समुद्र में बह गई थी। इसके पश्चात विख्यात इंजीनियर ई. श्रीधरन के नेतृत्व में और स्थानीय मछुआरों के सहयोग से इस पुल की मरम्मत की गई। इस ऐतिहासिक योगदान ने पंबन ब्रिज को एक सांस्कृतिक और तकनीकी प्रतीक में परिवर्तित कर दिया। समय बीतने के साथ जब पुल की क्षमता भविष्य की जरूरतों के अनुरूप नहीं रह गई, तब एक नए और अधिक सक्षम पुल के निर्माण की आवश्यकता अनुभव की गई।

नए पुल की आधारशिला नवंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखी गई और निर्माण फरवरी 2020 में शुरू हुआ और इसे रेल विकास निगम लिमिटेड द्वारा कार्यान्वित किया गया। इस पुल की कुल लंबाई 2.08 किलोमीटर है और इसका डिजाइन 58 वर्षों की सेवा-आयु को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। यह पुल समुद्र की विकट परिस्थितियों जैसे ज्वार-भाटा, लवणीयता और उच्च आर्द्रता को सहन करने में सक्षम है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाले जंग-रोधी स्टील और उन्नत तकनीकी सामग्री का प्रयोग किया गया है। इस पुल की विशिष्टता इसकी वर्टिकल-लिफ्ट प्रणाली है, जो भारत में पहली बार किसी समुद्री पुल में लागू की गई है। इसका लिफ्टिंग स्पैन 72.5 मीटर लंबा है, जो 17 मीटर तक ऊपर उठाया जा सकता है। यह सुविधा मन्नार की खाड़ी में जहाजों और मछली पकड़ने वाली नौकाओं के निर्बाध संचालन को सुनिश्चित करती है। यह पुल पुराने पुल की तुलना में लगभग 3 मीटर ऊंचा है, जिससे समुद्री यातायात में अधिक सहूलियत प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त इसका ढांचा वंदे भारत जैसी सेमी-हाई स्पीड ट्रेनों और भारी मालगाड़ियों के संचालन के लिए उपयुक्त है, जो इसे भविष्य की परिवहन आवश्यकताओं के अनुकूल बनाता है।

नए पुल के निर्माण का प्रमुख उद्देश्य न केवल संरचनात्मक मजबूती और सुरक्षित रेल यातायात सुनिश्चित करना है, बल्कि यह क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, आर्थिक समृद्धि और सामाजिक समावेशन की दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण पहल है। भारतीय रेलवे और पर्यटन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, रामेश्वरम में प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख तीर्थयात्री आते हैं। पूर्ववर्ती पुल की सीमित क्षमताओं के कारण अक्सर रेल सेवाओं में विलंब होता था। अब इस नई संरचना से समयबद्ध और तीव्र गति की रेल सेवाएं संभव हो सकेंगी, जिससे पर्यटकों और यात्रियों को अधिक सुविधा मिलेगी। पर्यटन में अनुमानतः 15-20% की वृद्धि की संभावना व्यक्त की गई है, जिससे होटल व्यवसाय, स्थानीय परिवहन, हस्तशिल्प, खानपान और अन्य सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित होंगे। वर्तमान में लगभग 50,000 लोग रामेश्वरम क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन से जुड़े हैं। इस पुल से इनकी आय और जीवनस्तर में सुधार की संभावना है।

यह पुल मत्स्य उद्योग के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। रामेश्वरम एवं आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मछुआरे रहते हैं, जिनकी आजीविका मन्नार की खाड़ी से जुड़ी है। तमिलनाडु का मछली उत्पादन प्रतिवर्ष लगभग 7.5 लाख टन होता है, जिसमें इस क्षेत्र का योगदान उल्लेखनीय है। वर्टिकल-लिफ्ट सुविधा से जहाजों और नौकाओं की निर्बाध आवाजाही संभव होगी, जिससे मछुआरे अधिक कुशलता से कार्य कर सकेंगे। साथ ही, तेज और सुरक्षित रेल संपर्क से समुद्री उत्पादों का बड़े बाजारों तक शीघ्र परिवहन संभव होगा, जिससे व्यापार में 5 से 7 प्रतिशत तक की वृद्धि की आशा की जा रही है। सामाजिक दृष्टिकोण से यह पुल रामेश्वरम के नागरिकों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक सिद्ध होगा। पुराने पुल की सीमाओं के कारण आपातकालीन सेवाओं (जैसे दवाइयों और चिकित्सकीय सहायता) की समय पर उपलब्धता एक बड़ी चुनौती थी। नई संरचना इस समस्या का समाधान प्रदान करेगी। साथ ही, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अधिक सुलभ होगी। यह पुल सामाजिक एकता और क्षेत्रीय समावेशन को भी बढ़ावा देगा।

पर्यावरणीय दृष्टि से इस परियोजना को अत्यंत संवेदनशील माना गया है, क्योंकि मन्नार की खाड़ी जैवविविधता से भरपूर क्षेत्र है। डगोंग, मूंगा चट्टानें और अनेक दुर्लभ समुद्री प्रजातियां यहां पाई जाती हैं। परियोजना की स्वीकृति से पूर्व विस्तृत पर्यावरणीय मूल्यांकन किया गया और निर्माण के दौरान पर्यावरण मानकों का पालन सुनिश्चित किया गया। वर्टिकल-लिफ्ट प्रणाली समुद्री जीवन के मार्ग को अवरुद्ध नहीं करती, जिससे प्राकृतिक आवासों पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। फिर भी, बढ़ती पर्यटन गतिविधियों और व्यापारिक विस्तार के चलते जल प्रदूषण, प्लास्टिक अपशिष्ट और अन्य पर्यावरणीय समस्याओं की आशंका बनी रहती है, जिनसे निपटने के लिए सतत निगरानी और ठोस उपायों की आवश्यकता होगी। यह पुल केंद्र सरकार की सागरमाला योजना के अंतर्गत विकसित तटीय आधारभूत संरचना का भाग है, जिसके अंतर्गत 7.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक निवेश की योजना है। इसकी सफलता अन्य तटीय या द्वीपीय क्षेत्रों, जैसे अंडमान और लक्षद्वीप, में समान परियोजनाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है। इससे भारत को समुद्री व्यापार और रणनीतिक क्षेत्र में सुदृढ़ स्थिति प्राप्त होगी।

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सामाजिक क्रांति के शिल्पी डॉ. अंबेडकर https://visionviksitbharat.com/social-engineer-de-ambedkar/ https://visionviksitbharat.com/social-engineer-de-ambedkar/#respond Mon, 14 Apr 2025 18:23:44 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1590 डॉ. भीमराव अंबेडकर ऐसे विचारक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारतीय समाज में गहराई से जड़ें जमा चुके छुआछूत, जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय को खुली चुनौती दी। उन्होंने सिर्फ…

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डॉ. भीमराव अंबेडकर ऐसे विचारक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारतीय समाज में गहराई से जड़ें जमा चुके छुआछूत, जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय को खुली चुनौती दी। उन्होंने सिर्फ इन कुरीतियों की आलोचना नहीं की, बल्कि उनके विरुद्ध व्यापक संघर्ष भी किया और समाज के दबे-कुचले वर्गों को आत्मसम्मान और अधिकारों की चेतना से जोड़ा। वे संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में तैयार संविधान ने भारत को एक लोकतांत्रिक ढांचा दिया, जिसमें सभी नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित किए गए। उन्होंने संविधान में यह प्रावधान जोड़ा कि नागरिकों के साथ जाति, धर्म, लिंग, भाषा या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसके अलावा अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण नीति का प्रस्ताव रख कर उन्होंने सामाजिक असमानता को घटाने का प्रयास किया।

अंबेडकर का मानना था कि सामाजिक बदलाव केवल कानूनी प्रावधानों से संभव नहीं है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1927 में महाड सत्याग्रह के माध्यम से उन्होंने दलितों को सार्वजनिक जलस्रोतों पर बराबरी का अधिकार दिलाने की पहल की। इसके बाद 1930 में कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन के जरिए उन्होंने धार्मिक स्थलों पर जाति आधारित भेदभाव को चुनौती दी। इन आंदोलनों ने दलितों में आत्मसम्मान और अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया। शिक्षा को सामाजिक बदलाव का मुख्य जरिया मानते हुए अंबेडकर ने कहा था कि समाज का असली उत्थान तभी संभव है, जब शिक्षा सबके लिए सुलभ और समान हो। उन्होंने वंचित वर्गों के लिए छात्रवृत्ति, स्कूलों और छात्रावासों की व्यवस्था की और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाने का काम किया। उनका मानना था कि शिक्षा से ही व्यक्ति अपने अधिकारों को पहचान सकता है और समाज में सम्मान प्राप्त कर सकता है।

डॉ. अंबेडकर ने केवल सामाजिक ही नहीं, आर्थिक क्षेत्र में भी बदलाव की दिशा में काम किया। उन्होंने मजदूरों के लिए आठ घंटे कार्यदिवस, न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए उन्होंने हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार किया। हालांकि यह विधेयक उनके जीवनकाल में पारित नहीं हो सका, लेकिन इससे महिलाओं के अधिकारों पर एक नई बहस शुरू हुई, जिसने आगे चलकर कई सुधारों का आधार तैयार किया। अंबेडकर की सोच केवल भारत के संदर्भ में सीमित नहीं थी। वे लोकतंत्र को सत्ता परिवर्तन भर का माध्यम नहीं मानते थे, बल्कि इसे सामाजिक और आर्थिक बराबरी की प्रक्रिया से जोड़ कर देखते थे। उनका मानना था कि लोकतंत्र तभी सार्थक है, जब समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति को भी गरिमा और अधिकार मिले। उनके विचार मानवाधिकारों की उस वैश्विक अवधारणा से मेल खाते हैं, जो हर व्यक्ति के सम्मान की रक्षा को सबसे बड़ी प्राथमिकता देती है।

डॉ. अंबेडकर के प्रयासों के कारण भारतीय समाज में सामाजिक बराबरी और न्याय की दिशा में ठोस बदलाव संभव हुआ। संविधान द्वारा मिले अधिकारों ने दलितों और वंचित वर्गों को शिक्षा, राजनीति और रोजगार में प्रतिनिधित्व का अवसर दिया। इसके बावजूद अंबेडकर का यह सपना कि जाति और भेदभाव रहित समाज बने, आज भी पूरी तरह साकार नहीं हुआ है। सामाजिक व्यवहार में भेदभाव के अनेक रूप अब भी मौजूद हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनके बताए रास्ते पर चलने की आवश्यकता आज भी बनी हुई है। उन्होंने यह विचार दिया कि हर भारतीय को पहले नागरिक और फिर किसी जाति या समुदाय का सदस्य समझा जाना चाहिए। आज भी यह सोच सामाजिक एकता और राष्ट्रीय सौहार्द के लिए एक मजबूत आधार है। अंबेडकर के विचारों और कार्यों ने यह स्पष्ट कर दिया कि समाज का विकास केवल आर्थिक प्रगति से नहीं होता, बल्कि सामाजिक न्याय, बराबरी और मानवीय गरिमा की भावना से ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव है।

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन और संघर्ष सामाजिक न्याय की एक ऐसी मशाल है, जो अन्याय और भेदभाव के अंधेरे को चीरकर समतामूलक समाज की राह दिखाती है। उनके कार्यों ने न केवल भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को एक मजबूत आधार प्रदान किया, बल्कि यह भी स्थापित किया कि सच्चा परिवर्तन केवल कानूनी प्रावधानों से नहीं, अपितु सामाजिक चेतना और मानसिकता में आमूलचूल बदलाव से संभव है। संविधान के माध्यम से उन्होंने समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे के सिद्धांतों को संस्थागत रूप दिया, परंतु उनकी दृष्टि इससे कहीं व्यापक थी। उन्होंने समाज को यह सिखाया कि हर व्यक्ति की गरिमा और अधिकारों की रक्षा ही एक सभ्य समाज की पहचान है। जब तक समाज में असमानता, अन्याय और भेदभाव जैसी समस्याएं मौजूद हैं, तब तक अंबेडकर के विचार प्रासंगिक रहेंगे।

संघ के संस्कारों में अंबेडकर का भारत

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जिस भारत का सपना देखा था, वह राजनीतिक आज़ादी से परे सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति का सपना था। उनके लिए स्वतंत्रता का अर्थ केवल विदेशी शासन से मुक्ति नहीं, बल्कि उस सामाजिक अन्याय से मुक्ति भी था जो सदियों से भारतीय समाज में जड़ें जमाए बैठा था। उन्होंने समता, बंधुता और न्याय पर आधारित एक ऐसे भारत की कल्पना की थी जहां हर व्यक्ति की पहचान उसके कर्म, चरित्र और मानवता से तय हो, न कि उसके जन्म से। आज जब हम इस सपने की वास्तविकता की ओर देखते हैं, तो संघ की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जो सामाजिक समरसता और एकात्मता के लिए निरंतर कर्मरत है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वैचारिक और सामाजिक संगठन के रूप में भारतीय समाज की गहराइयों में जाकर उस भेदभाव को मिटाने का प्रयास कर रहा है जो कभी डॉ. अंबेडकर के लिए चिंता का कारण रहा। संघ का मानना है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति (चाहे उसकी जाति, वर्ण या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो) राष्ट्र निर्माण का समान भागीदार है। डॉ. अंबेडकर ने संविधान निर्माण के समय यह स्पष्ट कहा था कि राजनीतिक समानता तभी सार्थक होगी जब सामाजिक और आर्थिक समानता भी उसके साथ चले। संघ ने इसी सिद्धांत को अपने कार्य में मूर्त रूप दिया है। संघ की शाखाओं में न कोई जाति पूछता है, न धर्म और न आर्थिक स्तर। सभी स्वयंसेवक एक साथ, एक ही जमीन पर बैठते हैं और एक ही ध्येय वाक्य को आत्मसात करते हैं- ‘परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।’

डॉ. अंबेडकर के सपनों का भारत तभी साकार हो सकता है जब समाज का हर वर्ग स्वाभिमान और समान अधिकार के साथ जीवन जी सके। संघ ने इसी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए देश के कोने-कोने में सामाजिक समरसता के कार्यक्रम चलाए हैं। संघ के सेवा कार्यों में बस्तियों के बच्चों को शिक्षित करना, अछूत समझे जाने वाले वर्गों के बीच स्वास्थ्य शिविर लगाना और गांव-गांव में स्वावलंबन का बीज बोना एक सतत प्रक्रिया रही है। संघ के स्वयंसेवकों ने यह सिद्ध किया है कि सच्चा राष्ट्रवाद वही है जो अपने सबसे अंतिम नागरिक के मान-सम्मान और विकास में निहित हो।

डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज के लिए जो चेतावनी दी थी कि यदि सामाजिक भेदभाव खत्म नहीं हुआ तो स्वतंत्रता केवल नाम की रह जाएगी। संघ ने उस चेतावनी को अपने संस्कारों का हिस्सा बना लिया। उनके कार्यों में केवल भाषण नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन में समता का पालन दिखता है। संघ का मानना है कि जाति के आधार पर किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन करना राष्ट्र की एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यही कारण है कि संघ हर उस व्यक्ति को गले लगाता है जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता की एकता में विश्वास रखता है, भले ही उसका सामाजिक परिवेश कोई भी क्यों न हो।

डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक न्याय के लिए जो बीज बोए थे, संघ ने उसे अपने कार्यों के माध्यम से सींचा है। एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना जो जाति, भाषा और क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर केवल मनुष्य और नागरिक की दृष्टि से अपने साथियों को देखे, यही डॉ. अंबेडकर की मूल अपेक्षा थी। संघ ने इस अपेक्षा को धरातल पर उतारने में न केवल सक्रियता दिखाई, बल्कि यह सिद्ध भी किया कि सामाजिक क्रांति केवल नारों से नहीं, सेवा और समर्पण से आती है। डॉ. अंबेडकर के सपनों का भारत तभी पूर्ण होगा जब हर हाथ को काम, हर दिल को सम्मान और हर विचार को स्वतंत्रता मिले। संघ इसी दिशा में रात-दिन लगा हुआ है।

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