Ghibli व एनीमे : जापानी ‘कल्चरल सुपरपावर’ से भारत को सीख

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2023 में वैश्विक एनीमे बाजार का मूल्य लगभग 26.89 बिलियन डॉलर था, और यह 2030 तक 52.97 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। जापानी एनीमे और मंगा उद्योग ने 2020 में 2 ट्रिलियन येन (लगभग 18 बिलियन डॉलर) से अधिक का निर्यात किया।

 

अचानक ही Ghibli का सोशल मीडिया पर एक उफान दिख रहा है, यह ट्रेंड कर रहा है। इस Ghibli ट्रेंडिंग की दीवानगी के बीच हमें भारत की आत्मनिर्भरता की पीड़ा पर भी विचार करना चाहिए। एक नागरिक दायित्व के रूप में यदि हम भारत में बने किसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म या AI के लिए ऐसा प्रयास दिखाएँ तो भारत, भारतीयता एवं भारत के नागरिकों के साथ सोशल मीडिया पर हो रहे दोहरे व्यवहार के विरुद्ध हम एक संगठित शक्ति के रूप में खड़े दिख सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम भारतीय ऐसा नहीं करते हैं।

एनीमे ने जापान को एक ‘कल्चरल सुपरपावर’ के रूप में स्थापित किया, इसकी दीवानगी पूरे विश्व में दिख रही है। स्टूडियो घिबली (Studio Ghibli) न केवल जापान की एनीमे इंडस्ट्री का एक प्रमुख स्तंभ है, बल्कि यह जापान की सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर (Soft Power) को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने का एक प्रमुख माध्यम भी है। इसकी शुरुआत 1985 में हायाओ मियाज़ाकी (Hayao Miyazaki) और इसाओ ताकाहाता (Isao Takahata) ने की थी। स्टूडियो ने अपनी गहरी भावनात्मक कहानियों, पर्यावरणीय संदेशों, सांस्कृतिक मूल्यों और असाधारण एनीमेशन के माध्यम से पूरी दुनिया में जापानी संस्कृति और विचारधारा का प्रसार किया।

स्वत्व के भाव का अभाव:

विचारणीय है की 145 करोड़ की आबादी वाले भारत से ऐसे नए विचार, अभिनव नवाचार और व्यवहार बाहर क्यों नहीं आते हैं? क्या इतनी विपुल आबादी का देश दूसरे देशों की उत्पाद क्रांति का खाद-पानी मात्र ही बनकर रहेगा या अपने स्वत्व के बोध से ऐसे सोशल मीडियाई और डिजिटल नवाचारों का भी उदय भी करेगा, जहाँ भारतीय दोयम दर्जे के नागरिक बन अपने संस्कृति, परंपरा और समाज के लिए ट्रोल न किये जाएँ? यह सरकार का कार्य नहीं, इसका समाधान लोकविमर्श से निकलेगा। सरकार का कार्य है नीति निर्माण एवं सहयोग, जो मोदी सरकार कर रही है और समाज उसका लाभ लेकर नए प्रयोग करे और स्वत्व के जागरण हेतु स्वदेशी को प्रमोट करे।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानूनों के कारण कोई भी देश अपने बाजार को एक सीमा तक संरक्षणवादी बना सकता है पर जापान इसके दुष्प्रभावों से बिना कोई टैरिफ या बैरियर के ही सुरक्षित रहता है क्यों की वहां के लोग अपने स्वदेश निर्मित सामानों का प्रयोग करते हैं और अपने उत्पादों का दीवाना बनाने का हुनर उन्हें पता है, इसलिए अमेरिका में उनकी कारों का बोलबाला है।

हमारा रचनात्मक जगत पश्चिमी विश्व के अंधे अनुकरण में किस कदर डूबा है इसकी बानगी अभी हाल ही में एक विवादित कोमेडी शो के दौरान एक अत्यंत अशोभनीय टिपण्णी के साथ उजागर हुई जहाँ यह संवाद भी पश्चिमी टीवी शो की नक़ल कर के बोला गया था। भारत में अभिनय, फिल्म उद्योग तो छोडिये रियलिटी शो में भी संवाद नक़ल से आ रहे हैं।

हॉलीवुड को टक्कर देता जापान का सांस्कृतिक अग्रदूत “एनीमे”:

स्टूडियो घिबली की फिल्में, जैसे My Neighbor Totoro (1988), Spirited Away (2001), Princess Mononoke (1997), और Howl’s Moving Castle (2004), जापानी संस्कृति, मिथकों और परंपराओं को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करती हैं। Spirited Away ने 2003 में ऑस्कर (Academy Award) जीता, जो किसी जापानी एनीमेशन के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। इसने जापान को वैश्विक मंच पर सांस्कृतिक नेतृत्व की स्थिति में खड़ा किया। इन फिल्मों में दिखाए गए पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तीकरण और पारिवारिक मूल्यों ने दुनिया भर में दर्शकों के दिलों को छुआ और जापानी दृष्टिकोण की व्यापक स्वीकृति दिलाई।

एनीमे और जापान का सॉफ्ट पावर

जापान ने एनीमे के माध्यम से सॉफ्ट पावर को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है। सॉफ्ट पावर का तात्पर्य है कि किसी देश की सांस्कृतिक, राजनीतिक, और वैचारिक ताकतें दूसरों को आकर्षित और प्रभावित कर सकें।

2023 में वैश्विक एनीमे बाजार का मूल्य लगभग 26.89 बिलियन डॉलर था, और यह 2030 तक 52.97 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। जापानी एनीमे और मंगा उद्योग ने 2020 में 2 ट्रिलियन येन (लगभग 18 बिलियन डॉलर) से अधिक का निर्यात किया।

नेटफ्लिक्स जैसे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर 100 से अधिक जापानी एनीमे सीरीज उपलब्ध हैं। स्टूडियो घिबली की सभी फिल्में नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध कराए जाने के बाद, उनकी वैश्विक लोकप्रियता में 200% से अधिक वृद्धि हुई।

जापान के सांस्कृतिक ब्रांड “एनीमे” का उपयोग:

Totoro Forest और Spirited Away से प्रेरित लोकेशन्स जापान में पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं। एनीमे के माध्यम से लाखों लोगों ने जापानी भाषा और संस्कृति को सीखने में रुचि दिखाई है। जापानी सरकार ने एनीमे को Cool Japan Initiative का हिस्सा बनाया है, जिसमें 2025 तक 1 ट्रिलियन येन का निवेश किया गया है।

स्टूडियो घिबली का योगदान

स्टूडियो घिबली ने जापानी सॉफ्ट पावर को तीन तरीकों से मजबूत किया है। फिल्मों में गहरे नैतिक और मानवीय संदेश होते हैं, जो वैश्विक दर्शकों से जुड़ते हैं। घिबली की फिल्मों ने 120 से अधिक देशों में प्रदर्शित होकर जापानी संस्कृति को लोकप्रिय बनाया। Totoro जैसे कैरेक्टर्स जापान के सांस्कृतिक आइकन बन गए हैं।

स्टूडियो घिबली और एनीमे ने जापान को केवल आर्थिक लाभ ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और कूटनीतिक मजबूती भी प्रदान की है। एनीमे अब एक वैश्विक भाषा बन चुकी है, जो जापान की परंपराओं और मूल्यों को दुनिया भर में पहुंचा रही है। घिबली का योगदान, जापान की सॉफ्ट पावर को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में मील का पत्थर साबित हुआ है।

श्री युगो साको से बहुत कुछ सीख सकता था भारत:

1980 के दशक के अंत में,  रामायण से प्रभावित होकर जापानी निर्देशक युगो साको ने प्रसिद्ध भारतीय एनिमेटर राम मोहन के साथ मिलकर इस महाकाव्य की एक एनीमे-शैली में निर्देशित करने का निर्णय लिया। इस इंडो-जापानी संयुक्त निर्माण का नाम “रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम”  था। लगभग $13 मिलियन के बजट के साथ निर्मित यह फिल्म पाँच वर्षों में पूरी हुई और 1992 में रिलीज़ हुई। इस फिल्म में भगवान राम की कहानी को अद्भुत दृश्यों, विस्तृत पात्र-डिज़ाइन, और संगीतकार वानराज भाटिया द्वारा तैयार किए गए एक प्रभावशाली बैकग्राउंड स्कोर के साथ प्रस्तुत किया गया। इसे हिंदी, अंग्रेजी और जापानी सहित 20 से अधिक भाषाओं में डब किया गया और यह केवल भारत और जापान में ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में भी दर्शकों तक पहुँची।

 

 

इस एनिमेटेड रामायण को विशेष बनाने वाली बात इसकी सांस्कृतिक विवरणों पर बारीकी से ध्यान देना था। युगो साको ने प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए 10 से अधिक भारतीय विद्वानों से परामर्श लिया और एनिमेशन शैली में जापानी एनीमे और भारतीय कला के तत्वों को शामिल किया। यह फिल्म 1993 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हुई और अपनी सांस्कृतिक सीमाओं को पार करने वाली कहानी के रूप में आलोचकों द्वारा सराही गई।

यह फिल्म निर्माण में वैश्विक सहयोग का एक प्रमुख उदाहरण बन गई और इसे धर्म (कर्तव्य), साहस और समर्पण जैसे रामायण के मूल्यों को वैश्विक दर्शकों तक पहुँचाने के लिए प्रशंसा प्राप्त किया। इस फिल्म की स्थायी विरासत यह दर्शाती है कि कैसे पारंपरिक भारतीय महाकाव्य, आधुनिक कहानी कहने के माध्यमों के साथ, सांस्कृतिक और भाषाई बाधाओं को पार कर सकते हैं और भारत की आध्यात्मिक धरोहर को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित कर सकते हैं।

कितने दुर्भाग्य की बात है की भारत ने यदि युगो साको के इस कार्य से सीखा होता तो आज इस उद्द्योग में भारत की भी एक बड़ी हिस्सेदारी होती लेकिन पश्चिम के अन्धानुकरण ने हमें अपने अभिनवता को उजागर ही नहीं होने दिया।

भारत के लिए सीख:

भारत अपनी समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ कर सकता है। जैसे जापान ने एनीमे और स्टूडियो घिबली के माध्यम से अपनी संस्कृति को विश्वभर में लोकप्रिय बनाया है, भारत भी रामायण और महाभारत जैसे अपने प्राचीन महाकाव्यों को उच्च-गुणवत्ता वाले एनिमेटेड श्रृंखला, फिल्मों और डिजिटल कहानी कहने के माध्यम से प्रस्तुत कर सकता है। मल्टीमीडिया संस्करण, गेमिफाइड लर्निंग टूल्स और वर्चुअल अनुभवों के साथ एक इंटरएक्टिव डिजिटल इकोसिस्टम में विस्तारित किया जा सकता है। इसके अलावा, बॉलीवुड और क्षेत्रीय सिनेमा को मात्र नकलची डायलाग एवं विदेशी फैशन के अंधे अनुकरण से हटकर सिनेमा को रणनीतिक रूप से प्रचारित करना चाहिए, ताकि भारत के मूल्य, परंपराएं और आधुनिक आकांक्षाएं विश्व के दर्शकों के सामने प्रस्तुत की जा सकें।

भारत जापान की कूल जापान इनिशिएटिव से प्रेरणा लेकर “कूल इंडिया” जैसे अभियान शुरू कर सकता है, जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत, कला रूपों और नवाचारों को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने पर केंद्रित हो। इस पहल के तहत भारत योग, आयुर्वेद, पारंपरिक शिल्प, शास्त्रीय संगीत और नृत्य जैसी अपनी ताकतों का उपयोग कर सकता है। भारतीय पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और इतिहास पर आधारित उच्च-गुणवत्ता वाली डिजिटल सामग्री, जैसे एनिमेटेड श्रृंखला, डॉक्यूमेंट्री और वर्चुअल रियलिटी अनुभव, वैश्विक दर्शकों को आकर्षित कर सकते हैं। इसके साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स, सांस्कृतिक महोत्सवों और संग्रहालयों के साथ साझेदारी करके भारत अपनी कहानियों और सांस्कृतिक खजाने को व्यापक दर्शकों तक पहुंचा सकता है।

इस प्रयास को और मजबूत बनाने के लिए भारत प्रमुख विदेशी शहरों में सांस्कृतिक केंद्र और उत्कृष्टता के हब स्थापित कर सकता है, जहां भारतीय कला, शिल्प, प्रदर्शन और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाए। इन प्रयासों को युवा दर्शकों को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया जाना चाहिए, ताकि भारतीय संस्कृति को आकर्षक और प्रासंगिक बनाया जा सके। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को सुदृढ़ करेगा, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को एक प्रगतिशील और गहरी जड़ों वाले राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करेगा। आधुनिक मीडिया तकनीकों को भारत की समृद्ध विरासत के साथ जोड़कर, भारत एक वैश्विक सॉफ्ट पावर नेता के रूप में अपनी पहचान बना सकता है, ठीक वैसे ही जैसे जापान ने अपनी एनीमे और डिज़ाइन इंडस्ट्री के माध्यम से किया है।


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Shivesh Pratap

Shivesh Pratap is a management consultant, author, and public policy analyst, having written extensively on the policies of the Modi government, foreign policy, and diplomacy. He is an electronic engineer and alumnus of IIM Calcutta in Supply Chain Management. Shivesh is actively involved in several think tank initiatives and policy framing activities, aiming to contribute towards India's development.

https://visionviksitbharat.com

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