विश्व के लिए प्रेरक है भारतीय संविधान

Spread the love! Please share!!

 

यह भारतीय संविधान की ही शक्ति है की प्रतिष्ठित पिउ रिसर्च द्वारा लोकतंत्र में आस्था पर 2023 में 24 लोकतांत्रिक देशों में किये एक शोध में भारत सर्वाधिक लोकतान्त्रिक आस्था वाले देशों में रहा जहाँ 79 प्रतिशत नागरिकों ने लोकतन्त्र  को शासन की सबसे उत्कृष्ट पद्धति माना। 

 

भारत एक विशाल एवं विभिन्न संस्कृतियों वाला देश है। यहां विभिन्न संप्रदायों, पंथों एवं जातियों आदि के लोग निवास करते हैं। उनके रीति-रिवाज, भाषाएं, रहन-सहन एवं खान-पान भी भिन्न-भिन्न हैं। तथापि वे आपस में मिलजुल कर प्रेमभाव से रहते हैं। वास्तव में यही भारत का मूल स्वभाव है। भारतीय संविधान में भारत के नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिनका वर्णन अनुच्छेद 12 से 35 के मध्य किया गया है। इनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा से संबंधित अधिकार एवं संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है। उल्लेखनीय है कि पहले संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, जिसे ‘44वें संविधान संशोधन- 1978 के अंतर्गत हटा दिया गया। सातवां मौलिक अधिकार संपत्ति का अधिकार था। मूल अधिकार का एक दृष्टांत है- “राज्य नागरिकों के बीच परस्पर विभेद नहीं करेगा।“ भारतीय संविधान में भी किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेद नहीं किया जाता। यही इसकी विशेषता है। वास्तव में इन मूल अधिकारों के कारण ही भारतीय संविधान विश्व में प्रेरणादायी माना जाता है। भारत के नागरिकों को स्वतंत्रतापूर्वक जीवन व्यतीत के लिए जितने अधिकार प्रदान किए गए हैं, उतने अधिकार संभवत ही किसी अन्य देश के नागरिकों को प्रदान किए गए हों।

भारतीय संविधान: ऋषि परंपरा का धर्मशास्त्र

वास्तव में भारतीय संविधान ऋषि परंपरा का धर्मशास्त्र है। भारतीय संविधान ‘हम भारत के लोगों’ के लिए हमारी अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत जनित स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श मूल्यों के प्रति एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्रतिबद्धता का परिचायक है। वर्तमान के आधुनिक भारत की संकल्पना के समय संविधान निर्माताओं ने इसी सांस्कृतिक विरासत को उसके मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने के ध्येय से भारतीय संविधान की मूल प्रतिलिपि में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के रुचिकर चित्रों को स्थान दिया, जो मूलतः भारतीय संविधान के भारतीय चैतन्य को ही परिभाषित करते हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा के अलोक में निर्मित भारतीय संविधान भारत की ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र है। भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां सबका आदर-सम्मान किया जाता है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। यह सनातन धर्म का मूल संस्कार है। यह एक विचारधारा है। महा उपनिषद सहित कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।

अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां वसुधैव कुटुम्बकम् ।।

अर्थात यह मेरा है और वह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार चरित्र वाले लोगों के लिए तो संपूर्ण पृथ्वी ही परिवार है।

यह श्लोक भारतीय संसद के प्रवेश पर भी अंकित है। भारत के लोग विराट हृदय वाले हैं। वे सबको अपना लेते हैं। विभिन्न संस्कृतियों के पश्चात भी सब आपस में परस्पर सहयोग भाव बनाए रखते हैं। एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं। यही हमारी भारतीय संस्कृति की महानता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश का सबसे लम्बा लिखित संविधान माना जाता है। यह संविधान देश का सर्वोच्च विधान है। यह संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ था तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ था। इसलिए 26 नवम्बर को संविधान दिवस तथा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में घोषित किया गया।

भारतीय संविधान की निर्माण यात्रा

भारतीय संविधान को पूर्ण करने में दो वर्ष, 11 मास, 18 दिन का समय लगा था। इस पर 114 दिन तक चर्चा हुई तथा 12 अधिवेशन आयोजित किए गए थे। भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन 19 जुलाई 1946 को किया गया था। इस सभा में 299 सदस्य थे। भारतीय संविधान पर 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इसके अध्यक्ष थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 में अपना कार्य पूर्ण कर लिया था। भारतीय संविधान के निर्माण में लगभग एक करोड़ व्यय हुए थे। इससे पूर्व देश में भारत सरकार अधिनियम-1935 का विधान प्रभावी था। कोई भी वस्तु सदैव पूर्ण नहीं होती है तथा काल एवं आवश्यकता के अनुसार उसमें परिवर्तन होने संभव हैं। इसीलिए भारतीय संविधान के प्रभावी होने के पश्चात इसमें सौ से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं। भविष्य में भी इसमें संशोधन होने की पूर्ण संभावना है।

भारतीय संविधान में सरकार के अधिकारियों के कर्तव्य एवं नागरिकों के अधिकारों के विषय में विस्तार से बताया गया है। संविधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी। इनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के चार चीफ कमिश्नर थे तथा 93 सदस्य देशी रियासतों के थे। उल्लेखनीय यह भी है कि देश की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा के सदस्य ही देश की संसद के प्रथम सदस्य चुने गए थे। देश की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान के निर्माण के लिए ही किया गया था। भारतीय संविधान में सरकार के संसदीय स्व रूप की व्युवस्थाि की गई है। इसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केंद्रीय कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्र पति है। भारतीय संविधान में वर्तमान समय में 470 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं तथा यह 25 भागों में विभाजित है। इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियां थीं तथा ये 22 भागों में विभाजित था।

भारतीय संविधान निर्माण का मूल उद्देश्य

भारतीय संविधान के निर्माण का मूल उद्देश्य कल्याणकारी राज्य का सृजन करना है। इसलिए इसके निर्माण से पूर्व विश्व के अनेक देशों के संविधानों का अध्ययन किया गया। तत्पश्चात उन पर गंभीर चिंतन-मनन किया गया। इन संविधानों में से उपयोगी संविधानों के शब्दों को भारतीय संविधान में सम्मिलित किया गया।

भारतीय संविधान की उद्देशिका

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सबमें, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

भारतीय संविधान की इस उद्देशिका में भारत की आत्मा निवास करती है। इसका प्रत्यके शब्द एक मंत्र के समान है। हम भारत के लोग- से अभिप्राय है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है। इसी प्रकार संप्रभुता- से अभिप्राय है कि भारत किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं है। समाजवादी- से अभिप्राय है कि संपूर्ण साधनों आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य। ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। लोकतांत्रिक- से अभिप्राय है कि लोक का तंत्र अर्थात जनता का शासन। गणतंत्र- से अभिप्राय है कि एक ऐसा शासन जिसमें राज्य का मुखिया एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। न्याय- से आशय है कि सबको न्याय प्राप्त हो। स्वतंत्रता- से अभिप्राय है कि सभी नागरिकों को स्वतंत्रता से जीवन यापन करने का अधिकार है। समता- से अभिप्राय है कि देश के सभी नागिरकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। इसी प्रकार बंधुत्व- से अभिप्राय है कि देशवासियों के मध्य भाईचारे की भावना।

संविधान की समरसता व संघीय विशेषताएं

विचारणीय विषय यह है कि भारतीय संविधान ने देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए हैं तथा उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया, किन्तु देश में आज भी ऊंच-नीच, अस्पृश्यता आदि जैसे बुराइयां व्याप्त हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए विधान भी बनाए गए, परंतु इनका विशेष लाभ देखने को नहीं मिला। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है। सामाजिक समरसता भारतीय समाज का सौंदर्य है, अस्पृश्यता से संबंधित अप्रिय घटनाएं भी चर्चा में रहती हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए जागरूक लोगों को ही आगे आना चाहिए तथा सभी लोगों को अपने देश के संविधान का पालन करना चाहिए।

भारतीय संविधान संघीय शासन प्रणाली स्थापित करता है। संविधान की संघीय अनेक विशेषताएं हैं, जिनमें द्वैध शासन प्रणाली, लिखित संविधान, शक्तियों का विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता, कठोर संविधान, स्वतंत्र न्यायपालिका एवं द्विसदनीयता आदि सम्मिलित हैं। भारतीय संविधान में कई एकात्मक अथवा गैर-संघीय विशेषताएं भी हैं, जिनमें एक सुदृढ़ केंद्र, एकल संविधान, एकल नागरिकता, संविधान की नम्रता, एकीकृत न्यायपालिका, केंद्र द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति, अखिल भारतीय सेवाएं, आपातकालीन प्रावधान आदि सम्मिलित हैं।

भारत की संसदीय शासन प्रणाली

भारत में संसदीय शासन प्रणाली प्रभावी है। देश में न केवल केंद्र, अपितु राज्यों में भी संसदीय प्रणाली प्रभावी है। एक ओर सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति के द्वारा संसदीय विधानों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है, तो दूसरी ओर संसद को भी यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी संवैधानिक शक्ति के द्वारा संविधान में संशोधन कर सकती है। भारतीय संविधान के द्वारा ऐसी न्यायिक प्रणाली स्थापित की गई है, जो एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी है। देश में एकीकृत न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है तथा इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालयों का एक पदानुक्रम है अर्थात जिला न्यायालय एवं अन्य निचले न्यायालय। न्यायालयों की यह एकल प्रणाली केंद्रीय विधानों के साथ-साथ राज्य विधानों को भी प्रभावी करती है। सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय है। इसे संविधान का संरक्षक माना जाता है।

भारतीय संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का प्रतीक है। यह किसी विशेष धर्म को भारतीय राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में मान्यता नहीं देता है। इसलिए सभी धर्मों को समान सम्मान देना और उनकी रक्षा करना इसका उत्तरदायित्व है। भारतीय संविधान संघीय है और इसमें दोहरी राजनीति अर्थात केंद्र एवं राज्य की परिकल्पना की गई है, परंतु इसमें केवल एकल नागरिकता अर्थात भारतीय नागरिकता का प्रावधान है। यह अपने नागरिकों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करता।

निसंदेह भारतीय संविधान अपनी विशेषताओं के कारण विश्वभर में प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

(लेखक – लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर है। यह लेखक के निजी विचार हैं)

 


Spread the love! Please share!!
Dr. Sourabh Malviya

Dr. Saurabh Malviya is a distinguished media guru, author, and nationalist thought leader. Serving as a professor in the Department of Journalism at Lucknow University, he actively shapes the minds of future media professionals. A regular face on leading news channels, he passionately represents the nation’s viewpoint on various socio-political matters.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!