लेखक: शिवेश प्रताप
भारतीय इतिहास में ऐसे महापुरुष विरले ही हुए हैं, जिनका जीवन समाज के हर पहलू को स्पर्श करता हो। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय उन्हीं में से एक थे। आज, उनके जन्मदिवस पर, हम उस व्यक्तित्व को स्मरण कर रहे हैं, जिसने न केवल हिंदू समाज बल्कि पूरे राष्ट्र के विकास के लिए अपनी ऊर्जा और दृष्टि समर्पित की। मालवीय जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि धर्म, शिक्षा, समाज सुधार और कूटनीति के माध्यम से भी राष्ट्र को सशक्त बनाया जा सकता है।
BHU: विराट योगदान का एक अंश मात्र
मालवीय जी को अक्सर काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्थापक के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह उनके कार्यों का केवल एक अंश है। उन्होंने 1916 में BHU की स्थापना की, जो न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ। BHU में आज 30,000 से अधिक छात्र पढ़ते हैं और यह विश्व के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक है। इसका उद्देश्य भारतीय मूल्यों और आधुनिक शिक्षा के संयोजन को बढ़ावा देना था। यहां वैदिक ज्ञान से लेकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी तक की शिक्षा दी जाती है।
हरिजन उद्धार में अग्रणी भूमिका
जब भारत में अस्पृश्यता सामाजिक समस्या बनी हुई थी, तब महामना ने हरिजनों के उद्धार के लिए अनगिनत कार्य किए। 1932 के पूना समझौते में उनकी भूमिका निर्णायक थी। उन्होंने पहले हस्ताक्षर किए, और उनके बाद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने हस्ताक्षर किए। महामना ने 1916 में हरिजनों के लिए मंदिरों के द्वार खोलने का आंदोलन चलाया। 1933 में प्रयागराज कुंभ मेले के दौरान उन्होंने हरिजनों के लिए गंगा स्नान का आयोजन किया, जिसे तत्कालीन सामाजिक बाधाओं के बावजूद व्यापक समर्थन मिला।
शिक्षा के प्रति योगदान
मालवीय जी का मानना था कि शिक्षा ही वह माध्यम है, जिससे समाज को सशक्त बनाया जा सकता है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया और भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका को सशक्त किया। उनके प्रयासों से 1918 में महिला शिक्षा पर जोर दिया गया, और BHU में महिला छात्रों के लिए विशेष प्रावधान किए गए। उन्होंने न केवल अंग्रेजी शिक्षा बल्कि संस्कृत और भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा दिया।
धर्म और राष्ट्र की रक्षा में भूमिका
महामना ने धर्म को राजनीति से ऊपर रखा और इसे समाज की आत्मा के रूप में देखा। उन्होंने 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। 1906 में, जब मुसलमानों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र की मांग उठी, तो मालवीय जी ने इसका प्रबल विरोध किया। उन्होंने ‘हिंदू महासभा’ की स्थापना में योगदान दिया, जिसका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना था।
कूटनीति और अंग्रेजी शासन का विरोध
मालवीय जी की कूटनीतिक क्षमता अद्वितीय थी। 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने ब्रिटिश हाउस ऑफ लॉर्ड्स में इस घटना के खिलाफ आंदोलन किया। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार में सक्रिय भूमिका निभाई। ‘अभ्युदय’ नामक अखबार के माध्यम से उन्होंने अंग्रेजी शासन की नीतियों की आलोचना की और भारतीय समाज को जागरूक किया।
धर्म-आधारित समाज सुधार
मालवीय जी ने धर्म को समाज सुधार का आधार बनाया। उनके प्रयासों से सैकड़ों मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश की अनुमति मिली। उन्होंने सनातन धर्म की परंपराओं को संरक्षित करते हुए आधुनिक विचारों को अपनाने की वकालत की। वे कहते थे, “धर्मनीति से बड़ा कोई मार्गदर्शक नहीं हो सकता।”
सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
मालवीय जी के कार्यों ने समाज में सांस्कृतिक चेतना को प्रोत्साहित किया। 1915 में ‘भारत धर्म महामंडल’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करना था। उन्होंने गोहत्या बंदी के लिए अभियान चलाए और गाय को भारतीय समाज का प्रतीक मानते हुए इसके संरक्षण की वकालत की।
आज के संदर्भ में मालवीय जी के विचारों की प्रासंगिकता
आज, जब हमारा समाज नैतिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है, हमें मालवीय जी के विचारों और आदर्शों को अपनाने की आवश्यकता है। उनकी शिक्षा नीति हमें बताती है कि शिक्षा को भारतीय मूल्यों के अनुरूप होना चाहिए। उनका सामाजिक सुधार का दृष्टिकोण हमें समावेशिता और समानता का महत्व सिखाता है। उनकी कूटनीति और देशभक्ति आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
महामना मदन मोहन मालवीय केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि विचारों और आदर्शों का समूह थे। उनका जीवन भारतीय समाज के लिए एक ऐसी धरोहर है, जिसे हमें संरक्षित करना चाहिए। उनकी दृष्टि में धर्म, शिक्षा, समाज सुधार और राष्ट्र सेवा का अद्वितीय समन्वय था। आज हमें उनके विचारों को अपने जीवन में अपनाकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए।
महामना का योगदान केवल इतिहास का हिस्सा नहीं है, बल्कि वह वर्तमान और भविष्य के लिए मार्गदर्शक है।
(यह लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)