Dr. Manmohan Singh Shishodia https://visionviksitbharat.com/author/manmohan-singh-shishodia/ Policy & Research Center Wed, 16 Apr 2025 19:28:25 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8 https://visionviksitbharat.com/wp-content/uploads/2025/02/cropped-VVB-200x200-1-32x32.jpg Dr. Manmohan Singh Shishodia https://visionviksitbharat.com/author/manmohan-singh-shishodia/ 32 32 कल्पना से हकीकत बनता अंतरिक्ष पर्यटन https://visionviksitbharat.com/space-tourism-turning-imagination-into-reality/ https://visionviksitbharat.com/space-tourism-turning-imagination-into-reality/#respond Tue, 15 Apr 2025 18:48:09 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1580 राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तांत ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ में घुमक्कड़ी को व्यक्ति और समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। यही घुमक्कड़ी अब झील, झरना, गुफा, घाटी, नदी, समुन्द्र और…

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राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तांत ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ में घुमक्कड़ी को व्यक्ति और समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। यही घुमक्कड़ी अब झील, झरना, गुफा, घाटी, नदी, समुन्द्र और पहाड़ तक सीमित न होकर अंतरिक्ष तक विस्तारित हो चुकी है। अंतरिक्ष घुमक्कड़ी पृथ्वी से लगभग 100 किमी की ऊंचाई पर, पृथ्वी के वायुमंडल को बाह्य अंतरिक्ष से अलग करने वाली हंगरी-अमेरिकी वैज्ञानिक थियोडोर वॉन कार्मन के नाम से जाने वाली कार्मन रेखा को पार करने के बाद शुरू होती है। वस्तुतः अंतरिक्ष एक ऐसा खजाना है जिसमें मानवता के लिए असंख्य बेशकीमती उपहार तो हैं, किन्तु उसे खोलने के लिए उत्कृष्ट वैज्ञानिक एवं प्रद्योगिकी क्षमता की आवश्यकता होती है। भारत ने सफल चंद्रयान-3, मंगलयान और आदित्य-एल 1 अभियानों के साथ ही एक रॉकेट से 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर अपनी अंतरिक्ष क्षमता का दुनिया में लोहा मनवाया है। आज कृषि, सुरक्षा, दूरसंचार, मौसम पूर्वानुमान तथा अर्थव्यवस्था की दृष्टि से अंतरिक्ष अन्वेषण अपरिहार्य बनते जा रहे हैं। नि:संदेह, अंतरिक्ष आधारित बाजार में भारत के विकास की अपार संभावनाएं निहित हैं।

अंतरिक्ष की ही भांति अंतरिक्ष में मानवीय हितों की संभावनाओं की भी कोई सीमा नहीं है। 21 वीं सदी में ऐसा मूर्त रूप लेती एक संभावना है अंतरिक्ष पर्यटन, अर्थात मनोरंजन के लिए अंतरिक्ष घुमक्कड़ी। अंतरिक्ष पर्यटन जहां एक आकर्षक लाभकारी उद्योग के रूप में उभर रहा है, वहीं इससे इंजीनियरिंग, एयरोस्पेस, आतिथ्य और ग्राहक सेवा जैसे क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो रहे हैं। अंतरिक्ष यात्रा में उपकक्षीय, कक्षीय एवं चंद्र यात्रा शामिल हैं। उपकक्षीय अंतरिक्ष यात्रा में अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष तक पहुंचता है लेकिन पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में रहता है, कक्षीय अंतरिक्ष यात्रा में अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में जाता है और चंद्र यात्रा में अंतरिक्ष यान चंद्रमा तक जाता है। इस क्षेत्र में निजी कंपनियों जैसे वर्जिन गैलेक्टिक, स्पेसएक्स, बोइंग, स्पेस एडवेंचर्स आदि के कूदने से अंतरिक्ष पर्यटन का बाजार दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ रहा है।

अंतरिक्ष पर्यटन की शुरुआत साल 2001 में अमेरिकी व्यापारी एवं अभियंता डेनिस टीटो के रूसी अंतरिक्ष यान (सोयूज T-32) से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा से हुई। मई 2024 में अमेरिका में रहने वाले भारतीय पायलट गोपी थोटाकुरा पांच अन्य अंतरिक्ष पर्यटकों के साथ जैफ बैजोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन के एनएस-25 मिशन का हिस्सा बन पहले भारतीय अंतरिक्ष पर्यटक बने। अंतरिक्ष पर्यटन में संभावनाओं का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2023 में इसका बाजार जहां ₹7193.3 करोड़ था, वर्ष 2032 तक इसके ₹2.36 लाख करोड़ पहुँचने का अनुमान है। अपार संभावनाओ के दृष्टिगत भारत सरकार ने भी अंतरिक्ष का बजट 2013-14 में ₹5615 करोड़ से बढ़ाकर 2025-26 में ₹13416 करोड़ कर दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और भारतीय अंतरिक्ष संघ (आईएसपीए) भी गगनयान मिशन के माध्यम से आदमी को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें पहले चरण में मानव रहित यान, दूसरे चरण में व्योमित्र नामक रोबोट, तथा तीसरे और अंतिम चरण में अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। गगनयान मिशन के बाद भारत में भी वर्ष 2030 तक अंतरिक्ष पर्यटन के द्वार खुलने की संभावना है, जिसके टिकट की अनुमानित कीमत लगभग ₹6 करोड़ है।

अभी उच्च लागत, सीमित बाजार मांग, सुरक्षा चिंताएँ, और अंतरिक्ष में मलबा अंतरिक्ष पर्यटन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ हैं। अंतरिक्ष पर्यटन ने इस बहस को भी जन्म दिया है कि जिस देश में करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हों, वहाँ अंतरिक्ष पर्यटन कितना जरूरी है? परंतु कहते हैं दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है। अंतरिक्ष पर्यटन ऐसा ही विचार है जिससे अंतरिक्ष अन्वेषकों की नई पीढ़ी प्रेरित होगी और विज्ञान की शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। वस्तुतः देश की अंतरिक्ष क्षमता उसकी राष्ट्रीय शक्ति का द्योतक है, जो राष्ट्रीय हित साधने में अहम भूमिका अदा कर सकती है। अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य शीतयुद्ध मुख्यतः अंतरिक्ष के मोर्चे पर ही लड़ा गया जिसमें अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए दोनों देशों में कई दशकों तक गलाकाट प्रतिस्पर्धा रही।

12 अप्रैल 1961 को सोवियत पायलट यूरी गगारिन के दुनिया का पहला अंतरिक्ष यात्री बनने के जवाब में 25 मई 1961 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ0 केनेडी ने संसद में चाँद पर पहला आदमी भेजने की घोषणा करते हुए कहा, “आदमी को चाँद पर उतारने वाला अमेरिका पहला देश होगा, सच्चे अर्थों में यह केवल एक आदमी का चाँद पर जाना न होकर पूरे देश का चाँद पर जाने जैसा होगा”। वर्ष 2047 तक विकसित भारत निर्मित करने के लिए अंतरिक्ष आधारित संसाधनों का उपयोग आवश्यक होगा।

नि:संदेह 1955 की फिल्म ‘वचन’ के गीत चंदा मामा दूर के….उड़न खटोले बैठ के मुन्ना चंदा के घर जाएगा, तारों के सँग आँखमिचोली खेल के दिल बहलाएगा, खेलकूद से जब मेरे मुन्ने का दिल भर जाएगा, ठुमक ठुमक मेरा मुन्ना वापस घर को आएगा, में व्यक्त कल्पना के यथार्थ रूप लेने का समय आ पहुंचा है।

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याचक नहीं दाता बने भारत https://visionviksitbharat.com/india-should-be-a-giver-not-a-seeker/ https://visionviksitbharat.com/india-should-be-a-giver-not-a-seeker/#respond Thu, 10 Apr 2025 18:40:49 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1578 डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा जो-बाइडन के स्थान पर अमेरिकी राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद से लगातार चौकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। कार्यभार संभालते ही ट्रंप ने यूएसएआईडी के अंतर्गत…

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डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा जो-बाइडन के स्थान पर अमेरिकी राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद से लगातार चौकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। कार्यभार संभालते ही ट्रंप ने यूएसएआईडी के अंतर्गत दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर 90 दिन की रोक की घोषणा इस आशय के साथ की, कि इस अवधि में उनका प्रशासन इसकी समीक्षा करेगा। राष्ट्रपति ट्रंप का यह निर्णय कोई अनायास नहीं है। इसे उनके चुनाव प्रचार में अमेरिकी सरकारी एजेंसियों और विभागों का आकार घटाने के वादे को पूरा करने के रूप में देखा जा सकता है। ट्रम्प लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि अमेरिका के सरकारी विभागों के अनेकों कर्मचारी ‘डीप स्टेट’ का हिस्सा हैं और इनके ऊपर अमेरिकी जनता की गाढ़ी कमाई खर्च नहीं होनी चाहिए। इसी नीति के तहत ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिकी सरकारी कार्यदक्षता विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी) डीओजीई का गठन करते हुए इसकी कमान उन्हीं एलन मस्क को सौंपी है जिन्होंने राष्ट्रपति चुनावों में लगभग 130 मिलियन डॉलर (1128 करोड़ रुपये) खर्च किए। डीओजीई के इस खुलासे ने कि अमेरिकी सहायता एजेंसी यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर (182 करोड़ रुपये) तथा बांग्लादेश में राजनैतिक परिदृश्य के स्थायित्व के लिए 29 मिलियन डॉलर (251-करोड़ रुपये) की दी जाने वाली मदद को रोक दिया है।

इस घोषणा के बाद होने वाले दावे और खुलासे भारत को झकझोरने वाले हैं। ट्रम्प स्वयं प्रश्न करते हैं कि, “आखिर मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिका द्वारा भारत को 21 मिलियन डॉलर की सहायता की क्या आवश्यकता थी”? और फिर स्वयं उसका जवाब भी देते हैं कि, “शायद वे (बिडेन प्रशासन) भारत में किसी और को निर्वाचित कराना चाहते थे! अर्थात भारतीय चुनावों में अमेरिकी हस्तक्षेप का स्पष्ट भंडाफोड़ वहाँ के नवनियुक्त राष्ट्रपति ने किया! नवगठित डीओजीई के मुखिया एलन मस्क ने तो यूएसएआईडी को आपराधिक संगठन बताते हुए यहाँ तक कह दिया कि इसके अंत का समय आ गया है। अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी माइक बेंज के  दावे तो रहे-सहे संदेह को दूर कर देते हैं, जिसमें वह कहते हैं, अमेरिका ने यूएसएआईडी तथा थिंक टैंकस जैसे संस्थानों के माध्यम से भारत और बांग्लादेश जैसे अनेकों देशों की अंदरूनी राजनीति में सक्रिय हस्तक्षेप किया। इसके लिए मीडिया, सोशल मीडिया, तथा विरोधी आंदोलनों को आर्थिक मदद भी प्रदान की गई।

अमेरिका समर्थित एजेंसियां  तथा संस्थाओं ने दूसरे देशों के चुनावों को प्रभावित करने, वहाँ की सरकारों को अस्थिर करने, वहाँ के प्रशासनों को अमेरिका के रणनीतिक हितों के साथ जोड़ने के लिए लोकतंत्र को बाहरी आवरण के रूप में इस्तेमाल किया। यूएसएआईडी, थिंक टैंकस, तथा फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब, ट्विटर जैसी प्रमुख कंपनियों ने वर्ष 2019 में भारतीय राजनैतिक नेतृत्व एवं सत्ताधारी दल के खिलाफ विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया। बेंज ने दावा किया कि अमेरिका के विदेश विभाग ने फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब, ट्विटर आदि कंपनियों पर मोदी समर्थित सामग्री को रोकने का दबाब बनाया। सत्ताधारी दल अपने मतदाताओं तक न पहुँच सके इसके लिए उन्होंने व्हाट्सएप पर मैसेज फॉरवर्ड करने को 2019 में सीमित करने के प्रयास का जिक्र किया।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य संजीव सान्याल ने USAID को मानव इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला कहा है। इस रहस्योद्घाटन से जहां भारत में सनसनी फैलनी स्वाभाविक थी, वहीं अनेकों प्रश्न भी खड़े हुए हैं और जनमानस में शंकाएं भी पैदा हुई हैं। क्या विदेशी सरकारें एवं शक्तियां भारत के चुनावों को प्रभावित करने का षड्यन्त्र करती रही हैं? यदि इसमें सत्यता है, तो फिर ये षड्यंत्रकारी और इन्हें खाद-पानी देने वाली शक्तियां कौन हैं? इनका उद्देश्य क्या है? देशवासी यह अवश्य जानना चाहेंगे कि आखिर यह सहायता प्राप्त करने वाले संस्थान कौनसे हैं? इस सहायता को अन्य किस-किस उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया गया? प्रश्न यह भी उठना स्वाभाविक है कि क्या भारत सरकार इससे अनभिज्ञ थी? यदि ऐसा है तो भारत की सुरक्षा एजेंसी आखिर कर क्या रही थीं?

यूं तो यूएसएआईडी से सहायता प्राप्त करने का भारत का लंबा इतिहास है। आजादी के बाद अमेरिका से मिली आर्थिक सहायता के जरिए भारत में 8 कृषि विश्वविद्यालय, पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर और 14 क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए गए। साथ ही टीकाकरण, परिवार नियोजन, एड्स, टीबी, पोलियो जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए भी यूएसएआईडी की मदद ली गई। परंतु समय और आर्थिक मदद में वृद्धि के साथ ही यूएसएआईडी द्वारा थोपे जाने वाली अमेरिकन शर्तों की संख्या भी बढ़ती गई। वर्ष 2004 में भारत सरकार ने यह साफ कर दिया कि यूएसएआईडी के तहत ऐसी कोई भी वित्तीय सहायता नहीं ली जाएगी, जिसके साथ अमेरिका की शर्तें भी आएं। इसके बाद से मदद में कमी आती गई।

साल 2001 में भारत के लिए यूएसएआईडी फंड की उपलब्धता 208 मिलियन डॉलर (लगभग 1800 करोड़ रुपये) की थी। साल 2023 में यह 153 मिलियन डॉलर (लगभग 1300 करोड़ रुपये) हो गई और साल 2024 में 141 मिलियन डॉलर (लगभग 1200 करोड़)। हाल ही में कुछ ऐसी भी रिपोर्ट्स प्रकाशित हुई हैं जिनमें बताया गया कि  यूएसएआईडी से हेल्पिंग हैंड फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट नामक ऐसे संगठन की फंडिंग की गई, कथित तौर पर जिसके संबंध आतंकवादी संगठन जमात-उद-दावा से जुड़े चैरिटेबल और पॉलिटिकल समूहों से हैं। कथित तौर पर अक्टूबर 2021 में यूएसएआईडी से हेल्पिंग हैंड फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट को 1.1 लाख डॉलर (लगभग 96 लाख रुपये) की आर्थिक मदद दी गई। यह और भी आश्चर्यचकित करने वाला है कि यह मदद अमेरिकी कांग्रेस के 3 सदस्यों द्वारा आपत्ति जताए जाने के फलस्वरूप दी गई। वर्ष 2024 में यूएसएआईडी को 44.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किये गए जो कुल अमेरिकी संघीय बजट का केवल 0.4% है लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा ट्रैक की गई समस्त मानवीय सहायता का 42% हिस्सा है।

यूएसएआईडी  के तहत शीर्ष मदद प्राप्तकर्त्ताओं में यूक्रेन, इथियोपिया, जॉर्डन, सोमालिया और अफगानिस्तान जैसे देश शामिल हैं। क्या भारत को ऐसे देशों की श्रेणी में रहना चाहिए? प्रश्न उठता है कि क्या अमेरिकन सहायता के रुकने से भारत में चल रहे कार्यक्रमों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा? इसका उत्तर देने के लिए हमें यूएसएआईडी की स्थापना के मूल उद्देश्यों को समझना होगा। जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए अमेरिकन परमाणु हमलों के साथ समाप्त हुए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद न केवल जापान बल्कि यूरोप भी तबाही की कगार पर पहुँच गया था। तब दुनिया में पूंजीवादी अमेरिका और साम्यवादी सोवियत रूस  दुनिया की शक्ति के दो बड़े केंद्रों के रूप में उभरे थे। उस समय पश्चिमी जर्मनी अमेरिकी खेमे में था तो पूर्वी जर्मनी सोवियत रूस की तरफ। अमेरिका को सोवियत रूस द्वारा पूरी दुनिया पर अपना साम्यवादी मॉडल थोपे जाने की आशंका थी। अतः उसने दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद एक मार्शल प्लान बनाया गया, जिसके अनतर्गत यूरोप के देशों को अमेरिका की तरफ से आर्थिक, तकनीकी, सैन्य जैसी अनेकों प्रकार की मदद दी गई।

वर्ष 1959 में अमेरिका के पास ही क्यूबा में साम्यवादी क्रांति की घटना ने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी को वर्ष 1961 में ‘अलायंस फॉर प्रोग्रेस’ नाम का प्लेटफॉर्म लॉन्च करने के लिए प्रेरित किया। इसके तहत दक्षिण और मध्य अमेरिका में लोकतंत्र और आर्थिक विकास के तमाम कार्यक्रम चलाए जाने थे। इसको दक्षिण अमेरिका में साम्यवाद से लड़ने के अमेरिकी कदम के तौर पर देखा गया। इसके बाद 1961 में ही अमेरिकी संसद में एक कानून पारित कर ऐसी स्थाई एजेंसी बनाई गई जो  सक्रिय रूप से पूरी दुनिया में अमेरिकी विदेश नीति को आगे बढ़ाए। और इस तरह अस्तित्व में आया यूएसएआईडी। वर्ष 1998 में एसएआईडी को एक स्वतंत्र एजेंसी का दर्जा दे दिया गया। कथित तौर पर तो तो यूएसएआईडी अमेरिकी सरकार की मानवीय शाखा है जो गरीबी को कम करने, बीमारियों का इलाज करने, अकाल और प्राकृतिक आपदाओं में राहत और मदद, स्वतंत्र मीडिया, लोकतंत्र स्थापना और विकास के नाम पर आर्थिक मदद देने का कार्य करती है। परंतु वास्तव में यह अमेरिका की रक्षा एवं कूटनीति के अलावा विकास के रूप में तीसरे सुरक्षा स्तम्भ का नेतृत्व करती है।

अतः भारत को कोई भी ऐसी मदद लेने से पूर्व निम्न बिंदुओं पर विचार करना चाहिए,

(1) भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र है,

(2) आजादी के बाद के वर्षों में पानी इतना बह चुका है कि भारत स्वयं को ग़ुलाम रखने वाले देश को पछाड़ कर दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है,

(3) भारत ने वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प लिया है,

(4) क्या भारत को यूक्रेन, इथियोपिया, जॉर्डन, सोमालिया, अफगानिस्तान जैसे देशों की भांति विदेशी शक्तियों के आगे हाथ फैलाना चाहिए?,

(5)  क्या पूर्व में मिली विदेशी मदद का दुरुपयोग सामाजिक समरसता नष्ट करने, राष्ट्रीय अखंडता कमजोर करने, राष्ट्र विरोधी तत्वों को समर्थन देने, धर्मांतरण करने तथा अवैध घुसपैठ जैसे कार्यों में हुआ है?,

(6) क्या सशर्त आर्थिक अनुदान लेकर भारत विश्व महाशक्ति बनने का लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है? स्पष्टतः आज भारत को याचक नहीं दाता की भूमिका निभाते हुए वर्तमान चुनौती को अवसर में बदलना होगा।

ज्ञात हो कि चीन 150 से अधिक देशों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में निवेश कर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। आज भारत के पास एक अवसर है कि अमेरिका की मदद रोकने के निर्णय से दक्षिण एशिया में पैदा निर्वात को वह अपनी उपस्थिति से भर सके। उनको सद्भावना से आर्थिक मदद देते हुए पारस्परिक संबंधों को सुदृढ़ कर विश्व कल्याण में योगदान दे सकें ।

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अंतर्राष्ट्रीय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सुरक्षा रिपोर्ट-2025 https://visionviksitbharat.com/international-artificial-intelligence-security-report-2025/ https://visionviksitbharat.com/international-artificial-intelligence-security-report-2025/#respond Tue, 08 Apr 2025 18:35:58 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1575 विज्ञान एवं तकनीक अब मशीनों के माध्यम से इंसानी क्षमताओं को बढ़ाने के दौर को पार कर इंसानों की तरह सोचने, योजना बनाने और उनको क्रियान्वित करने वाली मशीनें निर्मित…

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विज्ञान एवं तकनीक अब मशीनों के माध्यम से इंसानी क्षमताओं को बढ़ाने के दौर को पार कर इंसानों की तरह सोचने, योजना बनाने और उनको क्रियान्वित करने वाली मशीनें निर्मित करने के दौर में पहुँच चुके हैं। ऐसी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ARTIFICIAL  INTELLIGENCE) से स्वचालित कार, मनपसंद संगीत/पेंटिंग, विविध भाषायी अनुवाद, ग्राहक सेवा प्रदान करने के युग का सूत्रपात हो रहा है। सामान्य प्रयोजन एआई प्रणाली (GENERAL PURPOSE AI SYSTEM) अर्थात जी0पी0ए0आइ0 (GPAI) ऐसी एआई प्रणाली हैं जिनके संभावित उपयोगों की एक वृहद श्रृंखला है। ये उपयोग इनके विकसितकर्ता द्वारा इच्छित और अनपेक्षित दोनों हो सकते हैं। 0पी0ए0आइ0 प्रणालियों को विभिन्न क्षेत्रों में अनेकों अलग-अलग प्रकार के कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। जी0पी0ए0आइ0 प्रणालियों को छवि/भाषण पहचान, ऑडियो/वीडियो निर्माण, पैटर्न पहचान, अनुवाद जैसे कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। परंतु जैसी की कहावत है, “विज्ञान एक अच्छा सेवक है, लेकिन एक बुरा मालिक भी”। अतः जी0पी0ए0आइ0 की क्षमताओं, इसके जोखिमों और खतरों से निपटने की जानकारी अति आवश्यक है।

इसी उद्देश्य से प्रथम अंतर्राष्ट्रीय एआई सुरक्षा रिपोर्ट 29 जनवरी 2025 को प्रकाशित हुई। यह रिपोर्ट जी0पी0ए0आइ0 द्वारा उत्पन्न जोखिमों और उन्हें कम करने के तरीकों का विस्तृत आकलन करती है। रिपोर्ट को ग्रेट ब्रिटेन (यूनाइटेड किंगडम) के ब्लेचली पार्क में एआई सुरक्षा शिखर सम्मेलन-2023 में भाग लेने वाले 30 देशों द्वारा कमीशन किया गया था, ताकि पेरिस में  एआई एक्शन समिट-2025 में इसे  प्रस्तुत किया जा सके। रिपोर्ट को कनाडाई यंत्र अधिगम (MACHINE LEARNING) के अग्रणीय योशुआ बेंगियो के नेतृत्व में 96 कृत्रिम बुद्धिमत्ता विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा प्रकाशित किया गया था, जिन्हें अक्सर एआई के “गॉडफादर” में से एक माना जाता है।

दुनिया के सामने आज एक यक्ष प्रश्न है कि, जी0पी0ए0आइ0 क्या-क्या कर सकता है? इस रिपोर्ट ने इस प्रश्न का आंशिक जवाब देने का प्रयास किया है और माना है कि जी0पी0ए0आइ0 की क्षमताएँ तेज़ी से बढ़ी हैं और भविष्य में इसकी प्रगति धीमी से लेकर बहुत तेज़ तक हो सकती है। ऐसी ही अनिश्चितताओं के करण नीति निर्माताओं को “साक्ष्य दुविधा” का सामना करना पड़ता है। एक ओर, स्पष्ट सबूत या जोखिम होने से पहले समाधान (MITIGATION) संबंधी उपायों को पेश करना अप्रभावी हो सकता है और अनावश्यक समाधान को जन्म दे सकता है, वहीं दूसरी ओर स्पष्ट सबूत होने तक प्रतीक्षा करने से समाज की सजगता घट सकती है और आवश्यकता पड़ने पर समाधान असंभव भी हो सकता है। रिपोर्ट में एआई से होने वाले कई ठोस नुकसानों की पहचान की गई है, जिसमें गोपनीयता का उल्लंघन, घोटालों को सक्षम बनाना, अविश्वसनीय एआई के कारण यौन सामग्री के साथ डीपफेक का निर्माण आदि शामिल है। यह विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के साथ संभावित हिंसा और दुर्व्यवहार को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है। साथ ही साइबर और जैविक हमलों के लिए एआई के दुर्भावनापूर्ण और मनमाने उपयोग तथा भविष्य की एआई प्रणालियों पर नियंत्रण खोने जैसे जोखिम भी शामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय एआई सुरक्षा रिपोर्ट-2025 को तैयार करने में 96 एआई विशेषज्ञों, 30 देशों, आर्गेनाइजेशन फॉर इकनॉमिक क्वॉपरैशन एण्ड डेवलपमेंट, यूरोपीय संघ, एवं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा नामित अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ सलाहकार पैनल का योगदान रहा है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य ऐसी वैज्ञानिक सूचना उपलब्ध कराना है जो नीति निर्माण में सहायक हो। साथ ही निष्पक्षता सुनिश्चित करने के दृष्टिगत यह किसी नीति विशेष की सिफारिश नहीं करती। जी0पी0ए0आइ0 के अनेकों नुकसान सुस्थापित हैं जैसे धोखाधड़ी, गैर-सहमतिपूर्ण अंतरंग छवि लेना, बाल यौन शोषण सामग्री, ऐसे मॉडेल आउट्पुट जो लोगों के विशेष समूहों, विशेष विचारों पर आधारित होना एवं गोपनीयता भंग होने आदि। आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता समर्थित हैकिंग, जैविक (BIOLOGICAL) आक्रमण जैसे जटिल प्रारूप में पक्षपात सामने आ रहे हैं।

निर्विवाद रूप से जोखिम प्रबंधन तकनीकें अभी प्रारम्भिक अवस्था में हैं, परंतु इनमें आगे और प्रगति संभव है। शोधकर्ता एवं नीति निर्माता इस प्रयास में हैं कि जोखिम प्रबंधन के तरीकों का मानकीकरण (STANDARDIZATION) किया जा सके। इसके लिए वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी समन्वय कर रहे हैं। दुनिया भर के लोग सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लाभों का आनंद तभी ले सकेंगे जब इसके जोखिमों का भलीभाँति प्रबंधन हो सके। समग्रता से नीतिनिर्माण के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संभावित लाभ तथा जोखिम दोनों पर विचार करने के आवश्यकता होगी। साथ ही यह भी ध्यान में रखना होगा कि दूसरे प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जोखिम तथा फायदे जी0पी0ए0आइ0 से अलग होंगे। सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता (जी0पी0ए0आइ0) पर केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय एआई सुरक्षा रिपोर्ट-2025 मुख्य रूप से तीन मूल बिंदुओं पर वैज्ञानिक सुबूतों का सारांश प्रस्तुत करती है,

(I). जी0पी0ए0आइ0 क्या कर सकता है?

(II). जी0पी0ए0आइ0 से संबंधित खतरे क्या-क्या हैं?

(III). जी0पी0ए0आइ0 आधारित खतरों से निपटने की क्या तकनीकें हैं?

दुनिया के सामने आज यक्ष प्रश्न यह है कि, सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता की वर्तमान क्षमताएं क्या हैं और भविष्य में इनका किन दिशाओं में और कितना प्रभाव हो सकता है? कृत्रिम बुद्धिमत्ता की वर्तमान क्षमताओं का अनुमान इन तथ्यों से लगाया जा सकता है कि वह जटिल कंप्युटर कोड लिखने, दिए गए संक्षिप्त विवरण से वास्तविक एवं छोटा विडिओ तैयार करने आदि जैसे कार्य संपादित करने में सक्षम है। हालिया आकलन के अनुसार, आधुनिकतम कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडेल के कम्प्यूटेशनल संसाधनों में चार गुना वृद्धि तथा ट्रेन करने वाले डाटासेट के आकार में ढाई ढाई गुना वृद्धि हुई है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता  के क्षेत्र में भविष्य में होने वाली क्रमागत उन्नति के जोखिम प्रबंधन पर महत्वपूर्ण प्रभाव होंगे। लेकिन विशेषज्ञ इस बात पर असहमत हैं कि आने वाले महीनों और सालों में क्या क्या उम्मीद की जाए?

समाज, राष्ट्र और दुनिया के अस्तित्व और स्वरूप से संबंधित अनिर्णीत प्रश्न यह है कि जी0पी0ए0आइ0 से जुड़े जोखिम क्या हैं? रिपोर्ट में इन जोखिमों को तीन वर्गों में बांटा गया है। पहला, दुर्भावनापूर्ण उपयोग के जोखिम, दूसरा खराबी के जोखिम, तीसरा प्रणालीगत जोखिम। इन सभी वर्गों में हो चुके जोखिम और अगले कुछ वर्षों में अपेक्षित जोखिम शामिल हैं। जी0पी0ए0आइ0 के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग से व्यक्तिगत नुकसान, संगठन का नुकसान और समाज के नुकसान शामिल हैं। उदाहरण के लिए दुर्भावनापूर्ण दुरुपयोग से फेक कंटेन्ट पैदा करना, बिना सहमति के डीपफेक पॉर्नाग्रफी तैयार करना, आवाज की गलत पहचान से वित्तीय धोकाधड़ी करना, वसूली के लिए ब्लैक्मैल करना, व्यक्तिगत तथा पेशेवर प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचना, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार करने जैसे कुकृत्य इसमें शामिल हैं। पूरी दुनिया के लिए आज बड़ी चुनौती यह भी है कि जी0पी0ए0आइ0 चुनावी एवं राजनैतिक परिणामों को प्रभावित कर सकता है। इसे वॉटरमार्किंग जैसी उपायों से रोका जा सकता है। शत्रु देशों द्वारा एक दूसरे पर साइबर हमले किए जा सकते हैं जिससे वहाँ की अर्थव्यवस्था तथा जन-जीवन को अस्त-व्यस्त किया जा सकता है।

सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित जोखिमों को पहचानना एवं जोखिम का आकलन तथा मोनिट्रिंग करना काफी चुनौतीपूर्ण है। तकनीकी के तेज विकास के करण जी0पी0ए0आइ0 से संबंधित जोखिमों का प्रबंधन अत्यधिक जटिल है। प्रणाली सुरक्षा पद्धति जी0पी0ए0आइ0 से संबंधित जोखिमों के प्रबंधन में प्रभावी है। इसमें हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, संगठन संरचना तथा मानवीय कारकों के बीच पारस्परिक क्रिया एवं संबंध शामिल हैं। इसके लिए डिफेन्स इन डेप्थ स्ट्रैटिजी एक महत्वपूर्ण तकनीकी पद्धति के रूप में उभरी है। अनेक सुरक्षात्मक उपायों पर आधारित यह रणनीति नाभिकीय सुरक्षा, तथा संक्रामक रोग नियंत्रण में प्रयोग होने वाली रणनीति है। यह जी0पी0ए0आइ0 के लिए अनूकूलित कर उनके पूरे जीवन चक्र, डाटा, आधारभूत संरचना देने वाले, विकसित-कर्ता, तथा प्रयोग करने वालों की अलग-अलग भूमिकाओ के लिए अनूकूलित किया जा रहा है। वर्तमान प्रमाण जी0पी0ए0आइ0 में दो मूल चुनतियों की तरफ इशारा करते हैं।

पहला जोखिमों को प्राथमिकता देना कठिन है चूंकि उनकी जटिलता और उनके होने में काफी अनिश्चात्ता है। दूसरा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता श्रंखला में उचित भूमिका निश्चित करना तथा प्रभावी कार्रवाई अमल में लाना जटिल है। जी0पी0ए0आइ0 के जोखिमों का पता लगाना तथा जोखिमों का मूल्यांकन डिजाइन के प्रारम्भिक चरण में किया जाना अति  महत्वपूर्ण है न कि केवल मॉडेल विकसित होने के बाद।  जोखिम का पता लगाना तथा मूल्यांकन करना चुनौतीपूर्ण है चूंकि जी0पी0ए0आइ0 बहुत से क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है तथा इसकी जोखिम क्षमताएं समय के साथ बदलती रहती हैं। उदाहरण के लिए स्वास्थ्य देखभाल तथा रचनात्मक लेखन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित जोखिम काफी भिन्न होंगे। जहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में शुद्धता अति महत्वपूर्ण है, वहीं रचनात्मक लेखन में शुद्धता का महत्व बहुत कम है। कुछ जोखिम ऐसे हो सकते हैं जिनका पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता।

सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जोखिमों के प्रभावी प्रबंधन के लिए बहुत से समूहों की भागीदारी आवश्यक है। अर्थात इसे केवल वैज्ञानिक समुदाय के हाथों में नहीं दिया जा सकता। जोखिम प्रबंधन के पाँच मुख्य चरण हैं जैसे, जोखिम पहचान, जोखिम आकलन, जोखिम मूल्यांकन, जोखिम न्यूनीकरण, जोखिम संचालन। दूसरे क्षेत्रों में प्रयोग होने वाली जोखिम प्रबंधन रणनीतियाँ जैसे जैव सुरक्षा तथा नाभिकीय सुरक्षा को सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में भी लागू कर सकते हैं। इसमें नियोजित ऑडिट, निरीक्षण, सेफ़्टी बफ़र, नियंत्रण बैंडिंग, दीर्घकालिक प्रभाव आकलन, ALARP (ऐज लो एज रीज़नब्ली प्रकटिकबल) आदि प्रमुख हैं। मानवाधिकार से जुड़े प्रभावों का मूल्यांकन भी सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए अति महत्वपूर्ण है। पूर्वानुमान एक दूसरा लंबे समय से प्रयोग होने वाला तरीका है जिसके फायदे और नुकसान दोनों हैं, जो सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संबंध में बहुत ज़्यादा जोखिम वाले फैसले लेने में मदद कर सकता है। सुरक्षा एवं विश्वसनीयता अभियांत्रिकी विशेष रूप से उपयुक्त हैं। सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के पूरे चक्र में डिज़ाइन विकल्पों की जांच करना महत्वपूर्ण है। डिफेन्स इन डेप्थ मॉडल सामान्य प्रयोजन एआई जोखिम प्रबंधन के लिए उपयोगी है।

अंतर्राष्ट्रीय एआई सुरक्षा रिपोर्ट-2025 के अनुसार सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित नीति निर्माण एवं जोखिम प्रबंधन के लिए सामान्य चुनौतियाँ निमन्वत हैं:

(I). स्वायत्त जी0पी0ए0आइ0 ऐजेंट्स जोखिम बढ़ा सकते हैं।

(II). जी0पी0ए0आइ0 प्रणाली का अनेकों कार्यों में विस्तार सुरक्षा आश्वासन को जटिल बनाता है।

(III). जी0पी0ए0आइ0 प्रणालियों के विकसितकर्ता अपने मॉडेल के आंतरिक परिचालन एवं स्वरूप के बारे में बहुत कम जानते हैं।

(IV). सुरक्षा के लिए मूल्यांकन में अंतर कायम रहता है।

(V). एआई प्रणाली की खामियों का तेजी से वैश्विक प्रभाव हो सकता है।

उक्त के अतिरिक्त, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जोखिम प्रबंधन और नीति निर्माण में सामाजिक चुनौतियाँ भी हैं। अतः जोखिम की पहचान और मूल्यांकन करना, सामान्य प्रयोजन कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणालियों के खतरों का मूल्यांकन जोखिम प्रबंधन का एक अभिन्न अंग है। मौजूदा एआई विनियमों और प्रतिबद्धताओं के लिए कठोर जोखिम पहचान और मूल्यांकन की आवश्यकता है। जी0पी0ए0आइ0 के जोखिमों का आकलन करने के लिए मौजूदा मात्रात्मक (QUANTITATIVE) तरीके बहुत उपयोगी तो हैं परंतु उनकी भी महत्वपूर्ण सीमाएँ हैं। कठोर जोखिम मूल्यांकन के लिए कई मूल्यांकन दृष्टिकोणों, महत्वपूर्ण संसाधनों और बेहतर पहुँच के संयोजन की आवश्यकता होती है। स्पष्ट जोखिम मूल्यांकन मानकों और कठोर मूल्यांकनों की अनुपस्थिति एक तत्काल नीतिगत चुनौती पैदा कर रही है, क्योंकि एआई मॉडेलों को उनके जोखिमों का मूल्यांकन करने की तुलना में तेज़ी से तैनात किया जा रहा है।

सामान्य प्रयोजन के एआई जोखिम मूल्यांकन के लिए मौजूदा तकनीकी दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली परीक्षण और मूल्यांकन पर बहुत अधिक निर्भर करती है, जिन्हें निम्नलिखित चार स्तरों में बांटा जा सकता है, मॉडल परीक्षण,  रेड-टीमिंग, फ़ील्ड परीक्षण तथा दीर्घकालिक प्रभाव आकलन। जोखिम मूल्यांकन के ये चार स्तर (मॉडल परीक्षण, रेड-टीमिंग, फील्ड परीक्षण और दीर्घकालिक प्रभाव मूल्यांकन) आवश्यक तो हैं लेकिन व्यापक जोखिम मूल्यांकन के लिए पर्याप्त नहीं हैं। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि जोखिम समाधान एवं निगरानी हेतु और अधिक विश्वसनीय मॉडलों को प्रशिक्षित करना, निगरानी करना, हस्तक्षेप करना, तथा गोपनीयता के लिए तकनीकी तरीके प्रयोग में लाया जाना अति आवश्यक है।

अंतर्राष्ट्रीय एआई सुरक्षा रिपोर्ट-2025 के अनुसार सामान्य प्रयोजन एआई का भविष्य उल्लेखनीय रूप से अनिश्चित है। इस परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी का लाभ सुरक्षित रूप से प्राप्त करने के लिए, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को इसके साथ आने वाले जोखिमों की पहचान करने और उन्हें कम करने के लिए आवश्यक उपाय करने की आवश्यकता है। सामान्य प्रयोजन एआई के जोखिमों के समाधान के लिए तकनीकी तरीके मौजूद हैं, लेकिन उन सभी की क्षमताएं सीमित हैं। इतिहास में पहली बार, इस रिपोर्ट ने 30 देशों, ओईसीडी, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित विशेषज्ञ प्रतिनिधियों के साथ-साथ कई अन्य विश्व-अग्रणी विशेषज्ञों को इन महत्वपूर्ण चर्चाओं के लिए एक साझा वैज्ञानिक, साक्ष्य-आधारित आधार प्रदान करने के लिए एक साथ लाया। इसके परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन प्रयासों को आगे जारी रखने की आवश्यकता है। आशा है कि यह रिपोर्ट इस क्षेत्र के लिए नीति-निर्देशक तत्वों की तरह कार्य करेगी और भविष्य की रिपोर्ट इस क्षेत्र से पैदा अवसरों, चुनौतियों और उनके समाधान में प्रभावी दिशा सूचक सिद्ध होगी।

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