RSS@100 Archives - VisionViksitBharat https://visionviksitbharat.com/category/rss100/ Policy & Research Center Wed, 16 Apr 2025 19:27:02 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8 https://visionviksitbharat.com/wp-content/uploads/2025/02/cropped-VVB-200x200-1-32x32.jpg RSS@100 Archives - VisionViksitBharat https://visionviksitbharat.com/category/rss100/ 32 32 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते कदम https://visionviksitbharat.com/rss-is-continiously-leading/ https://visionviksitbharat.com/rss-is-continiously-leading/#respond Wed, 16 Apr 2025 19:27:02 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1607 दिनांक 21 से 23 मार्च तक बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में दशहरा…

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दिनांक 21 से 23 मार्च तक बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में दशहरा के पावन पर्व पर हुई थी, और इस प्रकार संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं इस वर्ष दशहरा के शुभ अवसर पर ही अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लेगा। संघ की स्थापना विशेष रूप से भारतीय हिंदू समाज में राष्ट्रीयत्व का भाव जागृत करने एवं हिंदू समाज के बीच समरसता स्थापित करने के लक्ष्य को लेकर हुई थी। इन 100 वर्षों के अपने कार्यकाल में संघ ने हिंदू समाज को एकजुट करने में सफलता तो हासिल कर ही ली है साथ ही विशेष रूप से समाज की सज्जन शक्ति में राष्ट्रीयत्व का भाव पैदा करने में सफलता अर्जित की है। सज्जन शक्ति समाज की वह शक्ति है कि जिनकी बात समाज में गम्भीरता से सुनी जाती है एवं उस पर अमल करने का प्रयास भी होता है। संघ ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु शाखाओं की स्थापना की थी। इन शाखाओं में देश की युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयत्व का भाव जगाकर ऐसे स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं जो समाज के बीच जाकर देश के आम नागरिकों में राष्ट्र भावना का संचार करते हैं एवं समाज के बीच समरसता का भाव पैदा करने का प्रयास करते हैं।

 

संघ द्वारा स्थापित की गई शाखाओं की कार्यपद्धति पर आज विश्व के अन्य कई देशों में शोध कार्य किए जाने के बारे में सोचा जा रहा है कि किस प्रकार संघ द्वारा स्थापित इन शाखाओं से निकला हुआ स्वयंसेवक समाज परिवर्तन में अपनी महती भूमिका निभाने में सफल हो रहा है और पिछले लगातार 100 वर्षों से इस पावन कार्य में संलग्न है। हाल ही में, दिनांक 14 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक (44 दिन) प्रयागराज में लगातार चले एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए महाकुम्भ के मेले में पूरे विश्व से 66 करोड़ से अधिक हिंदू धर्मावलम्बियों ने पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। इतनी भारी संख्या में हिंदू समाज कभी भी किसी महान धार्मिक आयोजन में शामिल नहीं हुआ होगा और संभवत: पूरे विश्व में कभी भी इस तरह का आयोजन सम्पन्न नहीं हुआ होगा। इस महाकुम्भ में समस्त हिंदू समाज एकजुट दिखाई दिया, न किसी की जाति, न किसी का मत, न किसी के पंथ का पता चला। बस केवल सनातनी हिंदू हैं, यही भावना समस्त श्रद्धालुओं में दिखाई दी। इसी का प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से करता आ रहा है।

 

संघ द्वारा आज न केवल भारतीय हिंदू समाज को एकता के सूत्र में पिरोए जाने का कार्य किया जा रहा है बल्कि पूरे विश्व में अन्य देशों में निवासरत भारतीय मूल के हिंदू समाज के नागरिकों को भी एक सूत्र में पिरोए जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह कार्य संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संघ की शाखा में प्राप्त प्रशिक्षण के बाद सम्पन्न किया जाता है। संघ द्वारा संचालित शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 के 73,117 से बढ़कर वर्ष 2025 में 83,129 हो गई है। इन शाखाओं के लगने वाले स्थानों की संख्या भी वर्ष 2024 में 45,600 से बढ़कर 51,710 हो गई है। विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के उद्देश्य से विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए विद्यार्थी संयुक्त शाखाएं भी देश के विभिन्न भागों में लगाई जाती हैं।  विद्यार्थी संयुक्त शाखाओं की संख्या 17 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 20224 में 28,409 से बढ़कर वर्ष 2025 में 33,129 हो गई हैं। इसी प्रकार महाविद्यालयीन छात्रों के लिए भी विशेष शाखाएं लगाई जाती हैं। महाविद्यालयीन (केवल तरुणों के लिए) शाखाओं की संख्या 10 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 5,465 से बढ़कर वर्ष 2025 में 5,991 हो गई है। तरुण व्यवसायी शाखाओं की संख्या भी 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 21,718 से बढ़कर वर्ष 2025 में 24,748 हो गई है, इस शाखाओं में विशेष रूप से तरुणों को शामिल किया जाता है। प्रौढ़ व्यवसायी शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 8,241 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,397 हो गई है एवं बाल शाखाओं की संख्या भी वर्ष 2024 में 9,284 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,864 हो गई है। बाल शाखाओं में छोटी उम्र के बालकों को शामिल किया जाता है।

 

उक्त वर्णित शाखाओं के माध्यम से आज संघ का देश के कोने कोने में विस्तार सम्भव हुआ है। संघ की दृष्टि से देश भर में कुल खंडों की संख्या 6,618 है। इनमें से शाखायुक्त खंडों की संख्या वर्ष 2024 में 5,868 थी जो वर्ष 2025 में बढ़कर 6,112 हो गई है। साथ ही, कुल 58,939 मंडलों में से 30,770 मंडलों में संघ की शाखा लगाई जा रही है। देश भर में महानगरों के अतिरिक्त कुल 2,556 नगर हैं। इन नगरों में से 2,476 नगरों में संघ की शाखा पहुंच गई है।

 

संघ द्वारा विभिन्न श्रेणियों यथा चिकित्सक, अधिवक्ता, शिक्षक, सेवा निवृत अधिकारी एवं कर्मचारी, पत्रकार,  प्रोफेसर, युवा उद्यमी जैसी श्रेणीयों के लिए साप्ताहिक मिलन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। आज देश भर में 32,147 साप्ताहिक मिलन लगाए जा रहे हैं। साथ ही, संघ मंडलियों का गठन भी किया गया है और आज देश भर में 12,091 संघ मंडलियां भी नियमित रूप से लगाई जा रही हैं। भारत में संघ द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सेवा कार्यों को सम्पन्न करने की दृष्टि से 37,309 सेवा बस्तियां हैं। इनमें से 9,754 सेवा बस्तियां संघ की शाखा से युक्त हैं।

 

संघ के स्वयसेवकों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से देश भर में प्राथमिक शिक्षा वर्ग भी लगाए जाते हैं। वर्ष 2023-24 में कुल 1,364 प्राथमिक शिक्षा वर्ग लगाए गए एवं इन प्राथमिक शिक्षा वर्गों में 31,070 शाखाओं के 106,883  स्वयंसेवकों ने भाग लिया।

 

वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ता दिखाई दे रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं। हिंदू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भारत से नई उड़ान भर रहे युवाओं को जोड़ा जाता है ताकि एक तो विदेशों में इनकी कठिनाईयों को दूर किया जा सके तथा दूसरे इनमें सनातन संस्कृति के भाव को जागृत किया जा सके। साथ ही, इन युवाओं के भारत में रह रहे बुजुर्ग माता पिता से भी सम्पर्क बनाया जाता है। संघ के स्वयंसेवक भारत में इनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास भी करते हैं। भारत में धार्मिक पर्यटन पर आने वाले भारतीय मूल के नागरिकों की सहायता भी संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने का प्रयास किया जाता है तथा भारतीय मूल के नागरिक यदि भारत में वापिस आकर बसने के बारे में विचार करते हैं तो उन्हें भी इस सम्बंध में उचित सहायता उपलब्ध कराए जाने का प्रयास किया जाता है।

 

कुल मिलाकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू सनातन संस्कृति को भारत के जन जन के मानस में प्रवाहित करने का कार्य करने का प्रयास कर रहा है ताकि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो एवं उनके लिए भारत प्रथम प्राथमिकता बन सके। यह कार्य संघ की शाखाओं में प्रशिक्षित होने वाले स्वयसेवकों द्वारा समाज के बीच में जाकर करने का सफल प्रयास किया जा रहा है। और, यह कार्य आज पूरे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए एक आवश्यक आवश्यकता भी बन गया है।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाबा साहेब अम्बेडकर https://visionviksitbharat.com/rashtriya-swayamsevak-sangh-dr-b-r-ambedkar/ https://visionviksitbharat.com/rashtriya-swayamsevak-sangh-dr-b-r-ambedkar/#respond Wed, 02 Apr 2025 04:26:33 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1564   संघ ने ‘व्यक्तिनिष्ठ’ नहीं अपितु ‘तत्वनिष्ठ’ प्रणाली को चरितार्थ किया। इसी का प्रतिफल है कि संघ कार्यों की समाज जीवन में व्यापक स्वीकार्यता हुई। राष्ट्रीयता समरसता, एकता, बंधुता और…

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संघ ने ‘व्यक्तिनिष्ठ’ नहीं अपितु ‘तत्वनिष्ठ’ प्रणाली को चरितार्थ किया। इसी का प्रतिफल है कि संघ कार्यों की समाज जीवन में व्यापक स्वीकार्यता हुई। राष्ट्रीयता समरसता, एकता, बंधुता और एकात्मता के उन्हीं मूल्यों के साथ संघ आगे बढ़ा जिसका स्वप्न डॉ अंबेडकर जैसे महापुरुष देखा करते थे।

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में विजयादशमी की तिथि को अपना शताब्दी वर्ष पूर्ण करेगा। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में किसी भी सामाजिक सांस्कृतिक संगठन के 100 वर्ष पूरे होना अपने आप में आश्चर्य एवं शोध का विषय है। किंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसे अपनी वैचारिक निष्ठा, दूरदर्शिता, अनुशासन और श्रेष्ठ सांगठनिक पद्धति के साथ इस महानतम् पड़ाव को साकार किया है। राष्ट्रीयता के मूल्यों की पुनर्स्थापना और राष्ट्र निर्माण के लिए असंख्य स्वयंसेवकों की दीपमालिकाओं से राष्ट्र को आलोकित किया है। यह संभव हुआ है तो संघ के प्रथम सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की विशद् दृष्टि के चलते जिन्होंने बीज रूप में स्वयं को संगठन में आत्मार्पित कर-संघ को विशाल वृक्ष के रूप में मूर्तरूप प्रदान किया। संघ उसी समुज्ज्वल वैचारिक दृढ़ता के साथ उसी ऊर्जा के साथ राष्ट्र निर्माण में लगा है । जो ऊर्जा 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी की तिथि को संघ की स्थापना के समय थी। ‘सर्वेषां अविरोधेन’ अर्थात् हमारा कोई विरोधी नहीं है। इस मान्यता के साथ संघ ने राष्ट्र के मानस और हिन्दू समाज के आत्मगौरव को जागृत करने में महती भूमिका निभाई है। इसी कड़ी में प्रायः जब संघ और बाबा साहेब अम्बेडकर के कार्यों पर दृष्टि जाती है तो अद्भुत साम्य देखने को मिलता है। संघ प्रारंभ से ही अखंड भारत और सामाजिक समरसता के साथ राष्ट्रीयता के मूल्यों

के अनुरूप समाज को सशक्त बनाने के लिए काम करता आ रहा है। समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में संघ प्रेरित संगठन काम कर रहे हैं। इसी प्रकार डॉक्टर अंबेडकर की सामाजिक समरसता की दृष्टि, राष्ट्रीयता, आर्थिक नीति, स्वावलंबन, स्वदेशी, स्व-भाषा और कन्वर्जन के विरुद्ध  जो दृष्टि मिलती है।‌वही संघ में साकार रूप में दिखाई देती है। संघ के वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, स्वदेशी, संस्कार भारती, संस्कृत भारती, एकल विद्यालय जैसे प्रकल्प इसी कड़ी के महत्वपूर्ण आयाम हैं।  यह इसी साम्य भाव की परिणति रही है कि बाबा साहेब अंबेडकर उस समय के समस्त राजनीतिक परिदृश्यों/ राजनेताओं और कांग्रेस आदि की कटु आलोचना करते रहे। किन्तु एक भी ऐसा प्रसंग नहीं आता है जब बाबा साहेब अंबेडकर ने कभी भी संघ की  आलोचना की हो।

वर्तमान में जब कुत्सित राजनीति ‘भाषायी  विवाद’ खड़े कर विभाजन उत्पन्न करना चाहती है। उस समय डॉ अंबेडकर के विचार मार्गदर्शक बनकर खड़े हैं।डॉ अंबेडकर वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संसद में संस्कृत को राष्ट्रभाषा/राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रस्ताव दिया था। वो भारतीय भाषाओं की सामर्थ्य और एकात्मता को समझते थे। अतएव उन्होंने एकता के सूत्रों को अपने विचारों और कार्यों से प्रकट किया।

इसी प्रकार संघ निरंतर सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण, सम्वर्द्धन और उसके प्रयोग को लेकर  कार्य करता है। विदेशी भाषा के स्थान पर ‘मातृभाषा’ के प्रयोग के लिए समाज को प्रेरित करता है। संघ कन्वर्जन के विरुद्ध मुखर होकर प्रतिरोध दर्ज कराता है। समाज को प्रेरित करता है। जनजातीय अस्मिता के साथ-साथ समस्त क्षेत्रों में भारत के ‘स्व’ को प्रतिष्ठित करता है।

डॉ हेडगेवार और डॉ. अंबेडकर दोनों आजीवन सामाजिक समरसता को मूर्तरूप देने में लगे रहे। डॉक्टर जी की उसी संकल्पना का सुफल है सामाजिक समरसता का उत्कृष्ट उदाहरण संघ में सर्वत्र दिखता है। संघ में कभी भी किसी भी स्वयंसेवक से जाति- धर्म नहीं पूछा जाता है। संघ का स्वयंसेवक केवल स्वयंसेवक होता है। सभी एक पंक्ति में एक साथ बैठकर भोजन करते हैं – साथ रहते हैं और संघ कार्य में जुटे रहते हैं। इसी सम्बन्ध में 1 मार्च 2024 को डॉक्टर जी की जीवनी ‘मैन ऑफ द मिलेनिया: डॉ. हेडगेवार’ के विमोचन के अवसर पर संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने उद्बोधन के दौरान कहा था कि — “संघ ने पहले दिन से जाति, अस्पृश्यता के बारे में कभी सोचा तक नहीं। इतना ही नहीं, डॉ हेडगेवार जी ने सामाजिक समरसता के लिए डॉ बाबा साहब अंबेडकर के साथ पुणे में चर्चा-संवाद किया। बाद में बाबासाहब संघ के कार्यक्रम में आए। साळुके जी ने उस बातचीत को अपनी डायरी में रिकॉर्ड किया है। उस पर पुस्तक भी छपी है।”

इसी संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के उद्बोधन/ लेख के इस संक्षिप्तांश से बाबा साहेब अंबेडकर और संघ के अन्तर्सम्बन्धों पर सारगर्भित संदेश प्राप्त होता है — “बाबासाहब को संघ के विषय में पूरी जानकारी थी । 1935 में वह पुणे में महाराष्ट्र के पहले संघ शिविर में आये थे । उसी समय उनकी डॉ. हेडगेवार से भी भेंट हुई थी । वकालत के लिए वे दापोली (महाराष्ट्र) गये थे, तब भी वे वहाँ की संघ शाखा में गये थे और संघ स्वयंसेवकों से दिल खोलकर संघ कार्य के बारे में चर्चा की थी ।1937 की करहाड शाखा (महाराष्ट्र) के विजयादशमी उत्सव पर बाबासाहब का भाषण और उसमें संघ के विषय में प्रगट किए गए उनके विचार जिन्हें आज भी स्मरण हैं, ऐसे लोग आज भी वहाँ हैं ।सितम्बर 1948 में श्री गुरुजी और बाबासाहब की दिल्ली में भेंट हुई थी। गांधीजी की हत्या के बाद सरकार ने द्वेष के कारण संघ पर प्रतिबंध लगाया था, उसे हटवाने के लिए पू. बाबासाहब, सरदार पटेल और श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कोशिश की थी । 1939 में पूना संघ शिक्षा वर्ग में सायंकाल के कार्यक्रम हेतु बाबासाहब आए थे । डॉ. हेडगेवार भी वहीं थे । लगभग 525 पूर्ण गणवेशधारी स्वयंसेवक संघस्थान पर थे। बाबासाहब ने पूछा, ‘इनमें अस्पृश्य कितने हैं ?’

डॉ. हेडगेवार ने कहा, ‘अब आप पूछिए न?’ बाबासाहब ने कहा, “देखो, मैं पहले ही कहता था ।” इस पर डॉ. हेडगेवार ने कहा — “यहाँ हम अस्पृश्य हैं ऐसा किसी को कभी लगने ही नहीं दिया जाता । अब यदि चाहें तो जो उपजातियाँ हैं, उनका नाम लेकर पूछिए ।“ तब बाबासाहब ने कहा – “वर्ग में जो चमार, महार, मांग, मेहतर हों वे एक-एक कदम आगे आएं ।” ऐसा कहते ही कोई सौ से ऊपर स्वयंसेवक आगे आए ।

1953 में मा. मोरोपंत पिंगले, मा. बाबासाहब साठे और प्राध्यापक ठकार औरंगाबाद में बाबासाहब से मिले थे । तब उन्होंने उनसे संघ के बारे में ब्योरेवार जानकारी प्राप्त की । शाखाएँ कितनी हैं, संख्या कितनी रहती है आदि पूछा । वह जानकारी प्राप्त करने के बाद बाबासाहब मोरोपंत जी से कहने लगे, “मैंने तुम्हारी ओ.टी.सी. देखी थी। उसमें जो तुम्हारी शक्ति थी, उसमें इतने वर्षों में जितनी होनी चाहिए थी उतनी प्रगति नहीं हुई। प्रगति की गति बड़ी धीमी दिखाई देती है। मेरा समाज इतने दिन प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं है।”

आगे चलकर संघ ने एकात्मता स्त्रोत में महापुरुषों के पुण्य स्मरण के क्रम में 30वें श्लोक में “ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणो गुरुः ” के रूप में उसी परंपरा को संघ के स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज तक ले जाने के भावबोध को विकसित किया है। अर्थात् डॉ अंबेडकर ने जो सूत्र दिए-जो विचार दिए संघ ने उसे समाज जीवन में साकार किया।

डॉक्टर हेडगेवार से चली आ रही मूल्यों की परंपरा के प्रति संघ के विचार पीढ़ी दर पीढ़ी उसी स्वरूप में दृष्टव्य होते हैं। संघ के वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के समरसता पर केन्द्रित ये विचार उसी भावभूमि को प्रकट करते हैं —

“भारत के प्रत्येक गांव, तहसील और जिले में ऐसी सज्जन शक्ति विद्यमान है जो सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने का कार्य करती है। भारतीय समाज में जाति और पंथ से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी गई है जिससे 140 करोड़ भारतीय किसी भी धर्म, जाति या पंथ से हो। अपने राष्ट्रीय चरित्र को नहीं भूलते। देश में विभिन्न भाषाएं, वेशभूषा, पूजा पद्धतियां और उपासना विधियां होने के बावजूद भारतीयता की डोर उन्हें एक सूत्र में बांधती है। राष्ट्रीय चरित्र की स्थापना के लिए सामाजिक समरसता की जड़ों को मजबूत करना आवश्यक है। मंदिर, जलाशय, शमशान जैसे स्थानों पर सभी जाति, पंथ और वर्गों का समान अधिकार है। यह भारत का शाश्वत आचरण है और इसे बरकरार रखना होगा। ”  ( 30 दिसंबर 2024, रायपुर , छत्तीसगढ़)

अभिप्रायत: संघ और डॉक्टर अंबेडकर के विचारों में साम्य और एकात्म ही नहीं अपितु उसे प्रामाणिकता के साथ कार्य रूप में परिणत करने का शाश्वत बोध भी है। जो संघ कार्य में सर्वत्र प्रतिबिंबित होता है।

इसी प्रकार जब बात स्वातंत्र्य आंदोलन की आती है तो ‘जन्मजात देशभक्त’ स्वतंत्रता सेनानी डॉ हेडगेवार उस समय  अखण्ड भारत की संकल्पना को लेकर तपस्वी स्वयंसेवकों को तैयार कर समाज को संगठित कर रहे थे। समाज के‌ विविध क्षेत्रों में कार्य कर रहे थे। उन्होंने घोषणा की थी “हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है।”

उस समय संघ की शाखा में  सभी स्वयंसेवक यह प्रतिज्ञा लेते थे कि —“मैं अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तन–मन – धन पूर्वक आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प लेता हूं।”

जहां संघ ने अखंड भारत के विचार के साथ

भारत विभाजन का विरोध किया,  वहीं अखंड भारत को लेकर डॉ.अम्बेडकर के भी विचार सुस्पष्ट थे। वे किसी भी स्थिति में भारत विभाजन के पक्षधर नहीं थे। ‘पाकिस्तान एंड पार्टिशन ऑफ इंडिया पुस्तक’ में उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों को लेकर सविस्तार लिखा है। ‘मुस्लिम मानसिकता और इस्लामिक ब्रदरहुड’ पर कटुसत्य उद्धाटित किया है।साथ ही विभाजन को लेकर उन्होंने जहां – जिन्ना को लताड़ा वहीं विभाजन पर कांग्रेस सहित महात्मा गांधी और पंडित नेहरू को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने भारत विभाजन के प्रस्ताव को स्वीकार करने को स्पष्ट रूप से कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टिकरण बताया था। डॉ. अम्बेडकर ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर तीखा प्रहार किया था। उन्होंने पाकिस्तान बन जाने के बाद जनसंख्या की अदला बदली को लेकर स्पष्ट रूप से कहा था —

“प्रत्येक हिन्दू के मन में यह प्रश्न उठ रहा था कि पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्थान से साम्प्रदायिकता का मामला हटेगा या नहीं, यह एक जायज प्रश्न था और इस पर विचार किया जाना जरूरी था। यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के बन जाने से हिंदुस्थान साम्प्रदायिक प्रश्न से मुक्त नहीं हो पाया।पाकिस्तान की सीमाओं की पुनर्रचना कर भले ही इसे सजातीय राज्य बना दिया गया हो लेकिन भारत को तो एक संयुक्त राज्य ही बना रहना चाहिए। हिंदुस्थान में मुसलमान सभी जगह बिखरे हुए हैं, इसलिए वे ज्यादातर कस्बों में एकत्रित होते हैं। इसलिए इनकी सीमाओं की पुनर्रचना और सजातीयता के आधार पर निर्धारण सरल नहीं है। हिंदुस्थान को सजातीय बनाने का एक ही रास्ता है कि जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो, जब तक यह नहीं किया जाता तब तक यह स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी, बहुसंख्यक समस्या बनी रहेगी। हिंदुस्थान में अल्पसंख्यक पहले की तरह ही बचे रहेंगें और हिंदुस्थान की राजनीति में हमेशा बाधाएं पैदा करते रहेंगे।” (पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया संस्करण 1945, थाकेर एंड क., पृष्ठ-104)

उपरोक्त संदर्भों एवं विवेचनों से सुस्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारत की महान परंपरा को दर्शन बनाकर – कार्यों में प्रकट किया।व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का ध्येय लेकर समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आदर्शों का उदाहरण प्रस्तुत किया। राष्ट्र के महापुरुषों और गौरवशाली परंपरा के अनुरूप राष्ट्रीयता के ‘पाञ्चजन्य’ का शंखनाद किया। यह इसीलिए फलीभूत हुआ क्योंकि संघ ने ‘व्यक्तिनिष्ठ’ नहीं अपितु ‘तत्वनिष्ठ’ प्रणाली को चरितार्थ किया। इसी का प्रतिफल है कि संघ कार्यों की समाज जीवन में व्यापक स्वीकार्यता हुई।राष्ट्रीयता समरसता, एकता, बंधुता और एकात्मता के उन्हीं मूल्यों के साथ संघ आगे बढ़ा जिसका स्वप्न डॉ अंबेडकर जैसे महापुरुष देखा करते थे।संघ में जो कुछ भी है वह समाज का ही है और संघ की स्पष्ट मान्यता है कि ‘समूचा समाज संघ बने और संघ ही समाज बने’। इसी संदर्भ में डॉ मोहन भागवत के ये विचार  प्रासंगिक है— “संघ पूरे समाज को अपना मानता है।‌ एक दिन यह बढ़ते-बढ़ते समाज का रूप ले लेगा तब संघ का यह नाम भी हट जाएगा और हिंदू समाज ही संघ बन जाएगा।” ( 18 अप्रैल, 2023 , ब्रम्हपुर (बुरहानपुर) मप्र)

 

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डॉ. हेडगेवार व डॉक्टर अंबेडकर : राष्ट्रोत्थान का समवेत स्वर https://visionviksitbharat.com/dr-hedgewar-and-dr-ambedkar-a-unified-voice-for-national-upliftment/ https://visionviksitbharat.com/dr-hedgewar-and-dr-ambedkar-a-unified-voice-for-national-upliftment/#respond Sun, 30 Mar 2025 13:02:42 +0000 https://visionviksitbharat.com/?p=1544   डॉक्टर अंबेडकर और डॉक्टर हेडगेवार में हिंदुओं को एकजुट करने और राष्ट्र के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दृष्टि थी।…

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डॉक्टर अंबेडकर और डॉक्टर हेडगेवार में हिंदुओं को एकजुट करने और राष्ट्र के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दृष्टि थी।

 

आज, 30 मार्च, जो हिंदू नववर्ष है, विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दीक्षा भूमि और स्मृति मंदिर का दौरा किए। हिंदू नववर्ष के दौरान हिंदू समुदाय को एकजुट करने के लिए समानता और समभाव का संदेश देखने को मिलेगा। दोनों अद्भुत आदर्शों डॉक्टर अंबेडकर और डॉक्टर हेडगेवार में हिंदुओं को एकजुट करने और राष्ट्र के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दृष्टि थी। यद्यपि उनके रास्ते अलग-अलग थे, लेकिन राष्ट्र-प्रथम के दृष्टिकोण और हिंदू और अन्य संस्कृतियों के गहन परीक्षण ने उन्हें यह एहसास दिलाया कि केवल हिंदू एकता ही महान भारत का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

पिछले एक दशक में, पीएम मोदी ने सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को कम करने और हाशिए के समूहों की स्थिति को ऊपर उठाने की कोशिश की है  परिणामस्वरूप, जब डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने आरएसएस शाखा का दौरा किया, तो उन्होंने देखा कि कोई भी जाति के बारे में बात नहीं करता है और सभी एक स्वाभाविक मित्र या भाई हैं और उनके साथ समान व्यवहार किया जाता है। अपनी स्थापना के बाद से, आरएसएस ने कभी भी जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया है। संघ के स्वयंसेवक हमेशा “समता”, “ममता” और “समरसता” में विश्वास करते हैं, जो भौतिक और भावनात्मक रूप से अपनेपन की भावना से जुड़े हैं। आरएसएस ने सत्य का प्रचार करके और इसे जमीनी स्तर पर लागू करके हमारे समाज में अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए बड़े प्रयास किए हैं। 100 वर्षों से, आरएसएस और संबद्ध संस्थानों और संगठनों ने समाज के प्रत्येक वर्ग को प्यार और करुणा के साथ ऊपर उठाने का काम किया है। विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जमीन पर किए गए प्रयास प्रभावशाली हैं। आरएसएस के दो संगठन, वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती, एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य जनजातियों के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं, और गरीब और हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान के लिए अपनेपन और स्नेह के साथ सेवा करने का सबसे अच्छा उदाहरण हैं।

डॉ. अंबेडकर, श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी और संघ

डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के अनुसूचित जाति महासंघ के दलित नेताओं के एक समूह ने एक बार उनसे पूछा कि उन्होंने ब्राह्मण दत्तोपंत ठेंगड़ी को महासंघ का महासचिव क्यों बनाया है। जब बाबा साहब ने यह सुना, तो उन्होंने कहा, “जिस दिन तुममें से कोई भी ठेंगड़ी से बड़ा दलित बन जाएगा, मैं तुम्हें महासंघ का महासचिव बना दूंगा।” ये कथन दत्तोपंत ठेंगड़ी पर उनके विश्वास को दर्शाते हैं, जो संघ प्रचारक और बीएमएस के अध्यक्ष थे और जिन्होंने 1952 से 1956 तक उनके साथ मिलकर काम किया था। श्री ठेंगड़ी ने इस बात पर जोर दिया कि बाबा साहब द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त करने के प्रयासों का उद्देश्य एकता के माध्यम से हिंदू समाज को मजबूत करना था। तथाकथित अछूत हिंदू समाज का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं। परिणामस्वरूप, अस्पृश्यता का उन्मूलन एक राष्ट्रीय मुद्दा है।

बाबा साहब आरएसएस के बारे में पूरी तरह से जानकार थे। 1935 में, उन्होंने पुणे में महाराष्ट्र के पहले आरएसएस संघ शिक्षा वर्ग का दौरा किया। तब उनकी मुलाकात डॉ. हेडगेवार से हुई।  बाबासाहेब एक निजी यात्रा पर दापोली गए थे। फिर वे स्थानीय संघ शाखा में गए और स्वयंसेवकों से खुलकर चर्चा की। 1939 में, बाबासाहेब ने पुणे में संघ शिक्षा वर्ग का दौरा किया और डॉ. हेडगेवार के साथ स्वयंसेवकों से बातचीत की। महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगे गैरकानूनी प्रतिबंध को खत्म करने में भी बाबासाहेब ने अहम भूमिका निभाई थी। सितंबर 1949 में श्री गुरुजी ने औपचारिक रूप से उनके समर्थन के लिए उनका आभार व्यक्त किया।

स्रोत: डॉ. अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’, लोकहित प्रकाशन, लखनऊ द्वारा प्रकाशित

संघ के सरसंघचालकों के विचार और कार्य डॉ. आंबेडकर के विचारों और कार्यों से कैसे मेल खाते थे?

देखिए तीसरे सरसंघचालक बालासाहेब देवरस जी ने अस्पृश्यता के बारे में क्या कहा। अगर जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता को खत्म करना है, तो उन लोगों में बदलाव लाना होगा जो उनमें विश्वास करते हैं। ऐसे लोगों पर हमला करने या उनका मुकाबला करने के बजाय, दूसरा विकल्प हो सकता है। मुझे संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। वे कहते थे, “हमें अस्पृश्यता को मानने या उसका पालन करने की ज़रूरत नहीं है।” इसी आधार पर उन्होंने संघ की शाखाएँ बनाईं, जो पाठ्यक्रमों और कार्यक्रमों का संग्रह है। उस समय भी ऐसे लोग थे जो विपरीत विचारधारा रखते थे। हालाँकि, डॉ. हेडगेवार को भरोसा था कि वे आज नहीं तो कल उनके विचारों से सहमत होंगे। नतीजतन, उन्होंने इस बारे में कोई विरोध नहीं किया, किसी के साथ लड़ाई नहीं की, या किसी के न मानने पर कोई नकारात्मक कार्रवाई नहीं की। क्योंकि उन्हें भरोसा था कि सामने वाले व्यक्ति के इरादे भी अच्छे थे।  कुछ गलत अवधारणाओं और आदतों के कारण, वह पहले तो आशंकित हो सकता है, लेकिन पर्याप्त समय के साथ, वह निश्चित रूप से अपनी गलतियों से सीख लेगा। शुरुआती दिनों में, संघ के एक शिविर में कुछ भाई अपने अनुसूचित जाति समुदाय के भाइयों के साथ भोजन करने में झिझकते थे। डॉ. हेडगेवार ने नियमों के बारे में नहीं बताया और न ही उन्हें शिविर से बाहर निकाला। अन्य स्वयंसेवक, डॉ. हेडगेवार और मैं दोपहर के भोजन के लिए एक साथ बैठे। जो झिझक रहे थे, वे अलग बैठे। हालाँकि, दूसरे दोपहर के भोजन के दौरान, वही भाई हमारे पास आए और हम सभी के साथ बैठ गए।

बाला साहेब देवरस जी, पुणे वसंत व्याख्यानमाला (1974)

आरएसएस, द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी की वीएचपी सम्मेलन में सबसे बड़ी उपलब्धि उपस्थित लोगों को वर्णाश्रम या जाति व्यवस्था को अस्वीकार करने के लिए राजी करना था, और सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करना था हिंदवा: सोदरा: सर्वे, न हिंदू पतितो भवेत् (सभी हिंदू एक ही गर्भ (भारत माता) से पैदा हुए हैं। नतीजतन, वे एक हैं, और किसी भी हिंदू को अछूत नहीं कहा जाना चाहिए। यह सबसे महत्वपूर्ण सुधारवादी अभियान था जिसकी कोई कल्पना कर सकता था, क्योंकि हस्ताक्षरकर्ताओं में सभी शंकराचार्य शामिल थे जो जाति व्यवस्था में कट्टर विश्वास रखते थे। ऐसे व्यक्ति पर ‘ब्राह्मणवादी आधिपत्य’ थोपने का आरोप लगाना या तो गलत आलोचना है या जानबूझकर किया गया अपप्रचार है।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और हिंदू धर्म

प्रसिद्ध राष्ट्रवादी और गतिशील व्यक्तित्व वाले डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर मुखर थे। इस तथ्य के बावजूद कि कम्युनिस्टों और अन्य राजनीतिक ताकतों ने उन्हें हिंदू धर्म के विरोधी के रूप में प्रस्तुत किया है। हालांकि, उन्होंने देश के इतिहास का तिरस्कार नहीं किया; बल्कि, उन्होंने उस समय मौजूद अंधविश्वासी संस्कृति और व्यापक जातिगत भेदभाव का तिरस्कार किया। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘रिडल्स ऑफ हिंदूइज्म’ में यहां तक ​​कहा कि, जहां पश्चिम का मानना ​​है कि उन्होंने लोकतंत्र की स्थापना की, वहीं हिंदू ‘वेदांत’ में उसी की अधिक प्रमुख और स्पष्ट बातें हैं, जो किसी भी पश्चिमी अवधारणा से पुरानी है।

बाबासाहेब हिंदू विरोधी नहीं थे, लेकिन वे हिंदू धर्म की कई कुप्रथाओं और भेदभावपूर्ण मानदंडों के विरोधी थे। अगर उन्हें हिंदू धर्म से घृणा होती, तो वे इसे और कमजोर करने के लिए इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लेते। हालांकि, उन्होंने बौद्ध धर्म को चुना क्योंकि इसके विचार हिंदू धर्म के विचारों के बेहद करीब हैं।  हिंदू धर्म के कई दुश्मन उनके हिंदू धर्म विरोधी बयानों की ओर इशारा करते हैं, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि वे उस समय की प्रतिक्रियाएँ थीं, और प्रतिक्रियाएँ क्षणिक भावनाएँ होती हैं जो किसी के चरित्र या संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को स्थापित नहीं कर सकती हैं। अधिकांश प्रतिक्रियाएँ कुछ प्रथाओं पर आक्रोश से प्रेरित थीं, इसलिए यह दावा करना कि वह हिंदू विरोधी थे, छोटी मानसिकता दिखाता है।

हम सकारात्मक बदलाव को प्रभावित करने के लिए अपने परिवार के सदस्यों के लिए प्यार से कठोर शब्दों का प्रयोग करते हैं, जैसा कि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने किया था। उस समय उनकी लोकप्रियता और प्रमुखता ने उन्हें हिंदुओं और भारत को बहुत नुकसान पहुँचाने में सक्षम बनाया था, लेकिन वह एक देशभक्त थे जो सच्चाई से परिचित थे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर उन्होंने ईसाई धर्म या इस्लाम अपना लिया होता तो क्या परिणाम होते? उन्होंने देखा कि हर धर्म और विचारधारा में दोष होते हैं जिन्हें संबोधित करने और सुधारने की आवश्यकता होती है। उन्हें उम्मीद थी कि हिंदू सामाजिक असमानता को मिटाने के लिए कदम उठाएँगे, इसलिए उन्होंने हिंदू नेताओं को सुधारात्मक उपायों को लागू करने के लिए समय सीमा तय की।  हालाँकि, हिंदुओं के बीच लगातार जातिगत अलगाव, मुगलों और अंग्रेजों द्वारा फैलाई गई गुलामी की मानसिकता के साथ मिलकर, हिंदुओं के लिए सामाजिक असमानता के इस मुद्दे को हल करना असंभव बना दिया। डॉक्टर अंबेडकर जानते थे कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा खड़ी की गई बाधाएँ भी हिंदुओं के पतन में योगदान दे रही थीं।

 

डॉ. आंबेडकर और डॉ. हेडगेवार ऐसे प्रतीक हैं जिनके दर्शन की आवश्यकता न केवल हमारे राष्ट्र को है, बल्कि पूरे विश्व को है। एकता की शक्ति ही समाज में और सीमाओं के पार शांति ला सकती है। इन दो महान असाधारण डॉक्टरों के दर्शन के अनुसार एकता के मार्ग पर चलने से मानवता का बहुत भला होगा। आइए हम मानवता के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने के लिए एक साथ आगे बढ़ें और भारतीयता के मूल्यों का उपयोग करके राष्ट्र का सामाजिक-आर्थिक निर्माण करें, ताकि हमारे राष्ट्र की महानता को पुनः स्थापित किया जा सके। दो डॉक्टरों के आदर्श भारत और पूरे विश्व में महानता का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इस विचारधारा से प्रभावित एकजुट हिंदू धर्म, जाति या पंथ की परवाह किए बिना सभी के साथ अद्भुत संबंध और बंधन बनाएगा। आइए हम इन महान नेताओं के पदचिन्हों पर चलें और अपने देश और दुनिया को अधिक स्वस्थ, अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध बनाएं। मानवता के दोनों डॉक्टरों को प्रणाम।

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आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं।

 

दिनांक 21 से 23 मार्च तक बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में दशहरा के पावन पर्व पर हुई थी, और इस प्रकार संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं इस वर्ष दशहरा के शुभ अवसर पर ही अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लेगा।

संघ की स्थापना विशेष रूप से भारतीय हिंदू समाज में राष्ट्रीयत्व का भाव जागृत करने एवं हिंदू समाज के बीच समरसता स्थापित करने के लक्ष्य को लेकर हुई थी। इन 100 वर्षों के अपने कार्यकाल में संघ ने हिंदू समाज को एकजुट करने में सफलता तो हासिल कर ही ली है साथ ही विशेष रूप से समाज की सज्जन शक्ति में राष्ट्रीयत्व का भाव पैदा करने में सफलता अर्जित की है। सज्जन शक्ति समाज की वह शक्ति है कि जिनकी बात समाज में गम्भीरता से सुनी जाती है एवं उस पर अमल करने का प्रयास भी होता है। संघ ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु शाखाओं की स्थापना की थी। इन शाखाओं में देश की युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयत्व का भाव जगाकर ऐसे स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं जो समाज के बीच जाकर देश के आम नागरिकों में राष्ट्र भावना का संचार करते हैं एवं समाज के बीच समरसता का भाव पैदा करने का प्रयास करते हैं।

संघ द्वारा स्थापित की गई शाखाओं की कार्यपद्धति पर आज विश्व के अन्य कई देशों में शोध कार्य किए जाने के बारे में सोचा जा रहा है कि किस प्रकार संघ द्वारा स्थापित इन शाखाओं से निकला हुआ स्वयंसेवक समाज परिवर्तन में अपनी महती भूमिका निभाने में सफल हो रहा है और पिछले लगातार 100 वर्षों से इस पावन कार्य में संलग्न है। हाल ही में, दिनांक 14 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक (44 दिन) प्रयागराज में लगातार चले एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए महाकुम्भ के मेले में पूरे विश्व से 66 करोड़ से अधिक हिंदू धर्मावलम्बियों ने पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। इतनी भारी संख्या में हिंदू समाज कभी भी किसी महान धार्मिक आयोजन में शामिल नहीं हुआ होगा और संभवत: पूरे विश्व में कभी भी इस तरह का आयोजन सम्पन्न नहीं हुआ होगा। इस महाकुम्भ में समस्त हिंदू समाज एकजुट दिखाई दिया, न किसी की जाति, न किसी का मत, न किसी के पंथ का पता चला। बस केवल सनातनी हिंदू हैं, यही भावना समस्त श्रद्धालुओं में दिखाई दी। इसी का प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से करता आ रहा है।

संघ द्वारा आज न केवल भारतीय हिंदू समाज को एकता के सूत्र में पिरोए जाने का कार्य किया जा रहा है बल्कि पूरे विश्व में अन्य देशों में निवासरत भारतीय मूल के हिंदू समाज के नागरिकों को भी एक सूत्र में पिरोए जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह कार्य संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संघ की शाखा में प्राप्त प्रशिक्षण के बाद सम्पन्न किया जाता है। संघ द्वारा संचालित शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 के 73,117 से बढ़कर वर्ष 2025 में 83,129 हो गई है। इन शाखाओं के लगने वाले स्थानों की संख्या भी वर्ष 2024 में 45,600 से बढ़कर 51,710 हो गई है। विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के उद्देश्य से विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए विद्यार्थी संयुक्त शाखाएं भी देश के विभिन्न भागों में लगाई जाती हैं।  विद्यार्थी संयुक्त शाखाओं की संख्या 17 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 20224 में 28,409 से बढ़कर वर्ष 2025 में 33,129 हो गई हैं। इसी प्रकार महाविद्यालयीन छात्रों के लिए भी विशेष शाखाएं लगाई जाती हैं।

महाविद्यालयीन (केवल तरुणों के लिए) शाखाओं की संख्या 10 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 5,465 से बढ़कर वर्ष 2025 में 5,991 हो गई है। तरुण व्यवसायी शाखाओं की संख्या भी 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 21,718 से बढ़कर वर्ष 2025 में 24,748 हो गई है, इस शाखाओं में विशेष रूप से तरुणों को शामिल किया जाता है। प्रौढ़ व्यवसायी शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 8,241 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,397 हो गई है एवं बाल शाखाओं की संख्या भी वर्ष 2024 में 9,284 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,864 हो गई है। बाल शाखाओं में छोटी उम्र के बालकों को शामिल किया जाता है।

उक्त वर्णित शाखाओं के माध्यम से आज संघ का देश के कोने कोने में विस्तार सम्भव हुआ है। संघ की दृष्टि से देश भर में कुल खंडों की संख्या 6,618 है। इनमें से शाखायुक्त खंडों की संख्या वर्ष 2024 में 5,868 थी जो वर्ष 2025 में बढ़कर 6,112 हो गई है। साथ ही, कुल 58,939 मंडलों में से 30,770 मंडलों में संघ की शाखा लगाई जा रही है। देश भर में महानगरों के अतिरिक्त कुल 2,556 नगर हैं। इन नगरों में से 2,476 नगरों में संघ की शाखा पहुंच गई है।

संघ द्वारा विभिन्न श्रेणियों यथा चिकित्सक, अधिवक्ता, शिक्षक, सेवा निवृत अधिकारी एवं कर्मचारी, पत्रकार,  प्रोफेसर, युवा उद्यमी जैसी श्रेणीयों के लिए साप्ताहिक मिलन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। आज देश भर में 32,147 साप्ताहिक मिलन लगाए जा रहे हैं। साथ ही, संघ मंडलियों का गठन भी किया गया है और आज देश भर में 12,091 संघ मंडलियां भी नियमित रूप से लगाई जा रही हैं। भारत में संघ द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सेवा कार्यों को सम्पन्न करने की दृष्टि से 37,309 सेवा बस्तियां हैं। इनमें से 9,754 सेवा बस्तियां संघ की शाखा से युक्त हैं।

संघ के स्वयसेवकों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से देश भर में प्राथमिक शिक्षा वर्ग भी लगाए जाते हैं। वर्ष 2023-24 में कुल 1,364 प्राथमिक शिक्षा वर्ग लगाए गए एवं इन प्राथमिक शिक्षा वर्गों में 31,070 शाखाओं के 106,883  स्वयंसेवकों ने भाग लिया।

वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ता दिखाई दे रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है।  आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं। हिंदू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भारत से नई उड़ान भर रहे युवाओं को जोड़ा जाता है ताकि एक तो विदेशों में इनकी कठिनाईयों को दूर किया जा सके तथा दूसरे इनमें सनातन संस्कृति के भाव को जागृत किया जा सके। साथ ही, इन युवाओं के भारत में रह रहे बुजुर्ग माता पिता से भी सम्पर्क बनाया जाता है। संघ के स्वयंसेवक भारत में इनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास भी करते हैं। भारत में धार्मिक पर्यटन पर आने वाले भारतीय मूल के नागरिकों की सहायता भी संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने का प्रयास किया जाता है तथा भारतीय मूल के नागरिक यदि भारत में वापिस आकर बसने के बारे में विचार करते हैं तो उन्हें भी इस सम्बंध में उचित सहायता उपलब्ध कराए जाने का प्रयास किया जाता है।

कुल मिलाकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू सनातन संस्कृति को भारत के जन जन के मानस में प्रवाहित करने का कार्य करने का प्रयास कर रहा है ताकि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो एवं उनके लिए भारत प्रथम प्राथमिकता बन सके। यह कार्य संघ की शाखाओं में प्रशिक्षित होने वाले स्वयसेवकों द्वारा समाज के बीच में जाकर करने का सफल प्रयास किया जा रहा है। और, यह कार्य आज पूरे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए एक आवश्यक आवश्यकता भी बन गया है।

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