हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में नवनिर्मित पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया। यह भारत का पहला वर्टिकल-लिफ्ट समुद्री रेलवे पुल है, जो न केवल आधुनिक इंजीनियरिंग की उत्कृष्टता को दर्शाता है, बल्कि देश की आधारभूत संरचना में मील का पत्थर भी है। यह परियोजना ऐतिहासिक, तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दृष्टियों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और इसे भारत के तटीय विकास के व्यापक लक्ष्य के अंतर्गत देखा जाना चाहिए।
पंबन ब्रिज भारत की मुख्यभूमि को रामेश्वरम द्वीप से जोड़ता है। मूल पंबन ब्रिज का निर्माण वर्ष 1914 में किया गया था और यह देश का पहला समुद्री रेल पुल था। इस पुल ने दशकों तक व्यापार और तीर्थयात्रा का आधार प्रदान किया। विशेष रूप से धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रामेश्वरम देश के चार धामों में से एक है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यात्रा करते हैं। यह पुल लंबे समय तक भारतीय रेलवे की संपत्ति बना रहा, लेकिन समय के साथ इसकी संरचनात्मक क्षमताएं सीमित होने लगीं। वर्ष 1964 की भीषण चक्रवाती आपदा में यह पुल गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था। उस त्रासदी में एक ट्रेन समुद्र में बह गई थी। इसके पश्चात विख्यात इंजीनियर ई. श्रीधरन के नेतृत्व में और स्थानीय मछुआरों के सहयोग से इस पुल की मरम्मत की गई। इस ऐतिहासिक योगदान ने पंबन ब्रिज को एक सांस्कृतिक और तकनीकी प्रतीक में परिवर्तित कर दिया। समय बीतने के साथ जब पुल की क्षमता भविष्य की जरूरतों के अनुरूप नहीं रह गई, तब एक नए और अधिक सक्षम पुल के निर्माण की आवश्यकता अनुभव की गई।
नए पुल की आधारशिला नवंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखी गई और निर्माण फरवरी 2020 में शुरू हुआ और इसे रेल विकास निगम लिमिटेड द्वारा कार्यान्वित किया गया। इस पुल की कुल लंबाई 2.08 किलोमीटर है और इसका डिजाइन 58 वर्षों की सेवा-आयु को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। यह पुल समुद्र की विकट परिस्थितियों जैसे ज्वार-भाटा, लवणीयता और उच्च आर्द्रता को सहन करने में सक्षम है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाले जंग-रोधी स्टील और उन्नत तकनीकी सामग्री का प्रयोग किया गया है। इस पुल की विशिष्टता इसकी वर्टिकल-लिफ्ट प्रणाली है, जो भारत में पहली बार किसी समुद्री पुल में लागू की गई है। इसका लिफ्टिंग स्पैन 72.5 मीटर लंबा है, जो 17 मीटर तक ऊपर उठाया जा सकता है। यह सुविधा मन्नार की खाड़ी में जहाजों और मछली पकड़ने वाली नौकाओं के निर्बाध संचालन को सुनिश्चित करती है। यह पुल पुराने पुल की तुलना में लगभग 3 मीटर ऊंचा है, जिससे समुद्री यातायात में अधिक सहूलियत प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त इसका ढांचा वंदे भारत जैसी सेमी-हाई स्पीड ट्रेनों और भारी मालगाड़ियों के संचालन के लिए उपयुक्त है, जो इसे भविष्य की परिवहन आवश्यकताओं के अनुकूल बनाता है।
नए पुल के निर्माण का प्रमुख उद्देश्य न केवल संरचनात्मक मजबूती और सुरक्षित रेल यातायात सुनिश्चित करना है, बल्कि यह क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, आर्थिक समृद्धि और सामाजिक समावेशन की दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण पहल है। भारतीय रेलवे और पर्यटन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, रामेश्वरम में प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख तीर्थयात्री आते हैं। पूर्ववर्ती पुल की सीमित क्षमताओं के कारण अक्सर रेल सेवाओं में विलंब होता था। अब इस नई संरचना से समयबद्ध और तीव्र गति की रेल सेवाएं संभव हो सकेंगी, जिससे पर्यटकों और यात्रियों को अधिक सुविधा मिलेगी। पर्यटन में अनुमानतः 15-20% की वृद्धि की संभावना व्यक्त की गई है, जिससे होटल व्यवसाय, स्थानीय परिवहन, हस्तशिल्प, खानपान और अन्य सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित होंगे। वर्तमान में लगभग 50,000 लोग रामेश्वरम क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन से जुड़े हैं। इस पुल से इनकी आय और जीवनस्तर में सुधार की संभावना है।
यह पुल मत्स्य उद्योग के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। रामेश्वरम एवं आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मछुआरे रहते हैं, जिनकी आजीविका मन्नार की खाड़ी से जुड़ी है। तमिलनाडु का मछली उत्पादन प्रतिवर्ष लगभग 7.5 लाख टन होता है, जिसमें इस क्षेत्र का योगदान उल्लेखनीय है। वर्टिकल-लिफ्ट सुविधा से जहाजों और नौकाओं की निर्बाध आवाजाही संभव होगी, जिससे मछुआरे अधिक कुशलता से कार्य कर सकेंगे। साथ ही, तेज और सुरक्षित रेल संपर्क से समुद्री उत्पादों का बड़े बाजारों तक शीघ्र परिवहन संभव होगा, जिससे व्यापार में 5 से 7 प्रतिशत तक की वृद्धि की आशा की जा रही है। सामाजिक दृष्टिकोण से यह पुल रामेश्वरम के नागरिकों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक सिद्ध होगा। पुराने पुल की सीमाओं के कारण आपातकालीन सेवाओं (जैसे दवाइयों और चिकित्सकीय सहायता) की समय पर उपलब्धता एक बड़ी चुनौती थी। नई संरचना इस समस्या का समाधान प्रदान करेगी। साथ ही, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अधिक सुलभ होगी। यह पुल सामाजिक एकता और क्षेत्रीय समावेशन को भी बढ़ावा देगा।
पर्यावरणीय दृष्टि से इस परियोजना को अत्यंत संवेदनशील माना गया है, क्योंकि मन्नार की खाड़ी जैवविविधता से भरपूर क्षेत्र है। डगोंग, मूंगा चट्टानें और अनेक दुर्लभ समुद्री प्रजातियां यहां पाई जाती हैं। परियोजना की स्वीकृति से पूर्व विस्तृत पर्यावरणीय मूल्यांकन किया गया और निर्माण के दौरान पर्यावरण मानकों का पालन सुनिश्चित किया गया। वर्टिकल-लिफ्ट प्रणाली समुद्री जीवन के मार्ग को अवरुद्ध नहीं करती, जिससे प्राकृतिक आवासों पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। फिर भी, बढ़ती पर्यटन गतिविधियों और व्यापारिक विस्तार के चलते जल प्रदूषण, प्लास्टिक अपशिष्ट और अन्य पर्यावरणीय समस्याओं की आशंका बनी रहती है, जिनसे निपटने के लिए सतत निगरानी और ठोस उपायों की आवश्यकता होगी। यह पुल केंद्र सरकार की सागरमाला योजना के अंतर्गत विकसित तटीय आधारभूत संरचना का भाग है, जिसके अंतर्गत 7.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक निवेश की योजना है। इसकी सफलता अन्य तटीय या द्वीपीय क्षेत्रों, जैसे अंडमान और लक्षद्वीप, में समान परियोजनाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है। इससे भारत को समुद्री व्यापार और रणनीतिक क्षेत्र में सुदृढ़ स्थिति प्राप्त होगी।