भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है, और जलवायु परिवर्तन इसकी स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है। इस आवश्यकता को समझते हुए, नरेंद्र मोदी सरकार ने जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई नवाचारशील पहलें लागू की हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और किसानों की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो सके। प्रौद्योगिकी उन्नयन, ऋण सुधार और सतत कृषि पद्धतियों के माध्यम से सरकार ने भारत को जलवायु-स्मार्ट कृषि में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है।
जलवायु-लचीली कृषि तकनीक: एक गेम चेंजर
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DA&FW) जलवायु-लचीली कृषि तकनीकों के विकास और विस्तार में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। राष्ट्रीय नवाचार जलवायु-लचीली कृषि (NICRA) पहल के तहत, ICAR ने जलवायु-अनुकूल रणनीतियाँ विकसित की हैं ताकि सूखा, बाढ़, पाला और लू जैसी चरम मौसम स्थितियों से निपटा जा सके। NICRA तीन प्रमुख स्तंभों – रणनीतिक अनुसंधान, तकनीक प्रदर्शन और क्षमता निर्माण पर आधारित है, जिससे जलवायु लचीलेपन को संपूर्णता प्रदान की जाती है।
साथ ही, ICAR जलवायु सहनशील फसलों के विकास में भी सक्रिय रूप से कार्यरत है। सरकार ने देश के सबसे अधिक संवेदनशील जिलों की पहचान करके किसानों के लिए उपयुक्त समाधान प्रदान किए हैं, जिससे वे जलवायु अनिश्चितताओं के बावजूद अपनी उत्पादकता बनाए रख सकें।
रणनीतिक मिशनों के माध्यम से सतत कृषि
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) के तहत, DA&FW टिकाऊ कृषि तकनीकों को बढ़ावा देकर जलवायु लचीलेपन को सशक्त बना रहा है। इस पहल के तहत, पर ड्रॉप मोर क्रॉप, वर्षा आधारित क्षेत्र विकास और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन जैसी प्रमुख योजनाओं ने जल उपयोग दक्षता और मृदा उर्वरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे दीर्घकालिक कृषि स्थिरता सुनिश्चित होती है।
साथ ही, समन्वित कृषि प्रणाली पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम (AICRP-IFS) 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया है। यह कार्यक्रम कृषि विविधीकरण को प्रोत्साहित करता है, जिससे किसान पारंपरिक जल-गहन फसलों पर निर्भर न रहकर दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और पोषक अनाज जैसी वैकल्पिक फसलों की ओर बढ़ सकें।
कृषि विविधीकरण: एक सतत भविष्य की ओर
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (PM-RKVY) पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण पहल रही है। इस योजना के तहत, किसानों को धान जैसी अधिक जल-खपत करने वाली फसलों से दलहन, तिलहन और कृषि वानिकी जैसी टिकाऊ फसलों की ओर प्रेरित किया गया है। इससे न केवल जल संरक्षण को बढ़ावा मिला है बल्कि मृदा की उर्वरता भी संरक्षित हुई है।
इसके अलावा, सरकार ने इस योजना को आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों तक विस्तारित किया है, जहाँ किसानों को तंबाकू की खेती छोड़कर वैकल्पिक फसलों की ओर प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह कदम पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यंत लाभदायक है।
वर्ष 2023-24 में कृषि उन्नति योजना के तहत 17 राज्यों के 75 जिलों में विशेष पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, जिससे जल-गहन फसलों की जगह दलहन, मोटे अनाज और तिलहन जैसी फसलों को अपनाया जा सके। इस परियोजना में 19 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और 5 ICAR संस्थानों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है, जिससे वैज्ञानिक आधार पर इस योजना को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जा सके।
जल संरक्षण हेतु “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” योजना
वर्ष 2015-16 में शुरू की गई पर ड्रॉप मोर क्रॉप (PDMC) योजना ने भारतीय कृषि में जल उपयोग दक्षता को नया आयाम दिया है। इस योजना के तहत, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी माइक्रो-सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा दिया गया है, जिससे किसान कम जल में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
इस योजना के अंतर्गत, छोटे और सीमान्त किसानों को 55% तथा अन्य किसानों को 45% की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जिससे जल-संरक्षण आधारित कृषि तकनीकों को सभी किसानों तक पहुँचाया जा सके। ICAR-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान अपने 26 नेटवर्क केंद्रों के माध्यम से वैज्ञानिक सिंचाई तकनीकों का प्रचार-प्रसार कर रहा है, जिससे किसानों को न्यूनतम जल उपयोग से अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके।
कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना
KVKs जमीनी स्तर पर जलवायु लचीलापन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। देशभर में फैले 731 कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) किसानों को उनकी क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप तकनीकी प्रशिक्षण और प्रदर्शन प्रदान कर रहे हैं।
देश के 151 जलवायु जोखिम-प्रवण जिलों में, KVKs NICRA के तहत विशेष प्रदर्शन कार्यक्रम चलाते हैं, जिससे इन क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को लक्षित सहायता प्राप्त हो सके।
इसके अलावा, KVKs में ग्राम जलवायु जोखिम प्रबंधन समितियाँ, बीज और चारा बैंक, तथा कस्टम हायरिंग सेंटर भी उपलब्ध हैं, जो किसानों को समय पर कृषि संचालन करने में सहायता प्रदान करते हैं। इन केंद्रों के माध्यम से मौसम आधारित परामर्श भी प्रदान किया जाता है, जिससे किसान अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तनों का प्रभावी समाधान निकाल सकें।
सतत और समृद्ध कृषि क्षेत्र की ओर मोदी सरकार की दूरदृष्टि
मोदी सरकार की जलवायु-लचीली कृषि को लेकर की गई पहलें परिवर्तनकारी सिद्ध हुई हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान, वित्तीय सहायता और नीति-आधारित स्थिरता को एकीकृत करके, भारत न केवल जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम कर रहा है, बल्कि किसानों को समृद्ध भविष्य के लिए आवश्यक संसाधन और ज्ञान भी प्रदान कर रहा है।
फसल विविधीकरण, जल संरक्षण, और उन्नत जलवायु सहनशील तकनीकों जैसी साहसिक नीतियों के माध्यम से, भारत एक आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। इन प्रयासों से मोदी सरकार ने अपने आत्मनिर्भर, सतत और जलवायु-लचीली कृषि क्षेत्र की परिकल्पना को पुनः सशक्त किया है, जिससे भारत एक वैश्विक कृषि महाशक्ति बना रहे और किसानों के हितों की रक्षा सुनिश्चित हो सके।