राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तांत ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ में घुमक्कड़ी को व्यक्ति और समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। यही घुमक्कड़ी अब झील, झरना, गुफा, घाटी, नदी, समुन्द्र और पहाड़ तक सीमित न होकर अंतरिक्ष तक विस्तारित हो चुकी है। अंतरिक्ष घुमक्कड़ी पृथ्वी से लगभग 100 किमी की ऊंचाई पर, पृथ्वी के वायुमंडल को बाह्य अंतरिक्ष से अलग करने वाली हंगरी-अमेरिकी वैज्ञानिक थियोडोर वॉन कार्मन के नाम से जाने वाली कार्मन रेखा को पार करने के बाद शुरू होती है। वस्तुतः अंतरिक्ष एक ऐसा खजाना है जिसमें मानवता के लिए असंख्य बेशकीमती उपहार तो हैं, किन्तु उसे खोलने के लिए उत्कृष्ट वैज्ञानिक एवं प्रद्योगिकी क्षमता की आवश्यकता होती है। भारत ने सफल चंद्रयान-3, मंगलयान और आदित्य-एल 1 अभियानों के साथ ही एक रॉकेट से 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर अपनी अंतरिक्ष क्षमता का दुनिया में लोहा मनवाया है। आज कृषि, सुरक्षा, दूरसंचार, मौसम पूर्वानुमान तथा अर्थव्यवस्था की दृष्टि से अंतरिक्ष अन्वेषण अपरिहार्य बनते जा रहे हैं। नि:संदेह, अंतरिक्ष आधारित बाजार में भारत के विकास की अपार संभावनाएं निहित हैं।
अंतरिक्ष की ही भांति अंतरिक्ष में मानवीय हितों की संभावनाओं की भी कोई सीमा नहीं है। 21 वीं सदी में ऐसा मूर्त रूप लेती एक संभावना है अंतरिक्ष पर्यटन, अर्थात मनोरंजन के लिए अंतरिक्ष घुमक्कड़ी। अंतरिक्ष पर्यटन जहां एक आकर्षक लाभकारी उद्योग के रूप में उभर रहा है, वहीं इससे इंजीनियरिंग, एयरोस्पेस, आतिथ्य और ग्राहक सेवा जैसे क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो रहे हैं। अंतरिक्ष यात्रा में उपकक्षीय, कक्षीय एवं चंद्र यात्रा शामिल हैं। उपकक्षीय अंतरिक्ष यात्रा में अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष तक पहुंचता है लेकिन पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में रहता है, कक्षीय अंतरिक्ष यात्रा में अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में जाता है और चंद्र यात्रा में अंतरिक्ष यान चंद्रमा तक जाता है। इस क्षेत्र में निजी कंपनियों जैसे वर्जिन गैलेक्टिक, स्पेसएक्स, बोइंग, स्पेस एडवेंचर्स आदि के कूदने से अंतरिक्ष पर्यटन का बाजार दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ रहा है।
अंतरिक्ष पर्यटन की शुरुआत साल 2001 में अमेरिकी व्यापारी एवं अभियंता डेनिस टीटो के रूसी अंतरिक्ष यान (सोयूज T-32) से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा से हुई। मई 2024 में अमेरिका में रहने वाले भारतीय पायलट गोपी थोटाकुरा पांच अन्य अंतरिक्ष पर्यटकों के साथ जैफ बैजोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन के एनएस-25 मिशन का हिस्सा बन पहले भारतीय अंतरिक्ष पर्यटक बने। अंतरिक्ष पर्यटन में संभावनाओं का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2023 में इसका बाजार जहां ₹7193.3 करोड़ था, वर्ष 2032 तक इसके ₹2.36 लाख करोड़ पहुँचने का अनुमान है। अपार संभावनाओ के दृष्टिगत भारत सरकार ने भी अंतरिक्ष का बजट 2013-14 में ₹5615 करोड़ से बढ़ाकर 2025-26 में ₹13416 करोड़ कर दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और भारतीय अंतरिक्ष संघ (आईएसपीए) भी गगनयान मिशन के माध्यम से आदमी को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें पहले चरण में मानव रहित यान, दूसरे चरण में व्योमित्र नामक रोबोट, तथा तीसरे और अंतिम चरण में अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। गगनयान मिशन के बाद भारत में भी वर्ष 2030 तक अंतरिक्ष पर्यटन के द्वार खुलने की संभावना है, जिसके टिकट की अनुमानित कीमत लगभग ₹6 करोड़ है।
अभी उच्च लागत, सीमित बाजार मांग, सुरक्षा चिंताएँ, और अंतरिक्ष में मलबा अंतरिक्ष पर्यटन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ हैं। अंतरिक्ष पर्यटन ने इस बहस को भी जन्म दिया है कि जिस देश में करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हों, वहाँ अंतरिक्ष पर्यटन कितना जरूरी है? परंतु कहते हैं दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है। अंतरिक्ष पर्यटन ऐसा ही विचार है जिससे अंतरिक्ष अन्वेषकों की नई पीढ़ी प्रेरित होगी और विज्ञान की शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। वस्तुतः देश की अंतरिक्ष क्षमता उसकी राष्ट्रीय शक्ति का द्योतक है, जो राष्ट्रीय हित साधने में अहम भूमिका अदा कर सकती है। अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य शीतयुद्ध मुख्यतः अंतरिक्ष के मोर्चे पर ही लड़ा गया जिसमें अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए दोनों देशों में कई दशकों तक गलाकाट प्रतिस्पर्धा रही।
12 अप्रैल 1961 को सोवियत पायलट यूरी गगारिन के दुनिया का पहला अंतरिक्ष यात्री बनने के जवाब में 25 मई 1961 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ0 केनेडी ने संसद में चाँद पर पहला आदमी भेजने की घोषणा करते हुए कहा, “आदमी को चाँद पर उतारने वाला अमेरिका पहला देश होगा, सच्चे अर्थों में यह केवल एक आदमी का चाँद पर जाना न होकर पूरे देश का चाँद पर जाने जैसा होगा”। वर्ष 2047 तक विकसित भारत निर्मित करने के लिए अंतरिक्ष आधारित संसाधनों का उपयोग आवश्यक होगा।
नि:संदेह 1955 की फिल्म ‘वचन’ के गीत “चंदा मामा दूर के….उड़न खटोले बैठ के मुन्ना चंदा के घर जाएगा, तारों के सँग आँख–मिचोली खेल के दिल बहलाएगा, खेल–कूद से जब मेरे मुन्ने का दिल भर जाएगा, ठुमक ठुमक मेरा मुन्ना वापस घर को आएगा”, में व्यक्त कल्पना के यथार्थ रूप लेने का समय आ पहुंचा है।