भारतीय अर्थव्यवस्था को भारतीय रिजर्व बैंक के दो महत्वपूर्ण तोहफे

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भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से रेपो दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6 प्रतिशत की दर से नीचे लाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया गया है। दूसरे, भारतीय रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात में सीधे ही 100 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 4 प्रतिशत की दर से घटाकर 3 प्रतिशत की दर पर ला दिया है। 

 

वैश्विक स्तर पर विश्व के कई देशों में आर्थिक गतिविधियों पर संकट के बादल मंडराते हुए दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका में तो श्री डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से नित नई घोषणाएं की जा रही है। कभी टैरिफ को बढ़ाया जा रहा है तो कभी टैरिफ को लागू करने की तारीखों में परिवर्तन किया जा रहा है तो कभी टैरिफ को कम किया जा रहा है। कुल मिलाकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अफरा तफरी का माहौल बन गया है। अभी हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति श्री ट्रम्प एवं अमेरिका के एक महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली मंत्री श्री एलान मस्क के बीच युद्ध छिड़ गया है एवं अब वे एक दूसरे पर गम्भीर आरोप लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था का इन सब बातों से बहुत नुक्सान होता हुआ दिखाई दे रहा है। बेरोजगारी भत्ता लेने वाले नागरिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है, अमेरिकी कम्पनियों द्वारा कर्मचारियों की छंटनी पर विचार किया जा रहा है एवं आर्थिक विकास दर कम हो रही है। दूसरी ओर, रूस यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म होने के आसार अभी भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। एक तरह से इजराईल, हम्मास के बीच युद्ध अभी भी जारी ही है। चीन एवं अमेरिका के बीच में आई खटास भी कम होने का नाम नहीं ले रही है।

वैश्विक स्तर पर इन समस्त घटनाओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था नित नई ऊचाईयों को छूने की ओर अग्रसर है। भारत में नागरिक शांतिपूर्ण तरीके से भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के प्रति कटिबद्ध हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों के उपक्रम एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियां देश के आर्थिक विकास को गति देने में अपने प्रयास लगातार तेज करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसी क्रम में, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिनांक 6 जून 2025 को द्विमासिक मुद्रा नीति की घोषणा करते हुए, देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से, दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। एक, रेपो दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6 प्रतिशत की दर से नीचे लाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया गया है। केलेंडर वर्ष 2025 में रेपो दर में यह लगातार तीसरी कटौती की गई है एवं कुल मिलाकर रेपो दर में 100 आधार बिंदुओं की कमी की जा चुकी है। फरवरी 2025 एवं अप्रेल 2025 घोषित की गई मुद्रा नीति के माध्यम से रेपो दर में दोनों बार 25 आधार बिंदुओं की कमी की गई थी। रेपो दर उस दर को कहते हैं, जिस दर पर भारतीय रिजर्व बैंक विभिन्न बैंकों को आवश्यकता पड़ने पर ऋण उपलब्ध कराता है एवं विभिन्न बैंक रेपो दर को आधार दर बनाते हुए इस दर पर कुछ आधार बिंदु (जमाराशि की लागत एवं लाभ की राशि का समायोजन करते हुए) जोड़ते हुए, ब्याज की दर पर, अपने ग्राहकों को ऋणराशि उपलब्ध कराते हैं।

दूसरे, भारतीय रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात में सीधे ही 100 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 4 प्रतिशत की दर से घटाकर 3 प्रतिशत की दर पर ला दिया है। इससे, भारत में बैकों के पास 2.5 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से उपलब्ध हो जाएगी एवं सिस्टम में तरलता बढ़ जाएगी। नकद आरक्षित अनुपात उस अनुपात को कहते हैं, जिस पर विभिन्न बैंकों को अपने मांग एवं जमा देयताओं की राशि पर इस अनुपात की दर से नकदी राशि भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा करानी होती है। अतः यह राशि इन बैंकों की पहुंच से बाहर हो जाती है एवं ऋण के रूप में इसे बैंक के ग्राहकों को उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है। यदि नकद आरक्षित अनुपात को कम कर दिया जाता है तो बैंकों के पास यह राशि ऋण के रूप में प्रदान करने के लिए उपलब्ध हो जाती है। इससे स्पष्टत: बैंकों की लाभप्रदता में सुधार होता है।

भारतीय रिजर्व बैंक के उक्त महत्वपूर्ण दोनों निर्णयों से वैश्विक स्तर पर विपरीत परिस्थितियों के बीच भारत में उत्पादों की आंतरिक मांग उत्पन्न करने में सहायता मिलेगी क्योंकि बैंक अपने ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली ऋणराशि पर ब्याज दरों को कम करेंगे। इससे, विशेष रूप से व्यक्तिगत ऋण, गृह ऋण, वाहन ऋण, आदि सस्ते होंगे और अब प्रति माह ग्राहकों द्वारा इन ऋणों पर अदा की जाने वाली मासिक किश्त की राशि में कमी आएगी और इन नागरिकों के पास खर्च करने के लिए अतिरिक्त राशि उपलब्ध होने लगेगी, जिसे वे अन्य पदार्थों को खरीदने में खर्च कर सकेंगे। साथ ही, ऋण पर ब्याज राशि कम होने से विभिन्न उत्पादक कम्पनियों की लाभप्रदता में वृद्धि होगी क्योंकि उन्हें अब बैंकों से लिए गए ऋण पर कम ब्याज देना होगा। लाभप्रदता में होने वाली इस अतिरिक्त वृद्धि के चलते यह कम्पनियां अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के बारे में गम्भीरता से विचार करेंगी क्योंकि उत्पादों की होने वाली मांग में वृद्धि की पूर्ति जो करनी है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जून 2025 माह में घोषित मौद्रिक नीति को अर्थशास्त्रियों एवं बैंकिंग जगत के विशेषज्ञों द्वारा हाल ही के वर्षों में घोषित की गई सबसे बेहतरीन मौद्रिक नीति माना जा रहा है। इस मौद्रिक नीति को भारत के शेयर बाजार ने भी दिनांक 6 जून 2025 को त्वरित सकारात्मक उत्तर दिया और निफ्टी एवं सेन्सेक्स में एक प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। ब्याज दरों से जुड़े क्षेत्रों विशेष रूप से बैंकिंग, रीयल एस्टेट एवं ऑटो क्षेत्र की कम्पनियों के शेयरों में जोरदार उछाल देखने को मिला है। दरअसल अधिकतर अर्थशास्त्री रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की उम्मीद कर रहे थे परंतु भारतीय रिजर्व बैंक ने 50 आधार बिंदुओं की कमी की घोषणा करते हुए अपनी आक्रात्मक नीति का परिचय दिया है। अतः रेपो दर में उम्मीद से अधिक कटौती होने पर निवेशकों का भारतीय कम्पनियों, विशेष रूप से वे कम्पनियां जो घरेलू मांग एवं ऋण पर निर्भर रहती हैं, पर भरोसा बढ़ा है।

भारतीय कम्पनियों की लाभप्रदता एवं उत्पादों की बिक्री में लगातार हो रहे तेज सुधार के चलते इन भारतीय कम्पनियों की साख अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बढ़ेगी। आगे आने वाले समय में यह कम्पनियां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वरूप भी ले सकती हैं। और फिर, ब्याज दरों में लगातार की जा रही कमी के चलते इन कम्पनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत भी कम होगी जिससे इन कम्पनियों के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे। हां, भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने स्टैन्स को अकोमोडेटिव से न्यूट्रल जरूर कर दिया है जिसके चलते भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में आगे आने वाले समय में आवश्यकता पड़ने पर बढ़ौतरी कर सकता है। जबकि अकोमोडेटिव स्टैन्स में रेपो दर में केवल कमी करने की सम्भावना निहित रहती है। परंतु, आगे आने वाले समय में यदि मंहगाई की दर पर नियंत्रण बना रहता है जिसकी सम्भावना भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी की गई है और औसत मंहगाई दर के अनुमान को 4 प्रतिशत से घटाकर 3.70 प्रतिशत कर दिया गया है। अतः बहुत सम्भव है कि भारतीय रिजर्व बैंक को न्यूट्रल स्टैन्स के बावजूद रेपो दर में कमी ही करनी पड़ सकती है।

कुल मिलाकर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मंहगाई की दर में आई कमी एवं विकास दर में आई सुस्ती को देखते हुए रेपो दर एवं नकद आरक्षित अनुपात में आक्रात्मक रूप से की गई कटौती को एक सक्रिय निर्णय कहा जा सकता है। इससे अर्थव्यवस्था में खपत एवं निवेश को बढ़ावा मिलेगा, उत्पादों की मांग में वृद्धि होगी, उद्योग जगत अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के उद्देश्य से अपने पूंजीगत खर्चों को बढ़ाने पर विचार करेगा। चूंकि भारत में मुद्रा स्फीति की दर अब नियंत्रण में है अतः भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में विकास दर को बढ़ाने को प्राथमिकता दी है। हालांकि अपने स्टैन्स को न्यूट्रल रखकर मुद्रा स्फीति एवं वैश्विक स्तर पर विभिन्न जोखिमों पर भी नजर बनाए रखने का आभास दिया है। इसीलिए विभिन्न अर्थशास्त्रियों एवं बैंकिंग जगत के विशेषज्ञों द्वारा इस मुद्रा नीति को एक क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है।


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Prahlad Sabnani

Shri Prahlad Sabanani is a distinguished and experienced personality in the Indian banking sector, having served in various significant positions at the State Bank of India for 40 years. He retired as Deputy General Manager from the Corporate Centre of the State Bank of India in Mumbai. His three books—World Trade Organization: Impact on Indian Banking and Industry, Banking Today, and Banking Update—are highly acclaimed. He is also a prolific writer on economic and social issues of national importance.

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