Prahlad Sabnani, Author at VisionViksitBharat https://visionviksitbharat.com/author/prahlad-sabnani/ Policy & Research Center Wed, 16 Apr 2025 19:27:02 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8 https://visionviksitbharat.com/wp-content/uploads/2025/02/cropped-VVB-200x200-1-32x32.jpg Prahlad Sabnani, Author at VisionViksitBharat https://visionviksitbharat.com/author/prahlad-sabnani/ 32 32 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते कदम https://visionviksitbharat.com/rss-is-continiously-leading/ https://visionviksitbharat.com/rss-is-continiously-leading/#respond Wed, 16 Apr 2025 19:27:02 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1607 दिनांक 21 से 23 मार्च तक बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में दशहरा…

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दिनांक 21 से 23 मार्च तक बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में दशहरा के पावन पर्व पर हुई थी, और इस प्रकार संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं इस वर्ष दशहरा के शुभ अवसर पर ही अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लेगा। संघ की स्थापना विशेष रूप से भारतीय हिंदू समाज में राष्ट्रीयत्व का भाव जागृत करने एवं हिंदू समाज के बीच समरसता स्थापित करने के लक्ष्य को लेकर हुई थी। इन 100 वर्षों के अपने कार्यकाल में संघ ने हिंदू समाज को एकजुट करने में सफलता तो हासिल कर ही ली है साथ ही विशेष रूप से समाज की सज्जन शक्ति में राष्ट्रीयत्व का भाव पैदा करने में सफलता अर्जित की है। सज्जन शक्ति समाज की वह शक्ति है कि जिनकी बात समाज में गम्भीरता से सुनी जाती है एवं उस पर अमल करने का प्रयास भी होता है। संघ ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु शाखाओं की स्थापना की थी। इन शाखाओं में देश की युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयत्व का भाव जगाकर ऐसे स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं जो समाज के बीच जाकर देश के आम नागरिकों में राष्ट्र भावना का संचार करते हैं एवं समाज के बीच समरसता का भाव पैदा करने का प्रयास करते हैं।

 

संघ द्वारा स्थापित की गई शाखाओं की कार्यपद्धति पर आज विश्व के अन्य कई देशों में शोध कार्य किए जाने के बारे में सोचा जा रहा है कि किस प्रकार संघ द्वारा स्थापित इन शाखाओं से निकला हुआ स्वयंसेवक समाज परिवर्तन में अपनी महती भूमिका निभाने में सफल हो रहा है और पिछले लगातार 100 वर्षों से इस पावन कार्य में संलग्न है। हाल ही में, दिनांक 14 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक (44 दिन) प्रयागराज में लगातार चले एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए महाकुम्भ के मेले में पूरे विश्व से 66 करोड़ से अधिक हिंदू धर्मावलम्बियों ने पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। इतनी भारी संख्या में हिंदू समाज कभी भी किसी महान धार्मिक आयोजन में शामिल नहीं हुआ होगा और संभवत: पूरे विश्व में कभी भी इस तरह का आयोजन सम्पन्न नहीं हुआ होगा। इस महाकुम्भ में समस्त हिंदू समाज एकजुट दिखाई दिया, न किसी की जाति, न किसी का मत, न किसी के पंथ का पता चला। बस केवल सनातनी हिंदू हैं, यही भावना समस्त श्रद्धालुओं में दिखाई दी। इसी का प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से करता आ रहा है।

 

संघ द्वारा आज न केवल भारतीय हिंदू समाज को एकता के सूत्र में पिरोए जाने का कार्य किया जा रहा है बल्कि पूरे विश्व में अन्य देशों में निवासरत भारतीय मूल के हिंदू समाज के नागरिकों को भी एक सूत्र में पिरोए जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह कार्य संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संघ की शाखा में प्राप्त प्रशिक्षण के बाद सम्पन्न किया जाता है। संघ द्वारा संचालित शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 के 73,117 से बढ़कर वर्ष 2025 में 83,129 हो गई है। इन शाखाओं के लगने वाले स्थानों की संख्या भी वर्ष 2024 में 45,600 से बढ़कर 51,710 हो गई है। विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के उद्देश्य से विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए विद्यार्थी संयुक्त शाखाएं भी देश के विभिन्न भागों में लगाई जाती हैं।  विद्यार्थी संयुक्त शाखाओं की संख्या 17 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 20224 में 28,409 से बढ़कर वर्ष 2025 में 33,129 हो गई हैं। इसी प्रकार महाविद्यालयीन छात्रों के लिए भी विशेष शाखाएं लगाई जाती हैं। महाविद्यालयीन (केवल तरुणों के लिए) शाखाओं की संख्या 10 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 5,465 से बढ़कर वर्ष 2025 में 5,991 हो गई है। तरुण व्यवसायी शाखाओं की संख्या भी 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 21,718 से बढ़कर वर्ष 2025 में 24,748 हो गई है, इस शाखाओं में विशेष रूप से तरुणों को शामिल किया जाता है। प्रौढ़ व्यवसायी शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 8,241 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,397 हो गई है एवं बाल शाखाओं की संख्या भी वर्ष 2024 में 9,284 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,864 हो गई है। बाल शाखाओं में छोटी उम्र के बालकों को शामिल किया जाता है।

 

उक्त वर्णित शाखाओं के माध्यम से आज संघ का देश के कोने कोने में विस्तार सम्भव हुआ है। संघ की दृष्टि से देश भर में कुल खंडों की संख्या 6,618 है। इनमें से शाखायुक्त खंडों की संख्या वर्ष 2024 में 5,868 थी जो वर्ष 2025 में बढ़कर 6,112 हो गई है। साथ ही, कुल 58,939 मंडलों में से 30,770 मंडलों में संघ की शाखा लगाई जा रही है। देश भर में महानगरों के अतिरिक्त कुल 2,556 नगर हैं। इन नगरों में से 2,476 नगरों में संघ की शाखा पहुंच गई है।

 

संघ द्वारा विभिन्न श्रेणियों यथा चिकित्सक, अधिवक्ता, शिक्षक, सेवा निवृत अधिकारी एवं कर्मचारी, पत्रकार,  प्रोफेसर, युवा उद्यमी जैसी श्रेणीयों के लिए साप्ताहिक मिलन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। आज देश भर में 32,147 साप्ताहिक मिलन लगाए जा रहे हैं। साथ ही, संघ मंडलियों का गठन भी किया गया है और आज देश भर में 12,091 संघ मंडलियां भी नियमित रूप से लगाई जा रही हैं। भारत में संघ द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सेवा कार्यों को सम्पन्न करने की दृष्टि से 37,309 सेवा बस्तियां हैं। इनमें से 9,754 सेवा बस्तियां संघ की शाखा से युक्त हैं।

 

संघ के स्वयसेवकों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से देश भर में प्राथमिक शिक्षा वर्ग भी लगाए जाते हैं। वर्ष 2023-24 में कुल 1,364 प्राथमिक शिक्षा वर्ग लगाए गए एवं इन प्राथमिक शिक्षा वर्गों में 31,070 शाखाओं के 106,883  स्वयंसेवकों ने भाग लिया।

 

वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ता दिखाई दे रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं। हिंदू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भारत से नई उड़ान भर रहे युवाओं को जोड़ा जाता है ताकि एक तो विदेशों में इनकी कठिनाईयों को दूर किया जा सके तथा दूसरे इनमें सनातन संस्कृति के भाव को जागृत किया जा सके। साथ ही, इन युवाओं के भारत में रह रहे बुजुर्ग माता पिता से भी सम्पर्क बनाया जाता है। संघ के स्वयंसेवक भारत में इनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास भी करते हैं। भारत में धार्मिक पर्यटन पर आने वाले भारतीय मूल के नागरिकों की सहायता भी संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने का प्रयास किया जाता है तथा भारतीय मूल के नागरिक यदि भारत में वापिस आकर बसने के बारे में विचार करते हैं तो उन्हें भी इस सम्बंध में उचित सहायता उपलब्ध कराए जाने का प्रयास किया जाता है।

 

कुल मिलाकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू सनातन संस्कृति को भारत के जन जन के मानस में प्रवाहित करने का कार्य करने का प्रयास कर रहा है ताकि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो एवं उनके लिए भारत प्रथम प्राथमिकता बन सके। यह कार्य संघ की शाखाओं में प्रशिक्षित होने वाले स्वयसेवकों द्वारा समाज के बीच में जाकर करने का सफल प्रयास किया जा रहा है। और, यह कार्य आज पूरे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए एक आवश्यक आवश्यकता भी बन गया है।

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भारत के विश्व गुरुता हेतु सांस्कृतिक संगठनों की भूमिका https://visionviksitbharat.com/the-role-of-cultural-organizations-in-establishing-india-as-a-vishwa-guru-global-leader/ https://visionviksitbharat.com/the-role-of-cultural-organizations-in-establishing-india-as-a-vishwa-guru-global-leader/#respond Mon, 14 Apr 2025 18:29:58 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1593 प्राचीनकाल में भारत विश्व गुरु रहा है इस विषय पर अब कोई शक की गुंजाईश नहीं रही है क्योंकि अब तो पश्चिमी देशों द्वारा पूरे विश्व के प्राचीन काल के…

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प्राचीनकाल में भारत विश्व गुरु रहा है इस विषय पर अब कोई शक की गुंजाईश नहीं रही है क्योंकि अब तो पश्चिमी देशों द्वारा पूरे विश्व के प्राचीन काल के संदर्भ में की गई रिसर्च में भी यह तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं। भारत क्यों और कैसे विश्व गुरु के पद पर आसीन रहा है, इस संदर्भ में कहा जा रहा है कि भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के नियमों के आधार पर भारतीय नागरिक समाज में अपने दैनंदिनी कार्य कलाप करते रहे हैं। साथ ही,  भारतीयों के डीएनए में आध्यतम पाया जाता रहा है जिसके चलते वे विभिन्न क्षेत्रों में किए जाने वाले अपने कार्यों को धर्म से जोड़कर करते रहे हैं। लगभग समस्त भारतीय, काम, अर्थ एवं कर्म को भी धर्म से जोड़कर करते रहे हैं। काम, अर्थ एवं कर्म में चूंकि तामसी प्रवृत्ति का आधिक्य बहुत आसानी से आ जाता है अतः इन कार्यों को तासमी प्रवृत्ति से बचाने के उद्देश्य से धर्म से जोड़कर इन कार्यों को सम्पन्न करने की प्रेरणा प्राप्त की जाती है। जैसे, भारतीय शास्त्रों में काम में संयम रखने की सलाह दी जाती है तथा अर्थ के अर्जन को बुरा नहीं माना गया है परंतु अर्थ का अर्जन केवल अपने स्वयं के हित के लिए करना एवं इसे समाज के हित में उपयोग नहीं करने को बुरा माना गया है। इसी प्रकार, दैनिक जीवन में किए जाने वाले कर्म भी यदि धर्म आधारित नहीं होंगे तो जिस उद्देश्य से यह मानव जीवन हमें प्राप्त हुए है, उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकेगी।

 

प्राचीनकाल में भारत में राजा का यह कर्तव्य होता था कि उसके राज्य में निवास कर रही प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं हो और यदि किसी राज्य की प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट होता था तो वह नागरिक अपने कष्ट निवारण के लिए राजा के पास पहुंच सकता था। परंतु, जैसे जैसे राज्यों का विस्तार होने लगा और राज्यों की जनसंख्या में वृद्धि होती गई तो उस राज्य में निवास कर रहे नागरिकों के कष्टों को दूर करने के लिए धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन भी आगे आने लगे एवं नागरिकों के कष्टों को दूर करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करने लगे। समय के साथ साथ धनाडय वर्ग भी इस पावन कार्य में अपनी भूमिका निभाने लगा। फिर, और आगे के समय में एक नागरिक दूसरे नागरिक की परेशानी में एक दूसरे का साथ देने लगे। परिवार के सदस्यों के साथ पड़ौसी, मित्र एवं सह्रदयी नागरिक भी इस प्रक्रिया में अपना हाथ बंटाने लगे। इस प्रकार प्राचीन भारत में ही व्यक्ति, परिवार, पड़ौस, ग्राम, नगर, प्रांत, देश एवं पूरी धरा को ही एक दूसरे के सहयोगी के रूप में देखा जाने लगा। “वसुधैव कुटुंबकम”, “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय”, “सर्वे भवंतु सुखिन:” का भाव भी प्राचीन भारत में इसी प्रकार जागृत हुआ है।  “व्यक्ति से समष्टि”  की ओर, की भावना केवल और केवल भारत में ही पाई जाती है।

 

वर्तमान काल में लगभग समस्त देशों में चूंकि समस्त व्यवस्थाएं साम्यवाद एवं पूंजीवाद के नियमों पर आधारित हैं, जिनके अनुसार, व्यक्तिवाद पर विशेष ध्यान दिया जाता है और परिवार तथा समाज कहीं पीछे छूट जाता है। केवल मुझे कष्ट है तो दुनिया में कष्ट है अन्यथा किसी और नागरिक के कष्ट पर मेरा कोई ध्यान नहीं है। जैसे यूरोपीयन देश उनके ऊपर किसी भी प्रकार की समस्या आने पर पूरे विश्व का आह्वान करते हुए पाए जाते हैं कि जैसे उनकी समस्या पूरे विश्व की समस्या है परंतु जब इसी प्रकार की समस्या किसी अन्य देश पर आती है तो यूरोपीयन देश उसे अपनी समस्या नहीं मानते हैं। यूरोपीयन देशों में पनप रही आतंकवाद की समस्या पूरे विश्व में आतंकवाद की समस्या मान ली जाती है। परंतु, भारत द्वारा झेली जा रही आतंकवाद की समस्या यूरोप के लिए आतंकवाद नहीं है। यह पश्चिमी देशों के डीएनए में है कि विकास की राह पर केवल मैं ही आगे बढ़ूँ, जबकि भारतीयों के डीएनए में है कि सबको साथ लेकर ही विकास की राह पर आगे बढ़ा जाय। यह भावना भारत में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों में भी कूट कूट कर भरी है। इसी तर्ज पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। संघ के लिए राष्ट्र प्रथम है, और भारत में निवास करने वाले हम समस्त नागरिक हिंदू हैं, क्योंकि भारत में निवासरत प्रत्येक नागरिक से सनातन संस्कृति के संस्कारों के अनुपालन की अपेक्षा की जाती है। भले ही, हमारी पूजा पद्धति भिन्न भिन्न हो सकती है, परंतु संस्कार तो समान ही रहने चाहिए। इसी विचारधारा के चलते आज संघ देश के कोने कोने में पहुंचने में सफल रहा है। संघ ने न केवल राष्ट्र को एकजुट करने का काम किया है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के समय तथा उसके बाद राहत एवं पुनर्वास कार्यों में भी अपनी सक्रिय भूमिका सफलतापूर्वक निभाई है। इस वर्ष संघ अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है परंतु संघ इसे अपनी उपलब्धि बिल्कुल नहीं मानता है बल्कि संघ के लिए तो शताब्दी वर्ष भी जैसे स्थापना वर्ष है और उसी उत्साह से अपने कार्य को विस्तार तथा सुदृढीकृत करते हुए आगे बढ़ने की बात कर रहा है। संघ का अपनी 100 वर्षों की स्थापना सम्बंधी उपलब्धि को उत्सव के रूप में मनाने का विचार नहीं है बल्कि इस उपलक्ष में संघ के स्वयंसेवकों से अपेक्षा की जा रही है कि वे आत्मचिंतन करें, संघ कार्य के लिए समाज द्वारा दिए गए समर्थन के लिए आभार प्रकट करें एवं राष्ट्र के लिए समाज को संगठित करने के लिए स्वयं को पुनः समर्पित करें। शताब्दी वर्ष में समस्त स्वयंसेवकों से अधिक सावधानी, गुणवत्ता एवं व्यापकता से कार्य करने का संकल्प लेने हेतु आग्रह किया जा रहा है।

 

आज संघ कामना कर रहा है कि पूरे विश्व में निवास कर रहे प्राणी शांति के साथ अपना जीवन यापन करें एवं विश्व में लड़ाई झगड़े का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अतः हिंदू सनातन संस्कृति का पूरे विश्व में फैलाव, इस धरा पर निवास कर रहे समस्त प्राणियों के हित में है। इस संदर्भ में आज हिंदू सनातन संस्कृति को किसी भी प्रकार का प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब तो विकसित देशों द्वारा की जा रही रिसर्च में भी इस प्रकार के तथ्य उभर कर सामने आ रहे हैं कि भारत का इतिहास वैभवशाली रहा है और यह हिंदू सनातन संस्कृति के अनुपालन से ही सम्भव हो सका है। अतः आज विश्व में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से हिंदू सनातन संस्कृति को पूरे विश्व में ही फैलाने की आवश्यकता है। परम पूज्य डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी ने भी संघ की स्थापना के समय कहा था कि संघ कोई नया कार्य शुरू नहीं कर रहा है, बल्कि कई शताब्दियों से चले आ रहे काम को आगे बढ़ा रहा है। संघ का यह स्पष्ट मत है कि धर्म के अधिष्ठान पर आत्मविश्वास से परिपूर्ण संगठित सामूहिक जीवन के आधार पर ही हिंदू समाज अपने वैश्विक दायित्व का निर्वाह प्रभावी रूप से कर सकेगा। अतः हमारा कर्तव्य है कि सभी प्रकार के भेदों को नकारने वाला समरसता युक्त आचरण, पर्यावरण पूरक जीवनशैली पर आधारित मूल्याधिशिष्ठ परिवार, स्व बोध से ओतप्रोत और नागरिक कर्तव्यों के लिए प्रतिबद्ध समाज का निर्माण करें एवं इसके आधार पर समाज के सब प्रश्नों का समाधान, चुनौतियों का उत्तर देते हुए भौतिक समृद्धि एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण समर्थ राष्ट्र्जीवन खड़ा करें। संघ का यह भी स्पष्ट मत है कि हिंदुत्व की रक्षा और उसका सशक्तिकरण ही विश्व में स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। 99 वर्षों की साधना के बाद संघ का प्रभाव देश में स्पष्ट रूप से दिख रहा है, और राष्ट्र का कायाकल्प हो रहा है। राष्ट्रीयता, स्व-पहचान, स्वदेशी भावना और हिंदू संस्कृति को ऊर्जा के स्त्रोतों के रूप में पुनर्परिभाषित करने के प्रयास तेज हो चुके हैं।

 

उक्त संदर्भ में संघ द्वारा नवम्बर 2025 से जनवरी 2026 के दौरान किन्हीं तीन सप्ताह तक बड़े पैमाने पर घर घर सम्पर्क अभियान की योजना बनाई गई है, इसका विषय “हर गांव, हर बस्ती, हर घर” होगा। साथ ही, संघ द्वारा समस्त मंडलों और बस्तियों में हिंदू सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। इन सम्मेलनों में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के जीवन में एकता और सद्भाव, राष्ट्र के विकास में सभी का योगदान और पंच परिवर्तन में प्रत्येक नागरिक की भागीदारी, का संदेश दिया जाएगा। प्रत्येक खंड एवं नगर स्तर पर सामाजिक सद्भाव बैठकें भी आयोजित की जाएंगी, इन बैठकों में एक साथ मिलकर रहने पर बल दिया जाएगा। इन बैठकों का उद्देश्य सांस्कृतिक आधार और हिंदू चरित्र को खोए बिना आधुनिक जीवन जीने का संदेश देना होगा। प्रयागराज में हाल ही में सम्पन्न महाकुम्भ में समस्त क्षेत्रों में लोग एक साथ आए थे, किसी को भी किसी नागरिक की जाति, मत, पंथ, आदि की जानकारी नहीं थी। विभिन्न नगरों के संभ्रांत नागरिकों के साथ संवाद कार्यक्रम भी आयोजित किए जाने की योजना बनाई जा रही है। इसी प्रकार, युवाओं के लिए भी राष्ट्र निर्माण, सेवा गतिविधियां एवं पंच परिवर्तन पर केंद्रित विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाने की योजना विभिन्न प्रांतों द्वारा तैयार की जा रही है।

 

आज भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह अन्य धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों को भी आगे आकर मां भारती को एक बार पुनः विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने में अपना योगदान देने की आवश्यकता है।

 

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भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति में स्टैन्स को समायोजित किया https://visionviksitbharat.com/the-reserve-bank-of-india-has-adjusted-the-stance-of-its-monetary-policy/ https://visionviksitbharat.com/the-reserve-bank-of-india-has-adjusted-the-stance-of-its-monetary-policy/#respond Mon, 14 Apr 2025 18:17:34 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1586 दिनांक 9 अप्रेल 2025 को भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक बैठक में एकमत से निर्णय लेते हुए रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए…

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दिनांक 9 अप्रेल 2025 को भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक बैठक में एकमत से निर्णय लेते हुए रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है एवं इस मौद्रिक नीति में स्टैन्स को स्थिर (स्टेबल) से उदार (अकोमोडेटिव) कर दिया है। इसका आश्य यह है कि आगे आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में वृद्धि नहीं करते हुए इसे या तो स्थिर रखेगा अथवा इसमें कमी की घोषणा करेगा। भारत में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने में मिली सफलता के चलते भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यह निर्णय लिया जा सका है। हाल ही के समय में अमेरिका द्वारा अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भारी भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है जिससे पूरे विश्व भर के लगभग समस्त देशों के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया है एवं शेयर बाजार लगातार नीचे की ओर जा रहे हैं। ऐसे माहौल में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी करने की घोषणा एक उचित कदम ही कहा जाना चाहिए। वैसे भारत में मुद्रा स्फीति अब नियंत्रण में भी आ चुकी है एवं आगे आने वाले मानसून के दौरान भारत में सामान्य (103 प्रतिशत) बारिश होने का अनुमान लगाया गया है। इस वर्ष रबी के मौसम में गेहूं की बम्पर पैदावार होने का अनुमान लगाया गया है, सब्जियों एवं फलों की कीमत भारतीय बाजारों में कम हुई है, अतः कुल मिलाकर खुदरा महंगाई की दर 4 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी वर्ष 2025-26 में भारत में मुद्रा स्फीति की दर के 4 प्रतिशत के नीचे रहने का अनुमान लगाया गया है। साथ ही, वैश्विक स्तर पर लगातार बदल रहे घटनाक्रम के चलते कच्चे तेल के दाम भी तेजी से घटे हैं और यह 75 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से घटकर 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं। भारत के लिए यह बहुत अच्छी खबर है, क्योंकि, इससे विनिर्माण इकाईयों की लाभप्रदता में वृद्धि होगी तथा देश में ईंधन की कीमतें कम होंगी और अंततः मुद्रा स्फीति की दर में और अधिक कमी होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के लिए इससे आगामी मौद्रिक नीति के माध्यम से रेपो दर में और अधिक कटौती करना सम्भव एवं आसान होगा।

 

वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना नहीं है और भारतीय रिजर्व बैंक के आंकलन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की आर्थिक विकास दर 6.5 प्रतिशत रह सकती है और पूर्व में इसके 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, अर्थात, अमेरिका द्वारा अपने देश में होने वाले आयात पर लगाए गए टैरिफ से भारतीय अर्थव्यवस्था पर केवल 0.2 प्रतिशत का असर होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था दरअसल निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर भी नहीं है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16-17 प्रतिशत भाग ही अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। इसमें से भी अमेरिका को तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 2 प्रतिशत भाग ही निर्यात होता है। अतः ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों पर अलग अलग दर से लगाए गए टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर नगण्य सा प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।

 

वैश्विक स्तर पर उक्त वर्णित समस्याओं के बीच भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई एम एफ) ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2028 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर बनी रहेगी। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 100 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इस वर्ष के अंत तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का स्तर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा, जो भारतीय रुपए में लगभग 360 लाख करोड़ रुपए बनता है। वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2024 तक के पिछले 10 वर्षों के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना हो गया है। वर्ष 2015 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 2.10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (रुपए 180 लाख करोड़) का था और भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 10वें क्रम पर था। वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना होकर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है।

 

पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं जिससे विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। साथ ही, भारत में आधारभूत संरचना खड़ी करने के लिए केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च में भारी भरकम वृद्धि दर्ज हुई है। देश में विदेशी निवेश का लगातार विस्तार हो रहा है और रोजगार के अवसरों में भी अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में नई इकाईयों की स्थापना को प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन प्रोत्साहन योजना (पी एल आई) लागू की गई है। मुद्रा योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार की गारंटी पर भारतीय बैकों (निजी एवं सरकारी क्षेत्र के बैकों सहित) ने 33 लाख करोड़ रुपए के ऋणों का वितरण किया है। भारत में अनियमित जलवायु परिस्थितियों के बीच भी  पिछले 10 वर्षों के दौरान कृषि के क्षेत्र में विस्तार हुआ है जिससे किसानों की आय को स्थिर रखने में सफलता मिली है। साथ ही, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की केंद्र सरकार ने विशेष सरकारी योजनाओं एवं सब्सिडी के माध्यम से बहुत अच्छे स्तर पर सहायता की है। इससे इस श्रेणी के कई परिवार अब मध्यम श्रेणी में आ गए हैं एवं भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग की वृद्धि में सहायक बन रहे हैं। देश में लागू किए गए डिजीटलाईजेशन से भी भारत में किए जाने वाले लेनदेन के व्यवहारों में पारदर्शिता आई है और इससे भारत में वस्तु एवं सेवा कर एक उपलब्धि सिद्ध हुआ है। आज भारत में वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का अप्रत्यक्ष कर संग्रहित हो रहा है तथा इससे देश में बुनियादी ढांचे को विकसित करने में भरपूर सहायता मिली है।

 

भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के पश्चात विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने लम्बी छलांग लगाते हुए, विश्व में 10वें से आज 5वें स्थान पर आ गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकलन के अनुसार पिछले 10 वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 100 प्रतिशत बढ़ा है तो अमेरिका का 65.8 प्रतिशत, चीन का 75.8 प्रतिशत, जर्मनी का 43.7 प्रतिशत और जापान का केवल 1.3 प्रतिशत बढ़ा है।  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की बनी रहेगी, इस प्रकार भारत वर्ष 2026 में जापान को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2028 में जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। जर्मनी, जापान एवं भारत के सकल घरेलू उत्पाद में बहुत ही थोड़ा अंतर है। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 4.4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 4.9 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, वहीं भारत का सकल घरेलू उत्पाद 4.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है।

 

यदि भारत में आगे आने वाले वर्षों में मुद्रा स्फीति पर अंकुश कायम रहता है एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा  आगे आने वाले समय में ब्याज दरों में लगातार कमी की जाती है तो भारत अपनी आर्थिक विकास दर को 6.5 प्रतिशत से भी आगे ले जा सकने में सफल हो सकता है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा नीति में स्टैन्स को स्थिर से उदार करने के निहितार्थ हैं।

 

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टैरिफ युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर नहीं होगा अधिक प्रभाव   https://visionviksitbharat.com/the-tariff-war-will-not-have-a-significant-impact-on-the-indian-economy/ https://visionviksitbharat.com/the-tariff-war-will-not-have-a-significant-impact-on-the-indian-economy/#comments Tue, 08 Apr 2025 17:27:59 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1573 दिनांक 2 अप्रेल 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा, विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले  आयातित उत्पादों पर की गई टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही अंततः अमेरिका…

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दिनांक 2 अप्रेल 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा, विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले  आयातित उत्पादों पर की गई टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही अंततः अमेरिका द्वारा पूरे विश्व में टैरिफ के माध्यम से व्यापार युद्ध छेड़ दिया गया है। अभी, अमेरिका ने विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर विभिन्न दरों पर टैरिफ लगाया है। अब इनमें से कई देश अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर रहे हैं, जैसे चीन ने अमेरिका से चीन में आयात होने वाले उत्पादों पर दिनांक 10 अप्रैल 2025 से 34 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है। टैरिफ के माध्यम से छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारत पर कोई बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना कम ही है। दरअसल, अमेरिका ने विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर अलग अलग दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है और साथ ही कुछ उत्पादों के आयात पर फिलहाल टैरिफ की नई दरें लागू नहीं की गई हैं। टैरिफ की यह दरें 9 अप्रैल 2025 से लागू होंगी।

विभिन्न देशों से अमेरिका में आयात होने वाले उत्पादों पर 10 प्रतिशत की दर से न्यूनतम टैरिफ लगाया गया है। साथ ही, कुछ अन्य देशों यथा चीन से आयातित उत्पादों पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है। इसी प्रकार, वियतनाम से आयातित उत्पादों पर 46 प्रतिशत, ताईवान पर 32 प्रतिशत, थाईलैंड पर 36 प्रतिशत, भारत पर 26 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया पर 25 प्रतिशत, इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड पर 31 प्रतिशत, मलेशिया पर 24 प्रतिशत, कम्बोडिया पर 49 प्रतिशत, दक्षिणी अफ्रीका पर 30 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत, पाकिस्तान पर 29 प्रतिशत, श्रीलंका पर 44 प्रतिशत और इसी प्रकार अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भी अलग अलग दरों से टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है। कुछ उत्पादों जैसे, स्टील, एल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, एनर्जी, बुलीयन एवं अन्य महत्वपूर्ण मिनरल्स को अमेरिका में आयात पर टैरिफ के दायरे से बाहर रखा गया है।

अमेरिका का मानना है कि वैश्विक स्तर पर अन्य देश अमेरिका में उत्पादित वस्तुओं के आयात पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाते हैं, जबकि अमेरिका में इन देशों से आयात किए जाने वाले उत्पादों पर अमेरिका द्वारा बहुत कम दर पर टैरिफ लगाया जाता है अथवा बिलकुल नहीं लगाया जाता है। जिससे, अमेरिका से इन देशों को निर्यात कम हो रहे हैं एवं इन देशों से अमेरिका में आयात लगातार बढ़ते जा रहे हैं।  इस प्रकार, अमेरिका का व्यापार घाटा असहनीय स्तर पर पहुंच गया है। इसके साथ साथ, अमेरिका में विनिर्माण इकाईयां बंद होकर अन्य देशों में स्थापित हो गई हैं और इससे अमेरिका में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित नहीं हो पा रहे हैं। अब ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका को पुनः विनिर्माण इकाईयों का हब बनाने के उद्देश्य से अमेरिका को पुनः महान बनाने का आह्वान किया है और इसी संदर्भ में विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाने का निर्णय लिया गया है ताकि अमेरिका में आयातित उत्पाद महंगे हों और अमेरिकी नागरिक अमेरिका में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने की ओर प्रेरित हों।

वर्तमान में बढ़े हुए टैरिफ का बोझ अमेरिकी नागरिकों को उठाना पड़ेगा और उन्हें अमेरिका में महंगे उत्पाद खरीदने होंगे, क्योंकि नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना में तो वक्त लग सकता है, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन तुरंत तो बढ़ाया नहीं जा सकता अतः जब तक नई विनिर्माण इकाईयों की अमेरिका में स्थापना हो एवं इन विनिर्माण इकाईयों में उत्पादन शुरू हो तब तक अमेरिकी नागरिकों को महंगे उत्पाद खरीदने हेतु बाध्य होना पड़ेगा। इससे अमेरिका में एक बार पुनः मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न हो सकती है एवं ब्याज दरों के कम होने के चक्र में भी देरी होगी, बहुत सम्भव है कि मुद्रा स्फीति को कम करने की दृष्टि से एक बार पुनः कहीं ब्याज दरों के बढ़ने का चक्र प्रारम्भ न हो जाए। लम्बे समय में जब अमेरिका में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना हो जाएगी एवं इन इकाईयों में उत्पादन प्रारम्भ हो जाएगा तब जाकर कहीं मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही, डॉलर पर दबाव पड़ना शुरू भी हो चुका है एवं अमेरिकी डॉलर इंडेक्स घटकर 102 के स्तर पर नीचे आ गया है जो कुछ समय पूर्व तक लगभग 106 के स्तर पर आ गया था। इसी प्रकार अमेरिका में सरकारी प्रतिभूतियों की 10 वर्ष की बांड यील्ड पर भी दबाव दिखाई दे रही है और यह घटकर 4.08 के स्तर पर नीचे आ गई है, यह कुछ समय पूर्व तक 4.70 के स्तर से भी ऊपर निकल गई थी। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़नी प्रारम्भ हो गई है एवं यह पिछले चार माह के उच्चतम स्तर, लगभग 85 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर, पर आ गई है।

ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी लिए गए निर्णयों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर लम्बी अवधि में तो हो सकता है परंतु छोटी अवधि में तो निश्चित ही यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को विपरीत रूप से प्रभावित करते हुए दिखाई दे रहा है। अमेरिकी पूंजी बाजार (शेयर बाजार) केवल दो दिनों में ही लगभग 10 प्रतिशत तक नीचे गिर गया है और अमेरिकी निवेशकों को लगभग 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ है। इतनी भारी गिरावट तो वर्ष 2020 में कोविड महामारी के दौरान ही देखने को मिली थी। यदि यही स्थिति बनी रही तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था कहीं मंदी की चपेट में न आ जाय। यदि ऐसा होता है तो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। अतः ट्रम्प प्रशासन का टैरिफ सम्बंधी उक्त निर्णय अति जोखिम भरा ही कहा जाएगा।

जब पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी तो भारत की अर्थव्यवस्था पर भी कुछ तो विपरीत असर होगा ही। इस संदर्भ में किए गए विश्लेषण से यह तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि बहुत सम्भव है कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर लगाए गए 26 प्रतिशत के टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव नहीं हो। क्योंकि, एक तो भारत से अमेरिका को निर्यात बहुत अधिक नहीं है। यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र लगभग 3-4 प्रतिशत ही है। वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर नहीं है एवं यह विभिन्न उत्पादों की आंतिरक मांग पर अधिक निर्भर है। भारत से सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16 प्रतिशत (वस्तुएं एवं सेवा क्षेत्र मिलाकर) ही निर्यात किया जाता है।

दूसरे, भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने कुछ उत्पादों को उक्त टैरिफ व्यवस्था से फिलहाल मुक्त रखा गया है, जैसे फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, स्टील, अल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, बुलीयन, एनर्जी आदि। संभवत: इन उत्पादों के भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर कुछ भी असर नहीं होने जा रहा है। तीसरे, भारतीय कम्पनियों (26 प्रतिशत टैरिफ) को रेडीमेड गर्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात में पड़ौसी देशों, यथा, बांग्लादेश (37 प्रतिशत टैरिफ), पाकिस्तान (29 प्रतिशत टैरिफ), श्रीलंका (44 प्रतिशत टैरिफ), वियतनाम (46 प्रतिशत टैरिफ), चीन (34 प्रतिशत टैरिफ), इंडोनेशिया (32 प्रतिशत टैरिफ), आदि के साथ अत्यधिक स्पर्धा का सामना करना पड़ता है। परंतु, उक्त समस्त देशों से अमेरिका को होने वाले रेडीमेड गार्मेंट्स के निर्यात पर भारत की तुलना में अधिक टैरिफ लगाए जाने की घोषणा की गई है। अत: इन देशों से रेडीमेड गार्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात भारत की तुलना में महंगे हो जाएंगे, इससे रेडीमेड गार्मेंट्स के क्षेत्र में भारत के लिए लाभ की स्थिति निर्मित होती हुई दिखाई दे रही है। इसी प्रकार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कृषि उत्पादों के निर्यात भी भारत से अमेरिका को बढ़ सकते हैं। यदि किन्ही क्षेत्रों में भारत को नुक्सान होता हुआ दिखाई भी देता है तो भारत के विश्व के अन्य देशों के साथ बहुत अच्छे राजनैतिक संबंधो के चलते भारत को अपने उत्पादों के लिए नए बाजार तलाशने में किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। वैसे भी, अमेरिका सहित भारत के यूरोपीयन देशों, ब्रिटेन एवं खाड़ी के देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को सम्पन्न करने हेतु वार्ताएं लगभग अंतिम दौर में पहुंच गईं हैं, इसका लाभ भी भारत को होने जा रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शीघ्र ही मोनेटरी पॉलिसी के माध्यम से रेपो दरों में परिवर्तन की घोषणा की जाने वाली है। भारत में चूंकि मुद्रा स्फीति की दर लगातार गिरती हुई दिखाई दे रही है अतः भारत में रेपो दर में 75 से 100 आधार बिंदुओं की कमी की घोषणा की जा सकती है। यदि ऐसा होता है तो विभिन्न उत्पादों की उत्पादन लागत में कुछ कमी सम्भव होगी, जिसके चलते भारत में निर्मित उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। हालांकि, केवल ब्याज दरों के कमी करके पूंजी की लागत को कम करने से काम चलने वाला नहीं है, भारत को भूमि एवं श्रम की लागतों को भी कम करने की आवश्यकता है तथा उत्पादकता में सुधार करने की भी आवश्यकता है ताकि भारत में निर्मित होने वाले उत्पादों की कुल लागत में कमी हो एवं यह उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में अन्य देशों के मुक़ाबले में टिक सकें। वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक, सामरिक, रणनीतिक, राजनैतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों में आमूल चूल परिवर्तन होता हुआ दिखाई दे रहा है, परिवर्तन के इस दौर में भारतीय कम्पनियां कितना लाभ उठा सकती हैं यह भारतीय कम्पनियों के कौशल पर निर्भर करेगा। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा शीघ्रता से अपने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को गति देकर भी वैश्विक स्तर पर निर्मित हुई उक्त परिस्थितियों का लाभ उठाया जा सकता है।

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कृषि क्षेत्र में करवट बदलता भारत  https://visionviksitbharat.com/india-transforming-in-the-agriculture-sector/ https://visionviksitbharat.com/india-transforming-in-the-agriculture-sector/#respond Tue, 01 Apr 2025 03:16:01 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1552   पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत 80 प्रतिशत से अधिक कृषि उपज फसलों (काफी एवं कपास जैसी नकदी फसलों सहित) के साथ दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश…

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पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत 80 प्रतिशत से अधिक कृषि उपज फसलों (काफी एवं कपास जैसी नकदी फसलों सहित) के साथ दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया था। साथ ही, भारत सबसे तेज विकास दर के साथ पशुधन क्षेत्र में दुनिया के पांच सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल हो गया है।

 

भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। जबकि, कृषि क्षेत्र का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान केवल 18 प्रतिशत के आस पास बना हुआ है। इस प्रकार, भारत में यदि गरीबी को जड़ मूल से नष्ट करना है तो कृषि के क्षेत्र में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करना ही होगा। भारत ने हालांकि आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त सफलताएं  अर्जित की हैं और भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है तथा शीघ्र ही अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। साथ ही, भारत आज विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था भी बन गया है। परंतु, इसके आगे की राह अब कठिन है, क्योंकि केवल सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र के बल पर और अधिक तेज गति से आगे नहीं बढ़ा जा सकता है और कृषि क्षेत्र में आर्थिक विकास की दर को बढ़ाना होगा।

भारत में हालांकि कृषि क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं और भारत आज कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन गया है। परंतु, अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। किसानों के पास पूंजी का अभाव रहता था और वे बहुत ऊंची ब्याज दरों पर महाजनों से ऋण लेते थे और उनके जाल में जीवन भर के लिए फंस जाते थे, परंतु, आज इस समस्या को बहुत बड़ी हद्द तक हल किया जा सका है और किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किसान को आसान नियमों के अंतर्गत बैकों से पर्याप्त ऋण की सुविधा उपलब्ध है और इस सुविधा का लाभ आज देश के करोड़ों किसान उठा रहे हैं। दूसरे, इसी संदर्भ में किसान सम्मान निधि योजना भी किसानों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हो रही है और इस योजना का लाभ भी करोड़ों किसानों को मिल रहा है। इससे किसानों की कृषि सम्बंधी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के सफलता मिली है।

भारतीय कृषि आज भी मानसून पर निर्भर है। देश के ग्रामीण इलाकों में सिंचाई सुविधाओं का अभाव है। इस समस्या को हल करने के उद्देश्य से भारत सरकार प्रति बूंद अधिक फसल की रणनीति पर काम कर रही है एवं सूक्ष्म सिंचाई पर बल दिया जा रहा है ताकि कृषि के क्षेत्र में पानी के उपयोग को कम किया जा सके तथा जल संरक्षण के साथ सिंचाई की लागत भी कम हो सके।

देश में कृषि जोत हेतु पर्याप्त भूमि का अभाव है और देश में सीमांत एवं छोटे किसानों की संख्या करोड़ों की संख्या में हो गई है। जिससे यह किसान किसी तरह अपना और परिवार का भरण पोषण कर पा रहे हैं इनके लिए कृषि लाभ का माध्यम नहीं रह गया है। इन तरह की समस्याओं के हल हेतु अब केंद्र सरकार विभिन्न उत्पादों के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य में, मुद्रा स्फीति को ध्यान में रखकर, वृद्धि करती रहती है, इससे किसानों को अत्यधिक लाभ हो रहा है। भंडारण सुविधाओं (गोदामों एवं कोल्ड स्टोरेज का निर्माण) में पर्याप्त वृद्धि दर्ज हुई है एवं साथ ही परिवहन सुविधाओं में सुधार के चलते किसान कृषि उत्पादों को लाभ की दर पर बेचने में सफल हो रहे है अन्यथा इन सुविधाओं में कमी के चलते किसान अपने कृषि उत्पादों को बाजार में बहुत सस्ते दामों पर बेचने पर मजबूर हुआ करता था। खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना भारी मात्रा में की जा रही है इससे कृषि क्षेत्र में मूल्य संवर्धन को बढ़ावा मिल रहा है एवं कृषि उत्पादों की बर्बादी को रोकने में सफलता मिल रही है।

आज भारत में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के उपयोग पर ध्यान दिया जा रहा है ताकि उर्वरकों के उपयोग की आवश्यकता कम हो एवं कृषि उत्पादकता बढ़े।  इस संदर्भ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भी किसानों की मदद कर रही है इससे किसान कृषि भूमि पर मिट्टी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कृषि उत्पाद कर रहे हैं। राष्ट्रीय कृषि बाजार को स्थापित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि किसान सीधे ही उपभोक्ता को उचित दामों पर अपनी फसल को बेच सके। साथ ही, कृषि फसल बीमा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि देश में सूखे, अधिक वर्षा, चक्रवात, अतिवृष्टि, अग्नि आदि जैसी प्रकृतिक आपदाओं के चलते प्रभावित हुई फसल के नुक्सान से किसानों को बचाया जा सके। आज करोड़ों की संख्या में किसान फसल बीमा योजना का लाभ उठा रहे हैं।

देश में खेती किसानी का काम पूरे वर्ष भर तो रहता नहीं है अतः किसानों के लिए अतिरिक्त आय के साधन निर्मित करने के उद्देश्य से डेयरी, पशुपालन, मधु मक्खी पालन, पोल्ट्री, मत्स्य पालन आदि कृषि सहायक क्षेत्रों पर भी ध्यान दिया जा रहा है, ताकि किसानों को अतिरिक्त आय की सुविधा मिल सके। विश्व के विभिन्न देशों ने अपनी आर्थिक प्रगति के प्रारम्भिक चरण में कृषि क्षेत्र का ही सहारा लिया है।  औद्योगिक क्रांति तो बहुत बाद में आती है इसके पूर्व कृषि क्षेत्र को विकसित अवस्था में पहुंचाना होता है। भारत में भी आज कृषि क्षेत्र, देश की अर्थव्यवस्था का आधार है, जो न केवल खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि करोड़ों नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर भी निर्मित करता है। साथ ही, औद्योगिक इकाईयों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराता है। वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र की महत्ता आगे आने वाले समय में भी इसी प्रकार बनी रहेगी क्योंकि इस क्षेत्र से पूरी दुनिया के नागरिकों के लिए भोजन, उद्योग के लिए कच्चा माल एवं रोजगार के अवसर कृषि क्षेत्र से ही निकलते रहेंगे। हां, कृषि क्षेत्र में आज हो रही प्रौद्योगिकी में  प्रगति के चलते किसानों को कम भूमि पर, मशीनों का उपयोग करते हुए, कम पानी की आवश्यकता के साथ भी अधिक उत्पादन करना सम्भव हो रहा है। इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ कृषि उत्पाद की लागत कम हो रही है और किसानों के लिए खेती एक उद्योग के रूप में पनपता हुआ दिखाई दे रहा है और अब यह लाभ का व्यवसाय बनता हुआ दिखाई देने लगा है।

केला, आम, अमरूद, पपीता, नींबू जैसे कई ताजे फलों एवं चना, भिंडी जैसी सब्जियों, मिर्च, अदरक जैसे प्रमुख मसालों, जूट जैसी रेशेदार फसलों, बाजरा एवं अरंडी के बीज जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों एवं दूध के उत्पादन में भारत पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है।  दुनिया के प्रमुख खाद्य पदार्थों यथा गेहूं एवं चावल का भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत वर्तमान में कई सूखे मेवे, कृषि आधारित कपड़े, कच्चे माल, जड़ और कांड फसलों, दालों, मछली पालन, अंडे, नारियल, गन्ना एवं कई सब्जियों का पूरे विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत 80 प्रतिशत से अधिक कृषि उपज फसलों (काफी एवं कपास जैसी नकदी फसलों सहित) के साथ दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया था। साथ ही, भारत सबसे तेज विकास दर के साथ पशुधन एवं मुर्गी मांस के क्षेत्र में दुनिया के पांच सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल हो गया है।

कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था में किसी भी दृष्टि से कृषि क्षेत्र के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता है क्योंकि उद्योग एवं सेवा क्षेत्र का विकास भी कृषि क्षेत्र के विकास पर ही निर्भर करता है।  अधिकतम उपभोक्ता तो आज भी ग्रामीण इलाकों में ही निवास कर रहे हैं एवं उद्योग क्षेत्र में निर्मित उत्पादों की मांग भी ग्रामीण इलाकों से ही निकल रही है। अतः देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना ही होगा।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते कदम https://visionviksitbharat.com/the-expanding-footsteps-of-rashtriya-swayamsevak-sangh/ https://visionviksitbharat.com/the-expanding-footsteps-of-rashtriya-swayamsevak-sangh/#respond Mon, 24 Mar 2025 19:47:50 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1504   आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न…

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आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं।

 

दिनांक 21 से 23 मार्च तक बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में दशहरा के पावन पर्व पर हुई थी, और इस प्रकार संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं इस वर्ष दशहरा के शुभ अवसर पर ही अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लेगा।

संघ की स्थापना विशेष रूप से भारतीय हिंदू समाज में राष्ट्रीयत्व का भाव जागृत करने एवं हिंदू समाज के बीच समरसता स्थापित करने के लक्ष्य को लेकर हुई थी। इन 100 वर्षों के अपने कार्यकाल में संघ ने हिंदू समाज को एकजुट करने में सफलता तो हासिल कर ही ली है साथ ही विशेष रूप से समाज की सज्जन शक्ति में राष्ट्रीयत्व का भाव पैदा करने में सफलता अर्जित की है। सज्जन शक्ति समाज की वह शक्ति है कि जिनकी बात समाज में गम्भीरता से सुनी जाती है एवं उस पर अमल करने का प्रयास भी होता है। संघ ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु शाखाओं की स्थापना की थी। इन शाखाओं में देश की युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयत्व का भाव जगाकर ऐसे स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं जो समाज के बीच जाकर देश के आम नागरिकों में राष्ट्र भावना का संचार करते हैं एवं समाज के बीच समरसता का भाव पैदा करने का प्रयास करते हैं।

संघ द्वारा स्थापित की गई शाखाओं की कार्यपद्धति पर आज विश्व के अन्य कई देशों में शोध कार्य किए जाने के बारे में सोचा जा रहा है कि किस प्रकार संघ द्वारा स्थापित इन शाखाओं से निकला हुआ स्वयंसेवक समाज परिवर्तन में अपनी महती भूमिका निभाने में सफल हो रहा है और पिछले लगातार 100 वर्षों से इस पावन कार्य में संलग्न है। हाल ही में, दिनांक 14 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक (44 दिन) प्रयागराज में लगातार चले एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए महाकुम्भ के मेले में पूरे विश्व से 66 करोड़ से अधिक हिंदू धर्मावलम्बियों ने पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। इतनी भारी संख्या में हिंदू समाज कभी भी किसी महान धार्मिक आयोजन में शामिल नहीं हुआ होगा और संभवत: पूरे विश्व में कभी भी इस तरह का आयोजन सम्पन्न नहीं हुआ होगा। इस महाकुम्भ में समस्त हिंदू समाज एकजुट दिखाई दिया, न किसी की जाति, न किसी का मत, न किसी के पंथ का पता चला। बस केवल सनातनी हिंदू हैं, यही भावना समस्त श्रद्धालुओं में दिखाई दी। इसी का प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से करता आ रहा है।

संघ द्वारा आज न केवल भारतीय हिंदू समाज को एकता के सूत्र में पिरोए जाने का कार्य किया जा रहा है बल्कि पूरे विश्व में अन्य देशों में निवासरत भारतीय मूल के हिंदू समाज के नागरिकों को भी एक सूत्र में पिरोए जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह कार्य संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संघ की शाखा में प्राप्त प्रशिक्षण के बाद सम्पन्न किया जाता है। संघ द्वारा संचालित शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 के 73,117 से बढ़कर वर्ष 2025 में 83,129 हो गई है। इन शाखाओं के लगने वाले स्थानों की संख्या भी वर्ष 2024 में 45,600 से बढ़कर 51,710 हो गई है। विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के उद्देश्य से विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए विद्यार्थी संयुक्त शाखाएं भी देश के विभिन्न भागों में लगाई जाती हैं।  विद्यार्थी संयुक्त शाखाओं की संख्या 17 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 20224 में 28,409 से बढ़कर वर्ष 2025 में 33,129 हो गई हैं। इसी प्रकार महाविद्यालयीन छात्रों के लिए भी विशेष शाखाएं लगाई जाती हैं।

महाविद्यालयीन (केवल तरुणों के लिए) शाखाओं की संख्या 10 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 5,465 से बढ़कर वर्ष 2025 में 5,991 हो गई है। तरुण व्यवसायी शाखाओं की संख्या भी 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 21,718 से बढ़कर वर्ष 2025 में 24,748 हो गई है, इस शाखाओं में विशेष रूप से तरुणों को शामिल किया जाता है। प्रौढ़ व्यवसायी शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 8,241 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,397 हो गई है एवं बाल शाखाओं की संख्या भी वर्ष 2024 में 9,284 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,864 हो गई है। बाल शाखाओं में छोटी उम्र के बालकों को शामिल किया जाता है।

उक्त वर्णित शाखाओं के माध्यम से आज संघ का देश के कोने कोने में विस्तार सम्भव हुआ है। संघ की दृष्टि से देश भर में कुल खंडों की संख्या 6,618 है। इनमें से शाखायुक्त खंडों की संख्या वर्ष 2024 में 5,868 थी जो वर्ष 2025 में बढ़कर 6,112 हो गई है। साथ ही, कुल 58,939 मंडलों में से 30,770 मंडलों में संघ की शाखा लगाई जा रही है। देश भर में महानगरों के अतिरिक्त कुल 2,556 नगर हैं। इन नगरों में से 2,476 नगरों में संघ की शाखा पहुंच गई है।

संघ द्वारा विभिन्न श्रेणियों यथा चिकित्सक, अधिवक्ता, शिक्षक, सेवा निवृत अधिकारी एवं कर्मचारी, पत्रकार,  प्रोफेसर, युवा उद्यमी जैसी श्रेणीयों के लिए साप्ताहिक मिलन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। आज देश भर में 32,147 साप्ताहिक मिलन लगाए जा रहे हैं। साथ ही, संघ मंडलियों का गठन भी किया गया है और आज देश भर में 12,091 संघ मंडलियां भी नियमित रूप से लगाई जा रही हैं। भारत में संघ द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सेवा कार्यों को सम्पन्न करने की दृष्टि से 37,309 सेवा बस्तियां हैं। इनमें से 9,754 सेवा बस्तियां संघ की शाखा से युक्त हैं।

संघ के स्वयसेवकों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से देश भर में प्राथमिक शिक्षा वर्ग भी लगाए जाते हैं। वर्ष 2023-24 में कुल 1,364 प्राथमिक शिक्षा वर्ग लगाए गए एवं इन प्राथमिक शिक्षा वर्गों में 31,070 शाखाओं के 106,883  स्वयंसेवकों ने भाग लिया।

वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ता दिखाई दे रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है।  आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं। हिंदू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भारत से नई उड़ान भर रहे युवाओं को जोड़ा जाता है ताकि एक तो विदेशों में इनकी कठिनाईयों को दूर किया जा सके तथा दूसरे इनमें सनातन संस्कृति के भाव को जागृत किया जा सके। साथ ही, इन युवाओं के भारत में रह रहे बुजुर्ग माता पिता से भी सम्पर्क बनाया जाता है। संघ के स्वयंसेवक भारत में इनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास भी करते हैं। भारत में धार्मिक पर्यटन पर आने वाले भारतीय मूल के नागरिकों की सहायता भी संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने का प्रयास किया जाता है तथा भारतीय मूल के नागरिक यदि भारत में वापिस आकर बसने के बारे में विचार करते हैं तो उन्हें भी इस सम्बंध में उचित सहायता उपलब्ध कराए जाने का प्रयास किया जाता है।

कुल मिलाकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू सनातन संस्कृति को भारत के जन जन के मानस में प्रवाहित करने का कार्य करने का प्रयास कर रहा है ताकि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो एवं उनके लिए भारत प्रथम प्राथमिकता बन सके। यह कार्य संघ की शाखाओं में प्रशिक्षित होने वाले स्वयसेवकों द्वारा समाज के बीच में जाकर करने का सफल प्रयास किया जा रहा है। और, यह कार्य आज पूरे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए एक आवश्यक आवश्यकता भी बन गया है।

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भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की ओर दिया जा रहा है विशेष ध्यान https://visionviksitbharat.com/special-attention-being-given-to-healthcare-services-in-india/ https://visionviksitbharat.com/special-attention-being-given-to-healthcare-services-in-india/#respond Thu, 20 Mar 2025 19:36:56 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1464   वित्तीय वर्ष 2025-26 में 10,000 अतिरिक्त मेडिकल सीटों का सृजन भी किया जा रहा है ताकि आगामी पांच वर्षों के दौरान देश के मेडिकल कॉलेजों में 75,000 नई सीटों…

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वित्तीय वर्ष 2025-26 में 10,000 अतिरिक्त मेडिकल सीटों का सृजन भी किया जा रहा है ताकि आगामी पांच वर्षों के दौरान देश के मेडिकल कॉलेजों में 75,000 नई सीटों के सृजन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। साथ ही, केंद्र सरकार हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरिंग को भी बढ़ावा दे रही है।

 

प्राचीनकाल में भारत के नागरिकों में स्वास्थ्य के प्रति चेतना का भाव जागृत रहता था। जागरूकता तो यहां तक थी कि किस प्रकार जीवन की दिनचर्या स्थापित हो कि परिवार में कोई बीमार ही नहीं हो, बीमारी का निदान तो आगे की प्रक्रिया रहती है। उस खंडकाल में प्रत्येक नागरिक इतना सजग रहता था कि प्रातःकाल एवं सायंकाल में 5/10 किलोमीटर तक नियमित रूप से पैदल चलना एवं योगक्रिया तथा प्राणायाम आदि का अभ्यास नियमित रूप से करता था ताकि शरीर को किसी भी प्रकार का रोग ही नहीं लगे एवं शरीर स्वस्थ बना रहे। इसके साथ ही खानपान, सामान्य दिनचर्या, सूरज डूबने के पूर्व भोजन करना, रात्रि में जल्दी सोना और प्रातःकाल में जल्दी उठना, दिन भर मेहनत के कार्य करना, जैसी प्रक्रिया सामान्यजन की हुआ करती थी। परंतु, आज परिस्थितियां बदली हुई सी दिखाई देती हैं। पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ रहे रुझान के चलते युवाओं के खानपान में आमूलचूल परिवर्तन दिखाई देता है, दिनचर्या में परिवर्तन दिखाई देता है, रात्रि में बहुत देर से सोना और सूर्य नारायण के उदित होने के पश्चात दिन में बहुत देर से उठना आदि कारणों के चलते विभिन्न प्रकार की बीमारियां नागरिकों को घेरने लगी हैं। अतः केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अपने बजट में विशेष प्रावधान करने पड़ रहे हैं।

आज, केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा यह प्रयास किए जा रहे हैं कि समाज के हर वर्ग तक सस्ती, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से पहुंचें और आज सरकार की यह प्राथमिकता बन गई है। देश में नागरिकों तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 175,000 आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए गए हैं। इन सभी प्रयासों के चलते आज भारत में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में भी व्यापक कमी दृष्टिगोचर हुई है और केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे प्रयासों के चलते एवं अस्पताल, इलाज और दवा की व्यवस्था के कारण एक सामान्य परिवार में स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च निरंतर कम हो रहा है।

भारत में, नागरिकों की दिनचर्या में आ रही गिरावट एवं खानपान में आए बदलाव के चलते देश में कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और इसका इलाज महंगा होने के कारण आम नागरिकों के लिए इस बीमारी का इलाज कराना बहुत मुश्किल कार्य होता जा रहा है। अतः केंद्र सरकार ने कैंसर दवाओं के आयात पर कस्टम ड्यूटी को समाप्त कर दिया है। केंद्र सरकार द्वारा, अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते हुए, सर्वाइकल कैंसर के लिए अब तक लगभग नौ करोड़ महिलाओं की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। देश में लगातार बढ़ रही कैंसर के मरीजों की संख्या को देखते हुए देश के समस्त जिलों में आगामी 3 वर्षों के दौरान डे केयर कैंसर सेंटर की स्थापना कर दी जाएगी। इस प्रकार, वित्तीय वर्ष 2025-26 के दौरान 200 डे केयर कैंसर सेंटर की स्थापना की जा रही है।

इसी प्रकार केंद्र सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से दिमागी बुखार से लड़ने में देश को बहुत सफलता मिली है। इससे होने वाली मृत्यु दर अब घटकर छह प्रतिशत रह गयी है। केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत टीबी के मरीजों की संख्या भी घटी है। भारत को टीबी मुक्त बनाए जाने का विशेष अभियान चलाया जा रहा है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम की सही ट्रैकिंग रखने के लिए U-WIN नामक पोर्टल लॉन्च किया गया है। इस पोर्टल पर अब तक लगभग तीस करोड़ वैक्सीन खुराक दर्ज हो चुकी है। टेली मेडिसिन के माध्यम से तीस करोड़ से अधिक ई–टेली-कन्सल्टेशन से नागरिकों को स्वास्थ्य लाभ मिला है।

देश में यदि विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैल रही हैं तो इन बीमारियों के पहचानने के लिए उचित संख्या में डॉक्टरों की उपलब्धता बनी रहे एवं विशेष रूप से गांवों में भी डॉक्टर उपलब्ध रहें इस हेतु केंद्र सरकार द्वारा देश में डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाने के लिए पिछले 10 वर्षों के दौरान देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में 110,000 नई मेडिकल सीटों का सृजन, 130 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ, किया गया है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में 10,000 अतिरिक्त मेडिकल सीटों का सृजन भी किया जा रहा है ताकि आगामी पांच वर्षों के दौरान देश के मेडिकल कॉलेजों में 75,000 नई सीटों के सृजन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। साथ ही, केंद्र सरकार हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरिंग को भी बढ़ावा दे रही है। देश में नए बल्क ड्रग और मेडिकल डिवाइसेस के पार्क भी बनाए जा रहे हैं। इनमें रोजगार के अनेक नए अवसर भी उपलब्ध हो रहे हैं।

जल जनित बीमारियों के बचाव के उद्देश्य से, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ जल उपलब्ध कराने की दृष्टि से, ताकि दूषित जल पीने से होने वाली बीमारियों से नागरिकों की रक्षा की जा सके, केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2019 से जल जीवन मिशन चलाया जा रहा है और अभी तक 15 करोड़ परिवारों (भारत की 80 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या) को इस योजना के अंतर्गत नलों के माध्यम से शुद्ध जल उपलब्ध कराया जा चुका है।

स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता की दृष्टि से भारत में निवासरत नागरिक एक तरह से स्वर्ग में निवास कर रहे हैं। अन्यथा, अन्य कई विकसित देशों में आज स्वास्थ्य सेवाएं न केवल अत्यधिक महंगी दरों पर उपलब्ध हो रही हैं बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं का समय पर उपलब्ध होना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। अमेरिका में किसी नागरिक को यदि किसी डॉक्टर से अपाइंटमेंट लेना हो तो कभी कभी तो एक माह तक इसका इंतजार करना होता है। इमर्जेन्सी की स्थिति में विशेष इमर्जेन्सी अस्पताल में दिखाना होता है, जहां अत्यधिक महंगी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होती है। यदि किसी नागरिक के पास स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध नहीं है तो सम्भव है कि पूरे जीवन भर की कमाई इन विशेष इमर्जेन्सी अस्पतालों में खर्च हो जाए। अतः स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में अमेरिका में आज डॉक्टर को दिखाकर दवाई लेना अति मुश्किल काम है। इन विकसित देशों के विपरीत, भारत में तो किसी भी मोहल्ले में डॉक्टर को बहुत आसानी से दिखाया जा सकता है एवं तुरंत दवाई ली जा सकती है। आज अमेरिका में स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि वहां के नागरिक बीमार होने की स्थिति में, स्थानीय डॉक्टर से चूंकि तुरंत समय नहीं मिल पाता है अतः, ये बीमार नागरिक आस पास के देशों में जाकर अपना इलाज करा रहे हैं। अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में बिना मेडिकल बीमा के आप इन देशों में जिंदा नहीं रह सकते। अब आप कल्पना करें कि भारत में इलाज कराना कितना आसान है एवं वास्तव में ही इस दृष्टि से हम भारत में एक तरह से स्वर्ग में निवास कर रहे हैं।

कुल मिलाकर, देश में उत्तम स्थिति तो यह होनी चाहिए कि देश के नागरिक बीमार ही नहीं पड़ें, यह तभी सम्भव है जब देश के नागरिक अपनी सनातन संस्कृति के संस्कारों का नियमित रूप से अनुपालन पुनः प्रारम्भ करें। यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो केंद्र एवं राज्य सरकारों को नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इसी प्रकार अपने बजट में बहुत बड़ी राशि का प्रावधान करते रहना पड़ेगा।

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ट्रम्प प्रशासन की टैरिफ नीति: भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और संभावनाएँ https://visionviksitbharat.com/trump-administrations-tariff-policies-impact-on-indias-economy-and-future-prospects/ https://visionviksitbharat.com/trump-administrations-tariff-policies-impact-on-indias-economy-and-future-prospects/#respond Tue, 18 Mar 2025 14:05:35 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1435   कॉटन अपैरल के आयात के लिए अब अमेरिकी व्यापारी भारत की ओर देखने लगे हैं एवं इस संदर्भ में भारत के निर्यातकों के पास पूछताछ की मात्रा में वृद्धि…

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कॉटन अपैरल के आयात के लिए अब अमेरिकी व्यापारी भारत की ओर देखने लगे हैं एवं इस संदर्भ में भारत के निर्यातकों के पास पूछताछ की मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। इन परिस्थितियों के बीच, टेक्स्टायल उद्योग के साथ ही, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, इंजीयरिंग क्षेत्र एवं श्रम आधारित उद्योग जैसे क्षेत्रों में भी भारत को लाभ हो सकता है।

 

अमेरिका में दिनांक 20 जनवरी 2025 को नव निर्वाचित राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा ली गई शपथ के उपरांत ट्रम्प प्रशासन आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण फैसले बहुत तेज गति से ले रहा है। इससे विश्व के कई देश प्रभावित हो रहे हैं एवं कई देशों को तो यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि अंततः आगे आने वाले समय में इन फैसलों का प्रभाव इन देशों पर किस प्रकार होगा।

ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को बढ़ा रहा है क्योंकि इन देशों द्वारा अमेरिका से आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है।

अमेरिका में उपभोक्ता आधारित उत्पादों का आयात अधिक मात्रा में होता है और अब अमेरिका चाहता है कि इन उत्पादों का उत्पादन अमेरिका में ही प्रारम्भ हो ताकि इन उत्पादों का अमेरिका में आयात कम हो सके। दक्षिण कोरीया, जापान, कनाडा, मेक्सिको आदि जैसे देशों की अर्थव्यवस्था केवल कुछ क्षेत्रों पर ही टिकी हुई है अतः इन देशों पर अमेरिका में बदल रही नीतियों का अधिक विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। जबकि भारत एक विविध प्रकार की बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था है, अतः भारत को कुछ क्षेत्रों में यदि नुक्सान होगा तो कुछ क्षेत्रों में लाभ भी होने की प्रबल सम्भावना है। संभवत: अमेरिका ने भी अब यह एक तरह से स्वीकार कर लिया है कि भारत के कृषि क्षेत्र को टैरिफ युद्ध से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि भारत के किसानों पर इसका प्रभाव विपरीत रूप से पड़ता है। और, भारत यह किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगा कि भारत के किसानों को नुक्सान हो। डेरी उत्पाद एवं समुद्रीय उत्पादों में भी आवश्यक खाने पीने की वस्तुएं शामिल हैं।

भारत अपने देश में इन उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्देश्य से इन उत्पादों के आयात पर टैरिफ लगाता है, ताकि अन्य देश सस्ते दामों पर इन उत्पादों को भारत के बाजार में डम्प नहीं कर सकें। साथ ही, भारत में मिडल क्लास की मात्रा में वृद्धि अभी हाल के कुछ वर्षों में प्रारम्भ हुई है अतः यह वर्ग देश में उत्पादित सस्ती वस्तुओं पर अधिक निर्भर है, यदि इन्हें आयातित महंगी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती हैं तो वह इन्हें सहन नहीं कर सकता है। अतः यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को सस्ते उत्पाद उपलब्ध करवाए। अन्यथा, यह वर्ग एक बार पुनः गरीबी रेखा के नीचे आ जाएगा। भारत ने मुद्रा स्फीति को भी कूटनीति के आधार पर नियंत्रण में रखने में सफलता प्राप्त की है। रूस, ईरान, अमेरिका, इजराईल, चीन, अरब समूह आदि देशों के साथ अच्छे सम्बंध रखकर विदेशी व्यापार करने में सफलता प्राप्त की है। जहां से भी जो वस्तु सस्ती मिलती है भारत उस देश से उस वस्तु का आयात करता है। इसी नीति पर चलते हुए, कच्चे तेल के आयात के मामले में भी भारत ने विभिन्न देशों से भारी मात्रा में छूट प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है और ईंधन के दाम भारत में पिछले लम्बे समय से स्थिर बनाए रखने में सफलता मिली है।

अमेरिका द्वारा चीन, कनाडा एवं मेक्सिको पर लगाए गए टैरिफ के बढ़ाने के पश्चात इन देशों द्वारा भी अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर टैरिफ लगा दिए जाने के उपरांत अब विभिन्न देशों के बीच व्यापार युद्ध एक सच्चाई बनता जा रहा है। परंतु, क्या इसका असर भारत के विदेशी व्यापार पर भी पड़ने जा रहा है अथवा क्या कुछ ऐसे क्षेत्र भी ढूढे जा सकते हैं जिनमें भारत लाभप्रद स्थिति में आ सकता है। जैसे, अपैरल (सिले हुए कपड़े) एवं नान अपैरल टेक्सटायल का मेक्सिको से अमेरिका को निर्यात प्रतिवर्ष लगभग 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहता है और मेक्सिको का अमेरिका को निर्यात के मामले में 8वां स्थान है। अमेरिका द्वारा मेक्सिको से आयात पर टैरिफ लगाए जाने के बाद टेक्सटायल से सम्बंधित उत्पाद अमेरिका में महंगे होने लगेंगे अतः इन उत्पादों का आयात अब अन्य देशों से किया जाएगा। मेक्सिको अमेरिका को 250 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कॉटन अपैरल का निर्यात करता है एवं 150 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नान कॉटन अपैरल का निर्यात करता है। कॉटन अपैरल के आयात के लिए अब अमेरिकी व्यापारी भारत की ओर देखने लगे हैं एवं इस संदर्भ में भारत के निर्यातकों के पास पूछताछ की मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। इन परिस्थितियों के बीच, टेक्स्टायल उद्योग के साथ ही, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, इंजीयरिंग क्षेत्र एवं श्रम आधारित उद्योग जैसे क्षेत्रों में भी भारत को लाभ हो सकता है।

यदि अमेरिका अपने देश में हो रहे उत्पादों के आयात पर टैरिफ में लगातार वृद्धि करता है तो यह उत्पाद अमेरिका में बहुत महंगे हो जाएंगे और इससे अमेरिकी नागरिकों पर मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। क्या अमेरिकी नागरिक इस व्यवस्था को लम्बे समय तक सहन कर पाएंगे। उदाहरण के तौर पर फार्मा क्षेत्र में भारत से जेनेरिक्स दवाईयों का निर्यात भारी मात्रा में होता है। यदि अमेरिका भारत के उत्पादों पर टैरिफ लगाता है तो इससे अधिक नुक्सान तो अमेरिकी नागरिकों को ही होने जा रहा है। भारत से आयात की जा रही सस्ती दवाएं अमेरिका में बहुत महंगी हो जाएंगी। इससे अंततः अमेरिकी नागरिकों के बीच असंतोष फैल सकता है। अतः अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन के लिए टैरिफ को लम्बे समय तक बढ़ाते जाने की अपनी सीमाएं हैं।

अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र एवं सबसे बड़ा विकसित देश है और इस नाते अन्य देशों के प्रति अमेरिका की जवाबदारी भी है। टैरिफ बढ़ाए जाने के सम्बंध में इक तरफा कार्यवाही अमेरिका की अन्य देशों के साथ सौदेबाजी की क्षमता तो बढ़ा सकती है परंतु यह कूटनीति लम्बे समय तक काम नहीं आ सकती है। अमेरिकी नागरिकों के साथ साथ अन्य देशों में भी असंतोष फैलेगा। कोई भी व्यापारी नहीं चाहता कि नीतियों में अस्थिरता बनी रहे। इसका सीधा सीधा असर विश्व के समस्त स्टॉक मार्केट पर विपरीत रूप से पड़ता हुआ दिखाई भी दे रहा है। यदि यह स्टॉक मार्केट के अतिरिक्त अन्य बाजारों एवं नागरिकों के बीच में भी फैला तो मंदी की सम्भावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। अमेरिका के साथ साथ अन्य कई देश भी मंदी की चपेट में आए बिना नहीं रह पाएंगे। अर्थात, इस प्रकार की नीतियों से विश्व के कई देश विपरीत रूप में प्रभावित होंगे।

अमेरिका को भी टैरिफ के संदर्भ में इस बात पर एक बार पुनः विचार करना होगा कि विकसित देशों पर तो टैरिफ लगाया जा सकता है क्योंकि अमेरिका एवं इन विकसित देशों में परिस्थितियां लगभग समान है। परंतु विकासशील देशों जैसे भारत आदि में भिन्न परिस्थितियों के बीच तुलनात्मक रूप से अधिक परेशानियों का सामना करते हुए विनिर्माण क्षेत्र में कार्य हो रहा है, अतः विकसित देशों एवं विकासशील देशों को एक ही तराजू में कैसे तौला जा सकता है। विकासशील देशों ने तो अभी हाल ही में विकास की राह पर चलना शुरू किया है और इन देशों को अपने करोड़ों नागरिकों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है। इनके लिए विकसित देश बनने में अभी लम्बा समय लगना है। अतः विकसित देशों को इन देशों को विशेष दर्जा देकर इनकी आर्थिक मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। अमेरिका को विकसित देश बनने में 100 वर्ष से अधिक का समय लग गया है और फिर विकासशील देशों के साथ इनकी प्रतिस्पर्धा कैसे हो सकती है। विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने का अधिकार है, अतः विकासशील देश तो टैरिफ लगा सकते हैं परंतु विकसित देशों को इस संदर्भ में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

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ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों से कैसे निपटे भारत https://visionviksitbharat.com/how-did-india-deal-with-the-tariff-related-decisions-of-the-trump-administration/ https://visionviksitbharat.com/how-did-india-deal-with-the-tariff-related-decisions-of-the-trump-administration/#respond Sun, 16 Mar 2025 05:04:33 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1410   अमेरिकी बैंकों के बीच किए गए एक सर्वे में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि यदि अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के आयात पर टैरिफ इसी प्रकार बढ़ाते जाते…

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अमेरिकी बैंकों के बीच किए गए एक सर्वे में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि यदि अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के आयात पर टैरिफ इसी प्रकार बढ़ाते जाते रहे तो अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़कर 40 प्रतिशत के ऊपर पहुंच सकती है, जो हाल ही में जे पी मोर्गन द्वारा 31 प्रतिशत एवं गोल्डमैन सैचस 24 प्रतिशत बताई गई थी।

 

ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को लगातार बढ़ाते जाने की घोषणा कर रहा है क्योंकि ट्रम्प प्रशासन के अनुसार इन देशों द्वारा अमेरिका से किए जा रहे विभिन्न उत्पादों के आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है।

भारत ने वर्ष 2024 में अमेरिका को लगभग 74,000 करोड़ रुपए की दवाईयों का निर्यात किया है। 62,000 करोड़ रुपए के टेलिकॉम उपकरणों का निर्यात क्या है, 48,000 करोड़ रुपए के पर्ल एवं प्रेशस स्टोन का निर्यात किया है, 37,000 करोड़ रुपए के पेट्रोलीयम उत्पादों का निर्यात किया है, 30,000 करोड़ रुपए के स्वर्ण एवं प्रेशस मेटल का निर्यात किया है, 26,000 करोड़ रुपए की कपास का निर्यात किया है, 25,000 करोड़ रुपए के इस्पात एवं अल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात किया है, 23,000 करोड़ रुपए सूती कपड़े का निर्यात का किया है, 23,000 करोड़ रुपए की इलेक्ट्रिकल मशीनरी का निर्यात किया है एवं 22,000 करोड़ रुपए के समुद्रीय उत्पादों का निर्यात किया है। इस प्रकार, विदेशी व्यापार के मामले में अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा साझीदार है।

अमेरिका अपने देश में विभिन्न वस्तुओं के आयात पर टैरिफ लगा रहा है क्योंकि अमेरिका को ट्रम्प प्रशासन एक बार पुनः वैभवशाली बनाना चाहते हैं परंतु इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है। अमेरिकी बैंकों के बीच किए गए एक सर्वे में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि यदि अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के आयात पर टैरिफ इसी प्रकार बढ़ाते जाते रहे तो अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़कर 40 प्रतिशत के ऊपर पहुंच सकती है, जो हाल ही में जे पी मोर्गन द्वारा 31 प्रतिशत एवं गोल्डमैन सैचस 24 प्रतिशत बताई गई थी। इसके साथ ही, ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों की घोषणा में भी एकरूपता नहीं है। कभी किसी देश पर टैरिफ बढ़ाने के घोषणा की जा रही है तो कभी इसे वापिस ले लिया जा रहा है, तो कभी इसके लागू किए जाने के समय में परिवर्तन किया जा रहा है, तो कभी इसे लागू करने की अवधि बढ़ा दी जाती है। कुल मिलाकर, अमेरिकी पूंजी बाजार में सधे हुए निर्णय होते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं इससे पूंजी बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों का आत्मविश्वास टूट रहा है। और, अंततः इस सबका असर भारत सहित अन्य देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर पड़ता हुआ भी दिखाई दे रहा है।

हालांकि, ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ को बढ़ाए जाने सम्बंधी लिए जा रहे निर्णयों का भारत के लिए स्वर्णिम अवसर भी बन सकता है। क्योंकि, भारतीय जब भी दबाव में आते हैं तब तब वे अपने लिए बेहतर उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं। इतिहास इसका गवाह है, कोविड महामारी के खंडकाल में भी भारत ने दबाव में कई उपलब्धयां हासिल की थीं। भारत ने कोविड के खंडकाल में 100 से अधिक देशों को कोविड बीमारी से सम्बंधित दवाईयां एवं टीके निर्यात करने में सफलता हासिल की थी।

विदेशी व्यापार के मामले में चीन, कनाडा एवं मेक्सिको अमेरिका के बहुत महत्वपूर्ण भागीदार हैं। वर्ष 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, उक्त तीनों देश लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार प्रतिवर्ष अमेरिका के साथ करते हैं। इसके बावजूद अमेरिका ने उक्त तीनों के साथ व्यापार युद्ध प्रारम्भ कर दिया है। भारत के साथ अमेरिका का केवल 11,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही व्यापार था। अब ट्रम्प प्रशासन की अन्य देशों से यह अपेक्षा है कि वे अमेरिकी उत्पादों के आयात पर टैरिफ कम करे अथवा अमेरिका भी इन देशों से हो रहे विभिन्न उत्पादों पर उसी दर से टैरिफ वसूल करेगा, जिस दर पर ये देश अमेरिका से आयातित उत्पादों पर वसूलते हैं। यह सही है कि भारत अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर अधिक टैरिफ लगाता है क्योंकि भारत अपने किसानों और व्यापारियों को बचाना चाहता है। भारत में कृषि क्षेत्र के उत्पादों पर 25 से 100 प्रतिशत तक आयात कर लगाया जाता है जबकि कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य उत्पादों पर कर की मात्रा बहुत कम हैं। भारत ने विनिर्माण एवं अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ा ली है परंतु कृषि क्षेत्र में अभी भी अपनी उत्पादकता बढ़ाना है। हाल ही के समय में भारत ने कई उत्पादों के आयात पर टैरिफ की दर घटाई भी है।

भारत के साथ दूसरी समस्या यह भी है कि यदि भारत आयातित उत्पादों पर टैरिफ कम करता है तो भारत में इन उत्पादों के आयात बढ़ेंगे और भारत को अधिक अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता पड़ेगी इससे भारतीय रुपये का और अधिक अवमूल्यन होगा तथा भारत में मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। विदेशी निवेश भी कम होने लगेगा और अंततः भारत में बेरोजगारी बढ़ेगी। भारत में सप्लाई चैन पर दबाव भी बढ़ेगा। इन समस्त समस्याओं का हल है कि भारत अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करे। परंतु, अन्य देश चाहते हैं कि द्विपक्षीय समझौतों में कृषि क्षेत्र को भी शामिल किया जाय, इसका रास्ता आपसी चर्चा में निकाला जा सकता है। अमेरिका एवं ब्रिटेन के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौते सम्पन्न करने की चर्चा तेज गति से चल रही है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान यह घोषणा की गई थी कि भारत और अमेरिका के बीच विदेशी व्यापार को 50,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के स्तर पर लाए जाने के प्रयास किए जाएंगे। इस सम्बंध में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर तेजी से काम चल रहा है।

दूसरे, अब भारत को उद्योग एवं कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ानी होगी। हर क्षेत्र में लागत कम करनी होगी ताकि भारत में उत्पादित वस्तुएं विश्व के अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में खाड़ी हो सकें। भारत में रिश्वतखोरी की लागत को भी समाप्त करना होगा। भारत में निचले स्तर पर घूसखोरी की लागत बहुत अधिक है। भूमि, पूंजी, श्रम, संगठन एवं तकनीकि की लागत कम करनी होगी। कुल मिलाकर व्यवहार की लागत को भी कम करना होगा। भारतीय उद्योगों को अन्य देशों के उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धी बनाना ही इस समस्या का हल है ताकि भारतीय उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पाद अन्य देशों के साथ विशेष रूप से गुणवत्ता एवं लागत के मामले में प्रतिस्पर्धा कर सकें। निजी क्षेत्र को लगातार प्रोत्साहन देना होगा ताकि निजी क्षेत्र का निवेश उद्योग के क्षेत्र में बढ़ सके। आज भारत में पूंजीगत खर्चे केवल केंद्र सरकार द्वारा ही बहुत अधिक मात्रा में किए जा रहे हैं। आज देश में हजारों टाटा, बिरला, अडानी एवं अम्बानी चाहिए। केवल कुछ भारतीय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से अब काम चलने वाला नहीं हैं। भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनाने का समय अब आ गया है।

तीसरे, मेक इन इंडिया ट्रम्प के टैरिफ युद्ध का सही जवाब है। आज भारत को सही अर्थों में “आत्मनिर्भर भारत” बनाए जाने की सबसे अधिक आवश्यकता है। भारत के लिए केवल अमेरिका ही विदेशी व्यापार के मामले में सब कुछ नहीं होना चाहिए, भारत को अपने लिए नित नए बाजारों की तलाश भी करनी होगी। एक ही देश पर अत्यधिक निर्भरता उचित नहीं है। स्वदेशी उद्योगों को भी बढ़ावा देना ही होगा।

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अमेरिका ने वैश्विक आर्थिक नीतियों पर लिया यू टर्न https://visionviksitbharat.com/the-united-states-takes-a-u-turn-on-global-economic-policies/ https://visionviksitbharat.com/the-united-states-takes-a-u-turn-on-global-economic-policies/#respond Wed, 12 Mar 2025 04:20:00 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1394   मोर्गन स्टैनली के एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में इस वर्ष विकास दर घटकर 1.5 प्रतिशत के स्तर पर आ सकती है। अमेरिका में धीमी हो रही आर्थिक विकास…

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मोर्गन स्टैनली के एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में इस वर्ष विकास दर घटकर 1.5 प्रतिशत के स्तर पर आ सकती है। अमेरिका में धीमी हो रही आर्थिक विकास की दर के चलते अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बहुत सम्भव है कि, यू एस फेड रेट (ब्याज दर) में कमी की शीघ्र ही घोषणा करे।

 

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत के पूंजी (शेयर) बाजार से अपना निवेश अक्टोबर 2024 माह से लगातार निकाल रहे हैं। फरवरी 2025 माह में भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा 34,574 करोड़ रुपए (397 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक) की राशि का निवेश भारतीय शेयर बाजार से निकाला गया है। वर्ष 2025 में अभी तक 137,000 लाख करोड़ रुपए (1,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर) से अधिक की राशि का निवेश भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा निकाला जा चुका है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से अपना निवेश निकालने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं।

सबसे पहिले तो वित्तीय वर्ष 2024-25 के प्रथम एवं द्वितीय तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर में आई गिरावट एक मुख्य कारण रही इसके बाद सितम्बर 2024 तिमाही में भारतीय कम्पनियों की लाभप्रदता में आई कमी को दूसरे कारण के रूप में देखा गया। परंतु अब तो अमेरिका में नव निर्वाचित राष्ट्रपति श्री ट्रम्प के प्रशासन द्वारा टैरिफ के संदर्भ में की जा रही नित नयी घोषणाओं को भी एक महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है। ट्रम्प प्रशासन ने चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में आयात किए जाने वाले विभिन्न उत्पादों पर टैरिफ की दर को बढ़ा दिया गया है और अब यह घोषणा भी की जा रही है कि भारत सहित विभिन्न देशों द्वारा अमेरिकी उत्पादों के आयात पर लगाए जाने वाले टैरिफ की तरह ही अमेरिका भी इन समस्त देशों से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर 2 अप्रेल 2025 से टैरिफ लगाएगा।

ट्रम्प प्रशासन का तो यहां तक कहना है कि भारत अपने देश में होने वाले कुछ उत्पादों के आयात पर तो 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अब अमेरिका भी भारत से अमेरिका में होने वाले कुछ उत्पादों के आयात पर 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाएगा। इससे बहुत सम्भव है कि भारत के फार्मा क्षेत्र, ऑटोमोबाइल क्षेत्र, इंजीनीयरिंग क्षेत्र एवं सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव पड़े।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारत के शेयर बाजार में किये गए निवेश का पोर्टफोलियो लगभग 20 प्रतिशत गिर गया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को यह आभास हो रहा है कि इसमें अभी और गिरावट आ सकती है अतः विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना निवेश अभी भी लगातार निकाल रहे है। दूसरे, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को भारतीय बाजार तुलनात्मक रूप से महंगे लग रहे हैं क्योंकि चीन एवं कुछ अन्य देशों की कम्पनियों के शेयर इन देशों के शेयर बाजार में सस्ते में उपलब्ध हैं। अमेरिका में बांड यील्ड के उच्च स्तर (4.75 प्रतिशत से भी ऊपर) जाने के चलते भी अमेरिकी पोर्टफोलियो निवेशक भारत से अपना निवेश निकाल कर चीन, अमेरिका एवं अन्य इमर्जिंग बाजारों में निवेश कर रहे हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत होते जाने से भारतीय रुपए पर लगातार दबाव बना हुआ है एवं भारतीय रुपए का अवमूल्यन हुआ है। हाल ही के समय में एक अमेरिकी डॉलर का मूल्य भारत के लगभग 88 रुपए के स्तर पर पहुंच गया है, इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की भारत के शेयर बाजार में होने वाली आय भी कम हुई है एवं उनकी लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।

सितम्बर 2024 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारतीय कम्पनियों में किए गए निवेश का पोर्टफोलियो 40,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो आज गिरकर 30,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा गया है। इसमें 25 प्रतिशत की भारी भरकम गिरावट दर्ज की गई है। 2 अप्रेल 2025 से ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत पर रेसिपरोकल टैरिफ लगाए जाने की घोषणा के चलते अभी भी भारतीय पूंजी बाजार पर लगातार दबाव बना रह सकता है। हालांकि, इसी समय में भारतीय संस्थागत निवेशक एवं खुदरा (रीटेल) निवेशक भारतीय कम्पनियों के शेयरों में भारी मात्रा में निवेश कर रहे हैं इसीलिए भारतीय शेयर बाजार बहुत अधिक नहीं गिरा है। परंतु फिर भी, भारतीय शेयर बाजार में माहौल तो बिगड़ ही रहा है।

अभी तक तो विकसित देशों द्वारा वैश्वीकरण की नीतियों के आधार पर अपनी आर्थिक नीतियां बनाई जा रही थीं एवं विश्व के अन्य विकासशील देशों पर यह दबाव बनाया जा रहा था कि वे भी इन नीतियों का अनुपालन करते हुए विश्व के विकसित देशों के लिए विकासशील देश अपने द्वार खोलें ताकि इन देशों के संस्थागत निवेशक विकासशील देशों के पूंजी बाजार में अपना निवेश बढ़ा सकें। जबकि आज, विशेष रूप से अमेरिका, वैश्वीकरण की नीतियों को धत्ता बताते हुए केवल अपने देश को प्रथम स्थान पर रखकर वैश्वीकरण की नीतियों के संदर्भ में यू टर्न लेता हुआ दिखाई दे रहा है। किसी भी देश के लिए टैरिफ को अंधाधुंध बढ़ाना दुधारी तलवार की तरह है। जिस भी देश में भारी मात्रा में टैरिफ बढ़ाए जा रहे हैं उस देश के नागरिकों पर निश्चित रूप से इन उत्पादों के महंगे होने के चलते भारी बोझ पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। क्योंकि, टैरिफ बढ़ाए जाने वाले देश में आयात की जा रही वस्तुओं के महंगे होने का खतरा बढ़ता है जिससे उस देश में मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि होती है और आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़ती जाती है।

अमेरिका की देखा देखी अब रूस ने भी चीन से आयात किए जा रहे चारपहिया वाहनों पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है। चीन ने, आज रूस के 3/4 ऑटोमोबाइल बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है। चीन ने हालांकि रूस में चार पहिया वाहनों के निर्यात के मामले में पश्चिमी देशों को झटका देते हुए अपना निर्यात रूस में बढ़ाया है। शुरू शुरू में तो रूस को यह सब अच्छा लगा परंतु अब उसे महसूस हो रहा है कि किसी भी उत्पाद के आयात के मामले में केवल एक देश पर निर्भरता उचित नहीं है। अतः अब रूस ने चीन से आयात किए जाने वाले चारपहिया वाहनों पर टैरिफ लगाना प्रारम्भ कर दिया है। साथ ही, रूस अब अपने देश में ही चारपहिया वाहनों का उत्पादन करने वाली विनिर्माण इकाईयों की स्थापना करना चाहता है ताकि रूस में ही रोजगार के नए अवसर निर्मित हो सकें।

टैरिफ युद्ध के चलते अमेरिका में भी आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ता जा रहा है। हालांकि इसकी सम्भावना वर्ष 2024 में भी की जा रही है। जे पी मोर्गन ने पूर्व में अपने एक आंकलन में बताया था कि अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना 17 प्रतिशत है जबकि अब अपनी एक नई रिसर्च के आधार पर एक आंकलन में बताया है कि अमेरिकी में आर्थिक मंदी की सम्भावना 31 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसी प्रकार गोल्डमैन सैचस ने भी पूर्व में अमेरिका में आर्थिक मंदी की 14 प्रतिशत की सम्भावना व्यक्त की थी जो अब बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई है। अमेरिका अपने देश में विभिन्न वस्तुओं के आयात पर टैरिफ लगा रहा है क्योंकि अमेरिका को ट्रम्प प्रशासन एक बार पुनः वैभवशाली बनाना चाहते हैं परंतु इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है। अमेरिकी शेयर बाजार नसदक पिछले माह के दौरान 7 प्रतिशत से अधिक नीचे आया है, डाउ जोनस 4 प्रतिशत के आसपास नीचे आया है एवं एसएंडपी-500, 5 प्रतिशत के आसपास टूटा है। अमेरिका में जनवरी 2025 माह में उपभोक्ता खर्च में 0.2 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए उपभोक्ता खर्च में वृद्धि बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसके साथ ही, ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों की घोषणा में भी एकरूपता नहीं है। कभी किसी देश पर टैरिफ बढ़ाने के घोषणा की जा रही है तो कभी इसे वापिस ले लिया जा रहा है, तो कभी इसके लागू किए जाने के समय में परिवर्तन किया जा रहा है, तो कभी इसे लागू करने की अवधि बढ़ा दी जाती है। कुल मिलाकर, अमेरिकी पूंजी बाजार में सधे हुए निर्णय होते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं इससे पूंजी बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों का आत्मविश्वास टूट रहा है। और, अंततः इस सबका असर भारत सहित अन्य देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर पड़ता हुआ भी दिखाई दे रहा है।

हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का मूलभूत आधार बहुत मजबूत बना हुआ है। अमेरिका में फरवरी 2025 माह में 150,000 रोजगार के नए अवसर निर्मित हुए हैं, यह आर्थिक मंदी का चिन्ह तो नहीं हो सकता है, बल्कि यह तो मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था का संकेत है। हां, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर में कुछ कमी आ सकती है। मोर्गन स्टैनली के एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में इस वर्ष विकास दर घटकर 1.5 प्रतिशत के स्तर पर आ सकती है। अमेरिका में धीमी हो रही आर्थिक विकास की दर के चलते अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बहुत सम्भव है कि, यू एस फेड रेट (ब्याज दर) में कमी की शीघ्र ही घोषणा करे, इससे अमेरिका में बांड यील्ड में कमी आ सकती है एवं अमेरिकी डॉलर पर दबाव बढ़ सकता है, इससे रुपए को मजबूती मिल सकती है एवं अंततः विदेशी पोर्ट फो लियो निवेशक एक बार पुनः वापिस भारत लौट सकते हैं।

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दिनांक 31 जनवरी 2025 को देश की राष्ट्रपति आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने लोक सभा एवं राज्य सभा के संयुक्त अधिवेशन को अपने सम्बोधन में, हाल ही के समय में, भारत में विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त की गई उपलब्धियों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा है कि “भारत की विकास यात्रा के इस अमृतकाल को आज मेरी (केंद्र) सरकार अभूतपूर्व उपलब्धियों के माध्यम से नई ऊर्जा दे रही है। तीसरे कार्यकाल में तीन गुना तेज गति से काम हो रहा है। आज देश बड़े निर्णयों और नीतियों को असाधारण गति से लागू होते देख रहा है। और, इन निर्णयों में देश के गरीब, मध्यम वर्ग, युवा, महिलाओं, किसानों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिली है।” आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए गए उक्त भाषण में अंशों को जोड़कर इस लेख में यह बताने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार भारत में गरीब वर्ग, युवाओं, मातृशक्ति, किसानों, आदि के लिए विभिन्न योजनाएं सफलतापूर्वक चलाई जा रही हैं।

आज आम नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान के साथ साथ स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। समस्त परिवारों को आवास सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना का विस्तार करते हुए तीन करोड़ अतिरिक्त परिवारों को नए घर देने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए 5 लाख 36 हजार करोड़ रुपए की राशि का खर्च किए जाने की योजना है। इसी प्रकार, गांव में गरीबों को उनकी आवासीय भूमि का हक देने के उद्देश्य से स्वामित्व योजना के अंतर्गत अभी तक 2 करोड़ 25 लाख सम्पत्ति कार्ड जारी किए जा चुके हैं। साथ ही, पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत लगभग 11 करोड़ किसानों को पिछले कुछ महीनों में 41,000 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया गया है। जनजातीय समाज के पांच करोड़ नागरिकों के लिए “धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष” अभियान प्रारंभ हुआ है। इसके लिए अस्सी हजार करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया है। आज मध्यम वर्ग को मकान/फ्लैट खरीदने के लिए लोन पर सब्सिडी भी दी जा रही है एवं रेरा जैसा कानून बनाकर मध्यम वर्ग के स्वयं के मकान सम्बंधी सपने को सुरक्षा दी गई है।

देश के नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से आयुषमान भारत योजना चलाई जा रही है। अब इस योजना के अंतर्गत 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 6 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा देने का निर्णय लिया गया है। इन वरिष्ठ नागरिकों को प्रत्येक वर्ष में पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाएगा।

केंद्र सरकार द्वारा आज युवाओं की शिक्षा और उनके लिए रोजगार के नए अवसर तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षा में वित्तीय सहायता देने के लिए पीएम विद्यालक्ष्मी योजना शुरू की गई है। एक करोड़ युवाओं को शीर्ष पांच सौ कंपनियों में इंटर्नशिप के अवसर भी दिये जाएंगे। पेपर लीक की घटनाओं को रोकने और भर्ती में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नया कानून लागू किया गया है।सहकार से समृद्धि की भावना पर चलते हुए सरकार ने ‘त्रिभुवन’ सहकारी यूनिवर्सिटी की स्थापना का प्रस्ताव स्वीकृत किया है।

जब देश के विकास का लाभ अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी मिलने लगता है तभी विकास सार्थक होता है। गरीब को गरिमापूर्ण जीवन मिलने से उसमें जो सशक्तिकरण का भाव पैदा होता है, वो गरीबी से लड़ने में उसकी मदद करता है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत बने 12 करोड़ शौचालय, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क दिए गए 10 करोड़ गैस कनेक्शन, 80 करोड़ जरूरतमंदों को राशन, सौभाग्य योजना, जल जीवन मिशन जैसी अनेक योजनाओं ने गरीब को ये भरोसा दिया है कि वो सम्मान के साथ जी सकते हैं। ऐसे ही प्रयासों की वजह से देश के 25 करोड़ लोग गरीबी को परास्त करके आज अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। इन्होंने नियो मिडिल क्लास का एक ऐसा समूह तैयार किया है, जो भारत की ग्रोथ को नई ऊर्जा से भर रहा है।

उड़ान योजना ने लगभग डेढ़ करोड़ लोगों का हवाई जहाज में उड़ने का सपना पूरा किया है। जन औषधि केंद्र में 80 प्रतिशत रियायती दरों पर मिल रही दवाओं से, देशवासियों के 30 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा बचे हैं। हर विषय की पढ़ाई के लिए सीटों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी का बहुत लाभ मध्यम वर्ग को मिला है।

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के चौथे चरण में पच्चीस हजार बस्तियों को जोड़ने के लिए 70,000 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की हैं। आज जब हमारा देश अटल जी की जन्म शताब्दी का वर्ष मना रहा है, तब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना उनके विजन का पर्याय बनी हुई है। देश में अब 71 वंदे भारत, अमृत भारत और नमो भारत ट्रेन चल रही हैं, जिनमें पिछले छह माह में ही 17 नई वंदे भारत और एक नमो भारत ट्रेन को जोड़ा गया है।

आगे आने वाले समय में देश के आर्थिक विकास में देश की आधी आबादी अर्थात मातृशक्ति के योगदान को बढ़ाना ही होगा। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 91 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों को सशक्त किया जा रहा है। देश की दस करोड़ से भी अधिक महिलाओं को इसके साथ जोड़ा गया है। इन्हें कुल नौ लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि बैंक लिंकेज के माध्यम से वितरित की गई है। केंद्र सरकार ने देश में तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने लक्ष्य निर्धारित किया है। आज एक करोड़ 15 लाख से भी अधिक लखपति दीदी एक गरिमामय जीवन जी रही हैं। इनमें से लगभग 50 लाख लखपति दीदी, बीते 6 महीने में बनी हैं। ये महिलाएं एक उद्यमी के रूप में अपने परिवार की आय में योगदान दे रही हैं। भारत में सभी के लिए बीमा की भावना के साथ कुछ महीने पूर्व ही बीमा सखी अभियान भी शुरू किया गया है। बैंकिंग और डिजी पेमेंट सखियां दूर दराज के इलाकों में लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कृषि सखियां नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दे रही हैं और पशु सखियों के माध्यम से देश का पशुधन मजबूत हो रहा है। आज भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं, पुलिस में भर्ती हो रही हैं और कॉरपोरेट कंपनियों का नेतृत्व भी कर रही हैं। आज बालिकाओं की भर्ती राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूलों में भी प्रारंभ हो गई है। नेशनल डिफेंस अकैडमी में भी महिला कैडेट्स की भर्ती शुरू हो गई है।

पिछले एक दशक में मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी पहल ने युवाओं को रोजगार के अनेक अवसर प्रदान किए हैं। पिछले दो वर्षों में सरकार ने, रिकॉर्ड संख्या में दस लाख स्थायी सरकारी नौकरियां प्रदान की हैं। युवाओं के बेहतर कौशल और नए अवसरों के सृजन के लिए दो लाख करोड़ रुपए का पैकेज केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है। एक करोड़ युवाओं के लिए इंटर्नशिप की व्यवस्था से युवाओं को ग्राउंड पर काम करने का अनुभव प्राप्त होगा। आज भारत में डेढ़ लाख से अधिक स्टार्टअप हैं जो इनोवेशन के स्तंभ के रूप में उभर रहे हैं। एक हजार करोड़ रुपए की लागत से स्पेस सेक्टर में वेंचर कैपिटल फंड की शुरुआत भी की गई है। आज भारत क्यूएस वर्ल्ड फ्यूचर स्किल इंडेक्स 2025 में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। अर्थात, फ्यूचर ऑफ वर्क श्रेणी में AI और डिजिटल तकनीक अपनाने में भारत दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भी भारत की रैंकिंग 76 से सुधर कर 39 हो गई है। यह सब भारतीय युवाओं के भरोसे ही सम्भव हो पा रहा है।

देश में आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से विद्यार्थियों के लिए आधुनिक शिक्षा व्यवस्था तैयार की जा रही है। कोई भी शिक्षा से वंचित ना रहे, इसीलिए मातृभाषा में शिक्षा के अवसर दिये जा रहे हैं। विभिन्न भर्ती परीक्षाएं तेरह भारतीय भाषाओं में आयोजित कर, भाषा संबंधी बाधाओं को भी दूर किया गया है। बच्चों में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए दस हजार से अधिक स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब्स खोली गई हैं। “ईज ऑफ डूइंग रिसर्च” के लिए हाल ही में वन नेशन-वन सब्सक्रिप्शन स्कीम लायी गई है। इससे अंतरराष्ट्रीय शोध की सामग्री निशुल्क उपलब्ध हो सकेगी। पिछले एक दशक में भारत में उच्च शिक्षण संस्थाओं की संख्या बढ़ी है। इनकी गुणवत्ता में भी व्यापक सुधार हुआ है। क्यूएस विश्व यूनिवर्सिटी – एशिया रैंकिंग में भारत के 163 विश्वविद्यालय शामिल हुए हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के नये कैंपस का शुभारंभ कर शिक्षा में, भारत का पुराना गौरव वापस लाया गया है।

विकसित भारत के निर्माण में किसान, जवान और विज्ञान के साथ ही अनुसंधान का बहुत बड़ा महत्व है। भारत को भारत को ग्लोबल इनोवेशन पावरहाउस बनाने के लक्ष्य निर्धारित किया गया है। देश के शिक्षण संस्थाओं में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए पचास हजार करोड़ रुपए की लागत से अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउन्डेशन स्थापित किया गया है। 10,000 करोड़ रुपए की लागत से “विज्ञानधारा योजना” के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है। आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत के योगदान को आगे बढ़ाते हुए “इंडिया ए आई मिशन” प्रारम्भ किया गया है। राष्ट्रीय क्वांटम मिशन से भारत, इस फ्रंटियर टेक्नॉलाजी में दुनिया के अग्रणी देशों की पंक्ति में स्थान बना सकेगा। देश में “बायो – मैन्यूफैक्चरिंग” को बढ़ावा देने के उद्देश्य से BioE3 Policy लायी गई है। यह पॉलिसी भविष्य की औद्योगिक क्रांति का सूत्रधार होगी। बायो इकॉनामी का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग करना है जिससे पर्यावरण को संरक्षित करते हुए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

भारत के छोटे व्यापारी गांव से लेकर शहरों तक, हर जगह आर्थिक प्रगति को गति देते हैं। केंद्र सरकार छोटे उद्यमियों को अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानते हुए उन्हें स्वरोजगार के नए अवसर दे रही है। MSME के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम और ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब्स सभी प्रकार के उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। मुद्रा ऋण की सीमा को दस लाख रुपए से बढ़ाकर बीस लाख रुपए करने का लाभ करोड़ों छोटे उद्यमियों को हुआ है। केंद्र सरकार ने क्रेडिट एक्सेस को आसान बनाया है। इससे वित्तीय सेवाओं को लोकतांत्रिक बनाया जा सका है। आज लोन, क्रेडिट कार्ड, बीमा जैसे प्रोडक्ट, सबके लिए आसानी से सुलभ हो रहे हैं। दशकों तक भारत के रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाकर आजीविका चलाने वाले भाई-बहन बैंकिंग व्यवस्था से बाहर रहे। आज उन्हें पीएम स्वनिधि योजना का लाभ मिल रहा है। डिजिटल ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड के आधार पर उनको बिजनेस बढ़ाने के लिए और लोन मिलता है। ओएनडीसी की व्यवस्था ने डिजिटल कॉमर्स यानी ऑनलाइन शॉपिंग की व्यवस्था को समावेशी बनाया है। आज देश में छोटे बिजनेस को भी आगे बढ़ने का समान अवसर मिल रहा है।

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रेपो दर में कमी के साथ ही भारत में ब्याज दरों के नीचे जाने का चक्र प्रारम्भ https://visionviksitbharat.com/with-the-reduction-in-the-repo-rate-the-cycle-of-declining-interest-rates-has-begun-in-india/ https://visionviksitbharat.com/with-the-reduction-in-the-repo-rate-the-cycle-of-declining-interest-rates-has-begun-in-india/#respond Mon, 10 Feb 2025 17:08:34 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1201 भारतीय रिजर्व बैंक के नवनियुक्त अध्यक्ष श्री संजय मल्होत्रा ने अपने कार्यकाल की प्रथम मुद्रानीति दिनांक 7 फरवरी 2025 को घोषित की। अभी तक प्रत्येक दो माह के अंतराल पर…

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भारतीय रिजर्व बैंक के नवनियुक्त अध्यक्ष श्री संजय मल्होत्रा ने अपने कार्यकाल की प्रथम मुद्रानीति दिनांक 7 फरवरी 2025 को घोषित की। अभी तक प्रत्येक दो माह के अंतराल पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा घोषित की गई मुद्रा नीति के माध्यम से लिए गए निर्णयों का देश में मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में रखने में विशेष योगदान रहा है। हालांकि पिछले लगभग 5 वर्षों में रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया है। मई 2020 में अंतिम बार रेपो दर में वृद्धि की घोषणा की गई थी। इसके बाद घोषित की गई 29 मुद्रा नीतियों में रेपो दर को स्थिर रखा गया है और यह अभी भी 6.5 प्रतिशत के स्तर पर कायम है। परंतु,अब फरवरी 2025 माह में घोषित की गई मुद्रा नीति में रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6.50 प्रतिशत से 6.25 प्रतिशत पर लाया गया है।

केंद्र सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को देश में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रण में रखने हेतु मेंडेट दिया गया है और इस मेंडेट पर ध्यान रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में रखने में सफलता भी पाई है। परंतु, वित्तीय वर्ष 2024-25 के प्रथम एवं द्वितीय तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर घटकर 5.2 प्रतिशत एवं 5.4 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गई थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत की रही थी। अतः देश में आर्थिक विकास की दर पर भी अब विशेष ध्यान देने की आवश्यकता प्रतिपादित हो रही थी, इसीलिए भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं में कमी की घोषणा की है। रेपो दर में कमी करने का उक्त निर्णय मुद्रानीति समिति के समस्त सदस्यों ने एकमत से लिया है।

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकलन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2024-45 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 6.4% की रहेगी और वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह बढ़कर 6.7 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगी। इस वर्ष खरीफ की फसल बहुत अच्छे स्तर पर आई है एवं आगे आने वाली रबी की फसल भी ठीक रहेगी क्योंकि मानसून की बारिश अच्छी रही थी और देश के जलाशयों में, क्षमता के अनुसार, पर्याप्त पानी इन जलाशयों में उपलब्ध है, जिसे कृषि सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा रहा है और जो अंततः कृषि की पैदावार को बढ़ाने में सहायक होगा। इससे ग्रामीण इलाकों में उत्पादों की मांग में वृद्धि देखी गई है। हालांकि शहरी इलाकों में उत्पादों की मांग में अभी भी सुधार दिखाई नहीं दिया है। परंतु हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा मध्यमवर्गीय करदाताओं को आय कर में दी गई जबरदस्त छूट के चलते आगे आने वाले समय में शहरी क्षेत्रों में भी उत्पादों की मांग में वृद्धि दर्ज होगी और विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत औद्योगिक इकाईयों की उत्पादन वृद्धि दर तेज होगी।

सेवा क्षेत्र तो लगातार अच्छा प्रदर्शन कर ही रहा है। प्रयागराज में आयोजित महाकुम्भ मेले में धार्मिक पर्यटन के चलते देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त योगदान होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार, भारत की आर्थिक विकास दर के वित्तीय वर्ष 2023-24 में लगभग 7 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 में लगभग 8 प्रतिशत रहने के प्रबल सम्भावना बनती है। भारतीय रिजर्व बैंक का आंकलन उक्त संदर्भ में कम ही कहा जाना चाहिए।

इसी प्रकार मुद्रा स्फीति के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 4.8 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में घटकर 4.2 प्रतिशत रह सकती है। भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों के महंगे होने के चलते ही बढ़ती है, जिसे ब्याज दरों को बढ़ाकर नियंत्रण में नहीं लाया जा सकता है। हेडलाइन मुद्रा स्फीति की दर अक्टूबर 2024 में अपने उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई थी परंतु उसके बाद से लगातार नीचे ही आती रही है। इसी प्रकार, कोर मुद्रा स्फीति की दर भी लगातार नियंत्रण में बनी रही है। केवल खाद्य पदार्थों में के महंगे होने के चलते उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई पर दबाव जरूर बना रहा है। इस प्रकार महंगाई दर के नियंत्रण में आने से अब भारत में ब्याज दरों में कमी का दौर प्रारम्भ हो गया है।

आगे आने वाले समय में भी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी की घोषणा की जाती रहेगी ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है और दिसम्बर 2025 तक रेपो दर में लगभग 100 आधार बिंदुओं की कमी की जा सकती है और रेपो दर घटकर 5.25 प्रतिशत तक नीचे आ सकती है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि देश में आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर रेपो दर में परिवर्तन के बारे में समय समय पर विचार किया जाएगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने नीति उद्देश्य को भी निष्पक्ष रखा है परंतु चूंकि ब्याज दरों में अब कमी करने का चक्र प्रारम्भ हो चुका है अतः इसे उदार रखा जा सकता था। इसका आश्य यह है कि आगे आने वाले समय में भी रेपो दर में कमी की सम्भावना बनी रहेगी।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में की गई कमी की घोषणा के बाद अब विभिन्न बैकों को ऋणराशि पर ब्याज दरों को कम करते हुए ऋणदाताओं को लाभ पहुंचाने के बारे में शीघ्रता से विचार करना चाहिए जिससे आम नागरिकों द्वारा बैकों को अदा की जाने वाली किश्तों एवं ब्याज राशि में कुछ राहत महसूस हो सके। इससे अर्थव्यवस्था में भी कुछ गति आने की सम्भावना बढ़ेगी।

दिसम्बर 2024 माह में देश में तरलता में कुछ कमी महसूस की जा रही थी और बैकों के पास ऋण प्रदान करने योग्य फंड्ज की कमी महसूस की जा रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने तुरंत निर्णय लेते हुए आरक्षित नकदी अनुपात (CRR) को 4.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया था, जिससे बैकों की तरलता की स्थिति में कुछ सुधार दृष्टिगोचर हुआ था। बैकों के लिए इसे अधिक सरल बनाने की दृष्टि से जनवरी 2025 में भी भारतीय रिजर्व बैंक ने लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए बांड्ज विभिन्न बैकों से खरीदे थे ताकि इन बैकों की तरलता की स्थिति में और अधिक सुधार किया जा सके और बैकिंग सिस्टम में तरलता की वृद्धि की जा सके। उक्त वर्णित उपायों का परिणाम यह है कि आज भारतीय बैकों का ऋण:जमा अनुपात 80.8 प्रतिशत के स्तर पर बना हुआ है और बैकों की लाभप्रदता में भी लगातार सुधार होता दिखाई दे रहा है। विभिन्न बैकों द्वारा अभी तक घोषित किए गए परिणामों के अनुसार, बैकों ने लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए का लाभ घोषित किया है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जरूर परिस्थितियां अभी भी अस्थिर बनी हुई हैं और वैश्विक स्तर पर रुपए पर दबाव बना हुआ है। अभी हाल ही में डॉलर इंडेक्स 109 के स्तर तक पहुंच गया था और 10 वर्षीय यू एस बांड यील्ड भी 4.75 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, इससे अन्य देशों की मुद्राओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है और आज अमेरिकी डॉलर के मुकाबले में रुपए की कीमत अपने निचले स्तर 87.66 पर पहुंच गई थी। परंतु, आगे आने वाले समय में अमेरिका में भी यदि ब्याज दरों में कमी की घोषणा होती है तो भारत में भी ब्याज दरों में कमी का चक्र और भी तेज हो सकता है। ब्रिटेन एवं कुछ अन्य यूरोपीयन देशों ने भी हाल ही के समय में ब्याज दरों में कमी की घोषणा की है। चूंकि अब कई देशों में मुद्रा स्फीति नियंत्रण में आ चुकी है अतः अब लगभग समस्त देश ब्याज दरों में कमी की घोषणा करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इससे अब आने वाले समय में इन देशों में आर्थिक विकास दर में कुछ तेजी आते हुए भी दिखाई देगी।

अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के चलते अमेरिका के शेयर बाजार में केवल जनवरी 2025 माह में ही 15,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि निवेशकों द्वारा डाली गई है, जबकि भारत के शेयर बाजार से 2.50 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निकाली गई है, इससे भी भारतीय रुपए पर दबाव बना हुआ है। परंतु भारतीय रिजर्व बैंक को शायद आभास है कि यह समस्या अस्थायी है एवं भारतीय कम्पनियों की लाभप्रदता में सुधार होते ही विदेशी संस्थागत निवेशक पुनः भारतीय शेयर बाजार में अपने निवेश को बढ़ाएंगे। अमेरिका एवं चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध का प्रभाव भी भारत पर सकारात्मक रहने की सम्भावना है क्योंकि इससे यदि चीन से अमेरिका को निर्यात कम होते हैं तो सम्भव हैं कि भारत से अमेरिका को निर्यात बढ़ें। भारत से निर्यात बढ़ने पर भारतीय रुपए पर दबाव कम होने लगेगा, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक को भारत में रेपो दर को कम करने में और अधिक आसानी होगी।

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वित्तीय वर्ष 2025-26 का मध्यमवर्ग हितकारी समग्र विकास का बजट https://visionviksitbharat.com/the-budget-for-the-financial-year-2025-26-for-holistic-development-pro-middle-class/ https://visionviksitbharat.com/the-budget-for-the-financial-year-2025-26-for-holistic-development-pro-middle-class/#respond Sat, 01 Feb 2025 19:38:15 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1034   केंद्र सरकार के उपक्रमों एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियों से अपेक्षा की गई है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में ये संस्थान भी अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करें ताकि…

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केंद्र सरकार के उपक्रमों एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियों से अपेक्षा की गई है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में ये संस्थान भी अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करें ताकि उनके द्वारा किए गए पूंजीगत खर्चों की राशि को मिलाकर कुल पूंजीगत खर्च को 15 लाख करोड़ रुपए से ऊपर ले जाया जाए।

 

दिनांक 1 फरवरी 2025 को केंद्र सरकार की वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए लोकसभा में बजट पेश किया। श्रीमती सीतारमन ने एक महिला वित्तमंत्री के रूप में लगातार 8वां बजट लोकसभा में पेश कर एक रिकार्ड बनाया है। वित्तमंत्री द्वारा लोक सभा में पेश किया गया बजट अपने आप में पथप्रदर्शक, अग्रणी एवं अतुलनीय बजट कहा जा रहा है क्योंकि इस बजट के माध्यम से किसानों, युवाओं, महिलाओं, गरीब वर्ग एवं मध्यम वर्ग का विशेष ध्यान रखा गया है।

पिछले कुछ समय से देश की अर्थव्यस्था में विकास की गति कुछ धीमी पड़ती हुई दिखाई दे रही थी अतः विशेष रूप से मध्यम वर्ग एवं गरीब वर्ग के हाथों में अधिक धनराशि शेष बच सके ताकि वे विभिन्न उत्पादों को खरीदकर अर्थव्यवस्था में इनकी मांग बढ़ा सकें, ऐसा प्रयास इस बजट के माध्यम से किया गया है। साथ ही, भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से रोजगार उन्मुख क्षेत्रों यथा कृषि क्षेत्र, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग, निवेश, निर्यात एवं समावेशी विकास जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि इन्हें विकास के इंजिन के रूप में विकसित किया जा सके।

मध्यमवर्ग पर फोकस

भारत में मध्यमवर्गीय परिवार देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता आया हैं। हाल ही के समय में प्रत्यक्ष कर संग्रहण में व्यक्तिगत आयकर की भागीदारी कारपोरेट क्षेत्र से आयकर की भागीदारी से भी अधिक हो गई है। अतः मोदी सरकार से अब यह अपेक्षा की जा रही थी कि मध्यमवर्गीय परिवारों को बजट के माध्यम से कुछ राहत दी जाय। और फिर, मुद्रा स्फीति की सबसे अधिक मार भी गरीब वर्ग के परिवारों एवं मध्यमवर्गीय परिवारों पर ही पड़ती दिखाई देती है। केंद्रीय वित्तमंत्री ने मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से आयकर की वर्तमान सीमा को 7 लाख रुपए से बढ़ाकर 12 लाख रुपए कर दिया है। अर्थात अब 12 लाख रुपए तक की आय अर्जित करने वाले नागरिकों पर किसी भी प्रकार का आयकर नहीं लगेगा। वेतन एवं पेंशन पाने वाले नागरिकों को 75,000 रुपए की स्टैंडर्ड कटौती की राहत इसके अतिरिक्त प्राप्त होगी।

इस वर्ग के करदाताओं को 12.75 लाख रुपए तक की वार्षिक आय पर कोई आयकर नहीं चुकाना होगा। इसके साथ ही, आय कर की दरों में भी परिवर्तन किया गया है। अब 4 लाख रुपए तक की करयोग्य आय पर आयकर की दर शून्य रहेगी। 4 लाख रुपए से 8 लाख रुपए तक की करयोग्य आय पर आयकर की दर 5 प्रतिशत, 8 लाख रुपए से 12 लाख रुपए तक की कर योग्य आय पर आयकर की दर 10 प्रतिशत, 12 लाख रुपए से 16 लाख रुपए तक की कर योग्य आय पर आयकर की दर 15 प्रतिशत, 16 लाख रुपए से 20 लाख रुपए तक की कर योग्य आय पर आयकर की दर 20 प्रतिशत, 20 लाख रुपए से 24 लाख रुपए तक की कर योग्य आय पर आयकर 25 प्रतिशत एवं 24 लाख रुपए से अधिक की कर योग्य आय पर 30 प्रतिशत की दर से आयकर लागू होगा। मध्यमवर्गीय करदाताओं को उक्त सुधारों से लगभग 80,000 रुपए से 1.10 लाख रुपए तक की राशि की बचत होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

एक लाख करोड़ रुपए की सहायता

इस सुधार से कुल मिलाकर देश के बजट में एक लाख करोड़ रुपए की राशि कम प्राप्त होगी अर्थात मध्यमवर्गीय परिवारों को कुल एक लाख करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि का लाभ होगा। और, यह लाभ लगभग 2 करोड़ करदाताओं को होने की सम्भावना है। इससे देश के मध्यमवर्गीय एवं गरीब परिवारों के हाथों अतिरिक्त राशि उपलब्ध होगी जिसे वे विभिन्न उत्पादों की खरीद पर खर्च करेंगे और देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में सहायक होंगे। मध्यमवर्गीय एवं गरीब परिवारों ने जितना सोचा था शायद उससे भी कहीं अधिक राहत उन्हें इस बजट के मध्यम से दी गई है। इसीलिए ही, इस बजट को अग्रणी, पथप्रदर्शक एवं अतुलनीय बजट की संज्ञा दी जा रही है।

मध्यमवर्गीय एवं गरीब परिवारों को, आयकर में छूट देकर, दी गई राहत देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि इससे बजटीय घाटा में वृद्धि नहीं हो। वित्तीय वर्ष 2024-25 में बजटीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.9 प्रतिशत रहने की सम्भावना पूर्व में की गई थी, परंतु अब संशोधित अनुमान के अनुसार यह बजटीय घाटा कम होकर 4.8 प्रतिशत रहने की सम्भावना है। साथ ही, वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए बजटीय घाटा 4.4 रहने का अनुमान लगाया गया है। अतः देश की वित्तीय व्यवस्था पर किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ने जा रहा है। हां, पूंजीगत खर्चों में जरूर कुछ कमी रही है और वित्तीय वर्ष 2024-25 में 11.11 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च के अनुमान के विरुद्ध 10.18 लाख करोड़ रुपए का पूंजीगत खर्च होने की सम्भावना व्यक्त की गई है।

सरकारी उपक्रमों एवं निजी क्षेत्र से अपेक्षा

हालांकि वित्तीय वर्ष 2025-26 में 11.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च की व्यवस्था बजट में की गई है। इस राशि को 11.11 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 15 लाख करोड़ रुपए किया जाना चाहिए था क्योंकि पूंजीगत खर्च में वृद्धि से देश में आर्थिक विकास की दर तेज होती है और रोजगार के नए अवसर निर्मित होते हैं। इस संदर्भ में एक रास्ता यह निकाला गया है कि केंद्र सरकार के उपक्रमों एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियों से अपेक्षा की गई है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में ये संस्थान भी अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करें ताकि उनके द्वारा किए गए पूंजीगत खर्चों की राशि को मिलाकर कुल पूंजीगत खर्च को 15 लाख करोड़ रुपए से ऊपर ले जाया जाए।

भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से राज्यों के साथ मिलकर कृषि धन धान्य योजना को 100 जिलों में प्रारम्भ किया जा रहा है, इस योजना के माध्यम से इन जिलों में ली जा रही फसलों की उत्पादकता में वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। दलहन के उत्पादन में आत्म निर्भरता प्राप्त करने के लिए 6 वर्षीय मिशन चलाया जाएगा। किसान क्रेडिट कार्ड की ऋण सीमा को 5 लाख तक बढ़ाया जा रहा है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ऋण सीमा को 5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए एवं स्टार्टअप के लिए ऋण की सीमा को 10 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपए किया जा रहा है। लेदर उद्योग में रोजगार के 22 लाख नए अवसर निर्मित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत को खिलौना उत्पादन का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाया जाएगा। यूरिया उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाया जाएगा।

खाद्य तेलों व तलहन में आत्म निर्भरता

आज भारत खाद्य तेलों का भारी मात्रा में आयात करता है अतः तलहन के क्षेत्र में भी आत्म निर्भरता हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।। भारत में निर्मित विभिन्न उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए बाजारों की तलाश करते हुए विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते सम्पन्न किए जा रहे हैं। देश में बीमा क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान की जा रही है। विभिन्न शहरों में आधारभूत संरचना के विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपए का एक विशेष फंड बनाया जा रहा है।

कौशल विकास के अतिरिक्त प्रयास

युवाओं में कौशल विकास के लिए अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही, आगामी 5 वर्षों में देश के मेडिकल कॉलेजों में 75,000 युवाओं को अतिरिक्त दाखिला दिए जाएंगे। इंडियन इन्स्टिटूट आफ टेक्नॉलजी कॉलेजों में टेक्नलाजिकल रीसर्च के लिए 10,000 पी एम स्कालर्शिप प्रदान की जाएंगी एवं नए आईआईटी केंद्रों की स्थापना भी की जाएगी। आरटीफिशियल इंटेलीजेंस सेंटर को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 500 करोड़ रुपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी।

श्री अयोध्या धाम, महाकुम्भ क्षेत्र प्रयागराज, काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी, महाकाल मंदिर उज्जैन की तर्ज पर अन्य धार्मिक स्थलों को भी विकसित किया जाएगा ताकि देश में धार्मिक पर्यटन की गतिविधियों को और अधिक आगे बढ़ाया जा सके। देश में 52 नए पर्यटन केंद्र भी विकसित किए जाने की योजना बनाई गई है तथा भगवान बुध सर्किट भी विकसित किया जाएगा।

 

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आर्थिक सर्वेक्षण 2025 के अनुसार भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है https://visionviksitbharat.com/according-to-the-economic-survey-2025-indias-economic-position-remains-strong/ https://visionviksitbharat.com/according-to-the-economic-survey-2025-indias-economic-position-remains-strong/#respond Fri, 31 Jan 2025 15:59:42 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1031   भारत आगामी 2/3 वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।केंद्र सरकार द्वारा देश की वित्तीय स्थिति को लगातार मजबूत बनाए रखने के प्रयास सफल रहे…

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भारत आगामी 2/3 वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।केंद्र सरकार द्वारा देश की वित्तीय स्थिति को लगातार मजबूत बनाए रखने के प्रयास सफल रहे हैं। केंद्र सरकार के बजट में कुल आय 34.3 लाख करोड़ रुपए एवं कुल व्यय 50.3 लाख करोड़ रुपए रहने की सम्भावना है

 

दिनांक 31 जनवरी 2025 को भारत सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा लोक सभा में देश का आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया गया। स्वतंत्र भारत का पहिला आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 1950-51 में बजट के साथ पेश किया गया था। 1960 के दशक में आर्थिक सर्वेक्षण को बजट से अलग कर दिया गया एवं इसे बजट के एक दिन पूर्व संसद में पेश किया जाने लगा। आर्थिक सर्वेक्षण के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था की समीक्षा की जाती है एवं अर्थव्यवस्था की सम्भावनाओं को देश के सामने लाने का प्रयास किया जाता है। इसे देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग की ओर से तैयार किया जाता है।

भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई

लोक सभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर कुछ देशों में चल रही आर्थिक परेशानियों के चलते भारत के आर्थिक विकास पर भी कुछ विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है, परंतु, चूंकि भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था में मजबूती बनी हुई है अतः वित्तीय वर्ष 2025-26 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 6.3 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच में रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। हाल ही के समय में ग्रामीण इलाकों में उत्पादों की मांग में तेजी दिखाई दी है और कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर बढ़ने की सम्भावना है क्योंकि देश में अच्छे मानसून के चलते रबी की फसल के बहुत अच्छे स्तर पर रहने की सम्भावना है और इससे खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर भी कम होगी, जिससे नागरिकों के हाथ में अन्य उत्पादों को खरीदने के लिए धन की उपलब्धता बढ़ेगी।

आज केवल खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर कुछ अधिक मात्रा में बनी हुई हुई है अन्यथा कोर महंगाई की दर तो पूर्व में ही नियंत्रण में आ चुकी है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के प्रथम अर्द्धवार्षिकी में समग्र महंगाई की दर भी नियंत्रण में आ जाएगी। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटने की सम्भावना भी व्यक्त की गई है। भारत आज अपने कच्चे तेल की कुल मांग का 87 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है। यदि कच्चे तेल की कीमतें कम होंगी तो भारत में महंगाई भी कम होगी।

भूमि, श्रम एवं पूंजी की लागत को कम करने की आवश्यकता

विनिर्माण के क्षेत्र में जरूर कुछ चुनौतियां बनी हुई है एवं कई प्रयास करने के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी बढ़ नहीं पा रही है। विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित करने की क्षमता है। अतः विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भूमि, श्रम एवं पूंजी की लागत को कम करने की आवश्यकता है। इसके लिए आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों को गति देने की आवश्यकता है ताकि इन इकाईयों की उत्पादकता में सुधार हो सके एवं इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत कम हो सके। विनिर्माण क्षेत्र में कार्य कर रही इकाईयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए जाने की आज महती आवश्यकता है।

सेवा क्षेत्र लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा

सेवा क्षेत्र लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है एवं इस क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अतुलनीय बनी हुई है। भारत में वर्तमान में महाकुम्भ मेला चालू है। आज प्रतिदिन एक करोड़ के आसपास श्रद्धालु गंगा स्नान करने के लिए प्रयागराज में पहुंच रहे हैं। रेल्वे द्वारा प्रतिदिन लगभग 3,000 विशेष रेलगाड़ियां चलाई जा रही हैं। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए कुछ आंकड़ों के अनुसार, महाकुम्भ मेले से उत्तरप्रदेश में 2 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यवसाय एवं 25,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय उत्तरप्रदेश सरकार को होने की सम्भावना है। रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। यह समस्त कार्य न केवल धार्मिक पर्यटन, होटल व्यवसाय, छोटे छोटे उत्पादों के निर्माण एवं बिक्री में अतुलनीय वृद्धि दर्ज करने में सहायक हो रहे हैं बल्कि इससे देश के सेवा क्षेत्र में भी विकास दर तेज हो रही है।

मध्यमवर्गीय परिवारों के पास हो अधिक पैसा

किसी भी देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी अधिक होगी उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर अधिक रहेगी क्योंकि विभिन्न उत्पादों को खरीदने के लिए अर्थव्यवस्था में मांग तो इसी वर्ग के माध्यम से उत्पन्न होती है। अतः देश में प्रयास किए जाने चाहिए कि मध्यमवर्गीय परिवारों के हाथ में अधिक राशि उपलब्ध रहे। भारत में हालांकि समावेशी विकास हुआ है क्योंकि गरीबों की संख्या में तेजी से एवं भारी मात्रा में कमी दर्ज हुई है। परंतु, गरीबी रेखा से हाल ही में ऊपर आकर मध्यमवर्गीय परिवारों की श्रेणी शामिल हुए परिवार कहीं फिर से गरीबी रेखा के नीचे नहीं चले जायें, इस सम्बंध में भरसक प्रयास किए जाने चाहिए।

वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में हो रही आर्थिक परेशानियों के चलते भारत निर्मित विभिन्न उत्पादों के निर्यात में उतनी वृद्धि दर्ज नहीं हो पा रही है जितनी आर्थिक विकास की दर को 8 प्रतिशत से ऊपर रखने के लिए होनी चाहिए। इससे विदेशी व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी दृष्टिगोचर हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत पर भी लगातार दबाव बना हुआ है। हालांकि विदेशी निवेश में आ रही कमी को अस्थायी समस्या बताया गया है और विभिन्न देशों में स्थितियों के सुधरने एवं अमेरिका में आर्थिक नीतियों के स्थिर होने के साथ ही, भारत में विदेशी निवेश पुनः बढ़ने लगेगा।

चुनावों से वृद्धि दर बाधित

वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के 6.2 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। वृद्धि दर में गिरावट के मुख्य कारणों में शामिल हैं देश में लोक सभा एवं कुछ राज्यों में विधान सभा चुनाव होने के चलते आचार संहिता लागू की गई थी, इससे केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों को अपने पूंजीगत खर्चों को रोकना पड़ा था। नवम्बर 2024 तक केंद्र सरकार द्वारा केवल 5 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चे किये जा सके हैं, जबकि औसतन 90,000 करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च प्रति माह होने चाहिए थे। क्योंकि, पूंजीगत खर्चों के लिए पूरे वर्ष भर का बजट 11.11 लाख करोड़ रुपए का निर्धारित हुआ था। अब सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में केवल 9 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च ही हो सकते हैं। विभिन्न कम्पनियों द्वारा अदा किए जाने वाले कर में भी कमी दिखाई दी है और कुछ कम्पनियों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।

जिन जिन कम्पनियों की लाभप्रदता बहुत अच्छे स्तर पर बनी हुई है, इन कम्पनियों से अपेक्षा की गई है कि केंद्र सरकार के साथ साथ वे भी अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करें ताकि देश में नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना हो और विभिन्न उत्पादों की आपूर्ति बढ़े, रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हों और महंगाई पर नियंत्रण बना रहे। विशेष रूप से देश में आधारभूत ढांचे को और अधिक मजबूत करने में निजी कम्पनियों द्वारा अपनी भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कमी करने के सम्बंध में भी अब गम्भीरता से विचार करना चाहिए ताकि विनिर्माण इकाईयों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत कम की जा सके और वैसे भी अब मुद्रा स्फीति तो नियंत्रण में आ ही चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में मुद्रा बाजार में 1.5 लाख करोड़ रुपए की राशि से तरलता को बढ़ाया ही है, इससे बैकों द्वारा विभिन्न कम्पनियों, कृषकों एवं व्यापारियों को ऋण प्रदान करने में आसानी होगी।

2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 273 लाख करोड़

आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 273 लाख करोड़ रुपए का रहा है जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 295 लाख करोड़ रुपए का हो गया, अब वित्तीय वर्ष 20224-25 में 324 लाख करोड़ रुपए एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 357 लाख करोड़ रुपए का रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार सम्भव है कि भारत आगामी 2/3 वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसी प्रकार बजट घाटा जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6.4 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2023-24 में 5.6 प्रतिशत का रहा था वह अब वित्तीय वर्ष 2024-25 में घटकर 4.8 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 4.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार केंद्र सरकार द्वारा देश की वित्तीय स्थिति को लगातार मजबूत बनाए रखने के प्रयास सफल रहे हैं। केंद्र सरकार के बजट में कुल आय 34.3 लाख करोड़ रुपए एवं कुल व्यय 50.3 लाख करोड़ रुपए रहने की सम्भावना है, इससे बजट घाटा 16 लाख करोड़ रुपए का रह सकता है।

(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are solely those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of organization. The content is intended for informational purposes only and is based on Author’s personal analysis and perspective.)

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वित्तीय वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट से मिल सकती हैं कई सौगातें https://visionviksitbharat.com/the-union-budget-for-the-financial-year-2025-26-may-bring-several-benefits/ https://visionviksitbharat.com/the-union-budget-for-the-financial-year-2025-26-may-bring-several-benefits/#respond Tue, 28 Jan 2025 15:54:06 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=979   वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम छमाही में आर्थिक विकास दर के कम होने के कारणों में मुख्य रूप से देश में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनाव है और आचार…

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वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम छमाही में आर्थिक विकास दर के कम होने के कारणों में मुख्य रूप से देश में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनाव है और आचार संहिता के लागू होने के चलते केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्चों एवं अन्य खर्चों में भारी भरकम कमी दृष्टिगोचर हुई है।

 

वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली छमाही (अप्रेल-सितम्बर 2024) में भारत की आर्थिक विकास दर कुछ कमजोर रही है। प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2024) में तो सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर गिरकर 5.2 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गई थी। इसी प्रकार द्वितीय तिमाही (जुलाई-सितम्बर 2024) में भी सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। इससे वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह वृद्धि दर घटकर 6.6 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत की रही थी। वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम छमाही में आर्थिक विकास दर के कम होने के कारणों में मुख्य रूप से देश में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनाव है और आचार संहिता के लागू होने के चलते केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्चों एवं अन्य खर्चों में भारी भरकम कमी दृष्टिगोचर हुई है। साथ ही, देश में मानसून की स्थिति भी ठीक नहीं रही है।

मुद्रा स्फीति पर अंकुश

केंद्र सरकार ने हालांकि मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाने में सफलता तो अर्जित कर ली है परंतु उच्च स्तर पर बनी रही मुद्रा स्फीति के कारण कुल मिलाकर आम नागरिकों, विशेष रूप से मध्यमवर्गीय परिवारों, की खर्च करने की क्षमता पर विपरीत प्रभात जरूर पड़ा है और कुछ मध्यमवर्गीय परिवारों के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों की श्रेणी में जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। किसी भी देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की जितनी अधिक संख्या रहती है, उस देश की आर्थिक विकास दर ऊंचे स्तर पर बनी रहती है क्योंकि मध्यमवर्गीय परिवार ही विभिन्न प्रकार के उत्पादों (दोपहिया वाहन, चारपहिया वाहन, फ्रिज, एयर कंडीशनर  जैसे उत्पादों एवं नए फ्लेट्स एवं भवनों आदि) को खरीदने पर अपनी आय के अधिकतम भाग का उपयोग करता है। इससे आर्थिक चक्र में तीव्रता आती है और इन उत्पादों की बाजार में मांग के बढ़ने के चलते इनके उत्पादन को विभिन्न कम्पनियों द्वारा बढ़ाया जाता है, इससे इन कम्पनियों की आय एवं लाभप्रदता में वृद्धि होती है एवं देश में रोजगार के नए अवसर निर्मित होते हैं।

आय कर में छूट की घोषणा

भारत में पिछले कुछ समय से मध्यमवर्गीय परिवारों की व्यय करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है अतः दिनांक 1 फरवरी 2025 को केंद्र सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारामन से अब यह अपेक्षा की जा रही है कि वे वित्तीय वर्ष 2025-26 के केंद्र सरकार के बजट में मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए विशेष रूप से आय कर में छूट की घोषणा करेंगी। देश के कई अर्थशास्त्रियों का तो यह भी कहना है कि न केवल आय कर में बल्कि कारपोरेट कर में भी कमी की घोषणा की जानी चाहिए। इनफोसिस के संस्थापक सदस्यों में शामिल श्री मोहनदास पई का तो कहना है कि 15 लाख से अधिक की आय पर लागू 30 प्रतिशत की आय कर की दर को अब 18 लाख से अधिक की आय पर लागू करना चाहिए। आय कर मुक्त आय की सीमा को वर्तमान में लागू 7.75 लाख रुपए की राशि से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर देना चाहिए। आयकर की धारा 80सी के अंतर्गत किए जाने निवेश की सीमा को भी 1.50 लाख रुपए की राशि से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर देना चाहिए। मकान निर्माण हेतु लिए गए ऋण पर अदा किए जाने वाले ब्याज पर प्रदान की जाने वाली आयकर छूट की सीमा को 2 लाख रुपए से बढ़ाकर 3 लाख रुपए किया जाना चाहिए।

फरवरी 2025 माह में ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मोनेटरी पोलिसी की घोषणा भी होने जा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक से अब यह अपेक्षा की जा रही है कि वे रेपो दर में कम से कम 25 अथवा 50 आधार बिंदुओं की कमी तो अवश्य करेंगे। क्योंकि, पिछले लगातार लगभग 24 माह तक रेपो दर में कोई भी परिवर्तन नहीं करने के चलते मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा मकान निर्माण एवं चार पहिया वाहन आदि खरीदने हेतु बैकों से लिए गए ऋण की किश्त की राशि का बोझ बहुत अधिक बढ़ गया है। बैकों से लिए गए इस प्रकार के ऋणों एवं माइक्रो फाइनैन्स की किश्तों की अदायगी में चूक की घटनाएं भी बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। अब मुद्रा स्फीति की दर खाद्य पदार्थों (फलों एवं सब्जियों आदि) के कुछ महंगे होने के चलते ही उच्च स्तर पर आ जाती है जबकि कोर मुद्रा स्फीति की दर तो अब नियंत्रण में आ चुकी है। खाद्य पदार्थों की मंहगाई को ब्याज दरों को उच्च स्तर पर बनाए रखकर कम नहीं किया जा सकता है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक को अब इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

पूंजीगत खर्चों में कमी

वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनाव के चलते देश में पूंजीगत खर्चों में कमी दिखाई दी है। इसीलिए अब लगातार यह मांग की जा रही है कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन कानून को शीघ्र ही लागू किया जाना चाहिए क्योंकि बार बार देश में चुनाव होने से केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा आचार संहिता के लागू होने के चलते अपने बजटीय खर्चों को रोक दिया जाता है जिससे देश का आर्थिक विकास प्रभावित होता है। अतः वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए लोक सभा में पेश किए जाने वाले बजट में पूंजीगत खर्चों को बढ़ाने पर गम्भीरता दिखाई जाएगी। हालांकि वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में 7.50 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था, वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में 10 लाख करोड़ रुपए एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में 11.11 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था। अब वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए कम से कम 15 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किये जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इससे देश में धीमी पड़ रही आर्थिक गतिविधियों को तेज करने में सहायता मिलेगी और रोजगार के करोड़ों नए अवसर भी निर्मित होंगे, जिसकी वर्तमान समय में देश को अत्यधिक आवश्यकता भी है।

विभिन्न राज्यों द्वारा चलायी जा रही फ्रीबीज की योजनाओं पर भी अब अंकुश लगाए जाने के प्रयास किए जाने चाहिए। इन योजनाओं से देश के आर्थिक विकास को लाभ कम और नुक्सान अधिक होता है। केरल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं दिल्ली की स्थिति हम सबके सामने है। इस प्रकार की योजनाओं को चलाने के कारण इन राज्यों के बजटीय घाटे की स्थिति दयनीय स्थिति में पहुंच गई है। पंजाब तो किसी समय पर देश के सबसे सम्पन्न राज्यों में शामिल हुआ करता था परंतु आज पंजाब में बजटीय घाटा भयावह स्थिति में पहुंच गया है। जिससे ये राज्य आज पूंजीगत खर्चों पर अधिक राशि व्यय नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि इन राज्यों की न तो आय बढ़ रही है और न ही बजटीय घाटे पर नियंत्रण स्थापित हो पा रहा है।

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

पिछले कुछ समय से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी कम हो रहा है। यह सितम्बर 2020 तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का 4.3 प्रतिशत था जो अब गिरकर सकल घरेलू उत्पाद का 0.8 प्रतिशत के स्तर तक नीचे आ गया है।  वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में इस विषय पर भी गम्भीरता से विचार किया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2019 के बजट में कोरपोरेट कर की दरों में कमी की घोषणा की गई थी, जिसका बहुत अच्छा प्रभाव विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर पड़ा था और सितम्बर 2020 में तो यह बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 4.3 प्रतिशत तक पहुंच गया था। अब एक बार पुनः इस बजट में कोरपोरेट कर में कमी करने पर भी विचार किया जा सकता है।

वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित करने वाले उद्योगों को भी कुछ राहत प्रदान की जा सकती है क्योंकि आज देश में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित करने की महती आवश्यकता है। विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को विशेष सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं। हां, साथ में तकनीकी आधारित उद्योगों को भी बढ़ावा देना होगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर भी हमारे उद्योगों को हमें प्रतिस्पर्धी बनाना है। ग्रामीण इलाकों में आज भी भारत की लगभग 60 प्रतिशत आबादी निवास करती है अतः कृषि क्षेत्र एवं ग्रामीण क्षेत्र में कुटीर एवं लघु उद्योगों पर अधिक ध्यान इस बजट के माध्यम से दिया जाएगा, ताकि रोजगार के अवसर ग्रामीण इलाकों में ही निर्मित हों और नागरिकों के शहर की ओर हो रहे पलायन को रोका जा सके।

(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are solely those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of organization. The content is intended for informational purposes only and is based on Author’s personal analysis and perspective.)

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वैश्विक स्तर पर भारतीय रुपए के मान को गिरने से बचाने हेतु कम करना होगा आयात https://visionviksitbharat.com/to-prevent-the-depreciation-of-the-indian-rupee-at-the-global-level-imports-must-be-reduced/ https://visionviksitbharat.com/to-prevent-the-depreciation-of-the-indian-rupee-at-the-global-level-imports-must-be-reduced/#respond Fri, 24 Jan 2025 19:55:52 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=933   एक अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया 86.62 रुपए तक के रिकार्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है, बहुत सम्भव है कि आगे आने वाले समय में यह…

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एक अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया 86.62 रुपए तक के रिकार्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है, बहुत सम्भव है कि आगे आने वाले समय में यह 87 रुपए अथवा 90 रुपए के स्तर को भी पार कर जाय। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की गिरावट के लिए वैश्विक स्तर पर कई कारक जिम्मेदार है परंतु मुख्य रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूत होने के संकेत मिल रहे हैं, जैसे, रोजगार हेतु नई नौकरियों की तो जैसे बहार ही आई हुई है। जनवरी 2025 माह में दिसम्बर 2024 माह के जारी किए के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 256,000 से अधिक नई नौकरियां पैदा हुई हैं जबकि अनुमान लगभग 200,000 नौकरियों का ही था, नवम्बर 2024 माह में 212,000 नौकरियां पैदा हो सकी थीं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती के चलते फेडरल रिजर्व, यूएस फेड रेट में कमी की घोषणा को रोक सकता है एवं अब अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का मत है कि केलेंडर वर्ष 2025 में केवल एक अथवा दो बार ही फेड रेट में कमी की घोषणा हो, क्योंकि, रोजगार के क्षेत्र में मजबूती के चलते बहुत सम्भव है कि मुद्रा स्फीति में कमी लाने में अधिक समय लग सकता है। अमेरिका में बढ़ी हुई ब्याज दर के चलते अमेरिकी डॉलर इंडेक्स एवं अमेरिकी ट्रेजरी बिल पर यील्ड भी मजबूत बनी हुई है इससे अमेरिकी डॉलर लगातार और अधिक मजबूत हो रहा है एवं पूरे विश्व से डॉलर अमेरिका की ओर आकर्षित हो रहा है जबकि इसके विरुद्ध अन्य देशों की मुद्राओं पर स्पष्टत: दबाव दिखाई दे रहा है।

दिनांक 20 जनवरी 2025 को श्री डानल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद बहुत सम्भव है कि अमेरिका में आयात किए जाने वाले कई उत्पादों पर आयात कर की दर बढ़ा दी जाय क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान बार बार इसका जिक्र किया गया है। यदि ऐसे निर्णय अमेरिका में लागू किए जाते हैं तो इससे अमेरिका में मुद्रा स्फीति फैलेगी और यदि ऐसा होता दिखाई देता है तो यू एस फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कमी के स्थान पर वृद्धि की घोषणा भी कर सकता है। इससे अमेरिकी डॉलर में और अधिक मजबूती आएगी और अन्य देशों की मुद्राओं का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक अवमूल्यन होने लगेगा।

दूसरे, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें भी एक बार पुनः बढ़ती हुई दिखाई दे रही है जो 81 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गई हैं। इससे भी भारतीय रुपए पर दबाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत आज भी अपने कच्चे तेल की कुल खपत का 87 प्रतिशत से अधिक तेल का आयात करता है और इस आयातित कच्चे तेल का भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना होता है, जिससे भारत के लिए अमेरिकी डॉलर की मांग भी लगातार बढ़ रही है। बल्कि इससे तो भारत में भी मुद्रा स्फीति के बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो रहा है। पिछले वर्ष भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 13,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च की है।

तीसरे, विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकालने में लगे हुए हैं क्योंकि उन्हें अमेरिका में ब्याज दरों के अच्छे स्तर को देखते हुए अपने निवेश पर अधिक आय की सम्भावना दिखाई दे रही है। विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा 27 सितम्बर 2024 से भारतीय शेयर बाजार में लगातार बिकवाली की जा रही है और दिनांक 17 जनवरी 2025 तक 232,317 करोड़ रुपए की बिकवाली शेयर बाजार में उनके द्वारा की जा चुकी है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक देश की मुद्रा की तुलना में दूसरे देश की मुद्रा की कीमत यदि गिरने लगे तो इसके पीछे सामान्यतः दोनों देशों में मुद्रा स्फीति की दर को जिम्मेदार माना जाता है। जैसे यदि अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष है और भारत में मुद्रा स्फीति की दर 5.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष है तो भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2.5 प्रतिशत से गिरनी चाहिए। इस दृष्टि से अर्थशास्त्र में यह एक सैद्धांतिक कारण माना जाता है और इस सिद्धांत को अपनाकर विदेशी निवेशक उन्हीं देशों में अधिक निवेश करते हैं जहां मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में रहती है।

पूरे विश्व का 88 प्रतिशत विदेशी व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है। जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी डॉलर की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। बाजार में जिस भी उत्पाद की मांग बढ़ेगी और यदि उस उत्पाद की आपूर्ति बाजार में नियंत्रित है तो उस उत्पाद की कीमत भी बाजार में बढ़ेगी। यही हाल अमेरिकी डॉलर का अंतरराष्ट्रीय बाजार में आज हो रहा है। अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ रही है तो अन्य देशों की मुद्राओं की कीमत स्वाभाविक रूप से गिर रही है। साथ ही, 17 जनवरी 2025 को अमेरिकी डॉलर इंडेक्स 109.35 के स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिकी डॉलर इंडेक्स का बढ़ना यानी दुनिया भर में डॉलर की मांग बढ़ रही है। अमेरिका में 10 वर्षीय बांड पर यील्ड भी 4.65 प्रतिशत प्रतिवर्ष से भी आगे निकल गई है।

अन्य देशों की मुद्राओं की बाजार कीमत भारतीय रुपए की तुलना में अधिक तेजी से गिरी है। जनवरी 2024 से लेकर जनवरी 2025 के बीच अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग 10 प्रतिशत मजबूत हुआ है। जबकि गिरने वाली मुद्राओं में भारतीय रुपया 3.5 प्रतिशत, ब्रिटिश पाउंड 3.8 प्रतिशत, यूरो 6.59 प्रतिशत, स्विस फ्रैंक 7.07 प्रतिशत, आस्ट्रेलियन डॉलर 8.09 प्रतिशत, स्वीडिश क्रान 9.5 प्रतिशत, न्यूजीलैंड डॉलर 12.5 प्रतिशत, टरकिश लीरा 18.5 प्रतिशत एवं ब्राजीलियन रीयल 24.74 प्रतिशत तक गिरा है। अब यदि भारतीय रुपए की तुलना अमेरिकी डॉलर को छोड़कर अन्य देशों की मुद्राओं से करें तो भारत की स्थिति मजबूत दिखाई देती है परंतु अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिकतम उपयोग तो अमेरिकी डॉलर का करना होता है। अतः अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर की तुलना में कितना गिरा है, यह तथ्य अधिक महत्वपूर्ण है।

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान श्री डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान लगातार यह घोषणा की जाती रही है कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वे अमेरिका में आयात की जाने वाली अनेक वस्तुओं पर भारी मात्रा में आयात कर लागू कर देंगे जिससे अमेरिका में इन देशों से वस्तुओं के आयात को कम किया जा सके एवं इन वस्तुओं का उत्पादन अमेरिका में ही प्रारम्भ किया जा सके। विशेष रूप से अमेरिका में चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर तो 60 से 100 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगाये जाने की बात की जा रही है। श्री ट्रम्प की इन घोषणाओं का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुआ है एवं विदेशी निवेशक अपनी पूंजी अन्य विकासशील देशों के पूंजी बाजार से निकालकर इस उम्मीद में अमेरिकी पूंजी बाजार में निवेश करने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में अमेरिका एक बार पुनः विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित होगा और उनके निवेश पर अमेरिका में ही उन्हें अधिक आय की प्राप्ति होगी।

हालांकि, ट्रम्प प्रशासन यदि अमेरिका में आयात की जाने वाली वस्तुओं पर भारी मात्रा में आयात कर बढ़ाता है तो शुरुआती दौर में तो इससे अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर और अधिक तेज होगी क्योंकि अमेरिका में इन वस्तुओं की आयातित लागत बढ़ेगी। आज पूरे विश्व में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने वाली सबसे बड़ी कम्पनियों में 73 प्रतिशत अमेरिकन कम्पनियां हैं, इसी प्रकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रही सबसे बड़ी कम्पनियों में 65 प्रतिशत अमेरिकन कम्पनियां हैं। और, इन कम्पनियों द्वारा अन्य विकासशील देशों में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित की हुई हैं। यदि ट्रम्प प्रशासन द्वारा अन्य देशों में इन कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों के आयात पर भारी मात्रा में आयात कर लगाया जाता है तो ये कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों को अमेरिका में स्थापित करेंगी, इससे अन्य देशों के निर्यात प्रभावित होंगे और अमेरिका में अन्य देशों से आयात कम होंगे।

अतः अब भारत को भी विभिन्न क्षेत्रों में अपने आप को आत्म निर्भर बनाना होगा ताकि अन्य देशों से विभिन्न उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम की जा सके। आज भारत में विभिन्न वस्तुओं का भारी मात्रा में आयात हो रहा है, विशेष रूप कच्चे तेल एवं स्वर्ण जैसे पदार्थों का। जबकि, भारत से वस्तुओं के निर्यात की वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम है जिससे चालू खाता घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है और अंततः इससे अमेरिकी डॉलर की मांग हमारे देश में बढ़ रही है और रुपए पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अतः भारत को कच्चे तेल एवं स्वर्ण के आयात में कमी लानी ही होगी ताकि चालू खाता घाटे को कम किया जा सके। साथ ही, अब भारत को अपने यहां मुद्रा स्फीति को भी नियंत्रण में रखना अति आवश्यक है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय बजट में सरकारी घाटे को नियंत्रण में रखना होगा। क्योंकि, अधिक ऋण लेने से सरकार को अपनी आय का एक बड़ा भाग ब्याज के भुगतान के लिए उपयोग करना होता है और इससे देश की विकास दर प्रभावित होती है एवं विदेशी निवेशक अपने निवेश को नियंत्रित करने लगते हैं। भारत में हालांकि केंद्र सरकार द्वारा अपने बजटीय घाटे को लगातार कम करने में सफलता अर्जित की जा रही है। कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार के बजट में यह घाटा 9 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया था परंतु अब यह घटकर 5 प्रतिशत के आसपास आ गया है। परंतु, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार अभी भी यह अधिक है। बजटीय घाटे को कम करने से भारत सरकार को ऋण पर ब्याज के रूप में कम राशि खर्च करनी होगी एवं देश के विकास कार्यों के लिए अधिक राशि उपलब्ध होगी, इससे विदेशी निवेश भी अधिक मात्रा में आकर्षित होगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में मध्यमवर्गीय परिवारों को देनी होगी राहत https://visionviksitbharat.com/relief-must-be-provided-to-middle-class-families-in-the-budget-for-the-financial-year-2025-26/ https://visionviksitbharat.com/relief-must-be-provided-to-middle-class-families-in-the-budget-for-the-financial-year-2025-26/#respond Sat, 11 Jan 2025 17:24:52 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=769 वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच सेवा के क्षेत्र में रोजगार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच इसमें 36 प्रतिशत…

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वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच सेवा के क्षेत्र में रोजगार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच इसमें 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस सबका असर बेरोजगारी की दर में कमी के रूप में देखने में आया है।

 

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में मध्यमवर्गीय परिवारों की प्रमुख भूमिका रहती है। देश में ही निर्मित होने वाले विभिन्न उत्पादों की मांग इन्हीं परिवारों के माध्यम से निर्मित होती है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे परिवार जब मध्यमवर्गीय परिवारों की श्रेणी में शामिल होते हैं तो उन्हें नया स्कूटर, नया फ्रिज, नया एयर कंडिशनर, नया टीवी एवं इसी प्रकार के कई नए पदार्थों (उत्पादों) की आवश्यकता महसूस होती है। साथ ही, नए मकानों की मांग भी मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच से ही निर्मित होती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि जिस देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ती है उस देश का आर्थिक विकास भी उतनी ही तेज गति से आगे बढ़ता है।

भारत में भी हाल ही के वर्षों में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज हुई है। परंतु, मुद्रा स्फीति, कर का बोझ एवं इन परिवारों की आय में वृद्धि दर में आ रही कमी के चलते इन परिवारों की खर्च करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, जिससे कई कम्पनियों का यह आंकलन सामने आया है कि विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की मांग में कमी दृष्टिगोचर हुई है। विशेष रूप से उपभोक्ता वस्तुओं (Fast Moving Consumer Goods – FMCG) के क्षेत्र में उत्पादन करने वाली कम्पनियों का इस संदर्भ में आंकलन बेहद चौंकाने वाला है। साथ ही, वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में इन कम्पनियों द्वारा उत्पादित उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री एवं लाभप्रदता में भी कमी दिखाई दी है।

गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही विभिन्न सहायता योजनाओं का लाभ अब सीधे ही इन परिवारों को पहुंचने लगा है। 80 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रतिमाह मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। किसानों के खातों में सहायता राशि सीधे ही जमा की जा रही है। विभिन्न राज्यों द्वारा लाड़ली लक्ष्मी योजना, लाड़ली बहिना योजना आदि माध्यम से महिलाओं के खातों में सीधे ही राशि जमा की जा रही है। इसके साथ ही इन परिवारों के सदस्यों को रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध होने लगे हैं। जिससे इस श्रेणी के परिवारों में से कई परिवार अब मध्यमवर्गीय श्रेणी के परिवारों में शामिल हो रहे हैं।

केंद्रीय श्रम मंत्री ने हाल ही में भारतीय संसद को बताया है कि देश में पिछले 10 वर्षों में रोजगार उपलब्ध नागरिकों की संख्या 36 प्रतिशत बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 64.33 करोड़ के स्तर पर आ गई है, यह संख्या वर्ष 2014-15 में 47.15 करोड़ के स्तर पर थी। वर्ष 2024 से वर्ष 2014 के बीच, 10 वर्षों में रोजगार में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी अर्थात इस दौरान केवल 2.9 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हो सकीं थी, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के बीच 17.19 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हुई हैं, यह लगभग 6 गुना से अधिक की वृद्धि दर्शाता है। पिछले केवल एक वर्ष अर्थात वित्तीय वर्ष 2023-24 के बीच ही देश में लगभग 4.6 करोड़ नौकरियां सृजित हुई हैं। कृषि क्षेत्र में वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में 16 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच कृषि के क्षेत्र में रोजगार में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई हैं। इसी प्रकार विनिर्माण के क्षेत्र में भी वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में केवल 6 प्रतिशत दर्ज हुई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच विनिर्माण के क्षेत्र में रोजगार में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। सेवा के क्षेत्र में तो और भी अधिक तेज वृद्धि दर्ज हुई है।

वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच सेवा के क्षेत्र में रोजगार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच इसमें 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस सबका असर बेरोजगारी की दर में कमी के रूप में देखने में आया है। देश में बेरोजगारी की दर वर्ष 2017-18 के 6 प्रतिशत से वर्ष 2023-24 में घटकर 3.2 प्रतिशत रह गई है। इसका सीधा असर कामकाजी आबादी अनुपात पर भी पड़ा है जो वर्ष 2017-18 के 46.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 58.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है। सबसे अच्छी स्थिति तो संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे नागरिकों की संख्या में वृद्धि से बनी है। क्योंकि संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे युवाओं को नियोक्ताओं द्वारा कई प्रकार की अतिरिक्त सुविधाएं केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा जारी नियमों के अंतर्गत प्रदान की जाती है। संगठित क्षेत्र में शामिल होने वाले युवाओं (18 से 28 वर्ष के बीच की आयु के) की संख्या में सितम्बर 2017 से सितम्बर 2024 के बीच 4.7 करोड़ की वृद्धि दर्ज हुई है, ये युवा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ई पी एफ ओ) से भी जुड़े हैं।

यदि किसी देश में मुद्रा स्फीति की दर लगातार लम्बे समय तक उच्च स्तर पर बनी रहे एवं नागरिकों की आय में वृद्धि दर मुद्रा स्फीति में हो रही वृद्धि दर से कम रहे तो इसका सीधा असर मध्यमवर्गीय परिवार के बचत एवं खर्च करने की क्षमता पर पड़ता है। यदि मध्यमवर्गीय परिवार के खर्च करने की क्षमता कम होगी तो निश्चित ही बाजार में विभिन्न उत्पादों की मांग भी कम होगी इससे विभिन्न कम्पनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की बिक्री भी कम होगी। यह स्थिति हाल ही के समय में भारत की अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर है। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के प्रयास किए जाएंगे जिससे मुद्रा स्फीति की दर देश में कम बनी रहे एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की आय में वृद्धि हो।

साथ ही, मध्यमवर्गीय परिवारों की आय पर लगाए जाने वाले आय कर में भी कमी की जानी चाहिए। बैकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों पर ब्याज दरों में कमी की घोषणा द्वारा भी मध्यमवर्गीय परिवारों को कुछ हद्द तक राहत पहुंचाई जा सकती है। ऋण पर ब्याज दरों में कमी करने से मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा ऋण खातों में जमा की जाने वाली मासिक किस्त की राशि में कमी होती है और उनकी खर्च करने की क्षमता में कुछ हद्द तक सुधार होता है। मध्यमवर्गीय परिवारों के हित में यदि उक्त उपाय नहीं किया जाते हैं तो बहुत सम्भव है कि यह मध्यमवर्गीय परिवार एक बार पुनः कहीं गरीबी रेखा के नीचे नहीं खिसक जाय। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट के माध्यम से मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए।

 

(The views expressed are the author’s own and do not necessarily reflect the position of the organisation)

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प्रयागराज महाकुम्भ मेले का आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व https://visionviksitbharat.com/mahakumbh-social-and-dharmic-importance/ https://visionviksitbharat.com/mahakumbh-social-and-dharmic-importance/#respond Sat, 11 Jan 2025 06:53:00 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=765   2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेले में दुनिया भर से 15 करोड़ पर्यटक आए थे। यह संख्या 100 देशों की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। यह वास्तव…

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2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेले में दुनिया भर से 15 करोड़ पर्यटक आए थे। यह संख्या 100 देशों की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। यह वास्तव में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में सूचीबद्ध है।

 

हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार कुंभ मेला एक धार्मिक महाआयोजन है जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत में चार स्थानों पर फैला हुआ है और मेला स्थल चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थस्थलों में से एक के बीच घूमता रहता है, यथा,

  • (1) हरिद्वार, उत्तराखंड में, गंगा के तट पर;
  • (2) मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर;
  • (3) नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी के तट पर; एवं
  • (4) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।

प्रत्येक स्थल का उत्सव, सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थितियों के एक अलग सेट पर आधारित है। उत्सव ठीक उसी समय होता है जब ये स्थितियां पूरी तरह से व्याप्त होती हैं, क्योंकि इसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र समय माना जाता है। कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है जो आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है, जिससे यह ज्ञान में बेहद समृद्ध हो जाता है।

कुम्भ मूल शब्द कुम्भक (अमृत का पवित्र घड़ा) से आया है। ऋग्वेद में कुम्भ और उससे जुड़े स्नान अष्ठान का उल्लेख है। इसमें इस अवधि के दौरान संगम में स्नान करने से लाभ, नकारात्मक प्रभावों के उन्मूलन तथा मन और आत्मा के कायाकल्प की बात कही गई है। अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी कुम्भ के लिए प्रार्थना लिखी गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन से निकले अमृत के पवित्र घड़े (कुम्भ) को लेकर युद्ध हुआ। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर कुम्भ को लालची राक्षसों के चंगुल से छुड़ाया था। जब वह इस स्वर्ग की ओर लेकर भागे तो अमृत की कुछ बूंदे चार पवित्र स्थलों पर गिरीं जिन्हें हम आज हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज के नाम से जानते हैं। इन्हीं चार स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष पर बारी बारी से कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।

कुम्भ मेला दुनिया में कहीं भी होने वाला सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और आस्था का सामूहिक आयोजन है। लगभग 45 दिनों तक चलने वाले इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और रहस्यमयी सरस्वती के पवित्र संगम पर स्नान करने के लिए आते हैं। मुख्य रूप से इस समागन में तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं। कुंभ मेले में सभी धर्मों के लोग आते हैं, जिनमें साधु और नागा साधु शामिल हैं, जो साधना करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग का अनुसरण करते हैं, संन्यासी जो अपना एकांतवास छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं, अध्यात्म के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग भी शामिल हैं। कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस, जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है, ‘शाही स्नान’ के दौरान चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में, तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लाखों तीर्थयात्रियों को कुंभ मेले में भाग लेने के लिए आकर्षित करती हैं।

महाकुंभ मेला 2025 प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित होने जा रहा है। यह एक हिंदू त्यौहार है, जो मानवता का एक स्थान पर एकत्र होना भी है। 2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेले में दुनिया भर से 15 करोड़ पर्यटक आए थे। यह संख्या 100 देशों की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। यह वास्तव में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में सूचीबद्ध है।

कुंभ मेला कई शताब्दियों से मनाया जाता है। प्रयागराज कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख वर्ष 1600 ई. में मिलता है और अन्य स्थानों पर, कुंभ मेला 14वीं शताब्दी की शुरुआत में आयोजित किया गया था। कुंभ मेला बेहद पवित्र और धार्मिक मेला है और भारत के साधुओं और संतों के लिए विशेष महत्व रखता है। वे वास्तव में पवित्र नदी के जल में स्नान करने वाले पहले व्यक्ति होते हैं। अन्य लोग इन साधुओं के शाही स्नान के बाद ही नदी में स्नान कर सकते हैं। वे अखाड़ों से संबंधित हैं और कुंभ मेले के दौरान बड़ी संख्या में आते हैं। घाटों की ओर जाते समय जब वे भजन, प्रार्थना और मंत्र गाते हैं, तो उनका जुलूस देखने लायक होता है।

कुंभ मेला प्रयागराज 2025 पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होता है, जो 13 जनवरी 2025 को है और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। यह पर्यटकों के लिए भी जीवन में एक बार आने वाला अनुभव है। टेंट और कैंप में रहना आपको एक गर्मजोशी भरा एहसास देता है और रात में तारों से भरे आसमान को देखना अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। कुंभ मेले में सत्संग, प्रार्थना, आध्यात्मिक व्याख्यान, लंगर भोजन का आनंद सभी उठा सकते हैं। महाकुंभ मेला 2025 में गंगा नदी में पवित्र स्नान, नागा साधु और उनके अखाड़े से मिलें। बेशक, यह कुंभ मेले का नंबर एक आकर्षण है। कुंभ मेले के दौरान अन्य आकर्षण प्रयागराज में घूमने लायक जगहें हैं जैसे संगम, हनुमान मंदिर, प्रयागराज किला, अक्षयवट और कई अन्य। वाराणसी भी प्रयागराज के करीब है और हर पर्यटक के यात्रा कार्यक्रम में वाराणसी जाना भी शामिल है।

महाकुम्भ 2025 में आयोजित होने वाले कुछ मुख्य स्नान पर्व निम्न प्रकार हैं –

  • मुख्य स्नान पर्व   13.01.2025
  • मकर संक्रान्ति    14.01.2025
  • मौनी अमावस्या           29.01.2025
  • बसंत पंचमी      03.02.2025
  • माघी पूर्णिमा    12.02.2025
  • महाशिवरात्रि    26.02.2025

प्रयागराज का अपना एक एतिहासिक महत्व रहा है। 600 ईसा पूर्व में एक राज्य था और वर्तमान प्रयागराज जिला भी इस राज्य का एक हिस्सा था। उस राज्य को वत्स के नाम से जाना जाता था और उसकी राजधानी कौशाम्बी थी, जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। गौतम बुद्ध ने भी अपनी तीन यात्राओं से इस शहर को सम्मानित किया था। इसके बाद, यह क्षेत्र मौर्य शासन के अधीन आ गया और कौशाम्बी को सम्राट अशोक के एक प्रांत का मुख्यालय बनाया गया। उनके निर्देश पर कौशाम्बी में दो अखंड स्तम्भ बनाए गए जिनमें से एक को बाद में प्रयागराज में स्थानांतरित कर दिया गया। प्रयागराज राजनीति और शिक्षा का केंद्र रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था। इस शहर ने देश को तीन प्रधानमंत्रियों सहित कई राजनौतिक हस्तियां दी हैं। यह शहर साहित्य और कला के केंद्र के साथ साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का भी केंद्र रहा है।

प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुम्भ का आध्यात्मिक महत्व तो है ही, साथ ही, आज के परिप्रेक्ष्य में इस महाकुम्भ का आर्थिक महत्व भी है। प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुम्भ के मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु ईश्वर की पूजा अर्चना हेतु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में पहुंचते हैं। प्रयग्राज में आयोजित तो रहे महाकुम्भ की 44 दिनों की इस इस पूरी अवधि में प्रतिदिन एक करोड़ श्रद्धालुओं के भारत एवं अन्य देशों से प्रयागराज पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण उक्त 44 दिनों की अवधि में प्रयागराज पहुंचेंगे। करोड़ों की संख्या में पहुंचने वाले इन श्रद्धालुगणों द्वारा इन तीर्थस्थलों पर अच्छी खासी मात्रा में खर्च भी किये जाने की सम्भावना है। जिससे विशेष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को तो बल मिलेगा ही, साथ ही करोड़ों की संख्या में देश में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होंगे एवं होटल उद्योग, यातायात उद्योग, पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, स्थानीय स्तर के छोटे छोटे उद्योग एवं विभिन्न उत्पादों के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यापारियों के व्यवसाय में भी अतुलनीय वृद्धि होगी। इस प्रकार, देश की अर्थव्यवस्था को भी, महाकुम्भ मेले के आयोजन से बल मिलने की भरपूर सम्भावना है।

(केंद्र सरकार एवं उत्तरप्रदेश सरकार की महाकुम्भ मेले से सम्बंधित वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी का उपयोग इस लेख में किया गया है।)

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भारत में प्रति विवाह होने वाला औसत खर्च, परिवार की औसत प्रतिवर्ष की कुल आय का तीन गुणा एवं देश में औसत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के 5 गुणा के बराबर रहता है। भारत में विवाहों पर पूरे वर्ष में कुल 13,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च किया जाता है।

 

आर्थिक क्षेत्र में प्रगति की दृष्टि से भारत की अपनी विशेषताएं हैं, जो अन्य देशों में नहीं दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए भारत में आयोजित होने वाले धार्मिक आयोजनों एवं मेलों आदि में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं द्वारा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से इन मेलों/कार्यक्रमों में भाग लिया जाता है बल्कि इन श्रद्धालुओं द्वारा इन  स्थानों पर किये जाने वाले खर्च से स्थानीय स्तर पर व्यापार को बढ़ावा देने एवं रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित करने में भी अपना योगदान दिया जाता है। इसी प्रकार, धार्मिक पर्यटन भी केवल भारत की विशेषता है। प्रतिवर्ष करोड़ों परिवार धार्मिक स्थलों पर, विशेष महुरतों पर, पूजा अर्चना करने के लिए इकट्ठा होते है। जम्मू में माता वैष्णोदेवी मंदिर, वाराणसी में भगवान भोलेनाथ मंदिर, अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर, उज्जैन में बाबा महाकाल मंदिर, दक्षिण में तिरुपति बालाजी मंदिर आदि ऐसे श्रद्धास्थल है जहां पूरे वर्ष भर ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

धार्मिक अर्थव्यवस्था की शक्ति

प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुम्भ के मेले में भी करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु ईश्वर की पूजा अर्चना हेतु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में पहुंचते हैं। शीघ्र ही, 14 जनवरी 2025 से लेकर 26 फरवरी 2025 तक प्रयागराज में महाकुम्भ मेले का आयोजन किया जा रहा है। महाकुम्भ की 44 दिनों की इस इस पूरी अवधि में प्रतिदिन एक करोड़ श्रद्धालुओं के भारत एवं अन्य देशों से प्रयागराज पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण उक्त 44 दिनों की अवधि में प्रयागराज पहुंचेंगे। करोड़ों की संख्या में पहुंचने वाले इन श्रद्धालुगणों द्वारा इन तीर्थस्थलों पर अच्छी खासी मात्रा में खर्च भी किया जाता है। जिससे विशेष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को तो बल मिलता ही है, साथ ही करोड़ों की संख्या में देश में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होते हैं एवं होटल उद्योग, यातायात उद्योग, पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, स्थानीय स्तर के छोटे छोटे उद्योग एवं विभिन्न उत्पादों के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यापारियों के व्यवसाय में भी अतुलनीय वृद्धि होती दिखाई देती है।

भारत में विवाह परिवार की प्रतिवर्ष आय का तीन गुणा

इसी प्रकार, भारत में विवाहों के मौसम में सम्पन्न होने वाले विवाहों पर किए जाने वाले भारी भरकम खर्च से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। वर्ष 2024 के, मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर के बीच, भारत में 50 लाख विवाह सम्पन्न हुए हैं। उक्त एक माह की अवधि के दौरान सम्पन्न हुए इन विवाहों पर भारतीय परिवारों द्वारा 7,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया है। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में सम्पन्न हुए विवाहों पर 5,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया था। उक्त वर्णित 50 लाख विवाहों पर औसतन प्रति विवाह 14,000 डॉलर, अर्थात लगभग 13 लाख रुपए की राशि का खर्च किया गया है एवं 50,000 विवाहों पर तो एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि का खर्च किया गया है। भारत में प्रति विवाह होने वाला औसत खर्च, परिवार की औसत प्रतिवर्ष की कुल आय का तीन गुणा एवं देश में औसत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के 5 गुणा के बराबर रहता है। भारत में विवाहों पर पूरे वर्ष में कुल 13,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च किया जाता है जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। चीन में प्रतिवर्ष विवाहों पर 17,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च किया जाता है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि आगामी वर्ष में भारत, विवाहों पर किए जाने वाले खर्च की दृष्टि से, चीन को पीछे छोड़कर पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा। भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ विवाह सम्पन्न होते हैं। भारत में सर्दियों के मौसम को विवाहों का मौसम कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं क्योंकि पूरे वर्ष भर में सम्पन्न होने वाले विवाहों में से लगभग 50 प्रतिशत विवाह सर्दियों के मौसम में ही सम्पन्न होते हैं।

भारत में विवाहों पर होने वाले भारी भरकम राशि के कुल खर्च में से प्रीवेडिंग फोटोग्राफी, वेडिंग फोटोग्राफी, पोस्टवेडिंग फोटोग्राफी पर लगभग 10 प्रतिशत की राशि का खर्च किया जाता है। विवाह के स्थान के चयन एवं साज सज्जा पर वर्ष 2023 में 18 प्रतिशत की राशि का खर्च किया गया था, जो वर्ष 2024 में बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया है क्योंकि भारतीय परिवारों द्वारा विवाह अब अन्य शहरों यथा गोवा, पुष्कर, उदयपुर एवं केरला जैसे स्थानों पर सम्पन्न किया जा रहे हैं। खानपान आदि पर कुल खर्च का लगभग 10 प्रतिशत भाग खर्च किया जा रहा है। म्यूजिक आदि पर लगभग 6 प्रतिशत की राशि का खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार, ज्वेलरी, ऑटो बाजार एवं सोशल मीडिया आदि पर भी अच्छी खासी राशि का खर्च  किया जाता है। इससे, उक्त समस्त क्षेत्रों में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते हैं। अतः भारत में विवाहों के मौसम में होने वाले भारी भरकम राशि के खर्च से देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को तेज करने में सहायता मिलती है।

हाल ही में सम्पन्न हुए विवाहों के मौसम में भारतीय परिवारों द्वारा किए गए खर्च के चलते अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 की तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को गति मिलेगी जो द्वितीय तिमाही में गिरकर 5.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गई थी। विनिर्माण क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र में विकास दर अधिक रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। बंग्लादेश में राजनैतिक अस्थिरता के चलते रेडीमेड गार्मेंट्स के क्षेत्र में विनिर्माण इकाईयां बंद हो रही हैं एवं वैश्विक स्तर पर रेडीमेड गर्मेंट्स के क्षेत्र में कार्यरत सप्लाई चैन की इकाईयां बांग्लादेश के स्थान पर अब भारत से निर्यात को प्रोत्साहित कर रही हैं। जिससे भारत में रेडीमेड गर्मेंट्स एवं फूटवीयर उद्योग में कार्यरत इकाईयों को इन उत्पादों को अन्य देशों को निर्यात करने के ऑर्डर लगातार बढ़ रहे हैं।

भारतीय परचेसिंग मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स

उक्त कारकों के चलते भारत में परचेसिंग मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स नवम्बर 2024 माह के 58.6 से बढ़कर वर्तमान में 60.7 हो गया है। इस इंडेक्स के ऊपर जाने का आश्य यह है कि विनिर्माण के क्षेत्र में गतिविधियों में गति आ रही है। इसके साथ ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भी 6.21 प्रतिशत से घटकर 5.48 प्रतिशत पर नीचे आ गया है, अर्थात, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर भी नियंत्रण में आ रही है। जिससे आगे आने वाले समय में नागरिकों की खर्च करने की क्षमता में वृद्धि होगी। हाल ही के वर्षों में विनिर्माण उद्योग, सेवा क्षेत्र एवं गिग अर्थव्यवस्था में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हुए हैं और वर्ष 2005 के बाद से इस वर्ष विभिन्न कम्पनियों द्वारा सबसे अधिक नई भर्तियां, रिकार्ड स्तर पर, की गई हैं। इस सबके साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा फरवरी 2025 माह में मोनेटरी पॉलिसी में रेपो दर में कमी किए जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर अब नियंत्रण में आ रही है। इस वर्ष भारत में मानसून का मौसम भी बहुत अच्छा रहा है एवं विभिन्न फसलों की बुआई रिकार्ड स्तर पर हुई है जिससे इन फसलों की पैदावार भी रिकार्ड स्तर पर होने की सम्भावना है। किसानों के हाथों में अधिक पैसा आएगा एवं उनके द्वारा विभिन्न उत्पादों की खरीद पर भी अधिक राशि का खर्च किया जाएगा। कुल मिलाकर, इन समस्त कारकों का सकारात्मक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर होने जा रहा है और वित्तीय वर्ष 2024-25 की तीसरी एवं चोथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के तेज रहने की प्रबल सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

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अमेरिकी आर्थिक नीतियों के विपरीत प्रभाव की सम्भावना https://visionviksitbharat.com/potential-adverse-effects-of-usa-economic-policies/ https://visionviksitbharat.com/potential-adverse-effects-of-usa-economic-policies/#respond Wed, 08 Jan 2025 17:15:28 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=598 हाल ही के वर्षों में अमेरिका में जब मुद्रा स्फीति की दर पिछले लगभग 50 वर्षों के उच्चत्तम स्तर पर थी, तब फेडरल रिजर्व द्वारा फेड दर (ब्याज दरों) को…

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हाल ही के वर्षों में अमेरिका में जब मुद्रा स्फीति की दर पिछले लगभग 50 वर्षों के उच्चत्तम स्तर पर थी, तब फेडरल रिजर्व द्वारा फेड दर (ब्याज दरों) को भी 0.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत तक लाया गया इससे अमेरिका की सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य कर रही कम्पनियों से लगभग 2 लाख इंजीनियरों की छँटनी हुई।

वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य देशों की मुद्राओं की कीमत अमेरिकी डॉलर की तुलना में गिर रही है। इससे, विशेष रूप से विभिन्न वस्तुओं का आयात करने वाले देशों में वस्तुओं के आयात के साथ मुद्रा स्फीति का भी आयात हो रहा है। इन देशों में मुद्रा स्फीति बढ़ती जा रही है और इसे नियंत्रित करने के उद्देश्य से एक बार पुनः ब्याज दरों में वृद्धि की सम्भावना भी बढ़ रही है। भारतीय रिजर्व बैंक को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में से लगभग 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर को बेचना पड़ा है जिससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चत्तम स्तर 70,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर से घटकर 65,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के भी नीचे आ गया है। अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत होने के चलते विश्व के लगभग सभी देशों की यही स्थिति बनती हुई दिखाई दे रही है।

दूसरी ओर, अमेरिका में बजटीय घाटा एवं बाजार ऋण की राशि अपने उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई है एवं अमेरिका को इसे नियंत्रित करने के लिए अपनी आय में वृद्धि करना एवं व्यय को घटाना आवश्यक हो गया है। परंतु, 20 जनवरी 2025 को डॉनल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही सम्भव है कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा आयकर में भारी कमी की घोषणा की जाय। डॉनल्ड ट्रम्प ने अपने चुनावी भाषण में इसके बारे में इशारा भी किया था। हां, सम्भव है कि आयकर को कम करने के चलते कुल आय में होने वाली कमी की भरपाई अमेरिका द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में वृद्धि कर इसके निर्यात में वृद्धि एवं अमेरिका में विभिन्न वस्तुओं के अमेरिका में होने वाले आयात पर कर में वृद्धि करने के चलते कुछ हद्द तक हो सके। परंतु, कुल मिलाकर यदि आय में होने वाली सम्भावित कमी की भरपाई नहीं हो पाती है तो अमेरिका में बजटीय घाटा एवं बाजार ऋण की राशि में अतुलनीय वृद्धि सम्भव है। जो एक बार पुनः अमेरिका में मुद्रा स्फीति को बढ़ा सकता है और फिर से अमेरिका में ब्याज दरों में कमी के स्थान पर वृद्धि देखने को मिल सकती है।

पूंजीवादी नीतियों का प्रभाव

पूरे विश्व में पूंजीवादी नीतियों के चलते मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में रखने के उद्देश्य से विभिन्न देशों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की जाती रही है। किसी भी देश में मुद्रा स्फीति की दर यदि खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के चलते बढ़ रही है तो इसे ब्याज दरों में वृद्धि कर नियंत्रण में नहीं लाया जा सकता है। हां, खाद्य पदार्थों की बाजार में आपूर्ति बढ़ाकर जरूर मुद्रा स्फीति को तुरंत नियंत्रण में लाया जा सकता है। अतः यह मांग की तुलना में आपूर्ति सम्बंधी मुद्दा अधिक है। उत्पादों की मांग में कमी करने के उद्देश्य से बैंकों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की जाती है, जिससे ऋण की लागत बढ़ती है और इसके कारण अंततः विभिन्न उत्पादों की उत्पादन लागत बढ़ती है। उत्पादन लागत के बढ़ने से इन उत्पादों की मांग बाजार में कम होती है जो अंततः इन उत्पादों के उत्पादन में कमी का कारण भी बनती है। उत्पादन में कमी अर्थात बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा कर्मचारियों की छँटनी करने के परिणाम के रूप में भी दिखाई देती है।

हाल ही के वर्षों में अमेरिका में जब मुद्रा स्फीति की दर पिछले लगभग 50 वर्षों के उच्चत्तम स्तर पर अर्थात 10 प्रतिशत के आसपास पहुंच गई थी, तब फेडरल रिजर्व द्वारा फेड दर (ब्याज दरों) को भी 0.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत तक लाया गया था, और यह दर लम्बे समय तक बनी रही थी। इसका प्रभाव, अमेरिका की सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य कर रही कम्पनियों पर अत्यधिक विपरीत रूप में पड़ता दिखाई दिया था और लगभग 2 लाख इंजीनियरों की छँटनी इन कम्पनियों द्वारा की गई थी। अतः मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करने का निर्णय अमानवीय है एवं इसे उचित निर्णय नहीं कहा जा सकता है। ब्याज दरों में वृद्धि करने का परिणाम वैश्विक स्तर पर कोई बहुत अधिक सफल भी नहीं रहा है। अमेरिका को मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रण में लाने के लिए लगभग 3 वर्ष(?) का समय लग गया है और यह इस बीच ब्याज दरों को लगातार उच्च स्तर पर बनाए रखने के बावजूद सम्भव नहीं हो पाया है।

भारत के आर्थिक विकास दर पर प्रभाव

भारत में भी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से रेपो दर (ब्याज दर) में पिछले लगभग 22 माह तक कोई परिवर्तन नहीं किया गया था एवं इसे उच्च स्तर पर बनाए रखा गया था जिसका असर अब भारत के आर्थिक विकास दर पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही में भारत में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर गिरकर 5.2 प्रतिशत रही है, जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत की रही थी। आर्थिक विकास दर में वृद्धि दर का कम होना अर्थात देश में रोजगार के कम अवसर निर्मित होना एवं नागरिकों की आय में वृद्धि की दर का भी कम होना भी शामिल रहता है। अतः लंबे समय तक ब्याज दरों को ऊंचे स्तर पर नहीं बनाए रखा जाना चाहिए।

यह सही है कि मुद्रा स्फीति को एक दैत्य की संज्ञा भी दी जाती है और इसका सबसे अधिक विपरीत प्रभाव गरीब वर्ग पर पड़ता है। अतः किसी भी देश के लिए इसे नियंत्रण में रखना अति आवश्यक है। परंतु, मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में रखने हेतु लगातार ब्याज दरों में वृद्धि करते जाना भी अमानवीय कृत्य है। ब्याज दरों में वृद्धि की तुलना में विभिन्न उत्पादों की बाजार में आपूर्ति बढ़ाकर मुद्रा स्फीति को तुरंत नियंत्रण में लाया जा सकता है। विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाने हेतु प्रयास किए जाने चाहिए। आपूर्ति बढ़ाने के प्रयासों में इन उत्पादों के उत्पादन में वृद्धि करना भी शामिल होगा, कम्पनियों द्वारा उत्पादन में वृद्धि करने के साथ साथ रोजगार के नए अवसरों का निर्माण भी किया जाएगा। इस प्रकार के निर्णय देश की अर्थव्यवस्था के लिए हितकारी एवं लाभदायक साबित होंगे।

अमेरिका द्वारा आयात कर में वृद्धि संभव

अमेरिका द्वारा आर्थिक क्षेत्र से सम्बंधित की जा रही विभिन्न घोषणाओं जैसे चीन एवं अन्य देशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर आयात कर में 60 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक की वृद्धि करना, अमेरिका पर लगातार बढ़ रहे ऋण को कम करने हेतु किसी भी प्रकार के प्रयास नहीं करना, अमेरिकी बजटीय घाटे का लगातार बढ़ते जाना, विदेशी व्यापार के क्षेत्र में व्यापार घाटे का लगातार बढ़ते जाना, विभिन्न देशों द्वारा डीडोलराईजेशन के प्रयास करना आदि ऐसी समस्याएं हैं जिनका हल यदि शीघ्र ही नहीं निकाला गया तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ साथ अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेंगी।

प्राचीन भारत के इतिहास में मुद्रा स्फीति का जिक्र नहीं

प्राचीन भारत के इतिहास में मुद्रा स्फीति जैसी परेशानियों का जिक्र नहीं के बराबर मिलता है। भारतीय आर्थिक दर्शन के अनुसार भारत में उत्पादों की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता रहां है अतः वस्तुओं की बढ़ती मांग के स्थान पर बाजार में वस्तुओं की आपूर्ति ही अधिक रही है। ग्रामीण इलाकों में 50 अथवा 100 ग्रामों के क्लस्टर के बीच हाट (बाजार) लगाए जाते थे जहां स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं/उत्पादों/खाद्य पदार्थों को बेचा जाता था। स्थानीय स्तर पर निर्मित की जा रही वस्तुओं को स्थानीय बाजार में ही बेचने से इन वस्तुओं के बाजार मूल्य सदैव नियंत्रण में ही रहते थे। अतः वस्तुओं की मांग की तुलना में उपलब्धता अधिक रहती थी। कई बार तो उपलब्धता का आधिक्य होने के चलते इन वस्तुओं के बाजार में दाम कम होते पाए जाते थे। इस प्रकार मुद्रा स्फीति जैसी समस्याएं दिखाई नहीं देती थीं। जबकि वर्तमान में, विभिन्न देशों के बाजारों में  विभिन्न उत्पादों की उपलब्धता पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है, इन वस्तुओं की मांग बढ़ने से इनकी कीमतें बढ़ने लगती हैं, और, इन कीमतों पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से यह प्रयास किया जाने लगता है कि किस प्रकार इन वस्तुओं की मांग बाजार में कम की जाय, इसे एक नकारात्मक निर्णय ही कहा जाना चाहिए।

वैश्विक स्तर पर अर्थशास्त्र के वर्तमान सिद्धांत (मॉडल) विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याओं को हल करने के संदर्भ में बोथरे साबित हो रहे हैं। इसलिए अमेरिकी एवं अन्य विकसित देशों के अर्थशास्त्री आज साम्यवादी एवं पूंजीवादी सिद्धांतों (मॉडल) के स्थान पर वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र में आ रही विभिन्न समस्याओं के हल हेतु एक तीसरे रास्ते (मॉडल) की तलाश करने में लगे हुए हैं और इस हेतु वे भारत की ओर बहुत आशाभारी नजरों से देख रहे हैं। प्राचीन भारतीय आर्थिक दर्शन इस संदर्भ में निश्चित ही वर्तमान समय में आ रही विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याओं के हल में सहायक एवं लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

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भारत में तेजी से बढ़ती करोड़पतियों की संख्या https://visionviksitbharat.com/rapid-growth-of-billionaires-in-india/ https://visionviksitbharat.com/rapid-growth-of-billionaires-in-india/#respond Tue, 31 Dec 2024 12:52:59 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=431   हाल ही में अमेरिका में जारी की गई यूबीएस बिल्यनेर ऐम्बिशन रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिलिनायर (करोड़पतियों) की संख्या 185 तक पहुंच गई है और भारत विश्व में…

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हाल ही में अमेरिका में जारी की गई यूबीएस बिल्यनेर ऐम्बिशन रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिलिनायर (करोड़पतियों) की संख्या 185 तक पहुंच गई है और भारत विश्व में बिलिनायर की संख्या की दृष्टि से तृतीय स्थान पर आ गया है।

 

भारत में आर्थिक प्रगति की दर लगातार तेज होती दिखाई दे रही है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर भी अन्य देशों की तुलना में द्रुत गति से आगे बढ़ रही है। भारत आज विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है एवं भारतीय अर्थव्यवस्था आज विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था है तथा शीघ्र ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। भारत का वैश्विक व्यापार भी द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है। कुल मिलाकर, भारत आज अर्थ के क्षेत्र में पूरे विश्व में एक चमकते सितारे के रूप उभर रहा है।लगातार तेज तो रही आर्थिक प्रगति का प्रभाव अब भारत में नागरिकों की औसत आय में हो रही वृद्धि के रूप में भी दिखाई देने लगा है।

हाल ही में अमेरिका में जारी की गई यूबीएस बिल्यनेर ऐम्बिशन रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिलिनायर (अतिधनाडयों) की संख्या 185 तक पहुंच गई है और भारत विश्व में बिलिनायर की संख्या की दृष्टि से तृतीय स्थान पर आ गया है। प्रथम स्थान पर अमेरिका है, जहां बिलिनायर की संख्या 835 हैं एवं द्वितीय स्थान पर चीन है जहां बिलिनायर की संख्या 427 है। इस वर्ष भारत और अमेरिका में जहां बिलिनायर की संख्या में वृद्धि हुई है वहीं चीन में बिलिनायर की संख्या में कमी आई है। अमेरिका में इस वर्ष बिलिनायर की सूची में 84 नए बिलिनायर जुड़े हैं एवं भारत में 32 नए बिलिनायर (21 प्रतिशत की वृद्धि के साथ) जुड़े हैं तो वहीं चीन में 93 बिलिनायर कम हुए हैं। पूरे विश्व में आज बिलिनायर की कुल संख्या 2682 तक पहुंच गई है जबकि वर्ष 2015 में पूरे विश्व में 1757 बिलिनायर थे। भारत में वर्ष 2015 की तुलना में बिलिनायर की संख्या में 123 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। बिलिनायर अर्थात वह नागरिक जिसकी सम्पत्ति 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है अर्थात भारतीय रुपए में लगभग 8,400 करोड़ रुपए की राशि से अधिक की सम्पत्ति।

पिछले एक वर्ष के दौरान भारत में उक्त वर्णित बिलिनायर की सम्पत्ति 42 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 9,560 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गई हैं। जबकि अमेरिका में बिलिनायर की सम्पत्ति वर्ष 2023 में 4 लाख 60 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 5 लाख 80 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गई है। चीन में तो बिलिनायर की सम्पत्ति वर्ष 2023 में एक लाख 80 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2024 में एक लाख 40 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर की हो गई है। पूरे विश्व में बिलिनायर की सम्पत्ति बढ़कर 14 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गई है। उक्त प्रतिवेदन में यह सम्भावना भी व्यक्त की गई है कि आगे आने वाले 10 वर्षों में भारत में बिलिनायर की संख्या में और तेज गति से वृद्धि होगी। भारत में 108 से अधिक पारिवारिक व्यवसाय में संलग्न परिवार भी हैं जो अपने व्यवसाय को भारतीय पारिवारिक परम्परा के अनुसार आगे बढ़ा रहे हैं और भारत में बिलिनायर की संख्या में वृद्धि एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं।

भारतीय बिलिनायर की संख्या केवल भारत में ही नहीं बढ़ रही है बल्कि अन्य देशों में निवास कर रहे भारतीय भी बिलिनायर की श्रेणी में शामिल हो रहे हैं एवं वे अपनी आय के कुछ हिस्से को भारत में भेजकर यहां निवेश कर रहे हैं और इस प्रकार अन्य देशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिक भी भारत के आर्थिक विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। विशेष रूप से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को द्रुत गति से बढ़ाने में भारतीय मूल के इन नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहता आया है। इस समय भारतीय मूल के एक करोड़ 80 लाख से अधिक नागरिक विभिन्न देशों में कार्य कर रहे हैं एवं प्रतिवर्ष वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा भारत में जमा के रूप से भेजते हैं। हाल ही में वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि वर्ष 2024 में 12,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर की भारी भरकम राशि अन्य देशों में रह रहे भारतीयों द्वारा भारत में भेजी गई है। भारत पिछले कई वर्षों से इस दृष्टि पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर कायम है। वर्ष 2021 में 10,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2022 में 11,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2023 में 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में भेजी गई थी। प्रतिवर्ष भारत में भेजी जाने वाली राशि की तुलना यदि अन्य देशों में भेजी जा रही राशि से करें तो ध्यान में आता है कि वर्ष 2024 में मेक्सिको में 6,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी, जिसे पूरे विश्व में इस दृष्टि से द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। मेक्सिको में भेजी गई राशि भारत में भेजी गई राशि की तुलना में लगभग आधी है। चीन को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ है एवं चीन में 4,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई है, फ़िलिपीन में 4,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं पाकिस्तान में 3,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि अन्य देशों में रह रहे इन देशों के नागरिकों द्वारा भेजी गई है।

भारत में भारतीय नागरिकों द्वारा अन्य देशों से भेजी जा रही राशि में उत्तरी अमेरिका, यूरोप, खाड़ी के देशों एवं एशिया के कुछ देशों यथा मलेशिया एवं सिंगापुर का प्रमुख योगदान है। जैसा कि विदित ही है कि प्रतिवर्ष भारत से लाखों युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करने की दृष्टि से विकसित देशों की ओर जाते हैं। उच्च एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत भारतीय युवा इन देशों में ही रोजगार प्राप्त कर लेते हैं एवं अपनी बचत की राशि का बड़ा भाग भारत में भेज देते हैं। आज तक भारतीय मूल के इन नागरिकों द्वारा एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में भेजी गई है। भारत के लिए विदेशी मुद्रा भंडार के संग्रहण में यह राशि बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है। वर्ष 2024 में पूरे विश्व में 68,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि विभिन्न देशों के नागरिकों द्वारा अपने अपने देशों को भेजी गई है। यह राशि वर्ष 2023 में भेजी गई राशि से 5.8 प्रतिशत अधिक है। पूरे विश्व में विभिन्न देशों में निवास कर रहे नागरिकों द्वारा भेजी गई उक्त राशि में से 20 प्रतिशत से अधिक की राशि अन्य देशों में निवास कर रहे भारतीयों द्वारा ही अकेले भारत में भेजी गई है। इस प्रकार, भारतीय मूल के नागरिकों की सम्पत्ति न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी बहुत तेजी के साथ बढ़ रही है।

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विकसित भारत हेतु युवाओं में बढ़ रही व्यसन की प्रवृति को रोकना जरूरी https://visionviksitbharat.com/preventing-the-growing-trend-of-addiction-among-youth-is-essential-for-a-developed-india/ https://visionviksitbharat.com/preventing-the-growing-trend-of-addiction-among-youth-is-essential-for-a-developed-india/#respond Fri, 20 Dec 2024 04:48:04 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=236 लेखक: श्री प्रहलाद सबनानी (पूर्व उप-महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक) युवाओं का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य “विकसित भारत” के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानसिक रूप से स्वस्थ युवा…

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लेखक: श्री प्रहलाद सबनानी (पूर्व उप-महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक)

युवाओं का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य “विकसित भारत” के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानसिक रूप से स्वस्थ युवा नई सोच और नवाचारों के माध्यम से देश को आगे ले जाने में सक्षम होते हैं, जबकि शारीरिक रूप से स्वस्थ युवा कठिन चुनौतियों का सामना करने और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय योगदान देने में समर्थ होते हैं। शिक्षा, रोजगार और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए युवाओं का स्वास्थ्य सर्वोपरि है। एक विकसित और सशक्त भारत के लिए यह आवश्यक है कि हमारे युवा मानसिक तनाव, अस्वास्थ्यकर जीवनशैली और शारीरिक अक्षमता से मुक्त होकर अपने सर्वोत्तम प्रदर्शन की ओर अग्रसर हों।

व्यसन की समस्या का विकराल रूप

आज भारत के विभिन्न कस्बों, नगरों, विशेष रूप से महानगरों में, कम उम्र के नागरिकों के बीच व्यसन की समस्या विकराल रूप धारण करती हुई दिखाई दे रही है। देश के कुछ भागों में विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विद्यार्थी भी नशे की लत का शिकार हो रहे हैं। भारत का युवा यदि गलत दिशा में जा रहा है तो यह भारत के भविष्य के लिए अत्यधिक चिन्ता का विषय है। देश के पंजाब राज्य में तो हालात बहुत खराब स्थिति में पहुंच गए है एवं वहां ग्रामीण इलाकों में भी युवा विभिन्न प्रकार के व्यसनों में लिप्त पाए जा रहे हैं। नशे के सेवन से न केवल स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि मानसिक तौर पर भी युवा वर्ग विक्षिप्त अवस्था में पहुंच जाता है।

नशे के दुष्प्रभाव

मेडिकल साइन्स के अनुसार, ड्रग्स के लंबे समय तक सेवन से लिवर, फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है। ड्रग्स का सेवन इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है, जिससे व्यक्ति आसानी से बीमार पड़ सकता है। अत्यधिक मात्रा में ड्रग्स लेने से व्यक्ति कोमा में जा सकता है या मृत्यु भी हो सकती है। इसी प्रकार ड्रग्स के सेवन से डिप्रेशन, एंग्जायटी, और सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति को चूंकि इनकी लत लग जाती है अतः वह व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से ड्रग्स पर निर्भर हो जाता है।

ड्रग्स के आदी व्यक्ति का व्यवहार भी आक्रामक हो जाता है, जिसके कारण परिवार में तनाव और झगड़े बढ़ जाते हैं। ड्रग्स पर पैसा खर्च करने से व्यक्ति और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी डावांडोल होने लगती है। ड्रग्स को खरीदने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है, यदि परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी हो और युवाओं को परिवार से धन की प्राप्ति नहीं होती है तो ड्रग्स की लत के कारण युवा चोरी, लूटपाट या अन्य अवैध गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं। यह स्थिति भारत के लिए ठीक नहीं कही जा सकती है क्योंकि एक तो उस युवा का देश के विकास में योगदान लगभग शून्य हो जाता है, दूसरे, वह व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज पर बोझ बन जाता है।

हम अक्सर मदिरापान और धूम्रपान की स्थिति में कैंसर का डर दिखाकर तम्बाकू निषेध को लक्षित करते हैं। जबकि व्यसनों के कई प्रकार हैं। ड्रग्स के विभिन्न प्रकार और उनके प्रभावों को समझना जरूरी है ताकि इसके दुरुपयोग से बचा जा सके। ड्रग्स से होने वाले शारीरिक, मानसिक और सामाजिक नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाकर ही एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज का निर्माण किया जा सकता है। आज देश में ड्रग्स की उपलब्धता बहुत आसान हो गई है। कई अंतरराष्ट्रीय गिरोह भारतीय युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेकर कई प्रकार के ड्रग्स आसानी से उपलब्ध कराते हैं और उन्हें इनका आदी बना देते हैं।

ड्रग्स के भी कई प्रकार हैं

(1) डिप्रेसेंट्स (Depressants): इस श्रेणी में अल्कोहल, बार्बिटुरेट्स, बेंजोडायजेपाइन आदि को शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स मस्तिष्क की गतिविधि को धीमा कर देते हैं, जिससे व्यक्ति को शांति या सुकून महसूस होता है। लेकिन, अधिक मात्रा में लेने से यह सांस की तकलीफ, बेहोशी और मृत्यु का कारण बन सकते हैं।

(2) स्टिमुलेंट्स (Stimulants): इस श्रेणी में कोकीन, मेथामफेटामिन, कैफीन आदि को शामिल किया जाता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की गतिविधि को बढ़ाते हैं, जिससे चुस्ती और ऊर्जा बढ़ती है। इसके अधिक सेवन से दिल की धड़कन तेज होना, हाई ब्लड प्रेशर, और घबराहट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

(3) ओपिओइड्स (Opioids): हेरोइन, मॉर्फिन, कोडीन आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स दर्द निवारक दवाएं हैं, लेकिन नशे के रूप में इनका दुरुपयोग किया जाता है। ओपिओइड्स का अधिक सेवन श्वसन तंत्र को धीमा कर देता है, जिससे व्यक्ति कोमा या मृत्यु का शिकार हो सकता है।

(4) साइकेडेलिक्स (Psychedelics): एलएसडी, साइलोसाइबिन (मशरूम), डीएमटी आदि ड्रग्स इस श्रेणी में शामिल किए जाते हैं एवं इस प्रकार के ड्रग्स व्यक्ति की धारणा, विचार और मूड को बदल देते हैं। यह मतिभ्रम (hallucinations) पैदा कर सकते हैं।

(5) इनहेलेंट्स (Inhalants): पेट्रोल, गोंद, स्प्रे पेंट आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इन पदार्थों को सूंघकर नशा किया जाता है। यह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।

(6) कैनाबिनोइड्स (Cannabinoids): गांजा, भांग, हशीश आदि को इस श्रेणी के ड्रग्स में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स सुखद अनुभव कराते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में लेने से मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

कुल मिलाकर देश में ड्रग्स की समस्या विकराल रूप धारण करती दिखाई दे रही है एवं इसने विशेष रूप से युवाओं को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है। दरअसल युवा, फिल्मों आदि को देखकर इसके सेवन को उचित मानने लगता है एवं इसके सेवन से समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने का प्रयास करता है। उसे लगता है कि उच्च सोसायटी में नशे का सेवन करना जैसे आम बात है। परंतु, नशे से होने वाले नुक्सान से सर्वथा अनभिज्ञ रहता है। इसलिए विशेष रूप से युवाओं को नशे की लत से छुड़ाना अति आवश्यक है।

युवाओं में जागरूकता पैदा करती फ़िल्में

हालांकि, हाल ही के समय में नशे की समस्याओं से युवा किस प्रकार परेशानी का सामना करता है जैसे विषयों को लेकर कई फिल्में भी बनाई गई हैं, इन्हें देखकर युवाओं में जागरूकता पैदा की जा सकती है। उड़ता पंजाब (2016), इस फिल्म में पंजाब में ड्रग्स की समस्या और उससे जूझते युवाओं की कहानी है। संजू (2018), इस फिल्म में युवाओं में ड्रग्स की लत और उससे बाहर निकलने की कहानी को दिखाया गया है। फैशन (2008), इस फिल्म में एक मॉडल को दिखाया गया है, जो शोहरत की दुनिया में ड्रग्स की लत का शिकार हो जाती है। डरना जरुरी है (2006), इस फिल्म की कहानी एक विशेष ड्रग एडिक्शन पर केंद्रित है। तमाशा (2015), इस फिल्म में नशे और आत्म-खोज की चुनौती को दर्शाया गया है।

इसी प्रकार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ फिल्मे बनाई गईं है। Requiem for a Dream (2000), इस फिल्म में ड्रग्स की लत और उसके विनाशकारी प्रभावों को बहुत ही गहराई से दिखाया गया है। Trainspotting (1996), इस फिल्म में हेरोइन की लत से जूझते युवाओं की कहानी दिखाई गई है और इसमें नशे की भयावहता को दिखाया गया है Beautiful Boy (2018), इस फिल्म में एक पिता और उसके बेटे की कहानी दिखाई गई है, जिसमें बेटा नशे की लत से जूझ रहा है। The Basketball Diaries (1995), इस फिल्म में एक किशोर की कहानी दिखाई गई है, जो नशे की लत में फंस जाता है और उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। A Star Is Born (2018), इस फिल्म में ड्रग्स और शराब की लत से जूझते युवा को दिखाया गया है, जिससे उसके करियर और रिश्तों पर असर पड़ता है।

समाज और परिवार का योगदान अहम

आज का युवा चूंकि फिल्मों की ओर अधिक आकर्षित होता है अतः व्यसनों से छुटकारा पाने के सम्बंध में बनाई गई फिल्मों का वर्णन किया गया है। परंतु, युवाओं को नशामुक्त करने की दृष्टि से विभिन्न संगठनों द्वारा जागरूकता अभियान चलाना आज आवश्यक हो गया है। सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों पर व्यसन के दुष्प्रभावों पर आधारित जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। फिल्म फेस्टिवल, नुक्कड़ नाटक, सेमिनार, और सोशल मीडिया का उपयोग कर व्यसनों के नुकसान के बारे में युवाओं को जानकारी दी जा सकती है। स्कूलों और कॉलेजों में नशा विरोधी शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए जिससे छात्रों को छोटी उम्र से ही व्यसनों के खतरों के बारे में शिक्षित किया जा सके।

नशे से संबंधित गतिविधियों में संलिप्त लोगों पर इतनी सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए कि वह समाज के सामने उदाहरण बने। अवैध शराब और नशीले पदार्थों की बिक्री पर निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए एवं दोषियों पर कठोर दंड लागू किया जाना चाहिए। विभिन्न कस्बों एवं नगरों में स्थानीय स्तर पर कार्य कर रहे NGO और समुदाय आधारित संगठनों को नशमुक्ति अभियान में शामिल किया जाना चाहिए। यह संगठन व्यसन पीड़ितों की पहचान कर उन्हें उचित सहायता और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।

परिवारों को व्यसन से बचाव और इसके लक्षणों की पहचान करने के तरीकों पर शिक्षित किया जाना चाहिए। इसके लिए माता-पिता को उनके बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देने और संवाद बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। व्यसन मुक्त भारत बनाने के लिए युवाओं को खेल, संगीत, नृत्य, और अन्य सृजनात्मक गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिए। इससे वे सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहेंगे और व्यसन से दूर रहेंगे। युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए ताकि उन्हें सकारात्मक दिशा मिले और वे व्यसन से दूर रहें।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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लेखक: श्री प्रहलाद सबनानी (पूर्व उप-महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक)

भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों में दान दक्षिणा की प्रथा का अलग ही महत्व है। भारत में विभिन्न त्यौहारों एवं महापुरुषों के जन्म दिवस पर मठों मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर समाज के सम्पन्न नागरिकों द्वारा दान करने की प्रथा अति प्राचीन एवं सामान्य प्रक्रिया है। गरीब वर्ग की मदद करना ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा माना जाता है। समाज में आपस में मिल बांटकर खाने पीने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है और यह प्रथा भारतीय समाज में बहुत आम है।

परिवार में आई किसी भी खुशी की घटना को समाज में विभिन्न वर्गों के बीच आपस में बांटने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है। इस उपलक्ष में कई बार तो बहुत बड़े स्तर पर सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं। जैसे जन्म दिवस मनाना, परिवार में शादी के समारोह के पश्चात समाज में नाते रिश्तेदारों, दोस्तों एवं मिलने वालों को विशेष आयोजनों में आमंत्रित करना, आदि बहुत ही सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत के विभिन्न मठों, मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर प्रतिदिन 10 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रसादी के रूप में भोजन वितरित किया जाता है।

पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसमें निवासरत नागरिक, चाहे वह कितना भी गरीब से गरीब क्यों न हो, अपनी कमाई में से कुछ राशि का दान तो जरूर करता है। भारतीय शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि हिंदू सनातन संस्कृति के अनुरूप, महर्षि दधीच ने तो, देवताओं को असुरों पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से, अपने शरीर को ही दान में दे दिया था।

दानवीर रतन टाटा जी:

आज के युग में जब अर्थ को अत्यधिक महत्व प्रदान किया जा रहा है, तब अधिक से अधिक धनराशि का दान करना ही शुभ कार्य माना जा रहा है। इस दृष्टि से वैश्विक स्तर पर नजर डालने पर ध्यान में आता है कि दुनिया में सबसे बड़े दानदाता के रूप में आज भारत के टाटा उद्योग समूह के श्री रतन टाटा का नाम सबसे ऊपर उभर कर सामने आता है। इस सूची में टाटा समूह के संस्थापक श्री जमशेदजी टाटा का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है, जिन्होंने अपने जीवन में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में 8.29 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था।

इसी प्रकार, श्री रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने वर्ष 2021 तक 8.59 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था। आप अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब वर्ग की सहायतार्थ दान में दे देते थे। श्री रतन टाटा केवल भारत स्थित संस्थानों को ही दान नहीं देते थे बल्कि वैश्विक स्तर पर समाज की भलाई के लिए कार्य कर रहे संस्थानों को भी दान की राशि उपलब्ध कराते थे। आपने वर्ष 2008 के महामंदी के दौरान अमेरिका स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय को 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का दान प्रदान किया था।

श्री रतन टाटा ने आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे छात्रों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जे. एन. टाटा एंडाउमेंट, सर रतन टाटा स्कॉलर्शिप एवं टाटा स्कॉलर्शिप की स्थापना कर दी थी। श्री रतन टाटा चूंकि अपनी कमाई का बहुत बड़ा भाग दान में दे देते थे, अतः उनका नाम कभी भी अमीरों की सूची में बहुत ऊपर उठकर नहीं आ पाया। इस सूची में आप सदैव नीचे ही बने रहे। श्री रतन टाटा जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में इतनी बड़ी राशि का दान किया था कि आज विश्व के 2766 अरबपतियों के पास इतनी सम्पत्ति भी नहीं है।

टाटा समूह की राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका

यूं तो टाटा समूह ने राष्ट्र के निर्माण में बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परंतु कोरोना महामारी के खंडकाल में श्री रतन टाटा के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। जिस समय पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा था, उस समय श्री रतन टाटा ने न केवल भारत बल्कि विश्व के कई अन्य देशों को भी आर्थिक सहायता के साथ साथ वेंटिलेटर, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट, मास्क और दस्ताने आदि सामग्री उपलब्ध कराई। श्री रतन टाटा के निर्देशन में टाटा समूह ने इस खंडकाल में 1000 से अधिक वेंटिलेटर और रेस्पिरेटर, 4 लाख पीपीई किट, 35 लाख मास्क और दास्ताने और 3.50 लाख परीक्षण किट चीन, दक्षिणी कोरिया आदि देशों से भी आयात के भारत में उपलब्ध कराए थे।

श्री रतन टाटा के पूर्वज पारसी समुदाय से थे और ईरान से आकर भारत में रच बस गए थे। श्री रतन टाटा ने न केवल भारतीय हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों को अपने जीवन में उतारा, बल्कि इन संस्कारों का अपने पूरे जीवनकाल में अक्षरश: अनुपालन भी किया। इन्हीं संस्कारों के चलते श्री रतन टाटा को आज पूरे विश्व में सबसे बड़े दानदाता के रूप में जाना जा रहा है।

कोरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी कानून

टाटा समूह का वर्णन तो यहां केवल उदाहरण के रूप में किया जा रहा है। अन्यथा, भारत में ऐसे कई औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति को ही ट्रस्ट के माध्यम से समाज के उत्थान एवं समाज की भलाई के लिए दान में दे दिया है। प्राचीन भारत में यह कार्य राजा महाराजाओं द्वारा किया जाता रहा हैं। हिंदू सनातन संस्कृति के विभिन्न शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि ईश्वर ने जिसको सम्पन्न बनाया है, उसे समाज में गरीब वर्ग की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए। यह सहायता गरीब वर्ग को सीधे ही उपलब्ध कराई जा सकती है अथवा ट्रस्ट की स्थापना कर भी गरीब वर्ग की मदद की जा सकती है। वर्तमान में तो निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर – कोरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) के सम्बंध में कानून की बना दिया गया है।

जिन कम्पनियों की सम्पत्ति 500 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक व्यापार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक शुद्ध लाभ 5 करोड़ से अधिक है, उन्हें इस कानून के अंतर्गत अपने वार्षिक शुद्ध लाभ के दो प्रतिशत की राशि का उपयोग समाज की भलाई के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं पर खर्च करना आवश्यक होता है। इन विभिन्न मदों पर खर्च की जाने वाली राशि का प्रतिवर्ष अंकेक्षण भी कराना होता है, ताकि यह जानकारी प्राप्त की जा सके राशि का सदुपयोग समाज की भलाई के लिए किया गया है एवं इस राशि का किसी भी प्रकार से दुरुपयोग नहीं हुआ है।

भारत में गरीब वर्ग/परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में समाज में सम्पन्न वर्ग द्वारा किए जाने वाले दान आदि की राशि से भी बहुत मदद मिलती है। निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर) योजना के अंतर्गत चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का सीधा लाभ भी समाज के गरीब वर्ग को ही मिलता है। अतः विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां सरकार एवं समाज मिलकर गरीब वर्ग की भलाई हेतु कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। इसीलिए ही अब यह कहा जा रहा है कि हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार यदि वैश्विक स्तर पर होता है तो, इससे पूरे विश्व का ही कल्याण हो सकता है एवं बहुत सम्भव है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी का नाश होकर चहुं ओर खुशहाली फैलती दिखाई दे।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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