वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में मध्यमवर्गीय परिवारों को देनी होगी राहत

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वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच सेवा के क्षेत्र में रोजगार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच इसमें 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस सबका असर बेरोजगारी की दर में कमी के रूप में देखने में आया है।

 

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में मध्यमवर्गीय परिवारों की प्रमुख भूमिका रहती है। देश में ही निर्मित होने वाले विभिन्न उत्पादों की मांग इन्हीं परिवारों के माध्यम से निर्मित होती है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे परिवार जब मध्यमवर्गीय परिवारों की श्रेणी में शामिल होते हैं तो उन्हें नया स्कूटर, नया फ्रिज, नया एयर कंडिशनर, नया टीवी एवं इसी प्रकार के कई नए पदार्थों (उत्पादों) की आवश्यकता महसूस होती है। साथ ही, नए मकानों की मांग भी मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच से ही निर्मित होती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि जिस देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ती है उस देश का आर्थिक विकास भी उतनी ही तेज गति से आगे बढ़ता है।

भारत में भी हाल ही के वर्षों में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज हुई है। परंतु, मुद्रा स्फीति, कर का बोझ एवं इन परिवारों की आय में वृद्धि दर में आ रही कमी के चलते इन परिवारों की खर्च करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, जिससे कई कम्पनियों का यह आंकलन सामने आया है कि विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की मांग में कमी दृष्टिगोचर हुई है। विशेष रूप से उपभोक्ता वस्तुओं (Fast Moving Consumer Goods – FMCG) के क्षेत्र में उत्पादन करने वाली कम्पनियों का इस संदर्भ में आंकलन बेहद चौंकाने वाला है। साथ ही, वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में इन कम्पनियों द्वारा उत्पादित उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री एवं लाभप्रदता में भी कमी दिखाई दी है।

गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही विभिन्न सहायता योजनाओं का लाभ अब सीधे ही इन परिवारों को पहुंचने लगा है। 80 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रतिमाह मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। किसानों के खातों में सहायता राशि सीधे ही जमा की जा रही है। विभिन्न राज्यों द्वारा लाड़ली लक्ष्मी योजना, लाड़ली बहिना योजना आदि माध्यम से महिलाओं के खातों में सीधे ही राशि जमा की जा रही है। इसके साथ ही इन परिवारों के सदस्यों को रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध होने लगे हैं। जिससे इस श्रेणी के परिवारों में से कई परिवार अब मध्यमवर्गीय श्रेणी के परिवारों में शामिल हो रहे हैं।

केंद्रीय श्रम मंत्री ने हाल ही में भारतीय संसद को बताया है कि देश में पिछले 10 वर्षों में रोजगार उपलब्ध नागरिकों की संख्या 36 प्रतिशत बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 64.33 करोड़ के स्तर पर आ गई है, यह संख्या वर्ष 2014-15 में 47.15 करोड़ के स्तर पर थी। वर्ष 2024 से वर्ष 2014 के बीच, 10 वर्षों में रोजगार में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी अर्थात इस दौरान केवल 2.9 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हो सकीं थी, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के बीच 17.19 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हुई हैं, यह लगभग 6 गुना से अधिक की वृद्धि दर्शाता है। पिछले केवल एक वर्ष अर्थात वित्तीय वर्ष 2023-24 के बीच ही देश में लगभग 4.6 करोड़ नौकरियां सृजित हुई हैं। कृषि क्षेत्र में वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में 16 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच कृषि के क्षेत्र में रोजगार में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई हैं। इसी प्रकार विनिर्माण के क्षेत्र में भी वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में केवल 6 प्रतिशत दर्ज हुई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच विनिर्माण के क्षेत्र में रोजगार में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। सेवा के क्षेत्र में तो और भी अधिक तेज वृद्धि दर्ज हुई है।

वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच सेवा के क्षेत्र में रोजगार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच इसमें 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस सबका असर बेरोजगारी की दर में कमी के रूप में देखने में आया है। देश में बेरोजगारी की दर वर्ष 2017-18 के 6 प्रतिशत से वर्ष 2023-24 में घटकर 3.2 प्रतिशत रह गई है। इसका सीधा असर कामकाजी आबादी अनुपात पर भी पड़ा है जो वर्ष 2017-18 के 46.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 58.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है। सबसे अच्छी स्थिति तो संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे नागरिकों की संख्या में वृद्धि से बनी है। क्योंकि संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे युवाओं को नियोक्ताओं द्वारा कई प्रकार की अतिरिक्त सुविधाएं केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा जारी नियमों के अंतर्गत प्रदान की जाती है। संगठित क्षेत्र में शामिल होने वाले युवाओं (18 से 28 वर्ष के बीच की आयु के) की संख्या में सितम्बर 2017 से सितम्बर 2024 के बीच 4.7 करोड़ की वृद्धि दर्ज हुई है, ये युवा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ई पी एफ ओ) से भी जुड़े हैं।

यदि किसी देश में मुद्रा स्फीति की दर लगातार लम्बे समय तक उच्च स्तर पर बनी रहे एवं नागरिकों की आय में वृद्धि दर मुद्रा स्फीति में हो रही वृद्धि दर से कम रहे तो इसका सीधा असर मध्यमवर्गीय परिवार के बचत एवं खर्च करने की क्षमता पर पड़ता है। यदि मध्यमवर्गीय परिवार के खर्च करने की क्षमता कम होगी तो निश्चित ही बाजार में विभिन्न उत्पादों की मांग भी कम होगी इससे विभिन्न कम्पनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की बिक्री भी कम होगी। यह स्थिति हाल ही के समय में भारत की अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर है। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के प्रयास किए जाएंगे जिससे मुद्रा स्फीति की दर देश में कम बनी रहे एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की आय में वृद्धि हो।

साथ ही, मध्यमवर्गीय परिवारों की आय पर लगाए जाने वाले आय कर में भी कमी की जानी चाहिए। बैकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों पर ब्याज दरों में कमी की घोषणा द्वारा भी मध्यमवर्गीय परिवारों को कुछ हद्द तक राहत पहुंचाई जा सकती है। ऋण पर ब्याज दरों में कमी करने से मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा ऋण खातों में जमा की जाने वाली मासिक किस्त की राशि में कमी होती है और उनकी खर्च करने की क्षमता में कुछ हद्द तक सुधार होता है। मध्यमवर्गीय परिवारों के हित में यदि उक्त उपाय नहीं किया जाते हैं तो बहुत सम्भव है कि यह मध्यमवर्गीय परिवार एक बार पुनः कहीं गरीबी रेखा के नीचे नहीं खिसक जाय। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट के माध्यम से मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए।

 

(The views expressed are the author’s own and do not necessarily reflect the position of the organisation)


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Prahlad Sabnani

Shri Prahlad Sabanani is a distinguished and experienced personality in the Indian banking sector, having served in various significant positions at the State Bank of India for 40 years. He retired as Deputy General Manager from the Corporate Centre of the State Bank of India in Mumbai. His three books—World Trade Organization: Impact on Indian Banking and Industry, Banking Today, and Banking Update—are highly acclaimed. He is also a prolific writer on economic and social issues of national importance.

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