बढ़ती रुपए की ताकत एवं भारत में बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार

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वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के विदेशी व्यापार में लगभग 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। विभिन्न देशों को भारत से निर्यात 5.50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 82,093 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए  हैं वहीं अन्य देशों से भारत में होने वाले आयात 6.85 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 91,519 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं।

 

दिनांक 7 फरवरी 2025 को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत सबसे निचले स्तर अर्थात 87.44 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गई थी। इसके बाद धीरे धीरे इसमें सुधार होता हुआ दिखाई दिया है एवं अब दिनांक 30 अप्रेल 2025 को यह 84.50 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गई है। वहीं दिनांक 18 अप्रेल 2025 को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी तेज गति से आगे बढ़ता हुआ 68,610 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है और यह दिनांक 27 सितम्बर 2024 के उच्चतम स्तर 70,489 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर के बहुत करीब है। भारतीय रुपए की मजबूती एवं विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि ऐसे समय में हो रही है जब विश्व के समस्त देश अमेरिकी प्रशासन के टैरिफ युद्ध का सामना करते हुए संकट में दिखाई दे रहे हैं। परंतु, भारत पर टैरिफ युद्ध का असर लगभग नहीं के बराबर दिखाई दे रहा है। यह भी सही है कि हाल ही के समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर पर दबाव बढ़ा है और अमेरिकी डॉलर इंडेक्स लगभग 109 के स्तर से नीचे गिरकर दिनांक 30 अप्रेल 2025 को 99.43 के स्तर पर आ गया है। शायद अमेरिका भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की मजबूती को कम करना चाहता है ताकि अमेरिका में आयात महंगे हों एवं अमेरकी निर्यातकों को अधिक लाभ पहुंचे। परंतु, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर पर दबाव के बढ़ने से सोने की कीमतों में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है और यह दिनांक 22 अप्रेल 2025 को अपने उच्चतम स्तर 3500 अमेरिकी डॉलर प्रति आउन्स पर पहुंच गई थी। साथ ही, अमेरिकी शेयर बाजार भी धराशायी हुआ है और डाउ जोंस एवं अन्य इंडेक्स में भारी गिरावट दर्ज हुई है। अब ऐसा आभास हो रहा है कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों के विरुद्ध छेड़े गए टैरिफ युद्ध का विपरीत असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर होता हुआ दिखाई दे रहा है।

भारतीय रुपए के मजबूत होने के चलते भारतीय शेयर (पूंजी) बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक एक बार पुनः अपना निवेश बढ़ाने लगे हैं एवं पिछले लगातार 8 दिनों से इन विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में शेयरों की भारी मात्रा में खरीद की है। जबकि, सितम्बर 2024 के बाद से विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार से लगातार अपना निवेश निकाल रहे थे और इस बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों ने लगभग 3 लाख करोड़ रुपए के शेयरों की बिक्री भारतीय शेयर बाजार में की है। जिसके चलते भारतीय शेयर बाजार के निफ्टी इंडेक्स में लगभग 3500 अंकों की भारी गिरावट दर्ज हुई थी। परंतु, भारतीय संस्थागत निवेशकों, भारतीय म्यूचअल फण्ड एवं खुदरा निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में अपना निवेश बढ़ाकर भारतीय पूंजी बाजार को सम्हालने में मदद की है अन्यथा भारतीय शेयर बाजार क्रेश हो गया होता। परंतु, अब भारतीय शेयर बाजार में सुधार होता हुआ दिखाई दे रहा है एवं अब एक बार पुनः यह आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। हाल ही के समय में निफ्टी इंडेक्स में लगभग 1500 अंकों की वृद्धि दर्ज हुई है।

वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के विदेशी व्यापार में लगभग 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। विभिन्न देशों को भारत से निर्यात 5.50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 82,093 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए  हैं वहीं अन्य देशों से भारत में होने वाले आयात 6.85 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 91,519 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं। निर्यात की तुलना में आयात में वृद्धि दर अधिक रही है जिसके चलते भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 9,426 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। व्यापार घाटे के बढ़ने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए पर दबाव बढ़ा और रुपया कमजोर हुआ। भारत में कच्चे तेल एवं स्वर्ण का आयात भारी मात्रा में होता है। मुख्य रूप से इन्हीं दो मदों की कीमतें भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ीं थी, जिसका प्रभाव भारत में अधिक आयात के रूप में दिखाई दिया है। परंतु, अब हर्ष की बात है कि कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में 75 अमेरिकी डॉलर प्रति बेरल से घटकर लगभग 65 अमेरिकी डॉलर प्रति बेरल पर नीचे आ गई है और स्वर्ण के महंगे होने के चलते स्वर्ण का आयात भी कुछ कम हुआ है। उक्त दोनों घटनाओं के परिणाम स्वरूप अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए पर दबाव कुछ कम होता हुआ दिखाई दे रहा है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में भले स्थितियां ठीक नहीं दिखाई दे रहीं है, परंतु भारत में आंतरिक मजबूती के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज गति से आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक, स्टैंडर्ड एवं पूअर आदि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग संस्थानों ने भी वित्तीय वर्ष 2025-26 में, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक क्षेत्र में विकसित हो रही विपरीत परिस्थितियों के बीच भी, भारतीय अर्थव्यवस्था के 6 प्रतिशत से अधिक की दर से आगे बढ़ने की सम्भावना व्यक्त की है। जबकि यूरोप के कुछ देशों यथा जर्मनी, कनाडा आदि एवं ब्रिटेन तथा अमेरिका में मंदी की सम्भावनाएं स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही हैं। अमेरिका में तो वर्ष 2025 की प्रथम तिमाही (जनवरी-मार्च 2025) में आर्थिक विकास दर में 0.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है। लगभग यही हाल यूरोप के कई देशों तथा जापान आदि का है। चीन की आर्थिक विकास दर में भी गिरावट आती हुई दिखाई दे रही है। यदि जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाओं में वर्ष 2025 एवं 2026 में गिरावट दर्ज होती है और भारतीय अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेती है तो बहुत सम्भव है कि वर्ष 2025 में जापान एवं वर्ष 2026 में जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्व में अमेरिका एवं चीन के बाद तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विपरीत परिस्थितियों के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से आगे बढ़ने के पीछे भारत की आंतरिक मजबूती मुख्य भूमिका निभाती हुई दिखाई दे रही है। भारत में अभी हाल ही में महाकुम्भ मेला सम्पन्न हुआ है, इस महाकुम्भ में लगभग 66 करोड़ भारतीय मूल के नागरिकों ने पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। इतनी भारी मात्रा में नागरिकों के यहां पहुंचने से भारतीय अर्थव्यवस्था को बल ही मिला है। महाकुम्भ में भाग ले रहे प्रत्येक नागरिक ने औसत रूप से यदि 2000 रुपए भी प्रतिदिन खर्च किए हों और प्रत्येक नागरिक ने औसतन कुल तीन दिवस भी महाकुम्भ में बिताएं हों तो भारतीय अर्थव्यवस्था को 396,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त लाभ पहुंचा है। रोजगार के लाखों अवसर निर्मित हुए हैं, यह अलग लाभ रहा है। आधारभूत सुविधाओं को विकसित किया गया जिसका लाभ आने वाले कई वर्षों तक देश को मिलता रहेगा। देश में धार्मिक पर्यटन भी भारी मात्रा में बढ़ा है जिसका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अच्छे रूप में दिखाई दे रहा है। धार्मिक पर्यटन एवं महाकुम्भ के चलते ही अब यह आंकलन हो रहा है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 की चतुर्थ तिमाही (जनवरी-मार्च 2025) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हो सकती है।


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Prahlad Sabnani

Shri Prahlad Sabanani is a distinguished and experienced personality in the Indian banking sector, having served in various significant positions at the State Bank of India for 40 years. He retired as Deputy General Manager from the Corporate Centre of the State Bank of India in Mumbai. His three books—World Trade Organization: Impact on Indian Banking and Industry, Banking Today, and Banking Update—are highly acclaimed. He is also a prolific writer on economic and social issues of national importance.

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